Waah Drama Waah! Waah Baba Waah!

Key Points From The Daily Murli – Hindi and English

Key Points From Daily Murli – 22nd March 2025

 “प्रश्नः

बाप के संग से तुम्हें क्याक्या प्राप्तियां होती हैं?

उत्तर:-
बाप के संग से हम मुक्ति, जीवनमुक्ति के अधिकारी बन जाते हैं। बाप का संग तार देता है (पार ले जाता है) बाबा हमें अपना बनाकर आस्तिक और त्रिकालदर्शी बना देते हैं। हम रचता और रचना के आदिमध्यअन्त को जान जाते हैं।”

 

1.     “वन्डर ऑफ दी वर्ल्ड कहते हैं ना। यहाँ माया के राज्य में 7 वन्डर्स गाये जाते हैं। वह हैं स्थूल वन्डर्स। बाप समझाते हैं यह माया के वन्डर्स हैं, जिसमें दु: है। राम, बाप का वन्डर है स्वर्ग। वही वन्डर ऑफ वर्ल्ड है।”

 

2.    “अब तुमको बाप मन्दिर लायक बना रहे हैं। परन्तु माया का संग भी कम नहीं है। गाया हुआ है संग तारे, कुसंग बोरे। बाप का संग तुमको मुक्तिजीवनमुक्ति में ले जाता है फिर रावण का कुसंग तुमको दुर्गति में ले जाता हैं। 5 विकारों का संग हो जाता है ना। भक्ति में नाम कहते हैं सतसंग परन्तु सीढ़ी तो नीचे उतरते रहते हैं, सीढ़ी से कोई धक्का खायेगा तो जरूर नीचे ही गिरेगा ना! सर्व का सद्गति दाता एक बाप ही है।”

 

3.    “बाप कहते हैं मैं आकर तुमको आस्तिक भी बनाता हूँ, त्रिकालदर्शी भी बनाता हूँ। यह ड्रामा है, यह कोई साधूसन्त आदि नहीं जानते। वह होते हैं हद के ड्रामा, यह है बेहद का। इस बेहद के ड्रामा में हम सुख भी बहुत देखते हैं तो दु: भी बहुत देखते हैं। इस ड्रामा में कृष्ण और क्रिश्चियन का भी कैसा हिसाबकिताब है।

 

4.    “तुम जानते हो वह प्यार का सागर है। बाप तुम बच्चों को इतना ज्ञान सुनाते हैं, यही उनका प्यार है। टीचर स्टूडेन्ट को पढ़ाते हैं तो स्टूडेन्ट क्या से क्या बन जाते हैं। तुम बच्चों को भी बाप जैसा प्यार का सागर बनना है, प्यार से कोई को भी समझाना है। बाप कहते हैं तुम भी एकदो को प्यार करो। नम्बरवन प्यार हैबाप का परिचय दो। तुम गुप्त दान करते हो। एकदो के लिए घृणा भी नहीं रहनी चाहिए। नहीं तो तुमको भी डन्डे खाने पड़ेंगे। किसी का तिरस्कार करेंगे तो डन्डे खायेंगे। कभी भी किसी से नफरत नहीं रखो, तिरस्कार नहीं करो। देहअभिमान में आने से ही पतित बने हो। बाप देहीअभिमानी बनाते हैं तो तुम पावन बनते हो।”

 

5.    “बाप सिर्फ कहते हैं मामेकम् याद करो तो पावन बन जायेंगे। तुम बच्चों को रहमदिल बन सारा दिन सर्विस के ख्यालात चलाने चाहिए। बाप डायरेक्शन देते रहते हैंमीठे बच्चे, रहमदिल बन जो बिचारी दु:खी आत्मायें हैं, उन दु:खी आत्माओं को सुखी बनाओ। उन्हें पत्र लिखना चाहिए बहुत शार्ट में। बाप कहते हैं मुझे याद करो और वर्से को याद करो। एक शिवबाबा की ही महिमा है। मनुष्यों को बाप की महिमा का भी पता नहीं है। हिन्दी में भी चिट्ठी लिख सकते हो। सर्विस करने का भी बच्चों को हौंसला चाहिए। बहुत हैं जो आपघात करने बैठ जाते हैं, उन्हें भी तुम समझा सकते हो कि जीवघात महापाप है। अभी तुम बच्चों को श्रीमत देने वाला है शिवबाबा। वह है श्री श्री शिवबाबा। तुमको बनाते हैं श्री लक्ष्मी, श्री नारायण। श्री श्री तो वह एक ही है। वह कभी चक्र में आते नहीं हैं। बाकी तुमको श्री का टाइटिल मिलता है।”

 

6.    “किसी से भी घृणा वा ऩफरत नहीं करनी है। रहमदिल बन दु:खी आत्माओं को सुखी बनाने की सेवा करनी है। बाप समान मास्टर प्यार का सागर बनना है।”

 

7.     “”भगवान के हम बच्चे हैंइसी नशे वा खुशी में रहना है। कभी माया के उल्टे संग में नहीं जाना है। देहीअभिमानी बनकर ज्ञान की धारणा करनी है।”

 

8.    “लोग कहते हैं परमात्मा जानीजाननहार है, अब जानीजाननहार का अर्थ यह नहीं है कि सबके दिलों को जानता है। परन्तु सृष्टि रचना के आदिमध्यअन्त को जानने वाला है। बाकी ऐसे नहीं परमात्मा रचता पालन कर्ता और संहार कर्ता है तो इसका मतलब यह है कि परमात्मा पैदा करता है, खिलाता है और मारता है, परन्तु ऐसे नहीं है। मनुष्य अपने कर्मों के हिसाबकिताब से जन्म लेते हैं, इसका मतलब यह नहीं कि परमात्मा बैठ उनके बुरे संकल्प और अच्छे संकल्पों को जानेगा। वो तो जानता है कि अज्ञानियों के दिल में क्या चलता होगा? सारा दिन मायावी संकल्प चलते होंगे और ज्ञानी के अन्दर शुद्ध संकल्प चलते होंगे, बाकी एक एक संकल्प को बैठ थोड़ेही रीड करेगा? बाकी परमात्मा जानता है, अब तो सबकी आत्मा दुर्गति को पहुँची हुई है, उन्हों की सद्गति कैसे होनी है, यह सारी पहचान जानीजाननहार को है। अब मनुष्य जो कर्म भ्रष्ट बने हैं, उन्हों को श्रेष्ठ कर्म कराना, सिखलाना और उनको कर्मबन्धन से छुटकारा देना, यह परमात्मा जानता है। परमात्मा कहता है मुझ रचता और मेरी रचना के आदिमध्यअन्त की यह सारी नॉलेज को मैं जानता हूँ, वह पहचान तो तुम बच्चों को दे रहा हूँ। अब तुम बच्चों को उस बाप की निरन्तर याद में रहना है तब ही सर्व पापों से मुक्त होंगे अर्थात् अमरलोक में जायेंगे, अब इस जानने को ही जानीजाननहार कहते हैं।”

 

9.    “कभी भी सभ्यता को छोड़ करके सत्यता को सिद्ध नहीं करना। सभ्यता की निशानी है निर्मानता। यह निर्मानता निर्माण का कार्य सहज करती है। जब तक निर्मान नहीं बने तब तक निर्माण नहीं कर सकते। ज्ञान की शक्ति शान्ति और प्रेम है। अज्ञान की शक्ति क्रोध को बहुत अच्छी तरह से संस्कार बना लिया है और यूज़ भी करते रहते हो फिर माफी भी लेते रहते हो। ऐसे अब हर गुण को, हर ज्ञान की बात को संस्कार रूप में बनाओ तो सभ्यता आती जायेगी।”

 


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

×