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Key Points From The Daily Murli – Hindi and English

Key Points From Daily Murli – 18th November 2024

 “प्रश्नः

माया तुम्हारे बीच में विघ्न क्यों डालती है? कोई कारण बताओ?

उत्तर:-
1.
क्योंकि तुम माया के बड़े ते बड़े ग्राहक हो। उसकी ग्राहकी खत्म होती है इसलिए विघ्न डालती है।

2. जब अविनाशी वैद्य तुम्हें दवा देता है तो माया की बीमारी उथलती है इसलिए विघ्नों से डरना नहीं है। मनमनाभव के मंत्र से माया भाग जायेगी।”

 

1.     “रोज़ कहते भी हैं ओम् शान्ति। परन्तु इसका अर्थ समझने के कारण शान्ति मांगते ही रहते हैं। कहते भी हैं आई एम आत्मा अर्थात् आई एम साइलेन्स। हमारा स्वधर्म है साइलेन्स।”

 

2.    “5 विकारों में सब फँसते हैं। जन्म ही भ्रष्टाचार से होता है तो रावण का राज्य हुआ। इस समय अथाह दु: हैं। इसका निमित्त कौन? रावण। यह कोई को पता नहींदु: किस कारण होता है। यह तो राज्य ही रावण का है। सबसे बड़ा दुश्मन यह है।”

 

3.    “इस समय सब इन विकारों की जेल में पड़े हैं।”

 

4.    “आत्मा और जीव दो का खेल है। निराकार आत्मा अविनाशी है और साकार शरीर विनाशी है इनका खेल है।”

 

5.    “बाप के पास दवाई है ना। यह भी बताता हूँ, माया विघ्न जरूर डालेगी। तुम रावण के ग्राहक हो ना। उनकी ग्राहकी चली जायेगी तो जरूर फथकेगी (परेशान होगी) तो बाप समझाते हैं यह तो पढ़ाई है। कोई दवाई नहीं है। दवाई यह है याद की यात्रा। एक ही दवाई से तुम्हारे सब दु: दूर हो जायेंगे, अगर मेरे को निरन्तर याद करने का पुरूषार्थ करेंगे तो।”

 

6.    “यहाँ फिर बाप समझाते हैं रामराम कोई मुख से कहना नहीं है। यह तो अजपाजाप है सिर्फ बाप को याद करते रहो। बाप कहते हैं मैं कोई राम नहीं हूँ।”

 

7.     “बेहद के बाप को याद कर अन्दर में खुशी होती है फिर से हम विश्व का मालिक बनेंगे। यह आत्मा की खुशी के संस्कार ही फिर साथ चलेंगे। फिर थोड़ाथोड़ा कम होता जायेगा। इस समय माया तुमको बहुत हैरान करेगी। माया कोशिश करेगीतुम्हारी याद को भुलाने की। सदैव ऐसे हर्षित मुख रह नहीं सकेंगे। जरूर कोई समय घुटका खायेंगे।”

 

8.    “यह है रावण की दुनिया। रावण बड़ा भारी दुश्मन है। इन जैसा दुश्मन कोई होता नहीं। हर वर्ष तुम रावण को जलाते हो। यह है कौन? किसको पता नहीं है। कोई मनुष्य तो नहीं है, यह हैं 5 विकार इसलिए इनको रावण राज्य कहा जाता है। 5 विकारों का राज्य है ना। सबमें 5 विकार हैं। यह दुर्गति और सद्गति का खेल बना हुआ है। अभी तुमको सद्गति के टाइम आदि का भी बाप ने समझाया है। दुर्गति का भी समझाया है। तुम ही ऊंच चढ़ते हो फिर तुम ही नीचे गिरते हो।”

 

9.    “स्वप्न में भी किसी के पास फरिश्ता आता है तो कितना खुश होते हैं। फरिश्ता अर्थात् सर्व के प्यारे। हद के प्यारे नहीं, बेहद के प्यारे। जो प्यार करे उसके प्यारे नहीं लेकिन सर्व के प्यारे। कोई कैसी भी आत्मा हो लेकिन आपकी दृष्टि, आपकी भावना प्यार की होइसको कहा जाता है सर्व के प्यारे। कोई इनसल्ट करे, घृणा करे तो भी उसके प्रति प्यार वा कल्याण की भावना उत्पन्न हो क्योंकि उस समय वह परवश है।”

 


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