Key Points From Daily Murli – 18th January 2025
2. “मुख्य है ही ज्ञान और योग। बाप के पास यही बहुत बड़ा खजाना है जो बच्चों को देते हैं, इसमें योग की बहुत बड़ी सब्जेक्ट है। बच्चे अच्छी रीति याद करते हैं तो बाप की भी याद से याद मिलती है। याद से बच्चे बाप को खींचते हैं। पिछाड़ी में आने वाले जो ऊंच पद पाते, उसका आधार भी याद है।”
3. “याद से ही करेन्ट मिलती रहेगी, इससे आत्मा हेल्दी बनती है, भरपूर हो जाती है। कोई समय बाप को किसी बच्चे को करेन्ट देनी होती है तो नींद भी फिट जाती है। यह फुरना लगा रहता है कि फलाने को करेन्ट देनी है। तुम जानते हो करेन्ट मिलने से आयु बढ़ती है, एवरहेल्दी बनते हैं। ऐसे भी नहीं एक जगह बैठ याद करना है। बाप समझाते हैं चलते फिरते भोजन खाते, कार्य करते भी बाप को याद करो। दूसरे को करेन्ट देनी है तो रात्रि को भी जागो। बच्चों को समझाया है – सवेरे उठकर जितना बाप को याद करेंगे उतना कशिश होगी। बाप भी सर्चलाइट देंगे। आत्मा को याद करना अर्थात् सर्चलाइट देना, फिर इसको कृपा कहो, आशीर्वाद कहो।”
4. “कभी किसी बच्चे का गुस्से का आवाज सुनते हैं तो बाप शिक्षा देते हैं बच्चे गुस्सा करना ठीक नहीं है, इससे तुम भी दु:खी होंगे, दूसरों को भी दु:खी करेंगे। बाप सदाकाल का सुख देने वाला है तो बच्चों को भी बाप समान बनना है। एक दो को कभी दु:ख नहीं देना है। बहुत–बहुत लवली बनना है।”
5. “जैसे एक सेकेण्ड में स्वीच आन और आफ किया जाता है, ऐसे ही एक सेकेण्ड में शरीर का आधार लिया और फिर एक सेकेण्ड में शरीर से परे अशरीरी स्थिति में स्थित हो जाओ। अभी–अभी शरीर में आये फिर अभी–अभी अशरीरी बन गये, यह प्रैक्टिस करनी है, इसी को ही कर्मातीत अवस्था कहा जाता है। जैसे कोई वस्त्र धारण करना वा न करना अपने हाथ में रहता है। आवश्यकता हुई धारण किया, आवश्यकता न हुई तो उतार दिया। ऐसा ही अनुभव इस शरीर रूपी वस्त्र को धारण करने और उतारने में हो। कर्म करते भी ऐसा अनुभव होना चाहिए जैसे कोई वस्त्र धारण कर कार्य कर रहे हैं, कार्य पूरा हुआ और वस्त्र से न्यारे हुए। शरीर और आत्मा दोनों का न्यारापन चलते–फिरते भी अनुभव हो। जैसे कोई प्रैक्टिस हो जाती है ना, लेकिन यह प्रैक्टिस किन्हें हो सकती है? जो शरीर के साथ वा शरीर के सम्बन्ध में जो भी बातें हैं, शरीर की दुनिया, सम्बन्ध वा अनेक जो भी वस्तुयें हैं उनसे बिल्कुल डिटैच होंगे, जरा भी लगाव नहीं होगा तब न्यारा हो सकेंगे। अगर सूक्ष्म संकल्प में भी हल्कापन नहीं है, डिटैच नहीं हो सकते तो न्यारेपन का अनुभव नहीं कर सकेंगे। तो हर एक को अब यह प्रैक्टिस करनी है, बिल्कुल ही न्यारेपन का अनुभव हो। इस स्टेज पर रहने से अन्य आत्माओं को भी आप लोगों से न्यारेपन का अनुभव होगा, वह भी महसूस करेंगे। जैसे योग में बैठने के समय कई आत्माओं को अनुभव होता है ना, यह ड्रिल कराने वाले न्यारी स्टेज में हैं, ऐसे चलते–फिरते फरिश्तेपन के साक्षात्कार होंगे। यहाँ बैठे हुए भी अनेक आत्माओं को, जो भी आपके सतयुगी फैमिली में समीप आने वाले होंगे, उन्हों को आप लोगों के फरिश्ते रूप और भविष्य राज्य पद के दोनों इक्ट्ठे साक्षात्कार होंगे। जैसे शुरू में ब्रह्मा में सम्पूर्ण स्वरूप और श्रीकृष्ण का दोनों साथ–साथ साक्षात्कार करते थे, ऐसे अब उन्हों को तुम्हारे डबल रूप का साक्षात्कार होगा। जैसे–जैसे नम्बरवार इस न्यारी स्टेज पर आते जायेंगे तो आप लोगों के भी यह डबल साक्षात्कार होंगे। अभी यह पूरी प्रैक्टिस हो जाए तो यहाँ वहाँ से यही समाचार आने शुरू हो जायेंगे। जैसे शुरू में घर बैठे भी अनेक समीप आने वाली आत्माओं को साक्षात्कार हुए ना। वैसे अब भी साक्षात्कार होंगे। यहाँ बैठे भी बेहद में आप लोगों का सूक्ष्म स्वरूप सर्विस करेगा। अब यही सर्विस रही हुई है। साकार में सभी इग्जाम्पुल तो देख लिया। सभी बातें नम्बरवार ड्रामा अनुसार होनी हैं। जितना–जितना स्वयं आकारी फरिश्ते स्वरूप में होंगे उतना आपका फरिश्ता रूप सर्विस करेगा। आत्मा को सारे विश्व का चक्र लगाने में कितना समय लगता है? तो अभी आपके सूक्ष्म स्वरूप भी सर्विस करेंगे लेकिन जो इस न्यारी स्थिति में होंगे। स्वयं फरिश्ते रूप में स्थित होंगे। शुरू में सभी साक्षात्कार हुए हैं। फरिश्ते रूप में सम्पूर्ण स्टेज और पुरुषार्थी स्टेज दोनों अलग–अलग साक्षात्कार होता था। जैसे साकार ब्रह्मा और सम्पूर्ण ब्रह्मा का अलग–अलग साक्षात्कार होता था, वैसे अनन्य बच्चों के साक्षात्कार भी होंगे। हंगामा जब होगा तो साकार शरीर द्वारा तो कुछ कर नहीं सकेंगे और प्रभाव भी इस सर्विस से पड़ेगा। जैसे शुरू में भी साक्षात्कार से ही प्रभाव हुआ ना। परोक्ष–अपरोक्ष अनुभव ने प्रभाव ड़ाला। वैसे अन्त में भी यही सर्विस होनी है। अपने सम्पूर्ण स्वरूप का साक्षात्कार अपने आप को होता है? अभी शक्तियों को पुकारना शुरू हो गया है। अभी परमात्मा को कम पुकारते हैं, शक्तियों की पुकार तेज रफ्तार से चालू हो गई है। तो ऐसी प्रैक्टिस बीच–बीच में करनी है। आदत पड़ जाने से फिर बहुत आनन्द फील होगा। एक सेकेण्ड में आत्मा शरीर से न्यारी हो जायेगी, प्रैक्टिस हो जायेगी। अभी यही पुरुषार्थ करना है। वर्तमान समय मनन शक्ति से आत्मा में सर्व शक्तियाँ भरने की आवश्यकता है तब मगन अवस्था रहेगी और विघ्न टल जायेंगे। विघ्नों की लहर तब आती है जब रूहानियत की तरफ फोर्स कम हो जाता है। तो वर्तमान समय शिवरात्रि की सर्विस के पहले स्वयं में शक्ति भरने का फोर्स चाहिए। भल योग के प्रोग्राम्स रखते हो लेकिन योग द्वारा शक्तियों का अनुभव करना, कराना अब ऐसी क्लासेज़ की आवश्यकता है। प्रैक्टिकल अपने बल के आधार से औरों को बल देना है। सिर्फ बाहर की सर्विस के प्लैन नहीं सोचने हैं लेकिन पूरी ही नज़र चाहिए सभी तरफ। जो निमित्त बने हुए हैं उन्हों को यह ख्यालात आनी चाहिए कि हमारी फुलवारी किस बात में कमजोर है। किसी भी रीति से अपने फुलवारी की कमजोरी पर कड़ी दृष्टि रखनी चाहिए। समय देकर भी कमजोरियों को खत्म करना है। जैसे साकार रूप को देखा, कोई भी ऐसी लहर का समय होता, तो दिन–रात सकाश देने की विशेष सर्विस, विशेष प्लैन्स चलते थे। निर्बल आत्माओं को बल भरने का विशेष अटेन्शन रहता था जिससे अनेक आत्माओं को अनुभव भी होता था। रात–रात को भी समय निकाल आत्माओं को सकाश भरने की सर्विस चलती थी। तो अभी विशेष सकाश देने की सर्विस करनी है। लाइट हाउस, माइट हाउस बनकर यह सर्विस खास करनी है, तब चारों ओर लाइट माइट का प्रभाव फैलेगा। अभी यही आवश्यकता है। जैसे कोई साहूकार होता है तो अपने नजदीक सम्बन्धियों को मदद देकर ऊंचा उठा लेता है, ऐसे वर्तमान समय जो भी कमजोर आत्मायें सम्पर्क और सम्बन्ध में हैं, उन्हों को विशेष सकाश देनी है।”
6. “अशरीरी स्थिति का अनुभव व अभ्यास ही नम्बर आगे आने का आधार है।“
7. “हर समय, हर आत्मा के प्रति मन्सा स्वत: शुभभावना और शुभकामना के शुद्ध वायब्रेशन वाली स्वयं को और दूसरों को अनुभव हो। मन से हर समय सर्व आत्माओं प्रति दुआयें निकलती रहें। मन्सा सदा इसी सेवा में बिजी रहे। जैसे वाचा की सेवा में बिजी रहने के अनुभवी हो गये हो। अगर सेवा नहीं मिलती तो अपने को खाली अनुभव करते हो। ऐसे हर समय वाणी के साथ–साथ मन्सा सेवा स्वत: होती रहे।”