Key Points From Daily Murli – 13th November 2024
2. “यह निश्चय बिठाना है कि हम आत्मा हैं, परमात्मा नहीं हैं। न हमारे में परमात्मा व्यापक है। सभी में आत्मा व्यापक है। आत्मा शरीर के आधार से पार्ट बजाती है। यह पक्का कराओ।”
3. “सतयुग–त्रेता पास्ट हुआ, नोट करो। उनको कहा जाता है स्वर्ग और सेमी स्वर्ग। वहाँ देवी–देवताओं का राज्य चलता है। सतयुग में है 16 कला, त्रेता में है 14 कला।“
4. “विष्णुपुरी ही बदल राम–सीता पुरी बनती है। उनकी भी डिनायस्टी चलती है ना। दो युग पास्ट हुए फिर आता है द्वापरयुग। रावण का राज्य। देवतायें वाम मार्ग में चले जाते हैं तो विकार का सिस्टम बन जाता है।”
5. “सतयुग–त्रेता में सभी निर्विकारी रहते हैं। एक आदि सनातन देवी–देवता धर्म रहता है।“
6. “बाप अपना परिचय खुद ही आकर देते हैं। खुद कहते हैं मैं आता हूँ पतितों को पावन बनाने के लिए तो मुझे शरीर जरूर चाहिए। नहीं तो बात कैसे करूँ। मैं चैतन्य हूँ, सत हूँ और अमर हूँ। सतो, रजो, तमो में आत्मा आती है। आत्मा ही पतित, आत्मा ही पावन बनती है। आत्मा में ही सब संस्कार हैं। पास्ट के कर्म वा विकर्म का संस्कार आत्मा ले आती है। सतयुग में तो विकर्म होता नहीं, कर्म करते हैं, पार्ट बजाते हैं। परन्तु वह कर्म अकर्म बन जाता है। गीता में भी अक्षर हैं।”
7. “जानते हो बाबा आया हुआ है पुरानी दुनिया को बदल नई दुनिया बनाने, जहाँ कर्म अकर्म हो जाते हैं। उनको ही सतयुग कहा जाता है और यहाँ फिर यह कर्म विकर्म ही होते हैं जिसको कलियुग कहा जाता है। तुम अभी हो संगम पर। बाबा दोनों ही तरफ की बात सुनाते हैं।”
8. “आत्मा पावन बनती है फिर शरीर भी पावन बनता है। जैसे सोना, वैसे जेवर भी बनता है।”
9. “बाप समझाते हैं मैं उनके तन में आता हूँ, जो बहुत जन्मों के अन्त में है, पूरा 84 जन्म लेते हैं। राजाओं का राजा बनाने के लिए इस भाग्यशाली रथ में प्रवेश करना होता है।”
10. “पहले नम्बर में है श्रीकृष्ण। वह है नई दुनिया का मालिक। फिर वही नीचे उतरते हैं। सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी, फिर वैश्य, शूद्र वंशी फिर ब्रह्मा वंशी बनते हैं। गोल्डन से सिल्वर…… फिर तुम आइरन से गोल्डन बन रहे हो।”
11. “जिसमें मैंने प्रवेश किया है, इनकी आत्मा में तो ज़रा भी यह नॉलेज नहीं थी। इनमें मैं प्रवेश करता हूँ, इसलिए इनको भाग्यशाली रथ कहा जाता है। खुद कहते हैं मैं इनके बहुत जन्मों के अन्त में आता हूँ।”
12. “बाप कहते हैं मैं बीजरूप हूँ। श्रीकृष्ण तो है ही सतयुग का रहवासी। उनको दूसरी जगह तो कोई देख न सके।”
13. “कर्म से मुक्त हम इनकारपोरियल दुनिया में जाकर बैठते हैं। पार्टधारी घर गया तो पार्ट से मुक्त हुआ। सब चाहते हैं हम मुक्ति पावें। परन्तु मुक्ति तो किसको मिल न सके। यह ड्रामा अनादि अविनाशी है। कोई कहे यह पार्ट बजाना हमको पसन्द नहीं, परन्तु इसमें कोई कुछ कर न सके। यह अनादि ड्रामा बना हुआ है। एक भी मुक्ति को नहीं पा सकते। वह सब हैं अनेक प्रकार की मनुष्य मत।”