Key Points From Daily Murli – 11th February 2025
2. “यह भी समझाना है कि गुरू दो प्रकार के हैं। एक हैं भक्ति मार्ग के गुरू, वह भक्ति ही सिखलाते हैं। यह बाप तो है ज्ञान का सागर, इनको सतगुरू कहा जाता है।”
3. “तुम बच्चे जानते हो हम आत्माओं के रहने का स्थान परे ते परे है। वहाँ सूर्य–चांद की भी रोशनी नहीं है।”
4. “बाबा ने समझाया है यह सारी दुनिया एक बेहद का आयलैण्ड है। जैसे लंका टापू है। दिखाते हैं रावण लंका में रहता था। अभी तुम समझते हो रावण का राज्य तो सारी बेहद की लंका पर है। यह सारी सृष्टि समुद्र पर खड़ी है। यह टापू है। इस पर रावण का राज्य है। यह सब सीतायें रावण की जेल में हैं। उन्होंने तो हद की कथायें बना दी हैं। है यह सारी बेहद की बात। बेहद का नाटक है, उसमें ही फिर छोटे–छोटे नाटक बैठ बनाये हैं। यह बाइसकोप आदि भी अभी बने हैं, तो बाप को भी समझाने में सहज होता है।”
5. “बेहद का सारा ड्रामा तुम बच्चों की बुद्धि में है। मूलवतन, सूक्ष्मवतन और किसकी बुद्धि में हो न सके। तुम जानते हो हम आत्मायें मूलवतन की रहवासी हैं। देवतायें हैं सूक्ष्मवतन वासी, उनको फरिश्ता भी कहते हैं। वहाँ हड्डी मांस का पिंजड़ा होता नहीं। यह सूक्ष्मवतन का पार्ट भी थोड़े समय के लिए है। अभी तुम आते–जाते हो फिर कभी नहीं जायेंगे। तुम आत्मायें जब मूलवतन से आती हो तो वाया सूक्ष्मवतन नहीं आती हो, सीधी आती हो। अभी वाया सूक्ष्मवतन जाती हो। अभी सूक्ष्मवतन का पार्ट है। यह सब राज़ बच्चों को समझाते हैं। बाप जानते हैं कि हम आत्माओं को समझा रहे हैं।”
6. “अब बाप बैठ समझाते हैं – जिस–जिस रूप में जैसी भावना रखते हैं, जो शक्ल देखते हैं, वह साक्षात्कार हो जाता है।”
7. “ऐसे भी कई सेन्टर्स पर आते हैं जो विकार में जाते रहते हैं और फिर सेन्टर्स पर आते रहते हैं। समझते हैं ईश्वर तो सब देखता है, जानता है। अब बाप को क्या पड़ी है जो यह बैठ देखेगा। तुम झूठ बोलेंगे, विकर्म करेंगे तो अपना ही नुकसान करेंगे। यह तो तुम भी समझते हो, काला मुँह करता हूँ तो ऊंच पद पा नहीं सकूँगा। सो बाप ने जाना तो भी बात तो एक ही हुई। उनको क्या दरकार पड़ी है। अपनी दिल खानी चाहिए – मैं ऐसा कर्म करने से दुर्गति को पाऊंगा। बाबा क्यों बतावे? हाँ, ड्रामा में है तो बतलाते भी हैं। बाबा से छिपाना गोया अपनी सत्यानाश करना है। पावन बनने के लिए बाप को याद करना है, तुमको यही फुरना रहना चाहिए कि हम अच्छी रीति पढ़कर ऊंच पद पावें। कोई मरा वा जिया, उनका फुरना नहीं। फुरना (फिक्र) रखना है कि बाप से वर्सा कैसे लेवें? तो किसको भी थोड़े में समझाना है।”
8. “जब किसी भी प्रकार का दु:ख आये तो मन्त्र ले लो जिससे दु:ख भाग जायेगा। स्वप्न में भी जरा भी दु:ख का अनुभव न हो, तन बीमार हो जाए, धन नीचे ऊपर हो जाए, कुछ भी हो लेकिन दु:ख की लहर अन्दर नहीं आनी चाहिए। जैसे सागर में लहरें आती हैं और चली जाती हैं लेकिन जिन्हें उन लहरों में लहराना आता है वह उसमें सुख का अनुभव करते हैं, लहर को जम्प देकर ऐसे क्रास करते हैं, जैसे खेल कर रहे हैं। तो सागर के बच्चे सुख स्वरूप हो, दु:ख की लहर भी न आये।”
9. “हर संकल्प में दृढ़ता की विशेषता को प्रैक्टिकल में लाओ तो प्रत्यक्षता हो जायेगी।”