Key Points From Daily Murli – 10th March 2025
जो सतोप्रधान पुरूषार्थी हैं उनकी निशानी क्या होगी?
उत्तर:-
वह औरों को भी आप समान बनायेंगे। वह बहुतों का कल्याण करते रहेंगे। ज्ञान धन से झोली भरकर दान करेंगे। 21 जन्मों के लिए वर्सा लेंगे और दूसरों को भी दिलायेंगे।”
1. “उनको कहते हैं शिवाए नम:। तुमको तो नम: नहीं करना है। बाप को बच्चे याद करते हैं, नम: कभी नहीं करते। यह भी बाप है, इनसे तुमको वर्सा मिलता है। तुम नम: नहीं करते हो, याद करते हो। जीव की आत्मा याद करती है।”
2. “सतयुग है सुखधाम और जहाँ आत्मायें रहती हैं उसको कहा जाता है शान्तिधाम। तुम्हारी बुद्धि में है कि हम शान्तिधाम के वासी हैं। इस कलियुग को कहा ही जाता है दु:खधाम।”
3. “यहाँ कलियुग में तो पाप ही होते रहते हैं, पुण्य होता ही नहीं। करके अल्पकाल के लिए सुख मिलता है। अभी तो तुम भविष्य सतयुग में 21 जन्मों के लिए सदा सुखी बनते हो। उसका नाम ही है सुखधाम। प्रदर्शनी में भी तुम लिख सकते हो कि शान्तिधाम और सुखधाम का यह मार्ग है, शान्तिधाम और सुख–धाम में जाने का सहज मार्ग। अभी तो कलियुग है ना। कलियुग से सतयुग, पतित दुनिया से पावन दुनिया में जाने का सहज रास्ता – बिगर कौड़ी खर्चा। तो मनुष्य समझें क्योंकि पत्थरबुद्धि हैं ना। बाप बिल्कुल सहज करके समझाते हैं। इसका नाम ही है सहज राजयोग, सहज ज्ञान।”
4. “तुम जानते हो एक है भक्त माला, दूसरी है ज्ञान की माला। भक्त माला से रूद्र माला के बने हैं फिर रूद्र माला से विष्णु की माला बनती है। रूद्र माला है संगमयुग की, यह राज़ तुम बच्चों की बुद्धि में है।”
5. “मनुष्यों को यह पता नहीं है कि स्वदर्शन चक्र क्या है? शास्त्रों में श्रीकृष्ण को भी स्वदर्शन चक्र दे हिंसा ही हिंसा दिखा दी है। वास्तव में है ज्ञान की बात। तुम अभी स्वदर्शन चक्रधारी बने हो उन्हों ने फिर हिंसा की बात दिखा दी है। तुम बच्चों को अब स्व अर्थात् चक्र का ज्ञान मिला है। तुमको बाबा कहते हैं – ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण कुल भूषण, स्वदर्शन चक्रधारी। इनका अर्थ भी अभी तुम समझते हो।”
6. “जैसे तुमको बाबा ने पढ़ाया है, तुम पढ़कर होशियार हुए हो। अब तुमको फिर औरों का कल्याण करना है। स्वदर्शन चक्रधारी बनना है। जब तक ब्रह्मा मुख वंशावली नहीं बने तो शिवबाबा से वर्सा कैसे लेंगे। अभी तुम बने हो ब्राह्मण। वर्सा शिवबाबा से ले रहे हो। यह भूलना नहीं चाहिए। प्वाइंट नोट करनी चाहिए।”
7. “बाप परम दु:ख से परम सुख में ले जाते हैं। इनका विनाश होता है फिर सब सतोप्रधान बन जाता है। अभी तुम पुरूषार्थ कर जितना बाप से वर्सा लेना है उतना ले लो। नहीं तो पिछाड़ी में पश्चाताप करना पड़ेगा। बाबा आया परन्तु हमने कुछ नहीं लिया। यह लिखा हुआ है – भंभोर को आग लगती है तब कुम्भकरण की नींद से जागते हैं। फिर हाय–हाय कर मर जाते हैं। हाय–हाय के बाद फिर जय–जयकार होगी। कलियुग में हाय–हाय है ना। एक–दो को मारते रहते हैं। बहुत ढेर के ढेर मरेंगे। कलियुग के बाद फिर सतयुग जरूर होगा। बीच में यह है संगम। इसको पुरूषोत्तम युग कहा जाता है। बाप तमोप्रधान से सतोप्रधान बनने की युक्ति अच्छी बताते हैं। सिर्फ कहते हैं मुझे याद करो और कुछ भी नहीं करना है।”
8. “इस समय सबकी उतरती कला है। बाप कहते हैं मैं आकर सर्व की सद्गति करता हूँ। सबको घर ले जाता हूँ। पतितों को तो साथ नहीं ले जाऊंगा इसलिए अब पवित्र बनो तो तुम्हारी ज्योत जग जायेगी।”
9. “बाप समझाते हैं मेरी तो ज्योत जगी हुई है। मैं तुम्हारी ज्योत जगाता हूँ।”
10. “बेहद के बाप से बेहद सुख का वर्सा लेने के लिए डायरेक्ट ईश्वर अर्थ दान–पुण्य करना है। ज्ञान धन से झोली भरकर सबको देना है।”