Waah Drama Waah! Waah Baba Waah!

Key Points From The Daily Murli – Hindi and English

February 2025 – Key Points from Daily Murli

 01/02/2025

मीठे बच्चेतुम आत्माओं का स्वधर्म शान्ति है, तुम्हारा देश शान्तिधाम है, तुम आत्मा शान्त स्वरूप हो इसलिए तुम शान्ति मांग नहीं सकते

प्रश्नः
तुम्हारा योगबल कौनसी कमाल करता है?

उत्तर:-
योगबल से तुम सारी दुनिया को पवित्र बनाते हो, तुम कितने थोड़े बच्चे योगबल से यह सारा पहाड़ उठाए सोने का पहाड़ स्थापन करते हो। 5 तत्व सतोप्रधान हो जाते हैं, अच्छा फल देते हैं। सतोप्रधान तत्वों से यह शरीर भी सतोप्रधान होते हैं। वहाँ के फल भी बहुत बड़ेबड़े स्वादिष्ट होते हैं।

  1. जब ओम् शान्ति कहा जाता है तो बहुत खुशी होनी चाहिए क्योंकि वास्तव में आत्मा है ही शान्त स्वरूप, उसका स्वधर्म ही शान्त है। इस पर संन्यासी भी कहते हैं, शान्ति का तो तुम्हारे गले में हार पड़ा है। शान्ति को बाहर कहाँ ढूँढते हो। आत्मा स्वत: शान्त स्वरूप है। इस शरीर में पार्ट बजाने आना पड़ता है। आत्मा सदा शान्त रहे तो कर्म कैसे करेगी? कर्म तो करना ही है। हाँ, शान्तिधाम में आत्मायें शान्त रहती हैं। वहाँ शरीर है नहीं, यह कोई भी संन्यासी आदि नहीं समझते कि हम आत्मा हैं, शान्तिधाम में रहने वाली हैं। बच्चों को समझाया गया हैशान्तिधाम हमारा देश है, फिर हम सुखधाम में आकर पार्ट बजाते हैं फिर रावण राज्य होता है दु:खधाम में। यह 84 जन्मों की कहानी है।
  2. हर एक बच्चे को अपने दिल से पूछना है कि कितना समय बाप की याद ठहरती है? जास्ती टाइम तो बाहरमुखता में ही जाता है। यह याद ही मुख्य है। इस भारत के योग की ही बहुत महिमा है। परन्तु योग कौन सिखलाते हैंयह किसको पता नहीं है।
  3. यह है युधिष्ठिर, युद्ध के मैदान में बच्चों को खड़ा करने वाला। यह है नानवायोलेन्स, अहिंसक। मनुष्य हिंसा समझ लेते हैं मारामारी को। बाप कहते हैं पहली मुख्य हिंसा तो काम कटारी की है इसलिए काम महाशत्रु कहा है, इन पर ही विजय पानी है। मूल बात है ही काम विकार की, पतित माना विकारी। विकारी कहा ही जाता है पतित बनने वाले को, जो विकार में जाते हैं। क्रोध करने वाले को ऐसे नहीं कहेंगे कि यह विकारी है। क्रोधी को क्रोधी, लोभी को लोभी कहेंगे। देवताओं को निर्विकारी कहा जाता है। देवतायें निर्लोभी, निर्मोही, निर्विकारी हैं। वह कभी विकार में नहीं जाते। तुमको कहते हैं विकार बिगर बच्चे कैसे होंगे? उन्हों को तो निर्विकारी मानते हो ना। वह है ही वाइसलेस दुनिया। द्वापर कलियुग है विशश दुनिया। खुद को विकारी, देवताओं को निर्विकारी कहते तो हैं ना। तुम जानते हो हम भी विकारी थे। अब इन जैसा निर्विकारी बन रहे हैं। इन लक्ष्मीनारायण ने भी याद के बल से यह पद पाया है फिर पा रहे हैं। हम ही देवीदेवता थे, हमने कल्प पहले ऐसे राज्य पाया था, जो गँवाया, फिर हम पा रहे हैं। यही चिंतन बुद्धि में रहे तो भी खुशी रहेगी। परन्तु माया यह स्मृति भुला देती है। बाबा जानते हैं तुम स्थाई याद में रह नहीं सकेंगे। तुम बच्चे अडोल बन याद करते रहो तो जल्दी कर्मातीत अवस्था हो जाए और आत्मा वापिस चली जाए। परन्तु नहीं। पहले नम्बर में तो यह जाने वाला है। फिर है शिवबाबा की बरात।
  4. तुम योगबल से अपनी ज्योति जगाते हो। योग से तुम पवित्र बनते हो। ज्ञान से धन मिलता है। पढ़ाई को सोर्स ऑफ इनकम कहा जाता है ना। योगबल से तुम खास भारत और आम सारे विश्व को पवित्र बनाते हो।
  5. अब बाप कहते हैं देह सहित सबको भूलना है। आप मुये मर गई दुनिया। बाप के एडाप्टेड बच्चे बने, बाकी किसको याद करेंगे। दूसरों को देखते हुए जैसे कि देखते नहीं। पार्ट में भी आते हैं परन्तु बुद्धि में हैअब हमको घर जाना है फिर यहाँ आकर पार्ट बजाना है। यह बुद्धि में रहे तो भी बहुत खुशी रहेगी। बच्चों को देह भान छोड़ देना चाहिए। यह पुरानी चीज़ यहाँ छोड़नी है, अब वापिस जाना है। नाटक पूरा होता है। पुरानी सृष्टि को आग लग रही है। अन्धे की औलाद अन्धे अज्ञान नींद में सोये पड़े हैं। मनुष्य तो समझेंगे यह सोया हुआ मनुष्य दिखाया है। परन्तु यह अज्ञान नींद की बात है, जिससे तुम जगाते हो। ज्ञान अर्थात् दिन है सतयुग, अज्ञान अर्थात् रात है कलियुग। यह बड़ी समझने की बातें हैं।
  6. ऐसे भी युगल हैं, जो संन्यासियों को दिखाते हैंहम युगल बनकर कभी विकार में नहीं जाते हैं। ज्ञान तलवार बीच में है। बाप का फरमान हैपवित्र रहना है।
  7. गन्धर्वी विवाह का नाम तो है ना। तुम जानते हो पवित्र रहने से पद बहुत ऊंच मिलेगा। एक जन्म के लिए पवित्र बनना है। योगबल से कर्मेन्द्रियों पर भी कन्ट्रोल जाता है। योगबल से तुम सारी दुनिया को पवित्र बनाते हो। तुम कितने थोड़े बच्चे योगबल से यह सारा पहाड़ उड़ाए सोने का पहाड़ स्थापन करते हो। मनुष्य थोड़ेही समझते हैं, वह तो गोवर्धन पर्वत पिछाड़ी परिक्रमा देते रहते हैं।
  8. कर्मातीत अवस्था बनाने के लिए देह सहित सबको भूलना है। अपनी याद अडोल और स्थाई बनानी है। देवताओं जैसा निर्लोभी, निर्मोही, निर्विकारी बनना है।
  9. एकता के साथ एकान्तप्रिय बनना है। एकान्तप्रिय वह होगा जिनका अनेक तरफ से बुद्धियोग टूटा हुआ होगा और एक का ही प्रिय होगा। एक प्रिय होने कारण एक की ही याद में रह सकता। एकान्तप्रिय अर्थात् एक के सिवाय दूसरा कोई। सर्व सम्बन्ध, सर्व रसनाएं एक से लेने वाला ही एकान्तप्रिय हो सकता है।

02/02/2025

  1. मन्सा द्वारा शक्ति स्वरूप बनाओ। महादानी बन मन्सा द्वारा, वायब्रेशन द्वारा निरन्तर शक्तियों का अनुभव कराओ। वाचा द्वारा ज्ञान दान दो, कर्म द्वारा गुणों का दान दो। सारा दिन चाहे मन्सा, चाहे वाचा, चाहे कर्म तीनों द्वारा अखण्ड महादानी बनो। समय प्रमाण अभी दानी नहीं, कभीकभी दान किया, नहीं, अखण्ड दानी क्योंकि आत्माओं को आवश्यकता है। तो महादानी बनने के लिए पहले अपना जमा का खाता चेक करो। चार ही सबजेक्ट में जमा का खाता कितनी परसेन्ट में है? अगर स्वयं में जमा का खाता नहीं होगा तो महादानी कैसे बनेंगे! और जमा के खाते को चेक करने की निशानी क्या है? मन्सा, वाचा, कर्म द्वारा सेवा तो की लेकिन जमा की निशानी हैसेवा करते हुए पहले स्वयं की सन्तुष्टता। साथसाथ जिन्हों की सेवा करते, उन आत्माओं में खुशी की सन्तुष्टता आई? अगर दोनों तरफ सन्तुष्टता नहीं तो समझो सेवा के खाते में आपकी सेवा का फल जमा नहीं हुआ।
  2. अगर सन्तुष्टता का अनुभव नहीं किया, चाहे स्वयं, चाहे दूसरे तो जमा का खाता कम होता है। बापदादा ने जमा का खाता बहुत सहज बढ़ाने की गोल्डन चाबी बच्चों को दी है। जानते हो वह चाबी क्या है? मिली तो है ना! सहज जमा का खाता भरपूर करने की गोल्डन चाबी हैकोई भी मन्सावाचाकर्म, किसी में भी सेवा करने के समय एक तो अपने अन्दर निमित्त भाव की स्मृति। निमित्त भाव, निर्मान भाव, शुभ भाव, आत्मिक स्नेह का भाव, अगर इस भाव की स्थिति में स्थित होकर सेवा करते हो तो सहज आपके इस भाव से आत्माओं की भावना पूर्ण हो जाती है। आज के लोग हर एक का भाव क्या है, वह नोट करते हैं। क्या निमित्त भाव से कर रहे हैं, वा अभिमान के भाव से! जहाँ निमित्त भाव है वहाँ निर्मान भाव ऑटोमेटिकली जाता है। तो चेक करोक्या जमा हुआ? कितना जमा हुआ? क्योंकि इस समय संगमयुग ही जमा करने का युग है। फिर तो सारा कल्प जमा की प्रालब्ध है। तो इस वर्ष क्या विशेष अटेन्शन देना है? अपनेअपने जमा का खाता चेक करो। चेकर भी बनो, मेकर भी बनो क्योंकि समय की समीपता के नज़ारे देख रहे हो।
  3. ब्रह्मा बाप के समान बनना है तो ब्रह्मा बाप का विशेष चरित्र क्या देखा? आदि से लेकर अन्त तक हर बात में, मैं कहा या बाबा कहा? मैं कर रहा हूँ, नहीं, बाबा करा रहा है। किससे मिलने आये हो? बाबा से मिलने आये हो। मैं पन का अभाव, अविद्या, यह देखा ना! देखा? हर मुरली में बाबा, बाबा कितना बार याद दिलाते हैं? तो समान बनना, इसका अर्थ ही है पहले मैं पन का अभाव हो। पहले सुनाया है कि ब्राह्मणों का मैंपन भी बहुत रॉयल है। याद है ना? सुनाया था ना! सब चाहते हैं कि बापदादा की प्रत्यक्षता हो। बापदादा की प्रत्यक्षता करें। प्लैन बहुत बनाते हो। अच्छे प्लैन बनाते हो, बापदादा खुश है। लेकिन यह रॉयल रूप का मैंपन प्लैन में, सफलता में कुछ परसेन्टेज़ कम कर देता है। नेचुरल संकल्प में, बोल में, कर्म में, हर संकल्प में बाबा, बाबा स्मृति में हो। मैंपन नहीं। बापदादा करावनहार करा रहा है। जगतअम्बा की यही विशेष धारणा रही। जगत अम्बा का स्लोगन याद है, पुरानों को याद होगा। है याद? बोलो, (हुक्मी हुक्म चलाए रहा) यह थी विशेष धारणा जगत अम्बा की। तो नम्बर लेना है, समान बनना है तो मैं पन खत्म हो जाए। मुख से ऑटोमेटिक बाबाबाबा शब्द निकले। कर्म में, आपकी सूरत में बाप की मूरत दिखाई दे तब प्रत्यक्षता होगी। बापदादा यह रॉयल रूप के मैंमैं के गीत बहुत सुनते हैं। मैंने जो किया वही ठीक है, मैंने जो सोचा वही ठीक है, वही होना चाहिए, यह मैं पन धोखा दे देता है। सोचो भले, कहो भले लेकिन निमित्त और निर्मान भाव से।
  4. सिर्फ बापदादा के तीन शब्द शिक्षा के याद रखोसबको याद हैं! मन्सा में निराकारी, वाचा में निरंहकारी, कर्म में निर्विकारी। जब भी संकल्प करते हो तो निराकारी स्थिति में स्थित होके संकल्प करो और सब भूल जाए लेकिन यह तीन शब्द नहीं भूलो। यह साकार रूप की तीन शब्दों की शिक्षा सौगात है। तो ब्रह्मा बाप से साकार रूप में भी प्यार रहा है।
  5. तो ब्रह्मा बाप से प्यार है तो इन तीन शब्दों की शिक्षा से प्यार। इसमें सम्पन्न बनना या समान बनना बहुत सहज हो जायेगा। याद करो ब्रह्मा बाप ने क्या कहा!
  6. तो नये वर्ष में वाचा की सेवा भले करो, धूमधाम से करो लेकिन अनुभव कराने की सेवा सदा अटेन्शन में रखो। सब अनुभव करें कि इस बहन द्वारा या भाई द्वारा हमें शक्ति का अनुभव हुआ, शान्ति का अनुभव हुआ, क्योंकि अनुभव कभी भूलता नहीं है। सुना हुआ भूल जाता है। अच्छा लगता है लेकिन भूल जाता है। अनुभव ऐसी चीज़ है जो खींच के उसको आपके नजदीक लायेगी। सम्पर्क वाला सम्बन्ध में आता रहेगा क्योंकि सम्बन्ध के बिना वर्से के अधिकारी नहीं बन सकते हैं। तो अनुभव सम्बन्ध में लाने वाला है।
  7. बापदादा एकएक बच्चे का चेहरा, बापदादा का मुखड़ा देखने का दर्पण बनाने चाहते हैं। आपके दर्पण में बापदादा दिखाई दे। तो ऐसा विचित्र दर्पण बापदादा को गिफ्ट में दो। दुनिया में तो ऐसा कोई दर्पण है ही नहीं जिसमें परमात्मा दिखाई दे। तो आप इस नये वर्ष की ऐसी गिफ्ट दो जो विचित्र दर्पण बन जाओ। जो भी देखे, जो भी सुने तो उसको बापदादा ही दिखाई दे, सुनाई दे। बाप का आवाज सुनाई दे।
  8. देने वाले तो दुनिया में अनेक आत्मायें हैं, आप सुख देने, सुख लेने वाले, सुखदाता के बच्चे सुख स्वरूप हो। कभी सुख के झूले में झूलो, कभी प्यार के झूले में झूलो, कभी शान्ति के झूले में झूलो। झूलते ही रहो। नीचे मिट्टी में पांव नहीं रखना। झूलते ही रहना। खुश रहना और सभी को खुश रखना और लोगों को खुशी बांटना।

03/01/2025

मीठे बच्चेआत्मा रूपी ज्योति में ज्ञानयोग का घृत डालो तो ज्योत जगी रहेगी, ज्ञान और योग का कॉन्ट्रास्ट अच्छी रीति समझना है

गीत:-
छोड़ भी दे आकाश सिंहासन……..

  1. ओम् शान्ति। भक्तों ने यह गीत बनाया है। अब इसका अर्थ कैसा अच्छा है। कहते हैं आकाश सिंहासन छोड़कर आओ। अब आकाश तो है यह। यह है रहने का स्थान। आकाश से तो कोई चीज़ आती नहीं। आकाश सिंहासन कहते हैं। आकाश तत्व में तो तुम रहते हो और बाप रहते हैं महतत्व में। उसको ब्रह्म या महतत्व कहते हैं, जहाँ आत्मायें निवास करती हैं। बाप आयेगा भी जरूर वहाँ से। कोई तो आयेगा ना। कहते हैं आकर हमारी ज्योत जगाओ। गायन भी हैएक हैं अन्धे की औलाद अन्धे और दूसरे हैं सज्जे की औलाद सज्जे।
  2. धृतराष्ट्र और युद्धिष्ठिर नाम दिखाते हैं। अभी यह तो औलाद हैं रावण की। माया रूपी रावण है ना। सबकी रावण बुद्धि है, अब तुम हो ईश्वरीय बुद्धि। बाप तुम्हारी बुद्धि का अब ताला खोल रहे हैं। रावण ताला बन्द कर देते हैं। कोई किसी बात को नहीं समझते हैं तो कहते हैं यह तो पत्थरबुद्धि हैं। बाप आकर यहाँ ज्योत जगायेंगे ना। प्रेरणा से थोड़ेही काम होता है। आत्मा जो सतोप्रधान थी, उनकी ताकत अब कम हो गई है। तमोप्रधान बन गई है। एकदम झुंझार बन पड़ी है। मनुष्य कोई मरते हैं तो उनका दीवा जलाते हैं। अब दीवा क्यों जलाते हैं? समझते हैं ज्योत बुझ जाने से अन्धियारा हो जाए इसलिए ज्योत जगाते हैं। अब यहाँ की ज्योत जगाने से वहाँ कैसे रोशनी होगी? कुछ भी समझते नहीं। अभी तुम सेन्सीबुल बुद्धि बनते हो। बाप कहते हैं मैं तुमको स्वच्छ बुद्धि बनाता हूँ। ज्ञान घृत डालता हूँ। है यह भी समझाने की बात। ज्ञान और योग दोनों अलग चीज़ हैं। योग को ज्ञान नहीं कहेंगे। कोई समझते हैं भगवान ने आकर यह भी ज्ञान दिया ना कि मुझे याद करो। परन्तु इसे ज्ञान नहीं कहेंगे। यह तो बाप और बच्चे हैं। बच्चे जानते हैं कि यह हमारा बाबा है, इसमें ज्ञान की बात नहीं कहेंगे। ज्ञान तो विस्तार है। यह तो सिर्फ याद है। बाप कहते हैं मुझे याद करो, बस। यह तो कॉमन बात है। इनको ज्ञान नहीं कहा जाता। बच्चे ने जन्म लिया सो तो जरूर बाप को याद करेगा ना। ज्ञान का विस्तार है। बाप कहते हैं मुझे याद करोयह ज्ञान नहीं हुआ। तुम खुद जानते हो, हम आत्मा हैं, हमारा बाप परम आत्मा, परमात्मा है। इसे ज्ञान कहेंगे क्या? बाप को पुकारते हैं। ज्ञान तो है नॉलेज, जैसे कोई एम.. पढ़ते हैं, कोई बी.. पढ़ते हैं, कितनी ढेर किताब पढ़नी होती है। अब बाप तो कहते हैं तुम हमारे बच्चे हो ना, मैं तुम्हारा बाप हूँ। मेरे से ही योग लगाओ अर्थात् याद करो। इसको ज्ञान नहीं कहेंगे। तुम बच्चे तो हो ही। तुम आत्मायें कब विनाश को नहीं पाती हो।
  3. बच्चों की बुद्धि में ज्ञान और योग का कान्ट्रास्ट स्पष्ट होना चाहिए। बाप जो कहते हैं मुझे याद करो, यह ज्ञान नहीं है। यह तो बाप डायरेक्शन देते हैं, इनको योग कहा जाता। ज्ञान है सृष्टि पा कैसे फिरता हैउसकी नॉलेज। योग अर्थात् याद। बच्चों का फर्ज है बाप को याद करना। वह है लौकिक, यह है पारलौकिक। बाप कहते हैं मुझे याद करो। तो ज्ञान अलग चीज़ हो गई। बच्चे को कहना पड़ता है क्या कि बाप को याद करो। लौकिक बाप तो जन्मते ही याद रहता है। यहाँ बाप की याद दिलानी पड़ती है। इसमें मेहनत लगती है। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करोयह बहुत मेहनत का काम है। तब बाबा कहते हैं योग में ठहर नहीं सकते हैं। बच्चे लिखते हैंबाबा याद भूल जाती है। ऐसे नहीं कहते कि ज्ञान भूल जाता है। ज्ञान तो बहुत सहज है। याद को ज्ञान नहीं कहा जाता, इसमें माया के तूफान बहुत आते हैं। भल ज्ञान में कोई बहुत तीखे हैं, मुरली बहुत अच्छी चलाते हैं परन्तु बाबा पूछते हैंयाद का चार्ट निकालो, कितना समय याद करते हो? बाबा को याद का चार्ट यथार्थ रीति बनाकर दिखाओ। याद की ही मुख्य बात है। पतित ही पुकारते हैं कि आकर पावन बनाओ। मुख्य है पावन बनने की बात। इसमें ही माया के विघ्न पड़ते हैं। शिव भगवानुवाचयाद में सब बहुत कच्चे हैं। अच्छेअच्छे बच्चे जो मुरली तो बहुत अच्छी चलाते हैं परन्तु याद में बिल्कुल कमज़ोर हैं। योग से ही विकर्म विनाश होते हैं। योग से ही कर्मेन्द्रियाँ बिल्कुल शान्त हो सकती हैं। एक बाप के सिवाए और कोई याद आये, कोई देह भी याद आये। आत्मा जानती है यह सारी दुनिया खलास होनी है, अब हम जाते हैं अपने घर। फिर आयेंगे राजधानी में। यह सदैव बुद्धि में रहना चाहिए। ज्ञान जो मिलता है वह आत्मा में रहना चाहिए। बाप तो है योगेश्वर, जो याद सिखलाते हैं। वास्तव में ईश्वर को योगेश्वर नहीं कहेंगे। तुम योगेश्वर हो। ईश्वर बाप कहते हैं मुझे याद करो। यह याद सिखलाने वाला ईश्वर बाप है। वह निराकार बाप शरीर द्वारा सुनाते हैं। बच्चे भी शरीर द्वारा सुनते हैं। कई तो योग में बहुत कच्चे हैं। बिल्कुल याद करते ही नहीं। जो भी जन्मजन्मान्तर के पाप हैं सबकी सजा खायेंगे। यहाँ आकर जो पाप करते हैं वह तो और ही सौगुणा सज़ा खायेंगे। ज्ञान की तिकतिक तो बहुत करते हैं, योग बिल्कुल ही नहीं है जिस कारण पाप भस्म नहीं होते, कच्चे ही रह जाते हैं इसलिए सच्चीसच्ची माला 8 की बनी है। 9 रत्न गाये जाते हैं। 108 रत्न कब सुने हैं? 108 रत्नों की कोई चीज़ नहीं बनाते हैं। बहुत हैं जो इन बातों को पूरा समझते नहीं हैं। याद को ज्ञान नहीं कहा जाता। ज्ञान सृष्टि पा को कहा जाता है। शास्त्रों में ज्ञान नहीं है, वह शास्त्र हैं भक्ति मार्ग के। बाप खुद कहते हैं मैं इनसे नहीं मिलता। साधुओं आदि सबका उद्धार करने मैं आता हूँ। वह समझते हैं ब्रह्म में लीन होना है। फिर मिसाल देते हैं पानी के बुदबुदे का। अभी तुम ऐसे नहीं कहते। तुम तो जानते हो हम आत्मायें बाप के बच्चे हैं।मामेकम् याद करोयह अक्षर भी कहते हैं परन्तु अर्थ नहीं समझते। भल कह देते हम आत्मा हैं परन्तु आत्मा क्या है, परमात्मा क्या हैयह ज्ञान बिल्कुल नहीं। यह बाप ही आकर सुनाते हैं। अभी तुम जानते हो हम आत्माओं का घर वह है। वहाँ सारा सिजरा है। हर एक आत्मा को अपनाअपना पार्ट मिला हुआ है। सुख कौन देते हैं, दु: कौन देते हैंयह भी किसको पता नहीं है। भक्ति है रात, ज्ञान है दिन। 63 जन्म तुम धक्के खाते हो। फिर ज्ञान देता हूँ तो कितना समय लगता है? सेकेण्ड। यह तो गाया हुआ है सेकेण्ड में जीवनमुक्ति। यह तुम्हारा बाप है ना, वही पतितपावन है। उनको याद करने से तुम पावन बन जायेंगे। सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग यह चक्र है। नाम भी जानते हैं परन्तु पत्थरबुद्धि ऐसे हैं, टाइम का किसको पता नहीं है। समझते भी हैं घोर कलियुग है। अगर कलियुग अभी भी चलेगा तो और घोर अन्धियारा हो जायेगा इसलिए गाया हुआ हैकुम्भकरण की नींद में सोये हुए थे और विनाश हो गया। थोड़ा भी ज्ञान सुनते हैं तो प्रजा बन जाते हैं। कहाँ यह लक्ष्मीनारायण, कहाँ प्रजा! पढ़ाने वाला तो एक ही है। हर एक की अपनीअपनी तकदीर है। कोई तो स्कॉलरशिप ले लेते हैं, कोई फेल हो जाते हैं। राम को बाण की निशानी क्यों दी है? क्योंकि नापास हुआ। यह भी गीता पाठशाला है, कोई तो कुछ भी मार्क्स लेने लायक नहीं। मैं आत्मा बिन्दी हूँ, बाप भी बिन्दी है, ऐसे उनको याद करना है। जो इस बात को समझते भी नहीं हैं, वह क्या पद पायेंगे! याद में रहने से बहुत घाटा पड़ जाता है। याद का बल बहुत कमाल करता है, कर्मेन्द्रियाँ बिल्कुल शान्त, शीतल हो जाती हैं। ज्ञान से शान्त नहीं होगी, योग के बल से शान्त होगी।
  4. तो बाप ने समझाया हैज्ञान में भल कितने भी अच्छे हैं परन्तु योग में कई बच्चे नापास हैं। योग नहीं तो विकर्म विनाश नहीं होंगे, ऊंच पद नहीं पायेंगे। जो योग में मस्त हैं वही ऊंच पद पायेंगे। उनकी कर्मेन्द्रियाँ बिल्कुल शीतल हो जाती हैं। देह सहित सब कुछ भूल देहीअभिमानी बन जाते हैं। हम अशरीरी हैं अब जाते हैं घर। उठतेबैठते समझोअब यह शरीर तो छोड़ना है। हमने पार्ट बजाया, अब जाते हैं घर। ज्ञान तो मिला है, जैसे बाप में ज्ञान है, उनको तो किसको याद नहीं करना है। याद तो तुम बच्चों को करना है। बाप को ज्ञान का सागर कहा जाता है। योग का सागर तो नहीं कहेंगे ना। चक्र का नॉलेज सुनाते हैं और अपना भी परिचय देते हैं। याद को ज्ञान नहीं कहा जाता। याद तो बच्चे को आपेही जाती है। याद तो करना ही है, नहीं तो वर्सा कैसे मिलेगा? बाप है तो वर्सा जरूर मिलता है। बाकी है नॉलेज। हम 84 जन्म कैसे लेते हैं, तमोप्रधान से सतोप्रधान, सतोप्रधान से तमोप्रधान कैसे बनते हैं, यह बाप समझाते हैं। अब सतोप्रधान बनना है बाप की याद से। तुम रूहानी बच्चे रूहानी बाप के पास आये हो, उनको शरीर का आधार तो चाहिए ना। कहते हैं मैं बूढ़े तन में प्रवेश करता हूँ। है भी वानप्रस्थ अवस्था। अब बाप आते हैं तब सारे सृष्टि का कल्याण होता है। यह है भाग्यशाली रथ, इनसे कितनी सर्विस होती है। तो इस शरीर का भान छोड़ने के लिए याद चाहिए। इसमें ज्ञान की बात नहीं। जास्ती याद सिखलानी है। ज्ञान तो सहज है। छोटा बच्चा भी सुना दे। बाकी याद में ही मेहनत है। एक की याद रहे, इसको कहा जाता है अव्यभिचारी याद। किसके शरीर को याद करनावह है व्यभिचारी याद। याद से सबको भूल अशरीरी बनना है।
  5. याद के बल से अपनी कर्मेन्द्रियों को शीतल, शान्त बनाना है। फुल पास होने के लिए यथार्थ रीति बाप को याद कर पावन बनना है।
  6. उठतेबैठते बुद्धि में रहे कि अभी हम यह पुराना शरीर छोड़ वापस घर जायेंगे। जैसे बाप में सब ज्ञान है, ऐसे मास्टर ज्ञान सागर बनना है।
  7. संगमयुग पर शिव शक्ति के कम्बाइन्ड स्वरूप की स्मृति में रहने से हर असम्भव कार्य सम्भव हो जाता है। यही सर्व श्रेष्ठ स्वरूप है। इस स्वरूप में स्थित रहने से सम्पन्न भव का वरदान मिल जाता है। बापदादा सभी बच्चों को सदा सुखदाई स्थिति की सीट देते हैं। सदा इसी सीट पर सेट रहो तो अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलते रहेंगे सिर्फ विस्मृति के संस्कार समाप्त करो।
  8. पावरफुल वृत्ति द्वारा आत्माओं को योग्य और योगी बनाओ।
  9. एकमत का वातावरण तब बनेगा जब समाने की शक्ति होगी। तो भिन्नता को समाओ तब आपस में एकता से समीप आयेंगे और सर्व के आगे दृष्टान्त रूप बनेंगे। ब्राह्मण परिवार की विशेषता हैअनेक होते भी एक। यह एकता का वायब्रेशन सारे विश्व में एक धर्म, एक राज्य की स्थापना करेगा इसलिए विशेष अटेन्शन देकर भिन्नता को मिटाकर एकता लानी है।

04/02/2025

प्रश्नः
कौनसा नया रास्ता तुम बच्चों के सिवाए कोई भी नहीं जानता है?

उत्तर:-
घर का रास्ता वा स्वर्ग जाने का रास्ता अभी बाप द्वारा तुम्हें मिला है। तुम जानते हो शान्तिधाम हम आत्माओं का घर है, स्वर्ग अलग है, शान्तिधाम अलग है। यह नया रास्ता तुम्हारे सिवाए कोई भी नहीं जानता। तुम कहते हो अब कुम्भकरण की नींद छोड़ो, आंख खोलो, पावन बनो। पावन बनकर ही घर जा सकेंगे।

  1. यह तो बाप ने समझाया है कि मनुष्य को वा देवताओं को भगवान नहीं कहा जाता क्योंकि इनका साकारी रूप है। बाकी परमपिता परमात्मा का आकारी, साकारी रूप है इसलिए उनको शिव परमात्माए नम: कहा जाता है। ज्ञान का सागर वह एक ही है। कोई मनुष्य में ज्ञान हो नहीं सकता। किसका ज्ञान? रचता और रचना के आदिमध्यअन्त का ज्ञान अथवा आत्मा और परमात्मा का यह ज्ञान कोई में नहीं है। तो बाप आकर जगाते हैंहे सजनियां, हे भक्तियां जागो।
  2. सभी सीतायें हैं, राम एक परमपिता परमात्मा है। राम अक्षर क्यों कहते हैं? रावणराज्य है ना। तो उसकी भेंट में रामराज्य कहा जाता है। राम है बाप, जिसको ईश्वर भी कहते हैं, भगवान भी कहते हैं। असली नाम उनका है शिव। तो अब कहते हैं जागो, अब नवयुग आता है। पुराना खत्म हो रहा है। इस महाभारत लड़ाई के बाद सतयुग स्थापन होता है और इन लक्ष्मीनारायण का राज्य होगा। पुराना कलियुग खत्म हो रहा है इसलिए बाप कहते हैंबच्चे, कुम्भकरण की नींद छोड़ो। अब आंख खोलो। नई दुनिया आती है। नई दुनिया को स्वर्ग, सतयुग कहा जाता है। यह है नया रास्ता। यह घर वा स्वर्ग में जाने का रास्ता कोई भी जानते नहीं हैं। स्वर्ग अलग है, शान्तिधाम जहाँ आत्मायें रहती हैं, वह अलग है। अब बाप कहते हैं जागो, तुम रावणराज्य में पतित हो गये हो। इस समय एक भी पवित्र आत्मा नहीं हो सकती। पुण्य आत्मा नहीं कहेंगे। भल मनुष्य दानपुण्य करते हैं, परन्तु पवित्र आत्मा तो एक भी नहीं है। यहाँ कलियुग में हैं पतित आत्मायें, सतयुग में हैं पावन आत्मायें, इसलिए कहते हैंहे शिवबाबा, आकर हमको पावन आत्मा बनाओ। यह पवित्रता की बात है। इस समय बाप आकर तुम बच्चों को अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान देते हैं। कहते हैं तुम भी औरों को दान देते रहो तो 5 विकारों का ग्रहण छूट जाए। 5 विकारों का दान दो तो दु: का ग्रहण छूट जाए। पवित्र बन सुखधाम में चले जायेंगे। 5 विकारों में नम्बरवन है काम, उसको छोड़ पवित्र बनो। खुद भी कहते हैंहे पतितपावन, हमको पावन बनाओ। पतित विकारी को कहा जाता है। यह सुख और दु: का खेल भारत के लिए ही है। बाप भारत में ही आकर साधारण तन में प्रवेश करते हैं फिर इनकी भी बायोग्राफी बैठ सुनाते हैं। यह हैं सब ब्राह्मणब्राह्मणियाँ, प्रजापिता ब्रह्मा की औलाद। तुम सबको पवित्र बनने की युक्ति बताते हो। ब्रह्माकुमार और कुमारियां तुम विकार में जा नहीं सकते हो। तुम ब्राह्मणों का यह एक ही जन्म है। देवता वर्ण में तुम 20 जन्म लेते हो, वैश्य, शूद्र वर्ण में 63 जन्म। ब्राह्मण वर्ण का यह एक अन्तिम जन्म है, जिसमें ही पवित्र बनना है। बाप कहते हैं पवित्र बनो। बाप की याद अथवा योगबल से विकर्म भस्म होंगे। यह एक जन्म पवित्र बनना है। सतयुग में तो कोई पतित होता नहीं। अभी यह अन्तिम जन्म पावन बनेंगे तो 21 जन्म पावन रहेंगे। पावन थे, अब पतित बने हो। पतित हैं तब तो बुलाते हैं। पतित किसने बनाया है? रावण की आसुरी मत ने। सिवाए मेरे तुम बच्चों को रावण राज्य से, दु: से कोई भी लिबरेट कर नहीं सकते। सभी काम चिता पर बैठ भस्म हो पड़े हैं। मुझे आकर ज्ञान चिता पर बिठाना पड़ता है। ज्ञान जल डालना पड़ता है। सबकी सद्गति करनी पड़े। जो अच्छी रीति पढ़ाई पढ़ते हैं उनकी ही सद्गति होती है। बाकी सब चले जाते हैं शान्तिधाम में। सतयुग में सिर्फ देवीदेवतायें हैं, उनको ही सद्गति मिली हुई है। बाकी सबको गति अथवा मुक्ति मिलती है। 5 हज़ार वर्ष पहले इन देवीदेवताओं का राज्य था। लाखों वर्ष की बात है नहीं। अब बाप कहते हैं मीठेमीठे बच्चों, मुझ बाप को याद करो। मन्मनाभव अक्षर तो प्रसिद्ध है। भगवानुवाचकोई भी देहधारी को भगवान नहीं कहा जाता। आत्मायें तो एक शरीर छोड़ दूसरा लेती हैं। कभी स्त्री, कभी पुरूष बनती हैं। भगवान कभी भी जन्ममरण के खेल में नहीं आता। यह ड्रामा अनुसार नूँध है। एक जन्म मिले दूसरे से। फिर तुम्हारा यह जन्म रिपीट होगा तो यही एक्ट, यही फीचर्स फिर लेंगे। यह ड्रामा अनादि बनाबनाया है। यह बदल नहीं सकता। श्रीकृष्ण को जो शरीर सतयुग में था वह फिर वहाँ मिलेगा। वह आत्मा तो अभी यहाँ है। तुम अभी जानते हो हम सो बनेंगे। यह लक्ष्मीनारायण के फीचर्स एक्यूरेट नहीं हैं। बनेंगे फिर भी वही। यह बातें नया कोई समझ सके। अच्छी रीति जब किसको समझाओ तब 84 का चक्र जानेंगे और समझेंगे बरोबर हरेक जन्म में नाम, रूप, फीचर्स आदि अलगअलग होते हैं। अभी इनके अन्तिम 84 वें जन्म के फीचर्स यह हैं इसलिए नारायण के फीचर्स करीबकरीब ऐसे दिखाये हैं। नहीं तो मनुष्य समझ सकें। बाप बिगर जीवनमुक्ति कोई दे ही नहीं सकते। आत्मायें आती रहती हैं फिर वापस कैसे जायेंगे? बाप ही आकर सर्व की सद्गति कर वापिस ले जायेंगे। सतयुग में बहुत थोड़े मनुष्य रहते हैं। आत्मा तो कभी विनाश नहीं होती है। आत्मा अविनाशी है, शरीर विनाशी है। सतयुग में आयु बड़ी होती है। दु: की बात नहीं।
  3. समझते हैं अब टाइम पूरा हुआ है, इस शरीर को छोड़ दूसरा लेंगे। तुम बच्चों को इस शरीर से डिटैच होने का अभ्यास यहाँ ही डालना है। हम आत्मा हैं, अब हमको घर जाना है फिर नई दुनिया में आयेंगे, नई खाल लेंगे, यह अभ्यास डालो। तुम जानते हो आत्मा 84 शरीर लेती है। मनुष्यों ने फिर 84 लाख कह दिया है।
  4. तो बाप समझाते हैं याद की यात्रा बड़ी पक्की चाहिए। ज्ञान तो बड़ा सहज है। देहीअभिमानी बनने में ही मेहनत है। बाप कहते हैं किसकी भी देह याद आये, यह है भूतों की याद, भूत पूजा। मैं तो अशरीरी हूँ, तुमको याद करना है मुझे। इन आंखों से देखते हुए बुद्धि से बाप को याद करो। बाप के डायरेक्शन पर चलो तो धर्मराज की सजाओं से छूट जायेंगे। पावन बनेंगे तो सजायें खत्म हो जायेंगी, बड़ी भारी मंज़िल है।
  5. पिछाड़ी में तुम्हारे बुद्धि का योग रहना चाहिए बाप और घर से। जैसे एक्टर्स का नाटक में पार्ट पूरा होता है तो बुद्धि घर में चली जाती है। यह है बेहद की बात। वह होती है हद की आमदनी, यह है बेहद की आमदनी। अच्छे एक्टर्स की आमदनी भी बहुत होती है ना। तो बाप कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहते बुद्धियोग वहाँ लगाना है।
  6. मनुष्य को याद करना माना 5 भूतों को, प्रकृति को याद करना। बाप कहते हैं प्रकृति को भूल मुझे याद करो। मेहनत है ना और फिर दैवीगुण भी चाहिए। कोई से बदला लेना, यह भी आसुरी गुण है। सतयुग में होता ही है एक धर्म, बदले की बात नहीं। वह है ही अद्वेत देवता धर्म जो शिवबाबा बिगर कोई स्थापन कर सके। सूक्ष्मवतनवासी देवताओं को कहेंगे फ़रिश्ते। इस समय तुम हो ब्राह्मण फिर फ़रिश्ता बनेंगे। फिर वापिस जायेंगे घर फिर नई दुनिया में आकर दैवी गुण वाले मनुष्य अर्थात् देवता बनेंगे। अभी शूद्र से ब्राह्मण बनते हो। प्रजापिता ब्रह्मा का बच्चा बनें तो वर्सा कैसे लेंगे। यह प्रजापिता ब्रह्मा और मम्मा, वह फिर लक्ष्मीनारायण बनते हैं।
  7. फिर भी बाप कहते हैं बड़ी भारी मंजिल है। एक बाप को याद करना है तो विकर्म विनाश हों, और कोई रास्ता नहीं हैं। योगबल से तुम विश्व पर राज्य करते हो। आत्मा कहती है, अब मुझे घर जाना है, यह पुरानी दुनिया है, यह है बेहद का संन्यास। गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र बनना है और चक्र को समझने से चक्रवर्ती राजा बन जायेंगे।
  8. इस संगम के समय को वरदान मिला है जो चाहे, जैसा चाहे, जितना चाहे उतना भाग्य बना सकते हैंक्योंकि भाग्य विधाता बाप ने तकदीर बनाने की चाबी बच्चों के हाथ में दी है। लास्ट वाला भी फास्ट जाकर फर्स्ट सकता है। सिर्फ सेवाओं के विस्तार में स्वयं की स्थिति सेकण्ड में सार स्वरूप बनाने का अभ्यास करो। अभीअभी डायरेक्शन मिले एक सेकण्ड में मास्टर बीज हो जाओ तो टाइम लगे। इस एक सेकण्ड की बाजी से सारे कल्प की तकदीर बना सकते हैं।
  9. डबल सेवा द्वारा पावरफुल वायुमण्डल बनाओ तो प्रकृति दासी बन जायेगी।

05/02/2025

मीठे बच्चेइस शरीर रूपी कपड़े को यहाँ ही छोड़ना है, इसलिए इससे ममत्व मिटा दो, कोई भी मित्रसम्बन्धी याद आये

प्रश्नः
जिन बच्चों में योगबल है, उनकी निशानी क्या होगी?

उत्तर:-
उन्हें किसी भी बात में थोड़ा भी धक्का नहीं आयेगा, कहाँ भी लगाव नहीं होगा। समझो आज किसी ने शरीर छोड़ा तो दु: नहीं हो सकता, क्योंकि जानते हैं इनका ड्रामा में इतना ही पार्ट था। आत्मा एक शरीर छोड़ जाए दूसरा शरीर लेगी।

  1. यह ज्ञान बड़ा गुप्त है, इसमें नमस्ते भी नहीं करनी पड़ती। दुनिया में नमस्ते अथवा रामराम आदि कहते हैं। यहाँ ये सब बातें चल नहीं सकती क्योंकि यह एक फैमली है। फैमली में एकदो को नमस्ते वा गुडमॉर्निग करेंइतना शोभता नहीं है। घर में तो खानपान खाया ऑफिस में गया, फिर आया, यह चलता रहता है। नमस्ते करने की दरकार नहीं रहती। गुडमॉर्निग का फैशन भी यूरोपियन से निकला है। नहीं तो आगे कुछ चलता नहीं था। कोई सतसंग में आपस में मिलते हैं तो नमस्ते करते हैं, पाँव पड़ते हैं। यह पाँव आदि पड़ना नम्रता के लिए सिखलाते हैं। यहाँ तो तुम बच्चों को देहीअभिमानी बनना है। आत्मा, आत्मा को क्या करेगी? फिर भी कहना तो होता है। जैसे बाबा को कहेंगेबाबा नमस्ते। अब बाप भी कहते हैंमैं साधारण ब्रह्मा तन द्वारा तुमको पढ़ाता हूँ, इन द्वारा स्थापना कराता हूँ। कैसे? सो तो जब बाप सम्मुख हो तब समझावे, नहीं तो कोई कैसे समझे। यह बाप सम्मुख बैठ समझाते हैं तो बच्चे समझते हैं। दोनों को नमस्ते करनी पड़ेबापदादा नमस्ते। बाहर वाले अगर यह सुनें तो मूँझेंगे कि यह क्या कहते हैंबापदादा डबल नाम भी बहुत मनुष्यों के होते हैं ना। जैसे लक्ष्मीनारायण अथवा राधेकृष्ण……. भी नाम हैं। यह तो जैसे स्त्रीपुरूष इकट्ठे हो गये। अब यह तो है बापदादा। इन बातों को तुम बच्चे ही समझ सकते हो। जरूर बाप बड़ा ठहरा। वह नाम भल डबल है परन्तु है तो एक ना। फिर दोनों नाम क्यों रख दिये हैं? अभी तुम बच्चे जानते हो यह रांग नाम है। बाबा को और तो कोई पहचान सके। तुम कहेंगे नमस्ते बापदादा। बाप फिर कहेंगे नमस्ते जिस्मानी रूहानी बच्चे, परन्तु इतना लम्बा शोभता नहीं है। अक्षर तो राइट है। तुम अभी जिस्मानी बच्चे भी हो तो रूहानी भी हो। शिवबाबा सभी आत्माओं का बाप है और फिर प्रजापिता भी जरूर है। प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान भाईबहन हैं। प्रवृत्ति मार्ग हो जाता है। तुम हो सब ब्रह्माकुमारकुमारियाँ। ब्रह्माकुमारकुमारियाँ होने से प्रजापिता भी सिद्ध हो जाता है। इसमें अन्धश्रद्धा की कोई बात नहीं। बोलो ब्रह्माकुमारब्रह्माकुमारियों को बाप से वर्सा मिलता है। ब्रह्मा से नहीं मिलता, ब्रह्मा भी शिवबाबा का बच्चा है। सूक्ष्मवतनवासी ब्रह्मा, विष्णु, शंकरयह है रचना। इन्हों का रचयिता है शिव। शिव के लिए तो कोई कह सके कि इनका क्रियेटर कौन? शिव का क्रियेटर कोई होता नहीं। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर यह है रचना। इन्हों के भी ऊपर है शिव, सब आत्माओं का बाप। अब क्रियेटर है तो फिर प्रश्न उठता है कब क्रियेट किया? नहीं, यह तो अनादि है। इतनी आत्माओं को कब क्रियेट किया? यह प्रश्न नहीं उठ सकता। यह अनादि ड्रामा चला आता है, बेअन्त है। इसका कभी अन्त नहीं होता। यह बातें तुम बच्चों में भी नम्बरवार समझते हैं। यह है बहुत सहज। एक बाप के सिवाए और किसी से लगाव हो, कोई भी मरे वा जिये। गायन भी है अम्मा मरे तो भी हलुआ खाना……. समझो कोई भी मर जाता है, फिक्र की बात नहीं होती क्योंकि यह ड्रामा अनादि बना हुआ है। ड्रामानुसार उनको इस समय जाना ही था, इसमें कर ही क्या सकते हैं। ज़रा भी दु:खी होने की बात नहीं। यह है योगबल की अवस्था। लॉ कहता है ज़रा भी धक्का नहीं आना चाहिए। सब एक्टर्स हैं ना। अपनाअपना पार्ट बजाते रहते हैं। बच्चों को ज्ञान मिला हुआ है। बाप से कहते हैंहे परमपिता परमात्मा आकर हमको ले जाओ। इतने सब शरीरों का विनाश कराए सब आत्माओं को साथ में ले जाना, यह तो बहुत भारी काम हुआ। यहाँ कोई एक मरता है तो 12 मास रोते रहते हैं। बाप तो इतनी सारी ढेर आत्माओं को ले जायेंगे। सबके शरीर यहाँ छूट जायेंगे। बच्चे जानते हैं महाभारत लड़ाई लगती है तो मच्छरों सदृश्य जाते रहते हैं।
  2. मित्रसम्बन्धी आदि सब तरफ से याद निकालकर एक बेहद की खुशी में ठहर जाएं, बड़ी कमाल है। हाँ, यह भी अन्त में होगा। पिछाड़ी में ही कर्मातीत अवस्था को पा लेते हैं। शरीर से भी भान टूट जाता है। बस अभी हम जाते हैं, यह जैसे कॉमन हो जायेगा। जैसे नाटक वाले पार्ट बजाए फिर जाते हैं घर। यह देह रूपी कपड़ा तो तुमको यहाँ ही छोड़ना है। यह कपड़े यहाँ ही लेते हैं, यहाँ ही छोड़ते हैं।
  3. वर्सा तो बाप से मिलना है। जाना भी बाप के पास है। स्टूडेन्ट, स्टूडेन्ट को थोड़ेही याद करेंगे। स्टूडेन्ट तो टीचर को याद करेंगे ना। स्कूल में जो तीखे बच्चे होते हैं वह फिर औरों को भी उठाने की कोशिश करते हैं। बाप भी कहते हैं एकदो को ऊंचा उठाने की कोशिश करो परन्तु तकदीर में नहीं है तो पुरूषार्थ भी नहीं करते हैं। थोड़े में ही राज़ी हो जाते हैं। समझाना चाहिए प्रदर्शनी में बहुत आते हैं, बहुतों को समझाने से उन्नति बहुत होती है। निमन्त्रण देकर मंगाते हैं। तो बड़ेबड़े समझदार आदमी आते हैं। बिगर निमन्त्रण से तो कई प्रकार के लोग जाते हैं। क्याक्या उल्टासुल्टा बकते रहते हैं। रॉयल मनुष्यों की चालचलन भी रॉयल होती है। रॉयल आदमी रॉयल्टी से अन्दर घुसेंगे। चलन में भी बहुत फ़र्क रहता है। उनमें चलने की, बोलने की कोई फज़ीलत नहीं रहती। मेले में तो सभी प्रकार के जाते हैं, किसको मना नहीं की जाती है इसलिए कहाँ भी प्रदर्शनी में निमन्त्रण कार्ड पर मंगायेंगे तो रायॅल अच्छेअच्छे लोग आयेंगे।
  4. अभी तुम बाप द्वारा समझ रहे हो और तुम भी नर से नारायण बनते हो। यह है ही सत्य नारायण की कथा। यह भी तुम बच्चे ही समझते हो। तुम्हारे में भी पूरे फ्लावर्स अभी बने नहीं हैं, इसमें रॉयल्टी बड़ी अच्छी चाहिए। तुम उन्नति को दिनप्रतिदिन पाते रहते हो। फ्लावर्स बनते जाते हो।
  5. तुम बच्चे प्यार से कहते होबापदादा यह भी तुम्हारी नई भाषा है, जो मनुष्यों की समझ में नहीं सकती। समझो बाबा कहाँ भी जाये तो बच्चे कहेंगे बापदादा नमस्ते। बाप रेसपान्ड देंगे रूहानी जिस्मानी बच्चों को नमस्ते। ऐसे कहना पड़े ना। कोई सुनेंगे तो कहेंगे यह तो कोई नई बात है, बापदादा इकट्ठे कैसे कहते हैं। बाप और दादा दोनों एक कभी होते हैं क्या? नाम भी दोनों के अलग हैं। शिवबाबा, ब्रह्मा दादा, तुम इन दोनों के बच्चे हो। तुम जानते हो इनके अन्दर शिवबाबा बैठा है। हम बापदादा के बच्चे हैं। यह भी बुद्धि में याद रहे तो खुशी का पारा चढ़ा रहे और ड्रामा पर भी पक्का रहना है। समझो कोई ने शरीर छोड़ा, जाकर दूसरा पार्ट बजायेंगे। हर एक आत्मा को अविनाशी पार्ट मिला हुआ है, इसमें कुछ भी ख्याल होने की दरकार नहीं। उनको दूसरा पार्ट जाए बजाना है। वापिस तो बुला नहीं सकते। ड्रामा है ना। इसमें रोने की कोई बात नहीं। ऐसी अवस्था वाले ही निर्मोही राजा जाकर बनते हैं। सतयुग में सब निर्मोही होते हैं।
  6. इन आंखों से जो कुछ दिखाई देता हैयह सब कब्रदाखिल होना है इसलिए इसको देखते भी नहीं देखना है। एक शिवबाबा को ही याद करना है। किसी देहधारी को नहीं।
  7. जैसे भक्ति मार्ग में मूर्ति बनाकर पूजा आदि करते हैं, फिर उन्हें डुबो देते हैं तो आप उसे गुड़ियों की पूजा कहते हो। ऐसे आपके सामने भी जब कोई निर्जीव, असार बातें ईर्ष्या, अनुमान, आवेश आदि की आती हैं और आप उनका विस्तार कर अनुभव करते या कराते हो कि यही सत्य हैं, तो यह भी जैसे उनमें प्राण भर देते हो। फिर उन्हें ज्ञान सागर बाप की याद से, बीती सो बीती कर, स्वउन्नति की लहरों में डुबोते भी हो लेकिन इसमें भी टाइम तो वेस्ट जाता है ना, इसलिए पहले से ही मास्टर ज्ञान सागर बन स्मृति सो समर्थी भव के वरदान से इन गुड़ियों के खेल को समाप्त करो।

06/02/2025

मीठे बच्चेपुरानी दुनिया के कांटों को नई दुनिया के फूल बनानायह तुम होशियार मालियों का काम हैं

प्रश्नः
संगमयुग पर तुम बच्चे कौनसी श्रेष्ठ तकदीर बनाते हो?

उत्तर:-
कांटे से खुशबूदार फूल बननायह है सबसे श्रेष्ठ तकदीर। अगर एक भी कोई विकार है तो कांटा है। जब कांटे से फूल बनो तब सतोप्रधान देवीदेवता बनो। तुम बच्चे अभी 21 पीढ़ी के लिए अपनी सूर्यवंशी तकदीर बनाने आये हो।

  1. यह तो कॉमन गीत है क्योंकि तुम हो माली, बाप है बागवान। अब मालियों को कांटों से फूल बनाना है। यह अक्षर बहुत क्लीयर है। भक्त आये हैं भगवान के पास। यह सब भक्तियाँ हैं ना। अब ज्ञान की पढ़ाई पढ़ने बाप के पास आये हैं। इस राजयोग की पढ़ाई से ही नई दुनिया के मालिक बनते हो। तो भक्तियां कहती हैंहम तकदीर बनाकर आये हैं, नई दुनिया दिल में सजाकर आये हैं। बाबा भी रोज़ कहते हैं कि स्वीट होम और स्वीट राजाई को याद करो। आत्मा को याद करना है। हर एक सेन्टर पर कांटों से फूल बन रहे हैं। फूलों में भी नम्बरवार होते हैं ना। शिव के ऊपर फूल चढ़ाते, कोई कैसा फूल चढ़ाते, कोई कैसा। गुलाब के फूल और अक के फूल में रातदिन का फर्क है। यह भी बगीचा है। कोई मोतिये के फूल हैं, कोई चम्पा के, कोई रतन ज्योत हैं। कोई अक के भी हैं। बच्चे जानते हैं इस समय सब हैं कांटे। यह दुनिया ही कांटों का जंगल है, इनको बनाना है नई दुनिया के फूल। इस पुरानी दुनिया में हैं कांटें, तो गीत में भी कहते हैं हम बाप के पास आये हैं पुरानी दुनिया के कांटे से नई दुनिया का फूल बनने। जो बाप नई दुनिया स्थापन कर रहे हैं। कांटे से फूल अर्थात् देवीदेवता बनना है। गीत का अर्थ कितना सहज है। हम आये हैंतकदीर जगाने नई दुनिया के लिए। नई दुनिया है सतयुग। कोई की सतोप्रधान तकदीर है, कोई की रजो, तमो है। कोई सूर्यवंशी राजा बनते हैं, कोई प्रजा बनते हैं, कोई प्रजा के भी नौकर चाकर बनते हैं। यह नई दुनिया की राजाई स्थापन हो रही है। स्कूल में तकदीर जगाने जाते हैं ना। यहाँ तो है नई दुनिया की बात। इस पुरानी दुनिया में क्या तकदीर बनायेंगे! तुम भविष्य नई दुनिया में देवता बनने की तकदीर बना रहे हो, जिन देवताओं को सभी नमन करते आये हैं। हम ही सो देवता पूज्य थे फिर हम ही पुजारी बने हैं। 21 जन्मों का वर्सा बाप से मिलता है, जिसे 21 पीढ़ी कहा जाता है। पीढ़ी वृद्ध अवस्था तक को कहा जाता है। बाप 21 पीढ़ी का वर्सा देते हैं क्योंकि युवा अवस्था में वा बचपन में, बीच में अकाले मृत्यु कभी होता नहीं इसलिए उनको कहा जाता है अमरलोक। यह है मृत्युलोक, रावण राज्य। यहाँ हर एक में विकारों की प्रवेशता है, जिसमें कोई एक भी विकार है तो कांटे हुए ना। बाप समझेंगे माली रॉयल खुशबूदार फूल बनाना नहीं जानते हैं। माली अच्छा होगा तो अच्छेअच्छे फूल तैयार करेंगे। विजय माला में पिरोने लायक फूल चाहिए। देवताओं के पास अच्छेअच्छे फूल ले जाते हैं ना। समझो क्वीन एलिजाबेथ आती है तो एकदम फर्स्टक्लास फूलों की माला बनाकर ले जायेंगे। यहाँ के मनुष्य तो हैं तमोप्रधान।
  2. विजय माला में आने का मुख्य आधार है पढ़ाई। पढ़ाई तो एक ही होती है, उसमें पास तो नम्बरवार होते हैं ना। सारा मदार पढ़ाई पर है। कोई तो विजय माला के 8 दानों में आते हैं, कोई 108 में, कोई 16108 में। सिजरा बनाते हैं ना। जैसे झाड़ का भी सिजरा निकलता है, पहलेपहले एक पत्ता, दो पत्ते फिर बढ़ते जाते हैं। यह भी झाड़ है।
  3. तुम यहाँ आये हो अहिल्या बुद्धि से पारसबुद्धि बनने। तो नॉलेज भी धारण करनी चाहिए ना। बाप को पहचानना चाहिए और पढ़ाई का ख्याल करना चाहिए। समझो आज आये हैं, कल अचानक शरीर छूट जाता है फिर क्या पद पा सकेंगे। नॉलेज तो कुछ भी उठाई नहीं, कुछ भी सीखे नहीं तो क्या पद पायेंगे! दिनप्रतिदिन जो देरी से शरीर छोड़ते हैं, उनको टाइम तो थोड़ा मिलता है क्योंकि टाइम तो कम होता जाता है, उसमें जन्म ले क्या कर सकेंगे। हाँ, तुम्हारे से जो जायेंगे तो कोई अच्छे घर में जन्म लेंगे। संस्कार ले जाते हैं तो वह आत्मा झट जाग जायेगी, शिवबाबा को याद करने लगेगी। संस्कार ही नहीं पड़े हुए होंगे तो कुछ भी नहीं होगा। इसको बहुत महीनता से समझना होता है। माली अच्छेअच्छे फूलों को ले आते हैं तो उनकी महिमा भी गाई जाती है, फूल बनाना तो माली का काम है ना। ऐसे बहुत बच्चे हैं, जिनको बाप को याद करना आता ही नहीं है। तकदीर के ऊपर है ना। तकदीर में नहीं है तो कुछ भी समझते नहीं। तकदीरवान बच्चे तो बाप को यथार्थ रीति पहचान कर उन्हें पूरी रीति याद करेंगे। बाप के साथसाथ नई दुनिया को भी याद करते रहेंगे।
  4. स्कूल में भी कोई की तकदीर में नहीं होता है तो फेल हो पड़ते हैं। यह तो बहुत बड़ा इम्तहान है। भगवान खुद बैठ पढ़ाते हैं। यह नॉलेज सभी धर्म वालों के लिए है। बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो। तुम जानते हो किसी भी देहधारी मनुष्य को भगवान कह नहीं सकते। ब्रह्माविष्णुशंकर को भी भगवान नहीं कहेंगे। वह भी सूक्ष्मवतनवासी देवतायें हैं। यहाँ हैं मनुष्य। यहाँ देवतायें नहीं हैं। यह है मनुष्य लोक।
  5. यह लक्ष्मीनारायण आदि दैवीगुण वाले मनुष्य हैं, जिसको डिटीज्म कहा जाता है। सतयुग में सभी देवीदेवता हैं, सूक्ष्मवतन में हैं ही ब्रह्माविष्णुशंकर। गाते भी हैं ब्रह्मा देवताए नम:, विष्णु देवताए नम:….. फिर कहेंगे शिव परमात्माए नम: शिव को देवता नहीं कहेंगे। और मनुष्य को फिर भगवान नहीं कह सकते। तीन फ्लोर हैं ना। हम हैं थर्ड फ्लोर पर। सतयुग के जो दैवीगुण वाले मनुष्य हैं वही फिर आसुरी गुण वाले बन जाते हैं। माया का ग्रहण लगने से काले हो जाते हैं। जैसे चन्द्रमा को भी ग्रहण लगता है ना। वह हैं हद की बातें, यह है बेहद की बात। बेहद का दिन और बेहद की रात है। गाते भी हैं ब्रह्मा का दिन और रात। तुमको अभी एक बाप से ही पढ़ना है बाकी सब कुछ भूल जाना है। बाप द्वारा पढ़ने से तुम नई दुनिया के मालिक बनते हो। यह सच्चीसच्ची गीता पाठशाला है। पाठशाला में हमेशा नहीं रहते।
  6. तुम बच्चे समझते हो कि यह है आत्माओं और परमात्मा का मेला। बाप के पास आये हैं स्वर्ग का वर्सा लेने, नई दुनिया की स्थापना हो रही है। स्थापना पूरी हुई और विनाश शुरू हो जायेगा। यह वही महाभारत की लड़ाई है ना।
  7. विजय माला में आने का आधार पढ़ाई है। पढ़ाई पर पूरा ध्यान देना है। कांटों को फूल बनाने की सेवा करनी है। स्वीट होम और स्वीट राजाई को याद करना है।
  8. कैसी भी परिस्थिति हो, परिस्थिति चली जाए लेकिन खुशी नहीं जाए।
  9. एकता और एकाग्रता” – यह दोनों श्रेष्ठ भुजायें हैं, कार्य करने के सफलता की। एकाग्रता अर्थात् सदा निरव्यर्थ संकल्प, निर्विकल्प। जहाँ एकता और एकाग्रता है, वहाँ सफलता गले का हार है। वरदाता को एक शब्द प्यारा है – ‘एकव्रता‘, एक बल एक भरोसा। साथसाथ एकमत, मनमत परमत, एकरस, और कोई व्यक्ति, वैभव का रस। ऐसे ही एकता, एकान्तप्रिय।

07/02/2025

मीठे बच्चेतुम्हें चलते फिरते याद में रहने का अभ्यास करना है। ज्ञान और योग यही मुख्य दो चीजें हैं, योग माना याद

प्रश्नः
अक्लमंद (होशियार) बच्चे कौन से बोल मुख से नहीं बोलेंगे?

उत्तर:-
हमें योग सिखलाओ, यह बोल अक्लमंद बच्चे नहीं बोलेंगे। बाप को याद करना सीखना होता है क्या! यह पाठशाला है पढ़ने पढ़ाने के लिए। ऐसे नहीं, याद करने के लिए कोई खास बैठना है। तुम्हें कर्म करते बाप को याद करने का अभ्यास करना है।

  1. यह तो जानते हो मुख्य है रूह। वह तो है अविनाशी। शरीर है विनाशी। बड़ा तो रूह हुआ ना। अज्ञानकाल में यह ज्ञान किसको नहीं रहता है कि हम आत्मा हैं, शरीर द्वारा बोलते हैं। देहअभिमान में आकर ही बोलते हैंमैं यह करता हूँ। अभी तुम देहीअभिमानी बने हो। जानते हो आत्मा कहती है मैं इस शरीर द्वारा बोलती हूँ, कर्म करती हूँ। आत्मा मेल है। बाप समझाते हैंयह बोल बहुत करके सुने जाते हैं, कहते हैं हमको योग में बिठाओ। सामने एक बैठते हैं, इस ख्याल से कि हम भी बाबा की याद में बैठें, यह भी बैठें। अब पाठशाला कोई इसके लिए नहीं है। पाठशाला तो पढ़ाई के लिए है। बाकी ऐसे नहीं, यहाँ बैठकर सिर्फ तुम्हें याद करना है। बाप ने तो समझाया है चलते फिरते, उठते बैठते बाप को याद करो, इसके लिए खास बैठने की भी दरकार नहीं।
  2. याद तो चलते फिरते कर सकते हैं। तुमको तो कर्म करते बाप को याद करना है। आशिक माशूक कोई खास बैठकर एकदो को याद नहीं करते हैं। काम काज धन्धा आदि सब करना है, सब कुछ करते अपने माशूक को याद करते रहो। ऐसे नहीं कि उनको याद करने के लिए खास कहाँ जाकर बैठना है।
  3. ड्रामा अनुसार आत्मा अशान्त हो पड़ी है तो बाप को पुकारती है क्योंकि शान्ति, सुख, ज्ञान का सागर वह है। ज्ञान और योग मुख्य दो चीज़ें हैं, योग माना याद। उन्हों का हठयोग बिल्कुल ही अलग है। तुम्हारा है राजयोग। बाप को सिर्फ याद करना है। बाप द्वारा तुम बाप को जानने से सृष्टि के आदि, मध्य, अन्त को जान गये हो। तुमको सबसे बड़ी खुशी तो यह है कि हमको भगवान पढ़ाते हैं। भगवान का भी पहलेपहले पूरा परिचय होना चाहिए। ऐसा तो कभी नहीं जाना कि जैसे आत्मा स्टॉर है, वैसे भगवान भी स्टॉर है। वह भी आत्मा है। परन्तु उनको परम आत्मा, सुप्रीम सोल कहा जाता है। वह कभी पुनर्जन्म तो लेते नहीं हैं। ऐसे नहीं कि वह जन्म मरण में आते हैं। नहीं, पुनर्जन्म नहीं लेते हैं। खुद आकर समझाते हैं मैं कैसे आता हूँ? त्रिमूर्ति का गायन भी भारत में है। त्रिमूर्ति ब्रह्माविष्णुशंकर का चित्र भी दिखाते हैं। शिव परमात्माए नम: कहते हैं ना। उस ऊंच ते ऊंच बाप को भूल गये हैं, सिर्फ त्रिमूर्ति का चित्र दे दिया है। ऊपर में शिव तो जरूर होना चाहिए, जिससे यह समझें कि इनका रचयिता शिव है। रचना से कभी वर्सा नहीं मिल सकता है। तुम जानते हो ब्रह्मा से कुछ भी वर्सा नहीं मिलता। विष्णु को तो हीरे जवाहरों का ताज है ना। शिवबाबा द्वारा फिर पेनी से पाउण्ड बने हैं। शिव का चित्र होने से सारा खण्डन हो जाता है। ऊंच ते ऊंच है परमपिता परमात्मा, उनकी यह रचना है। अभी तुम बच्चों को बाप से स्वर्ग का वर्सा मिलता है, 21 जन्मों के लिए। भल वहाँ फिर भी समझते हैं लौकिक बाप से वर्सा मिला है। वहाँ यह पता नहीं कि यह बेहद के बाप से पाई हुई प्रालब्ध है। यह तुमको अभी पता है। अभी की कमाई वहाँ 21 जन्म चलती है। वहाँ यह मालूम नहीं रहता है, इस ज्ञान का बिल्कुल पता नहीं रहता। यह ज्ञान देवताओं में है, शूद्रों में रहता है। यह ज्ञान है ही तुम ब्राह्मणों में। यह है रूहानी ज्ञान, स्प्रीचुअल का अर्थ भी नहीं जानते हैं। डॉक्टर आफ फिलॉसाफी कहते हैं। डाक्टर आफ स्प्रीचुअल नॉलेज एक ही बाप है। बाप को सर्जन भी कहा जाता है ना।
  4. साधू संन्यासी आदि कोई सर्जन थोड़ेही हैं। वेद शास्त्र आदि पढ़ने वालों को डॉक्टर थोड़ेही कहेंगे। भल टाइटल भी दे देते हैं परन्तु वास्तव में रूहानी सर्जन है एक बाप, जो रूह को इन्जेक्शन लगाते हैं। वह है भक्ति। उनको कहना चाहिए डाक्टर आफ भक्ति अथवा शास्त्रों का ज्ञान देते हैं। उनसे फायदा कुछ भी नहीं होता, नीचे गिरते ही जाते हैं। तो उनको डॉक्टर कैसे कहेंगे? डॉक्टर तो फायदा पहुँचाते हैं ना। यह बाप तो है अविनाशी ज्ञान सर्जन। योगबल से तुम एवरहेल्दी बनते हो। यह तो तुम बच्चे ही जानते हो। बाहर वाले क्या जानें। उनको अविनाशी सर्जन कहा जाता है। आत्माओं में जो विकारों की खाद पड़ी है, उसे निकालना, पतित को पावन बनाकर सद्गति देनायह बाप में शक्ति है। ऑलमाइटी पतितपावन एक फादर है। ऑलमाइटी कोई मनुष्य को नहीं कह सकते हैं। तो बाप कौनसी शक्ति दिखाते हैं? सर्व को अपनी शक्ति से सद्गति दे देते हैं। उनको कहेंगे डॉक्टर ऑफ स्प्रीचुअल नॉलेज। डॉक्टर आफ फिलॉसाफीयह तो ढेर के ढेर मनुष्य हैं। स्प्रीचुअल डॉक्टर एक है। तो अब बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो और पवित्र बनो। मैं आया ही हूँ पवित्र दुनिया स्थापन करने, फिर तुम पतित क्यों बनते हो? पावन बनो, पतित मत बनो। सभी आत्माओं को बाप का डायरेक्शन हैगृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र रहो।
  5. 10 मिनट यहाँ बैठते हैं तो भी ऐसे मत समझो कि कोई एकरस हो बैठते हैं। भक्ति मार्ग में किसकी पूजा करने बैठते हैं तो बुद्धि बहुत भटकती रहती है। नौधा भक्ति करने वालों को यही तात लगी रहती है कि हमको साक्षात्कार हो। वह आश लगाकर बैठे रहते हैं। एक की लगन में लवलीन हो जाते हैं, तब साक्षात्कार होता है। उनको कहा जाता है नौंधा भक्त। वह भक्ति ऐसी है जैसे आशिकमाशूक। खाते पीते बुद्धि में याद रहती है। उनमें विकार की बात नहीं होती, शरीर पर प्यार हो जाता है। एकदो को देखने बिगर रह नहीं सकते।
  6. कोई कहते हैं हमको योग में बहुत मजा आता है, ज्ञान में इतना मजा नहीं। बस, योग करके यह भागेंगे। योग ही अच्छा लगता है, कहते हैं हमको तो शान्ति चाहिए। अच्छा, बाप को तो कहाँ भी बैठ याद करो। याद करतेकरते तुम शान्तिधाम में चले जायेंगे। इसमें योग सिखलाने की बात ही नहीं है। बाप को याद करना है।
  7. ऐसे बहुत हैं जो सेन्टर्स पर जाकर आधा पौना घण्टा बैठते हैं, कहते हैं हमको नेष्ठा कराओ या तो कहेंगे बाबा ने प्रोग्राम दिया है नेष्ठा का। यहाँ बाबा कहते हैं चलते फिरते याद में रहो। ना से तो बैठना अच्छा है। बाबा मना नहीं करते हैं, भल सारी रात बैठो, परन्तु ऐसी आदत थोड़ेही डालनी है कि बस रात को ही याद करना है। आदत यह डालनी है कि काम काज़ करते याद करना है। इसमें बड़ी मेहनत है। बुद्धि घड़ीघड़ी और तरफ भाग जाती है। भक्ति मार्ग में भी बुद्धि भाग जाती है फिर अपने को चुटकी काटते हैं। सच्चे भक्त जो होते हैं उनकी बात करते हैं। तो यहाँ भी अपने साथ ऐसीऐसी बातें करनी चाहिए। बाबा को क्यों नहीं याद किया? याद नहीं करेंगे तो विश्व के मालिक कैसे बनेंगे? आशिकमाशूक तो नामरूप में फंसे रहते हैं। यहाँ तो तुम अपने को आत्मा समझ बाप को याद करते हो। हम आत्मा इस शरीर से अलग हैं। शरीर में आने से कर्म करना होता है। बहुत ऐसे भी हैं जो कहते हैं हम दीदार करें। अब दीदार क्या करेंगे। वह तो बिन्दी है ना।
  8. याद से ही आत्मा पवित्र होनी है। बहुतों को पढ़ायेंगे तो ऊंच पद पायेंगे। जो अच्छा समझते हैं वह अच्छा पद पायेंगे। प्रदर्शनी में कितनी प्रजा बनती है। तुम एकएक लाखों की सेवा करेंगे और फिर अपनी भी अवस्था ऐसी चाहिए। कर्मातीत अवस्था हो जायेगी फिर शरीर नहीं रहेगा। आगे चल तुम समझेंगे अब लड़ाई जोर हो जायेगी फिर ढेर तुम्हारे पास आते रहेंगे। महिमा बढ़ती जायेगी। अन्त में संन्यासी भी आयेंगे, बाप को याद करने लग पड़ेंगे। उनका पार्ट ही मुक्तिधाम में जाने का है। नॉलेज तो लेंगे नहीं। तुम्हारा मैसेज सभी आत्माओं तक पहुँचना है, अखबारों द्वारा बहुत सुनेंगे। कितने गांव हैं, सबको पैगाम देना है। मैसेन्जर पैगम्बर तुम ही हो। पतित से पावन बनाने वाला और कोई है नहीं, सिवाए बाप के।
  9. तुम बच्चों को अब पवित्र जरूर बनना है। बहुत हैं जो पवित्र नहीं रहते हैं। काम महाशत्रु है ना। अच्छेअच्छे बच्चे गिर पड़ते हैं, कुदृष्टि भी काम का ही अंश है। यह बड़ा शैतान है। बाप कहते हैं इस पर जीत पहनो तो जगतजीत बन जायेंगे।
  10. जो यथार्थ पुरूषार्थी हैं वे कभी मेहनत वा थकावट का अनुभव नहीं करते, सदा मोहब्बत में मस्त रहते हैं। वे संकल्प से भी सरेन्डर होने के कारण अनुभव करते कि हमें बापदादा चला रहे हैं, मेहनत के पांव से नहीं लेकिन स्नेह की गोदी में चल रहे हैं, स्नेह की गोद में सर्व प्राप्तियों की अनुभूति होने के कारण वह चलते नहीं लेकिन सदा खुशी में, आन्तरिक सुख में, सर्व शक्तियों के अनुभव में उड़ते रहते हैं। 

08/02/2025

  1. शान्ति तो शान्तिधाम में ही हो सकती है, जिसको मूलवतन कहा जाता है। आत्मा को जब शरीर नहीं है तब शान्ति है। सतयुग में पवित्रतासुखशान्ति सब है।
  2. रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं। सब मनुष्य मात्र यह जानते हैं कि मेरे अन्दर आत्मा है। जीव आत्मा कहते हैं ना। पहले हम आत्मा हैं, पीछे शरीर मिलता है। कोई ने भी अपनी आत्मा को देखा नहीं है। सिर्फ इतना समझते हैं कि आत्मा है। जैसे आत्मा को जानते हैं, देखा नहीं है, वैसे परमपिता परमात्मा के लिए भी कहते हैं परम आत्मा माना परमात्मा, परन्तु उनको देखा नहीं है। अपने को, बाप को देखा है। कहते हैं कि आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है। परन्तु यथार्थ रीति नहीं जानते।
  3. शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा देवता धर्म यानी नई दुनिया की स्थापना कर रहे हैं, शंकर द्वारा पुरानी दुनिया का विनाश फिर विष्णु द्वारा नई दुनिया की पालना कराते हैं, यह सिद्ध हो जाए। ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा, दोनों का कनेक्शन है ना। ब्रह्मासरस्वती सो फिर लक्ष्मीनारायण बनते हैं। चढ़ती कला एक जन्म में होती है फिर उतरती कला में 84 जन्म लगते हैं।
  4. जैसे कहावत हैधरत परिये धर्म छोड़िये”, तो कोई भी सरकमस्टांश जाए, माया के महावीर रूप सामने जाएं लेकिन धारणायें छूटे। संकल्प द्वारा त्याग की हुई बेकार वस्तुयें संकल्प में भी स्वीकार हों। सदा अपने श्रेष्ठ स्वमान, श्रेष्ठ स्मृति और श्रेष्ठ जीवन के समर्थी स्वरूप द्वारा श्रेष्ठ पार्टधारी बन श्रेष्ठता का खेल करते रहो। कमजोरियों के सब खेल समाप्त हो जाएं। जब ऐसी सम्पूर्ण आहुति का संकल्प दृढ़ होगा तब परिवर्तन समारोह होगा। इस समारोह की डेट अब संगठति रूप में निश्चित करो।

09/02/2025

  1. ब्रह्मा बाप ने निमित्त बच्चों को विश्व सेवा की जिम्मेवारी का ताज पहनाया। स्वयं अननोन बनें और बच्चों को साकार स्वरूप में निमित्त बनाने का, स्मृति का तिलक दिया। स्वयं समान अव्यक्त फरिश्ते स्वरूप का, प्रकाश का ताज पहनाया। स्वयं करावनहार बन करनहार बच्चों को बनाया इसलिए इस दिवस को स्मृति दिवस सो समर्थी दिवस कहा जाता है। सिर्फ स्मृति नहीं, स्मृति के साथसाथ सर्व समर्थियाँ बच्चों को वरदान में प्राप्त हैं।
  2. मास्टर सर्व शक्तिवान स्वरूप में देख रहे हैं। शक्तिवान नहीं, सर्वशक्तिवान। यह सर्व शक्तियां बाप द्वारा हर एक बच्चे को वरदान में मिली हुई हैं। दिव्य जन्म लेते ही बापदादा ने वरदान दियासर्वशक्तिवान भव! यह हर जन्म दिवस का वरदान है। इन शक्तियों को प्राप्त वरदान के रूप से कार्य में लगाओ। शक्तियां तो हर एक बच्चे को मिली हैं लेकिन कार्य में लगाने में नम्बरवार हो जाते हैं। हर शक्ति के वरदान को समय प्रमाण आर्डर कर सकते हो। अगर वरदाता के वरदान के स्मृति स्वरूप बन समय अनुसार किसी भी शक्ति को आर्डर करेंगे तो हर शक्ति हाज़िर होनी ही है। वरदान की प्राप्ति के, मालिकपन के स्मृति स्वरूप में हो आप आर्डर करो और शक्ति समय पर कार्य में नहीं आये, हो नहीं सकता। लेकिन मालिक, मास्टर सर्वशक्तिवान के स्मृति की सीट पर सेट हो, बिना सीट पर सेट के कोई आर्डर नहीं माना जाता है। जब बच्चे कहते हैं कि बाबा हम आपको याद करते तो आप हाज़िर हो जाते हो, हज़ूर हाज़िर हो जाता है। जब हज़ूर हाज़िर हो सकता तो शक्ति क्यों नहीं हाज़िर होगी! सिर्फ विधि पूर्वक मालिकपन के अथॉरिटी से आर्डर करो। यह सर्व शक्तियां संगमयुग की विशेष परमात्म प्रॉपर्टी है। प्रॉपर्टी किसके लिए होती है? बच्चों के लिए प्रॉपर्टी होती है। तो अधिकार से स्मृति स्वरूप की सीट से आर्डर करो, मेहनत क्यों करो, आर्डर करो। वर्ल्ड अथॉरिटी के डायरेक्ट बच्चे हो, यह स्मृति का नशा सदा इमर्ज रहे।
  3. अपने आपको चेक करोवर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी की अधिकारी आत्मा हूँ, यह स्मृति स्वत: ही रहती है? रहती है या कभीकभी रहती है? आजकल के समय में तो अधिकार लेने के ही झगड़े हैं और आप सबको परमात्म अधिकार, परमात्म अथॉरिटी जन्म से ही प्राप्त है। तो अपने अधिकार की समर्थी में रहो। स्वयं भी समर्थ रहो और सर्व आत्माओं को भी समर्थी दिलाओ।
  4. तो बाप कहते हैंहे समर्थ आत्मायें सर्व आत्माओं को शक्ति दो, समर्थी दो।इसके लिए सिर्फ एक बात का अटेन्शन हर बच्चे को रखना आवश्यक हैजो बापदादा ने इशारा भी दिया, बापदादा ने रिजल्ट में देखा कि मैजारिटी बच्चों का संकल्प और समय व्यर्थ जाता है। जैसे बिजली का कनेक्शन अगर थोड़ा भी लूज़ हो वा लीक हो जाए तो लाइट ठीक नहीं सकती। तो यह व्यर्थ की लीकेज़ समर्थ स्थिति को सदाकाल की स्मृति बनाने नहीं देती, इसलिए वेस्ट को बेस्ट में चेन्ज करो। बचत की स्कीम बनाओ। परसेन्टेज़ निकालोसारे दिन में वेस्ट कितना हुआ, बेस्ट कितना हुआ? अगर मानो 40 परसेन्ट वेस्ट है, 20 परसेन्ट वेस्ट है तो उसको बचाओ। ऐसे नहीं समझो थोड़ा सा ही तो वेस्ट जाता है, बाकी तो सारा दिन ठीक रहता है। लेकिन यह वेस्ट की आदत बहुत समय की आदत होने के कारण लास्ट घड़ी में धोखा दे सकती है। नम्बरवार बना देगी, नम्बरवन नहीं बनने देगी। जैसे ब्रह्मा बाप ने आदि में अपनी चेकिंग के कारण रोज़ रात को दरबार लगाई। किसकी दरबार? बच्चों की नहीं, अपनी ही कर्मेन्द्रियों की दरबार लगाई। आर्डर चलायाहे मन मुख्य मंत्री यह तुम्हारी चलन अच्छी नहीं, आर्डर में चलो। हे संस्कार आर्डर में चलो। क्यों नीचे ऊपर हुआ, कारण बताओ, निवारण करो। हर रोज़ ऑफिशियल दरबार लगाई। ऐसे रोज़ अपनी स्वराज्य दरबार लगाओ।
  5. कई बच्चे बापदादा से मीठीमीठी रूहरिहान करते हैं। पर्सनल रूहरिहान करते हैं, बतायें। कहते हैं हमको अपने भविष्य का चित्र बताओ, हम क्या बनेंगे? जैसे आदि रत्नों को याद होगा कि जगत अम्बा माँ से सभी बच्चे अपना चित्र मांगते थे, मम्मा आप हमको चित्र दो हम कैसे हैं। तो बापदादा से भी रूहरिहान करते अपना चित्र मांगते हैं। आप सबकी भी दिल तो होती होगी कि हमको भी चित्र मिल जाए तो अच्छा है। लेकिन बापदादा कहते हैंबापदादा ने हर एक बच्चे को एक विचित्र दर्पण दिया है, वह दर्पण कौन सा है? वर्तमान समय आप स्वराज्य अधिकारी हो ना! हो? स्वराज्य अधिकारी हो? हो तो हाथ उठाओ। स्वराज्य, अधिकारी हो? अच्छा। कोईकोई नहीं उठा रहे हैं। थोड़ाथोड़ा हैं क्या? अच्छा। सभी स्वराज्य अधिकारी हो, मुबारक हो। तो स्वराज्य अधिकार का चार्ट आपके लिए भविष्य पद की शक्ल दिखाने का दर्पण है। यह दर्पण सबको मिला हुआ है ना? क्लीयर है ना? कोई ऐसे काले दाग तो नहीं लगे हुए हैं ना! अच्छा, काले दाग तो नहीं होंगे, लेकिन कभीकभी जैसे गर्म पानी होता है ना, वह कोहरे के मुआफिक आइने पर जाता है। जैसे फागी होती है ना, तो आइने पर ऐसा हो जाता है जो आइना क्लीयर नहीं दिखाता है। नहाने के समय तो सबको अनुभव होगा। तो ऐसा अगर कोई एक भी कर्मेन्द्रिय अभी तक भी आपके पूरे कन्ट्रोल में नहीं है, है कन्ट्रोल में लेकिन कभीकभी नहीं भी है। अगर मानों कोई भी कर्मेन्द्रिय, चाहे आंख हो, चाहे मुख हो, चाहे कान हो, चाहे पाँव हो, पाँव भी कभीकभी बुरे संग के तरफ चला जाता है। तो पाँव भी कन्ट्रोल में नहीं हुआ ना। संगठन में बैठ जायेंगे, रामायण और भागवत की उल्टी कथायें सुनेंगे, सुल्टी नहीं। तो कोई भी कर्मेन्द्रिय संकल्प, समय सहित अगर कन्ट्रोल में नहीं है तो इससे ही चेक करो जब स्वराज्य में कन्ट्रोलिंग पॉवर नहीं है तो विश्व के राज्य में कन्ट्रोल क्या करेंगे! तो राजा कैसे बनेंगे? वहाँ तो सब एक्यूरेट है। कन्ट्रोलिंग पॉवर, रूलिंग पॉवर सब स्वत: ही संगमयुग के पुरुषार्थ की प्रालब्ध के रूप में है। तो संगमयुग अर्थात् वर्तमान समय अगर कन्ट्रोलिंग पॉवर, रूलिंग पॉवर कम है, तो पुरुषार्थ कम तो प्रालब्ध क्या होगी? हिसाब करने में तो होशियार हो ना! तो इस आइने में अपना फेस देखो, अपनी शक्ल देखो। राजा की आती है, रॉयल फैमिली की आती है, रॉयल प्रजा की आती है, साधारण प्रजा की आती है, कौन सी शक्ल आती है? तो मिला चित्र? इस चित्र से चेक करना। हर रोज़ चेक करना क्योंकि बहुतकाल के पुरुषार्थ से, बहुतकाल के राज्य भाग्य की प्राप्ति है। अगर आप सोचो कि अन्त के समय बेहद का वैराग्य तो ही जायेगा, लेकिन अन्त समय आयेगा तो बहुतकाल हुआ या थोड़ा काल हुआ? बहुतकाल तो नहीं कहेंगे ना! तो 21 जन्म पूरा ही राज्य अधिकारी बनें, तख्त पर भले नहीं बैठें, लेकिन राज्य अधिकारी हों। यह बहुतकाल (पुरुषार्थ का), बहुतकाल की प्रालब्ध का कनेक्शन है इसीलिए अलबेले नहीं बनना, अभी तो विनाश की डेट फिक्स ही नहीं है, पता ही नहीं। 8 वर्ष होगा, 10 वर्ष होगा, पता तो है ही नहीं। तो आने वाले समय में हो जायेंगे, नहीं। विश्व के अन्तकाल सोचने के पहले अपने जन्म का अन्तकाल सोचो, आपके पास डेट फिक्स है, किसके पास पता है कि इस डेट पर मेरा मृत्यु होना है? है किसके पास? नहीं है ना! विश्व का अन्त तो होना ही है, समय पर होगा ही लेकिन पहले अपनी अन्तकाल सोचो और जगदम्बा का स्लोगन याद करोक्या स्लोगन था? हर घड़ी अपनी अन्तिम घड़ी समझो। अचानक होना है। डेट नहीं बताई जायेगी। ना विश्व की, ना आपके अन्तिम घड़ी की। सब अचानक का खेल है इसलिए दरबार लगाओ, हे राजे, स्वराज्य अधिकारी राजे अपनी दरबार लगाओ। आर्डर में चलाओ क्योंकि भविष्य का गायन है, लॉ एण्ड आर्डर होगा। स्वत: ही होगा। लव और लॉ दोनों का ही बैलेन्स होगा। नेचुरल होगा। राजा कोई लॉ पास नहीं करेगा कि यह लॉ है। जैसे आजकल लॉ बनाते रहते हैं। आजकल तो पुलिस वाला भी लॉ उठा लेता है। लेकिन वहाँ नेचुरल लव और लॉ का बैलेन्स होगा।
  6. तो अभी आलमाइटी अथॉरिटी की सीट पर सेट रहो। तो यह कर्मेन्द्रियां, शक्तियां, गुण सब आपके आगे जी हज़ूर, जी हज़ूर करेंगे। धोखा नहीं देंगे।
  7. वेस्ट खत्म क्योंकि आपके सफलतामूर्त बनने से आत्माओं को तृप्ति की सफलता प्राप्त होगी। निराशा से चारों ओर शुभ आशाओं के दीप जगेंगे। कोई भी सफलता होती है तो दीपक तो जगाते हैं ना! अब विश्व में आशाओं के दीप जगाओ। हर आत्मा के अन्दर कोई कोई निराशा है ही, निराशाओं के कारण परेशान हैं, टेन्शन में हैं। तो हे अविनाशी दीपकों अब आशाओं के दीपकों की दीवाली मनाओ। पहले स्व फिर सर्व।
  8. अभी आलमाइटी अथॉरिटी में मास्टर हैं, इसमें पास होना, तो यह प्रकृति, यह माया, यह संस्कार, सब आपके दासी बन जायेंगे। हर घड़ी इन्तजार करेंगे मालिक क्या आर्डर है!
  9. सब संकल्प समाप्त करो, यही ड्रिल करो बाबा मीठे बाबा, प्यारे बाबा हम आपके समान अव्यक्त रूपधारी बनें कि बनें।
  10. चोट लगाने वाले का काम है चोट लगाना और आपका काम है अपने को बचा लेना। 

10/02/2025

मीठे बच्चेतुम्हें बाप द्वारा जो अद्वैत मत मिल रही है, उस मत पर चलकर कलियुगी मनुष्यों को सतयुगी देवता बनाने का श्रेष्ठ कर्तव्य करना है

प्रश्नः
सभी मनुष्यमात्र दु:खी क्यों बने हैं, उसका मूल कारण क्या है?

उत्तर:-
रावण ने सभी को श्रापित कर दिया है, इसलिए सभी दु:खी बने हैं। बाप वर्सा देता, रावण श्राप देतायह भी दुनिया नहीं जानती। बाप ने वर्सा दिया तब तो भारतवासी इतने सुखी स्वर्ग के मालिक बनें, पूज्य बनें। श्रापित होने से पुजारी बन जाते हैं।

  1. बच्चे जानते हैं बाप आधाकल्प के लिए आकर वर्सा देते हैं और रावण फिर श्राप देते हैं। यह भी दुनिया नहीं जानती कि हम सभी श्रापित हैं। रावण का श्राप लगा हुआ है इसलिए सभी दु:खी हैं।
  2. तुम बच्चे हो योगबल वाले। वह हैं बाहुबल वाले। तुम भी हो युद्ध के मैदान पर, परन्तु तुम हो डबल अहिंसक। वह है हिंसक। हिंसा काम कटारी को कहा जाता है। संन्यासी भी समझते हैं यह हिंसा है इसलिए पवित्र बनते हैं। परन्तु तुम्हारे सिवाए बाप के साथ प्रीत कोई की है नहीं।
  3. लक्ष्मीनारायण कोई एक नहीं, इन्हों की डिनायस्टी होगी ना फिर उन्हों के बच्चे राजा बनते होंगे। राजायें तो बहुत बनते हैं ना। सारी माला बनी हुई है। माला को ही सिमरण करते हैं ना। जो बाप के मददगार बन बाप की सर्विस करते हैं उन्हों की ही माला बनती है। जो पूरा चक्र में आते, पूज्य पुजारी बनते हैं उन्हों का यह यादगार है। तुम पूज्य से पुजारी बनते हो तो फिर अपनी माला को बैठ पूजते हो। पहले माला पर हाथ लगाकर फिर माथा टेकेंगे। पीछे माला को फेरना शुरू करते हैं। तुम भी सारा चक्र लगाते हो फिर शिवबाबा से वर्सा पाते हो। यह राज़ तुम ही जानते हो। मनुष्य तो कोई किसके नाम पर, कोई किसके नाम पर माला फेरते हैं। जानते कुछ भी नहीं। अभी तुमको माला का सारा ज्ञान है, और कोई को यह ज्ञान नहीं।
  4. पढ़ाई पर ध्यान नहीं देंगे तो इम्तहान में नापास हो जायेंगे। पढ़ते और पढ़ाते रहेंगे तो खुशी भी रहेगी। अगर विकार में गिरा तो बाकी यह सब भूल जायेगा। आत्मा जब पवित्र सोना हो तब उसमें धारणा अच्छी हो। सोने का बर्तन होता है पवित्र गोल्डन। अगर कोई पतित बना तो ज्ञान सुना नहीं सकता।
  5. बेहद का बाप कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहते यह अन्तिम जन्म फार माई सेक (मेरे सदके) पवित्र बनो। बच्चों से यह भीख मांगते हैं। कमल फूल समान पवित्र बनो और मुझे याद करो तो यह जन्म भी पवित्र बनेंगे और याद में रहने से पास्ट के विकर्म भी विनाश होंगे। यह है योग अग्नि, जिससे जन्मजन्मान्तर के पाप दग्ध होते हैं। सतोप्रधान से सतो, रजो, तमो में आते हैं तो कला कम हो जाती है। खाद पड़ती जाती है। अब बाप कहते हैं सिर्फ मामेकम् याद करो। बाकी पानी की नदियों में स्नान करने से थोड़ेही पावन बनेंगे। पानी भी तत्व है ना। 5 तत्व कहे जाते हैं। यह नदियाँ कैसे पतितपावनी हो सकती हैं। नदियाँ तो सागर से निकलती हैं। पहले तो सागर पतितपावन होना चाहिए ना।
  6. अपनी एक्यूरेट एम ऑबजेक्ट को सामने रख पूरा पुरूषार्थ करना है। डबल अहिंसक बन मनुष्य को देवता बनाने का श्रेष्ठ कर्तव्य करते रहना है। 

11/02/2025

  1. जो जिस भावना से जिसकी पूजा करते हैं उनको वह साक्षात्कार होता है। यह ड्रामा में नूँध है। यह तो भगवान की बड़ाई की है कि वह साक्षात्कार कराते हैं।
  2. यह भी समझाना है कि गुरू दो प्रकार के हैं। एक हैं भक्ति मार्ग के गुरू, वह भक्ति ही सिखलाते हैं। यह बाप तो है ज्ञान का सागर, इनको सतगुरू कहा जाता है।
  3. तुम बच्चे जानते हो हम आत्माओं के रहने का स्थान परे ते परे है। वहाँ सूर्यचांद की भी रोशनी नहीं है।
  4. बाबा ने समझाया है यह सारी दुनिया एक बेहद का आयलैण्ड है। जैसे लंका टापू है। दिखाते हैं रावण लंका में रहता था। अभी तुम समझते हो रावण का राज्य तो सारी बेहद की लंका पर है। यह सारी सृष्टि समुद्र पर खड़ी है। यह टापू है। इस पर रावण का राज्य है। यह सब सीतायें रावण की जेल में हैं। उन्होंने तो हद की कथायें बना दी हैं। है यह सारी बेहद की बात। बेहद का नाटक है, उसमें ही फिर छोटेछोटे नाटक बैठ बनाये हैं। यह बाइसकोप आदि भी अभी बने हैं, तो बाप को भी समझाने में सहज होता है।
  5. बेहद का सारा ड्रामा तुम बच्चों की बुद्धि में है। मूलवतन, सूक्ष्मवतन और किसकी बुद्धि में हो सके। तुम जानते हो हम आत्मायें मूलवतन की रहवासी हैं। देवतायें हैं सूक्ष्मवतन वासी, उनको फरिश्ता भी कहते हैं। वहाँ हड्डी मांस का पिंजड़ा होता नहीं। यह सूक्ष्मवतन का पार्ट भी थोड़े समय के लिए है। अभी तुम आतेजाते हो फिर कभी नहीं जायेंगे। तुम आत्मायें जब मूलवतन से आती हो तो वाया सूक्ष्मवतन नहीं आती हो, सीधी आती हो। अभी वाया सूक्ष्मवतन जाती हो। अभी सूक्ष्मवतन का पार्ट है। यह सब राज़ बच्चों को समझाते हैं। बाप जानते हैं कि हम आत्माओं को समझा रहे हैं।
  6. अब बाप बैठ समझाते हैंजिसजिस रूप में जैसी भावना रखते हैं, जो शक्ल देखते हैं, वह साक्षात्कार हो जाता है।
  7. ऐसे भी कई सेन्टर्स पर आते हैं जो विकार में जाते रहते हैं और फिर सेन्टर्स पर आते रहते हैं। समझते हैं ईश्वर तो सब देखता है, जानता है। अब बाप को क्या पड़ी है जो यह बैठ देखेगा। तुम झूठ बोलेंगे, विकर्म करेंगे तो अपना ही नुकसान करेंगे। यह तो तुम भी समझते हो, काला मुँह करता हूँ तो ऊंच पद पा नहीं सकूँगा। सो बाप ने जाना तो भी बात तो एक ही हुई। उनको क्या दरकार पड़ी है। अपनी दिल खानी चाहिएमैं ऐसा कर्म करने से दुर्गति को पाऊंगा। बाबा क्यों बतावे? हाँ, ड्रामा में है तो बतलाते भी हैं। बाबा से छिपाना गोया अपनी सत्यानाश करना है। पावन बनने के लिए बाप को याद करना है, तुमको यही फुरना रहना चाहिए कि हम अच्छी रीति पढ़कर ऊंच पद पावें। कोई मरा वा जिया, उनका फुरना नहीं। फुरना (फिक्र) रखना है कि बाप से वर्सा कैसे लेवें? तो किसको भी थोड़े में समझाना है।
  8. जब किसी भी प्रकार का दु: आये तो मन्त्र ले लो जिससे दु: भाग जायेगा। स्वप्न में भी जरा भी दु: का अनुभव हो, तन बीमार हो जाए, धन नीचे ऊपर हो जाए, कुछ भी हो लेकिन दु: की लहर अन्दर नहीं आनी चाहिए। जैसे सागर में लहरें आती हैं और चली जाती हैं लेकिन जिन्हें उन लहरों में लहराना आता है वह उसमें सुख का अनुभव करते हैं, लहर को जम्प देकर ऐसे क्रास करते हैं, जैसे खेल कर रहे हैं। तो सागर के बच्चे सुख स्वरूप हो, दु: की लहर भी आये।
  9. हर संकल्प में दृढ़ता की विशेषता को प्रैक्टिकल में लाओ तो प्रत्यक्षता हो जायेगी। 

12/02/2025

प्रश्नः
अपने जीवन को हीरे जैसा बनाने के लिए किस बात की बहुतबहुत सम्भाल चाहिए?

उत्तर:-
संग की। बच्चों को संग उनका करना चाहिए जो अच्छा बरसते हैं। जो बरसते नहीं, उनका संग रखने से फायदा ही क्या! संग का दोष बहुत लगता है, कोई किसके संग से हीरे जैसा बन जाते हैं, कोई फिर किसके संग से ठिक्कर बन जाते हैं। जो ज्ञानवान होंगे वह आपसमान जरूर बनायेंगे। संग से अपनी सम्भाल रखेंगे।

  1. बादल कोई तो खूब बरसते हैं, कोई थोड़ा बरसकर चले जाते हैं। तुम भी बादल हो ना। कोई तो बिल्कुल बरसते ही नहीं हैं। ज्ञान को खींचने की ताकत नहीं है। मम्माबाबा अच्छे बादल हैं ना। बच्चों को संग उनका करना चाहिए जो अच्छा बरसते हैं। जो बरसते ही नहीं उनसे संग रखने से क्या होगा? संग का दोष भी बहुत लगता है। कोई तो किसके संग से हीरे जैसा बन जाते हैं, कोई फिर किसके संग से ठिक्कर बन जाते हैं। पीठ पकड़नी चाहिए अच्छे की। जो ज्ञानवान होगा वह आपसमान फूल बनायेगा। सत् बाप से जो ज्ञानवान और योगी बने हैं उनका संग करना चाहिए। ऐसे नहीं समझना है कि हम फलाने का पूँछ पकड़कर पार हो जायेंगे। ऐसे बहुत कहते हैं। परन्तु यहाँ तो वह बात नहीं है। स्टूडेन्ट किसकी पूँछ पकड़ने से पास हो जायेंगे क्या! पढ़ना पड़े ना। बाप भी आकर नॉलेज देते हैं। इस समय वह जानते हैं हमको ज्ञान देना है। भक्ति मार्ग में उनकी बुद्धि में यह बातें नहीं रहती कि हमको जाकर ज्ञान देना है। यह सब ड्रामा में नूँध है। बाबा कुछ करते नहीं हैं। ड्रामा में दिव्य दृष्टि मिलने का पार्ट है तो साक्षात्कार हो जाता है। बाप कहते हैं ऐसे नहीं कि मैं बैठ साक्षात्कार कराता हूँ। यह ड्रामा में नूँध है। अगर कोई देवी का साक्षात्कार करना चाहते हैं, देवी तो नहीं करायेगी ना। कहते हैंहे भगवान, हमको साक्षात्कार कराओ। बाप कहते हैं ड्रामा में नूँध होगी तो हो जायेगा। मैं भी ड्रामा में बांधा हुआ हूँ।
  2. बाप कहते हैंअच्छा वा बुरा काम ड्रामानुसार हर एक करते हैं। नूँध है। मैं थोड़ेही इतने करोड़ों मनुष्यों का बैठ हिसाब रखूँगा, मुझे शरीर है तब सब कुछ करता हूँ। करनकरावनहार भी तब कहते हैं। नहीं तो कह सकें। मैं जब इसमें आऊं तब आकर पावन बनाऊं। ऊपर में आत्मा क्या करेगी? शरीर से ही पार्ट बजायेगी ना। मैं भी यहाँ आकर पार्ट बजाता हूँ। सतयुग में मेरा पार्ट है नहीं। पार्ट बिगर कोई कुछ कर सके। शरीर बिगर आत्मा कुछ कर नहीं सकती। आत्मा को बुलाया जाता है, वह भी शरीर में आकर बोलेगी ना। आरगन्स बिगर कुछ कर सके। यह है डीटेल की समझानी।
  3. मैं यह करता हूँ, मैं यह करता हूँ, यह अहंकार नहीं आना चाहिए। सर्विस करना तो फ़र्ज है, इसमें अहंकार नहीं आना चाहिए। अहंकार आया और गिरा। सर्विस करते रहो, यह है रूहानी सेवा। बाकी सब है जिस्मानी।
  4. बापदादा की श्रीमत है बच्चे व्यर्थ बातें सुनो, सुनाओ और सोचो। सदा शुभ भावना से सोचो, शुभ बोल बोलो। व्यर्थ को भी शुभ भाव से सुनो। शुभ चिंतक बन बोल के भाव को परिवर्तन कर दो। सदा भाव और भावना श्रेष्ठ रखो, स्वयं को परिवर्तन करो कि अन्य के परिवर्तन का सोचो। स्वयं का परिवर्तन ही अन्य का परिवर्तन है, इसमें पहले मैंइस मरजीवा बनने में ही मजा है, इसी को ही महाबली कहा जाता है। इसमें खुशी से मरोयह मरना ही जीना है, यही सच्चा जीयदान है।

13/02/2025

  1. अभी तुम समझाते हो हम योगबल से विश्व की बादशाही लेते हैं तो क्या योगबल से बच्चे नहीं हो सकते। वह है ही निर्विकारी दुनिया। अभी तुम शूद्र से ब्राह्मण बने हो। ऐसा अच्छी रीति समझाना है जो मनुष्य समझें इनके पास पूरा ज्ञान है। थोड़ा भी इस बात को समझेंगे तो समझा जायेगा यह ब्राह्मण कुल का है।
  2. विकार का तूफान बहुत जोर से आता है। बाप तो कहते हैं बाप का बनने से यह सब बीमारियाँ उथल खायेंगी, तूफान जोर से आयेंगे। पूरी बॉक्सिंग है। अच्छेअच्छे पहलवानों को भी हरा लेते हैं। कहते हैं चाहते भी कुदृष्टि हो जाती है, रजिस्टर खराब हो जायेगा। कुदृष्टि वाले से बात नहीं करनी चाहिए। बाबा सभी सेन्टर्स के बच्चों को समझा रहे हैं कि कुदृष्टि वाले बहुत ढेर हैं, नाम लेने से और ही ट्रेटर बन जायेंगे। अपनी सत्यानाश करने वाले उल्टे काम करने लग पड़ते हैं। काम विकार नाक से पकड़ लेता है। माया छोड़ती नहीं है, कुकर्म, कुदृष्टि, कुवचन निकल पड़ते हैं, कुचलन हो पड़ती है इसलिए बहुतबहुत सावधान रहना है।
  3. तुम देवीदेवता पारसबुद्धि थे, विश्व पर राज्य करते थे। अभी स्मृति आई है, हम स्वर्ग के मालिक थे फिर नर्क के मालिक बने हैं। अब फिर पारसबुद्धि बनते हैं। यह ज्ञान तुम बच्चों की बुद्धि में है जो फिर औरों को समझाना है। ड्रामा अनुसार पार्ट चलता रहता है, जो टाइम पास होता है सो एक्यूरेट फिर भी पुरूषार्थ तो करायेंगे ना। जिन बच्चों को नशा है कि स्वयं भगवान हमको हेविन का मालिक बनाने के लिए पुरूषार्थ कराते हैं उनकी शक्ल बड़ी फर्स्टक्लास खुशनुम: रहती है।
  4. बाप और वर्से को याद करने से खुशनुम: हो जाते हैं। हर एक की सर्विस से समझा जाता है। बाप को बच्चों की खुशबू तो आती है ना। सपूत बच्चों से खुशबू आती है, कपूत से बदबू आती है। बगीचे में खुशबूदार फूल को ही उठाने के लिए दिल होगी। अक को कौन उठायेंगे! बाप को यथार्थ रीति याद करने से ही विकर्म विनाश होंगे।
  5. आप बच्चे जो चैलेन्ज करते हो उस चैलेन्ज और प्रैक्टिकल जीवन में समानता हो, नहीं तो पुण्य आत्मा के बजाए बोझ वाली आत्मा बन जायेंगे। इस पाप और पुण्य की गति को जानकर स्वयं को सेफ रखो क्योंकि संकल्प में भी किसी भी विकार की कमजोरी, व्यर्थ बोल, व्यर्थ भावना, घृणा वा ईर्ष्या की भावना पाप के खाते को बढ़ाती है इसलिए पुण्य आत्मा भव के वरदान द्वारा स्वयं को सेफ रख विश्व सेवाधारी बनो। संगठित रूप में एकमत, एकरस स्थिति का अनुभव कराओ।
  6. पवित्रता की शमा चारों ओर जलाओ तो बाप को सहज देख सकेंगे।

14/02/2025

प्रश्नः
बुद्धियोग स्वच्छ बन बाप से लग सके, उसकी युक्ति कौनसी रची हुई है?

उत्तर:-
7
दिन की भट्ठी। कोई भी नया आता है तो उसे 7 दिन के लिए भट्ठी में बिठाओ जिससे बुद्धि का किचड़ा निकले और गुप्त बाप, गुप्त पढ़ाई और गुप्त वर्से को पहचान सके। अगर ऐसे ही बैठ गये तो मूंझ जायेंगे, समझेंगे कुछ नहीं।

गीत:-
जाग सजनियां जाग……

ओम् शान्ति। बच्चों को ज्ञानी तू आत्मा बनाने के लिए ऐसेऐसे जो गीत हैं वह सुनाकर फिर उसका अर्थ करना चाहिए तो वाणी खुलेगी। मालूम पड़ेगा कि कहाँ तक सृष्टि के आदिमध्यअन्त का ज्ञान बुद्धि में है।

  1. मूल बात है ही आत्मअभिमानी बनने की। अपने को आत्मा समझना है और बाप को याद करना है। यह श्रीमत है मुख्य। बाकी है डिटेल। बीज कितना छोटा है, बाकी झाड़ का विस्तार है। जैसे बीज में सारा ज्ञान समाया हुआ है वैसे यह सारा ज्ञान भी बीज में समाया हुआ है। तुम्हारी बुद्धि में बीज और झाड़ गया है।
  2. कोई नया आये, बाबा महिमा करे कि स्वदर्शन चक्रधारी बच्चों, तो कोई समझ सके। वह तो अपने को बच्चे ही नहीं समझते हैं। यह बाप भी गुप्त है तो नॉलेज भी गुप्त है, वर्सा भी गुप्त है। नया कोई भी सुनकर मूँझ पड़ेंगे इसलिये 7 दिन की भट्ठी में बिठाया जाता है। यह जो 7 रोज भागवत वा रामायण आदि रखते हैं, वास्तव में यह इस समय 7 दिन के लिए भट्ठी में रखा जाता है तो बुद्धि में जो भी सारा किचड़ा है वह निकालें और बाप से बुद्धियोग लग जाए। यहाँ सब हैं रोगी। सतयुग में यह रोग होते नहीं। यह आधाकल्प का रोग है, 5 विकारों का रोग बड़ा भारी है।
  3. यह गीत कितना सुन्दर है, ड्रामा प्लैन अनुसार कल्पकल्प ऐसे गीत बनते हैं, जैसेकि तुम बच्चों के लिए ही बनाये हुए हैं। ऐसेऐसे अच्छेअच्छे गीत हैं। जैसे नयनहीन को राह दिखाओ प्रभू। प्रभू कोई श्रीकृष्ण को थोड़ेही कहते हैं। प्रभू वा ईश्वर निराकार को ही कहेंगे। यहाँ तुम कहते हो बाबा, परमपिता परमात्मा है। है तो वह भी आत्मा ना।
  4. बाप को याद करो तो तुम स्वर्ग के मालिक बनेंगे। बरोबर यह लक्ष्मीनारायण स्वर्ग के मालिक, सम्पूर्ण निर्विकारी थे। तो बाप को याद करने से ही तुम ऐसा सम्पूर्ण बनेंगे। जितना जो याद करते हैं और सर्विस करते हैं उतना वह ऊंच पद पाते हैं।
  5. अपने आपको रिफ्रेश करने के लिए ज्ञान के जो अच्छेअच्छे गीत बने हुए हैं उन्हें सुनना चाहिए। ऐसेऐसे गीत अपने घर में रखने चाहिए। किसको इस पर समझा भी सकेंगे। कैसे माया का फिर से परछाया पड़ता है।
  6. यह गीत भी कोई ने तो बनवाये हैं। बाप बुद्धिवानों की बुद्धि है तो कोई की बुद्धि में आया है जो बैठ बनाया है। इन गीतों आदि पर भी तुम्हारे पास कितने ध्यान में जाते थे। एक दिन आयेगा जो इस ज्ञान के गीत गाने वाले भी तुम्हारे पास आयेंगे। बाप की महिमा में ऐसा गीत गायेंगे जो घायल कर देंगे। ऐसेऐसे आयेंगे। ट्यून पर भी मदार रहता है। गायन विद्या का भी बहुत नाम है। अभी तो ऐसा कोई है नहीं। सिर्फ एक गीत बनाया था कितना मीठा कितना प्यारा…… बाप बहुत ही मीठा बहुत ही प्यारा है तब तो सब उनको याद करते हैं।
  7. चित्रों में राम के आगे भी शिव दिखाया है, राम पूजा कर रहा है। यह है रांग। देवतायें थोड़ेही किसको याद करते हैं। याद मनुष्य करते हैं। तुम भी अभी मनुष्य हो फिर देवता बनेंगे। देवता और मनुष्य में रातदिन का फर्क है। वही देवतायें फिर मनुष्य बनते हैं। 
  8. तुम हो अननोन वारियर्स, नान वायोलेन्स। सचमुच तुम डबल अहिंसक हो। काम कटारी, वह लड़ाई। काम अलग है, क्रोध अलग चीज़ है। तो तुम हो डबल अहिंसक। नान वायोलेन्स सेना।
  9. पवित्र आत्मा यहाँ रह सके। वह चली जायेगी वापिस। आत्माओं को पावन बनाने की शक्ति एक बाप में है, और कोई पावन बना नहीं सकता। तुम बच्चे जानते हो यह सारी स्टेज है, इस पर नाटक होता है। इस समय सारी स्टेज पर रावण का राज्य है। सारे समुद्र पर सृष्टि खड़ी है। यह बेहद का टापू है। वह हैं हद के। यह है बेहद की बात। जिस पर आधाकल्प दैवी राज्य, आधाकल्प आसुरी राज्य होता है।
  10. अब स्मृति से पुराना सौदा कैन्सिल कर सिंगल बनो। आपस में एक दो के सहयोगी भल रहो लेकिन कम्पेनियन नहीं। कम्पेनियन एक को बनाओ तो माया के सम्बन्धों से डायवोर्स हो जायेगा। मायाजीत, मोहजीत विजयी रहेंगे। अगर जरा भी किसी में मोह होगा तो तीव्र पुरूषार्थी के बजाए पुरूषार्थी बन जायेंगे इसलिए क्या भी हो, कुछ भी हो खुशी में नाचते रहो, मिरूआ मौत मलूका शिकारइसको कहते हैं नष्टोमोहा। ऐसा नष्टोमोहा रहने वाले ही विजय माला के दाने बनते हैं। 

15/02/2025

प्रश्नः
देहअभिमान में आने से पहला पाप कौनसा होता है?

उत्तर:-
अगर देहअभिमान है तो बाप की याद के बजाए देहधारी की याद आयेगी, कुदृष्टि जाती रहेगी, खराब ख्यालात आयेंगे। यह बहुत बड़ा पाप है। समझना चाहिए, माया वार कर रही है। फौरन सावधान हो जाना चाहिए।

  1. निराकार बाप आत्माओं को कहते हैं कि मुझे याद करो। मैं ही पतितपावन हूँ, मुझे बुलाते भी हैंहे पतितपावन। श्रीकृष्ण तो देहधारी है ना। मुझे तो कोई शरीर है नहीं। मैं निराकार हूँ, मनुष्यों का बाप नहीं, आत्माओं का बाप हूँ। यह तो पक्का कर लेना चाहिए। घड़ीघड़ी हम आत्मायें इस बाप से वर्सा लेती हैं। अभी 84 जन्म पूरे हुए हैं, बाप आया है। बाबाबाबा ही करते रहना है। बाबा को बहुत याद करना है। सारा कल्प जिस्मानी बाप को याद किया। अभी बाप आये हैं और मनुष्य सृष्टि से सब आत्माओं को वापिस ले जाते हैं क्योंकि रावण राज्य में मनुष्यों की दुर्गति हो गई है इसलिए अब बाप को याद करना है। यह भी मनुष्य कोई समझते नहीं कि अभी रावण राज्य है। रावण का अर्थ ही नहीं समझते।
  2. तुम्हारी यह है गीता पाठशाला। उद्देश्य क्या है? यह लक्ष्मीनारायण बनना। यह राजयोग है ना। नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनने की यह नॉलेज है। वो लोग कथायें बैठ सुनाते हैं। यहाँ तो हम पढ़ते हैं, हमको बाप राजयोग सिखाते हैं। यह सिखाते ही हैं कल्प के संगमयुग पर। बाप कहते हैं मैं पुरानी दुनिया को बदल नई दुनिया बनाने आया हूँ। नई दुनिया में इन्हों का राज्य था, पुरानी में नहीं है, फिर जरूर होना चाहिए। चक्र तो जान लिया है।
  3. मुख्य धर्म हैं चार। अभी डिटीज्म है नहीं। दैवी धर्म भ्रष्ट और दैवी कर्म भ्रष्ट बन पड़े हैं। अभी फिर तुमको दैवी धर्म श्रेष्ठ और कर्म श्रेष्ठ सिखला रहे हैं। तो अपने पर ध्यान रखना है, हमसे कोई आसुरी कर्म तो नहीं होते हैं? माया के कारण कोई खराब ख्यालात तो बुद्धि में नहीं आते हैं? कुदृष्टि तो नहीं रहती है? देखें, इनकी कुदृष्टि जाती है अथवा खराब ख्यालात आते हैं तो उनको झट सावधान करना चाहिए। उनसे मिल नहीं जाना चाहिए। उनको सावधान करना चाहिएतुम्हारे में माया की प्रवेशता के कारण यह खराब ख्यालात आते हैं। योग में बैठ बाप की याद के बदले कोई की देह तरफ ख्याल जाता है तो समझना चाहिए यह माया का वार हो रहा है, मैं पाप कर रहा हूँ। इसमें तो बुद्धि बड़ी शुद्ध होनी चाहिए। हँसीमज़ाक से भी बहुत नुकसान होता है इसलिए तुम्हारे मुख से सदैव शुद्ध वचन निकलने चाहिए, कुवचन नहीं। हँसी मजाक आदि भी नहीं। ऐसे नहीं कि हमने तो हँसी की……. वह भी नुकसानकारक हो जाती है। हंसी भी ऐसी नहीं करनी चाहिए जिसमें विकारों की वायु हो। बहुत खबरदार रहना है। तुमको मालूम है नांगे लोग हैं उनके ख्याल विकारों की तरफ नहीं जायेंगे। रहते भी अलग हैं। परन्तु कर्मेन्द्रियों की चलायमानी सिवाए योग के कभी निकलती नहीं है। काम शत्रु ऐसा है जो किसको भी देखेंगे, योग में पूरा नहीं होंगे तो चलायमानी जरूर होगी। अपनी परीक्षा लेनी होती है। बाप की याद में ही रहो तो यह कोई भी प्रकार की बीमारी रहे। योग में रहने से यह नहीं होता है। सतयुग में तो कोई भी प्रकार का गन्द नहीं होता है। वहाँ रावण की चंचलता ही नहीं जो चलायमानी हो। वहाँ तो योगी लाइफ रहती है। यहाँ भी अवस्था बड़ी पक्की चाहिए। योगबल से यह सब बीमारियाँ बन्द हो जाती हैं। इसमें बड़ी मेहनत है। राज्य लेना कोई मासी का घर नहीं। पुरूषार्थ तो करना है ना। ऐसे नहीं कि बस जो होगा भाग्य में सो मिलेगा। धारणा ही नहीं करते गोया पाईपैसे के पद पाने लायक हैं। सब्जेक्ट्स तो बहुत होती हैं ना। कोई ड्राइंग में, कोई खेल में मार्क्स ले लेते हैं। वह है कॉमन सब्जेक्ट। वैसे ही यहाँ भी सब्जेक्ट्स हैं। कुछ कुछ मिलेगा। बाकी बादशाही नहीं मिल सकेगी। वह तो सर्विस करेंगे तब बादशाही मिलेगी। उसके लिए बहुत मेहनत चाहिए। बहुतों की बुद्धि में बैठता ही नहीं है। जैसेकि खाना हजम ही नहीं होता। ऊंच पद पाने की हिम्मत नहीं, इसको भी बीमारी कहेंगे ना। तुम कोई भी बात देखते देखो। रूहानी बाप की याद में रह औरों को रास्ता बताना है, अन्धों की लाठी बनना है। तुम तो रास्ता जानते हो। रचयिता और रचना का ज्ञान मुक्ति और जीवनमुक्ति तुम्हारी बुद्धि में फिरते रहते हैं, जोजो महारथी हैं।
  4. जितना योग में रहेंगे उतनी हेल्थ बड़ी अच्छी होगी। मेहनत करनी है। बहुतों की तो चलन ऐसी रहती है जैसे अज्ञानी मनुष्यों की होती है। वह किसका कल्याण कर नहीं सकेंगे। जब इम्तहान होता है तो मालूम पड़ जाता है कि कौन कितने मार्क्स से पास होंगे, फिर उस समय हायहाय करनी पड़ेगी। बापदादा दोनों ही कितना समझाते रहते हैं। बाप आये ही हैं कल्याण करने। अपना भी कल्याण करना है तो दूसरों का भी करना है। बाप को बुलाया भी है कि आकर हम पतितों को पावन होने का रास्ता बताओ। तो बाप श्रीमत देते हैंतुम अपने को आत्मा समझ देहअभिमान छोड़ मुझे याद करो। कितनी सहज दवाई है।
  5. बोलो, हम सिर्फ एक भगवान बाप को मानते हैं। वह कहते हैं मुझे बुलाते हो कि आकर पतितों को पावन बनाओ तो मुझे आना पड़ता है। ब्रह्मा से तुमको कुछ भी मिलना नहीं है। वह तो दादा है, बाबा भी नहीं। बाबा से तो वर्सा मिलता है। ब्रह्मा से थोड़ेही वर्सा मिलता है। निराकार बाप इन द्वारा एडाप्ट कर हम आत्माओं को पढ़ाते हैं। इनको भी पढ़ाते हैं। ब्रह्मा से तो कुछ भी मिलने का नहीं है। वर्सा बाप से ही मिलता है इन द्वारा। देने वाला एक है। उनकी ही महिमा है। वही सर्व का सद्गति दाता है। यह तो पूज्य से फिर पुजारी बनते हैं। सतयुग में थे, फिर 84 जन्म भोग अब पतित बने हैं फिर पूज्य पावन बन रहे हैं। हम बाप द्वारा सुनते हैं। कोई मनुष्य से नहीं सुनते। मनुष्यों का है ही भक्ति मार्ग। यह है रूहानी ज्ञान मार्ग। ज्ञान सिर्फ एक ज्ञान सागर के पास ही है। बाकी यह शास्त्र आदि सब भक्ति के हैं। शास्त्र आदि पढ़नायह सब है भक्ति मार्ग। ज्ञान सागर तो एक ही बाप है, हम ज्ञान नदियां ज्ञान सागर से निकली हैं। बाकी वह है पानी का सागर और नदियाँ। बच्चों को यह सब बातें ध्यान में रहनी चाहिए।
  6. अन्तर्मुख हो बुद्धि चलानी चाहिए। अपने आपको सुधारने के लिए अन्तर्मुख हो अपनी जांच करो। अगर मुख से कोई कुवचन निकले या कुदृष्टि जाए तो अपने को फटकारना चाहिएहमारे मुख से कुवचन क्यों निकले, हमारी कुदृष्टि क्यों गई? अपने को चमाट भी मारनी चाहिए, घड़ीघड़ी सावधान करना चाहिए तब ही ऊंच पद पा सकेंगे। मुख से कटुवचन निकलें। बाप को तो सब प्रकार की शिक्षायें देनी होती हैं। किसको पागल कहना यह भी कुवचन है।
  7. आत्मअभिमान है अविनाशी अभिमान। देह तो विनाशी है। आत्मा को कोई भी नहीं जानते हैं। आत्मा का भी बाप तो जरूर कोई होगा ना। कहते भी हैं सब भाईभाई हैं। फिर सबमें परमात्मा बाप विराजमान कैसे हो सकता है? सभी बाप कैसे हो सकते हैं? इतना भी अक्ल नहीं है! सबका बाप तो एक ही है, उनसे ही वर्सा मिलता है। उसका नाम है शिव।
  8. कोई की भी बुद्धि में यह बातें नहीं हैं। यह लक्ष्मीनारायण कितना ऊंच परिस्तानी से फिर कितना पतित बन जाते हैं इसलिए ब्रह्मा का दिन, ब्रह्मा की रात गाई हुई है।
  9. कभी भी ऐसी हंसीमजाक नहीं करनी है जिसमें विकारों की वायु हो। अपने को बहुत सावधान रखना है, मुख से कटुवचन नहीं निकालने हैं।
  10. आत्मअभिमानी बनने की बहुतबहुत प्रैक्टिस करनी है। सबसे प्यार से चलना है। कुदृष्टि नहीं रखनी है। कुदृष्टि जाए तो अपने आपको आपेही सज़ा देनी है।
  11. सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न आत्मा की निशानी है सन्तुष्टता, सन्तुष्ट रहो और सन्तुष्ट करो।
  12. एकान्त एक तो स्थूल होती है, दूसरी सूक्ष्म भी होती है। एकान्त के आनन्द के अनुभवी बन जाओ तो बाह्यमुखता अच्छी नहीं लगेगी। अव्यक्त स्थिति को बढ़ाने के लिए एकान्त में रुचि रखनी है। एकता के साथ एकांतप्रिय बनना है। 

16/02/2025

  1. आज चारों ओर के सर्व श्रेष्ठ बच्चों को देख रहे हैं। हर एक बच्चा पूर्वज भी है और पूज्य भी है इसलिए इस कल्प वृक्ष के आप सभी जड़ हैं, तना भी हैं। तना का कनेक्शन सारे वृक्ष के टाल टालियों से, पत्तों से स्वत: ही होता है। तो सभी अपने को ऐसी श्रेष्ठ आत्मा सारे वृक्ष के पूर्वज समझते हो? जैसे ब्रह्मा को ग्रेटग्रेट ग्रैण्ड फादर कहा जाता है, उनके साथी आप भी मास्टर ग्रेट ग्रैण्ड फादर हो। पूर्वज आत्माओं का कितना स्वमान है! उस नशे में रहते हो? सारे विश्व की आत्माओं से चाहे किसी भी धर्म की आत्मायें हैं लेकिन सर्व आत्माओं के आप तना के रूप में आधारमूर्त पूर्वज हो इसीलिए पूर्वज होने के कारण पूज्य भी हो। पूर्वज द्वारा हर आत्मा को सकाश स्वत: ही मिलती रहती है। झाड़ को देखो, तना द्वारा, जड़ द्वारा लास्ट पत्ते को भी सकाश मिलती रहती है। पूर्वज का कार्य क्या होता है? पूर्वजों का कार्य है सर्व की पालना करना। लौकिक में भी देखो पूर्वजों द्वारा ही चाहे शारीरिक शक्ति की पालना, स्थूल भोजन द्वारा वा पढ़ाई द्वारा शक्ति भरने की पालना होती है। तो आप पूर्वज आत्माओं को बाप द्वारा मिली हुई शक्तियों से सर्व आत्माओं की पालना करना है।
  2. आज के समय अनुसार सर्व आत्माओं को शक्तियों द्वारा पालना की आवश्यकता है। जानते हो आजकल आत्माओं में अशान्ति और दु: की लहर छाई हुई है। तो आप पूर्वज और पूज्य आत्माओं को अपने वंशावली के ऊपर रहम आता है? जैसे जब कोई विशेष अशान्ति का वायुमण्डल होता है तो विशेष रूप से मिलेट्री या पुलिस अलर्ट हो जाती है। ऐसे ही आजकल के वातावरण में आप पूर्वज भी विशेष सेवा के अर्थ स्वयं को निमित्त समझते हो! सारे विश्व की आत्माओं के निमित्त हैं, यह स्मृति रहती है? सारे विश्व की आत्माओं को आज आपके सकाश की आवश्यकता है। ऐसे बेहद के विश्व की पूर्वज आत्मा अपने को अनुभव करते हो? विश्व की सेवा याद आती है वा अपने सेन्टर्स की सेवा याद आती है? आज आत्मायें आप पूर्वज देव आत्माओं को पुकार रही हैं। हर एक अपनेअपने भिन्नभिन्न देवियां वा देवताओं को पुकार रहे हैंआओ, क्षमा करो, कृपा करो। तो भक्तों का आवाज सुनने आता है? आता है सुनने या नहीं? कोई भी धर्म की आत्मायें हैं, जब उनसे मिलते हो तो अपने को सर्व आत्माओं के पूर्वज समझकर मिलते हो? ऐसे अनुभव होता है कि यह भी हम पूर्वज की ही टालटालियां हैं! इन्हों को भी सकाश देने वाले आप पूर्वज हो। अपने कल्प वृक्ष का चित्र सामने लाओ, अपने को देखो आपका स्थान कहाँ है! जड़ में भी आप हो, तना भी आप हो। साथ में परमधाम में भी देखो आप पूर्वज आत्माओं का स्थान बाप के साथ समीप का है। जानते हो ना! इसी नशे से कोई भी आत्मा से मिलते हो तो हर धर्म की आत्मा आपको यह हमारे हैं, अपने हैं, उस दृष्टि से देखते हैं। अगर उस पूर्वज के नशे से, स्मृति से, वृत्ति से, दृष्टि से मिलते हो, तो उन्हों को भी अपनेपन का आभास होता है क्योंकि आप सर्व के पूर्वज हो, सबके हो। ऐसी स्मृति से सेवा करने से हर आत्मा अनुभव करेगी कि यह हमारे ही पूर्वज वा ईष्ट फिर से हमें मिल गये।
  3. बापदादा अभी सभी बच्चों को समय के सरकमस्टांश अनुसार बेहद की सेवा में सदा बिजी देखने चाहते हैं क्योंकि सेवा में बिजी रहने के कारण अनेक प्रकार की हलचल से बच जाते हैं। लेकिन जब भी सेवा करते हो, प्लैन बनाते हो और प्लैन अनुसार प्रैक्टिकल में भी आते हो, सफलता भी प्राप्त करते हो। लेकिन बापदादा चाहते हैं कि एक समय पर तीनों सेवा इकट्ठी हो, सिर्फ वाचा नहीं हो, मन्सा भी हो, वाचा भी हो और कर्मणा अर्थात् सम्बन्धसम्पर्क में आते हुए भी सेवा हो। सेवा का भाव, सेवा की भावना हो। इस समय वाचा के सेवा की परसेन्टेज़ ज्यादा है, मन्सा है लेकिन वाचा की परसेन्टेज़ ज्यादा है। एक ही समय पर तीनों सेवा साथसाथ होने से सेवा में सफलता और ज्यादा होगी।
  4. अभी बापदादा सभी बच्चों को सदा निर्विघ्न स्वरूप में देखने चाहते हैं, क्यों? जब आप निमित्त बने हुए निर्विघ्न स्थिति में स्थित रहो तब विश्व की आत्माओं को सर्व समस्याओं से निर्विघ्न बना सको। इसके लिए विशेष दो बातों पर अण्डरलाइन करो। करते भी हो लेकिन और अण्डरलाइन करो। एक तो हर एक आत्मा को अपने आत्मिक दृष्टि से देखो। आत्मा के ओरीज्नल संस्कार के स्वरूप में देखो। चाहे कैसे भी संस्कार वाली आत्मा है लेकिन आपकी हर आत्मा के प्रति शुभ भावना, शुभ कामना, परिवर्तन की श्रेष्ठ भावना, उनके संस्कार को थोड़े समय के लिए परिवर्तन कर सकती है। आत्मिक भाव इमर्ज करो। जैसे शुरूशुरू में देखा तो संगठन में रहते आत्मिक दृष्टि, आत्मिक वृत्ति, आत्माआत्मा से मिल रही है, बात कर रही है, इस दृष्टि से फाउण्डेशन कितना पक्का हो गया। अभी सेवा के विस्तार में, सेवा के विस्तार के सम्बन्ध में आत्मिक भाव से चलना, बोलना, सम्पर्क में आना मर्ज हो गया है। खत्म नहीं हुआ है लेकिन मर्ज हो गया है। आत्मिक स्वमान, आत्मा को सहज सफलता दिलाता है क्योंकि आप सभी कौन आकर इकट्ठे हुए हो? वही कल्प पहले वाले देव आत्मायें, ब्राह्मण आत्मायें इकट्ठे हुए हो। ब्राह्मण आत्मा के रूप में भी सभी श्रेष्ठ आत्मायें हो, देव आत्माओं के हिसाब से भी श्रेष्ठ आत्मायें हो। उसी स्वरूप से सम्बन्धसम्पर्क में आओ। हर समय चेक करोमुझ देव आत्मा, ब्राह्मण आत्मा का श्रेष्ठ कर्तव्य, श्रेष्ठ सेवा क्या है? “दुआओं देना और दुआयें लेना।आपके जड़ चित्र क्या सेवा करते हैं? कैसी भी आत्मा हो लेकिन दुआयें लेने जाते, दुआयें लेकर आते। और कोई भी अगर पुरुषार्थ में मेहनत समझते हैं तो सबसे सहज पुरुषार्थ है, सारा दिन दृष्टि, वृत्ति, बोल, भावना सबसे दुआयें दो, दुआयें लो। आपका टाइटल है, वरदान ही है महादानी, सेवा करते, कार्य में सम्बन्धसम्पर्क में आते सिर्फ यही कार्य करोदुआयें दो और दुआयें लो। यह मुश्किल है क्या? कि सहज है? जो समझते हैं सहज है, वह हाथ उठाओ। कोई आपका आपोजीशन करे तो? तो भी दुआ देंगे? देंगे? इतनी दुआओं का स्टॉक है आपके पास? आपोजीशन तो होगी क्योंकि आपोजीशन ही पोजीशन तक पहुंचाती है। देखो, सबसे ज्यादा आपोजीशन ब्रह्मा बाप की हुई। हुई ना? और पोजीशन किसने नम्बरवन पाई? ब्रह्मा ने पाई ना! कुछ भी हो लेकिन मुझे ब्रह्मा बाप समान दुआयें देनी हैं। क्या ब्रह्मा बाप के आगे व्यर्थ बोलने, व्यर्थ करने वाले नहीं थे? लेकिन ब्रह्मा बाप ने दुआयें दी, दुआयें ली, समाने की शक्ति रखी। बच्चा है, बदल जायेगा। ऐसे ही आप भी यही वृत्ति दृष्टि रखोयह कल्प पहले वाले हमारे ही परिवार के, ब्राह्मण परिवार के हैं। मुझे बदल इसको भी बदलना है। यह बदले तो मैं बदलूं, नहीं। मुझे बदलके बदलना है, मेरी जिम्मेवारी है। तब दुआ निकलेगी और दुआ मिलेगी।
  5. अभी समय जल्दी से परिवर्तन की ओर जा रहा है, अति में जा रहा है लेकिन समय परिवर्तन के पहले आप विश्व परिवर्तक श्रेष्ठ आत्मायें स्व परिवर्तन द्वारा सर्व के परिवर्तन के आधारमूर्त बनो। आप भी विश्व के आधारमूर्त, उद्धारमूर्त हो। हर एक आत्मा लक्ष्य रखोमुझे निमित्त बनना है। सिर्फ तीन बातों का स्व में संकल्प मात्र भी हो, यह परिवर्तन करो। एकपरचिन्तन। दूसरापरदर्शन। स्वदर्शन के बजाए परदर्शन नहीं। तीसरापरमत या परसंग, कुसंग। श्रेष्ठ संग करो क्योंकि संगदोष बहुत नुकसान करता है।
  6. पहले भी बापदादा ने कहा थाएक परउपकारी बनो और यह तीन पर काट दो। पर दर्शन, पर चिंतन, परमत अर्थात् कुसंग, पर का फालतू संग। परउपकारी बनो तब ही दुआयें मिलेंगी और दुआयें देंगे। कोई कुछ भी दे लेकिन आप दुआयें दो। इतनी हिम्मत है? है हिम्मत? तो बापदादा चारों ओर के सर्व सेन्टर्स वाले बच्चों को कहते हैंअगर आप सब बच्चों ने हिम्मत रखी, कोई कुछ भी दे लेकिन हमें दुआयें देनी हैं, तो बापदादा इस वर्ष एक्स्ट्रा आपको हिम्मत के, उमंग के कारण मदद देंगे। एक्स्ट्रा मदद देंगे। लेकिन दुआयें देंगे तो।
  7. निमित्त भाव, यह गुणों की खान है। सिर्फ हर समय निमित्त भाव जाए तो और सभी गुण सहज सकते हैं क्योंकि निमित्त भाव में मैं पन नहीं है और मैं पन ही हलचल में लाता है। निमित्त बनने से मेरा पन भी खत्म, तेरा, तेरा हो जाता है। सहजयोगी बन जाते हैं। तो सभी का दादियों से प्यार है, बापदादा से प्यार है, तो प्यार का रिटर्न हैविशेषताओं को समान बनाना। तो ऐसे लक्ष्य रखो। विशेषताओं को समान बनाना है। किसी में भी कोई विशेषता देखो, विशेषता को भले फालो करो। आत्मा को फालो करने में दोनों दिखाई देंगे। विशेषता को देखो और उसमें समान बनो।
  8. जो निश्चयबुद्धि बच्चे हैं वह कभी कैसे वा ऐसे के विस्तार में नहीं जाते। उनके निश्चय की अटूट रेखा अन्य आत्माओं को भी स्पष्ट दिखाई देती है। उनके निश्चय के रेखा की लाइन बीचबीच में खण्डित नहीं होती। ऐसी रेखा वाले के मस्तक में अर्थात् स्मृति में सदा विजय का तिलक नज़र आयेगा। वे जन्मते ही सेवा की जिम्मेवारी के ताजधारी होंगे। सदा ज्ञान रत्नों से खेलने वाले होंगे। सदा याद और खुशी के झूले में झूलते हुए जीवन बिताने वाले होंगे। यही है नम्बरवन भाग्य की रेखा। 

17/02/2025

  1. आत्मा भी निराकार, परमात्मा भी निराकार, इसमें फ़ोटो की भी बात नहीं। तुमको तो आत्मा निश्चय कर बाप को याद करना है, देहअभिमान छोड़ना है। तुम्हें सदैव अविनाशी चीज़ को देखना चाहिए। तुम विनाशी देह को क्यों देखते हो! देहीअभिमानी बनो, इसमें ही मेहनत है। जितना याद में रहेंगे उतना कर्मातीत अवस्था को पाए ऊंच पद पायेंगे।
  2. लिखते हैं सारे दिन में एक घण्टा याद में रहे, तो लज्जा आनी चाहिए ना। ऐसा बाप जिसको दिनरात याद करना चाहिए और हम सिर्फ एक घण्टा याद करते हैं! इसमें बड़ी गुप्त मेहनत है।
  3. बाप कहते हैं जो कुछ होता है ड्रामा में नूँध है, मैं भी ड्रामा के बंधन में बांधा हुआ हूँ। नूँध बिगर कुछ कर नहीं सकता हूँ। माया भी बड़ी दुश्तर है। राम और रावण दोनों का पार्ट है। ड्रामा में रावण चैतन्य होता तो कहतामैं भी ड्रामा अनुसार आता हूँ। यह दु: और सुख का खेल है।
  4. दुनिया कभी खलास नहीं होती। खलास होना इम्पॉसिबुल है। समुद्र भी दुनिया में है ना। यह थर्ड फ्लोर तो है ना। कहते हैं जलमई, पानीपानी हो जाता है फिर भी पृथ्वी फ्लोर तो है ना। पानी भी तो है ना। पृथ्वी फ्लोर कोई विनाश नहीं हो सकता। जल भी इस फ्लोर में होता है। सेकण्ड और फर्स्ट फ्लोर, सूक्ष्मवतन और मूलवतन में तो जल होता नहीं। यह बेहद सृष्टि के 3 फ्लोर हैं, जिसको तुम बच्चों के सिवाए कोई भी नहीं जानते। यह खुशी की बात सबको खुशी से सुनानी है। जो पूरे पास होते हैं, उनका ही अतीन्द्रिय सुख गाया हुआ है। जो रातदिन सर्विस पर तत्पर हैं, सर्विस ही करते रहते हैं उन्हें बहुत खुशी रहती है। कोईकोई ऐसे दिन भी आते हैं जो मनुष्य रात को भी जागते हैं परन्तु आत्मा थक जाती है तो सोना होता है। आत्मा के सोने से शरीर भी सो जाता है। आत्मा सोये तो शरीर भी सोये। थकती आत्मा है। आज मैं थका पड़ा हूँकिसने कहा? आत्मा ने। तुम बच्चों को आत्मअभिमानी हो रहना है, इसमें ही मेहनत है। बाप को याद नहीं करते, देहीअभिमानी नहीं रहते, तो देह के सम्बन्धी आदि याद जाते हैं। बाप कहते हैं तुम नंगे आये थे फिर नंगे जाना है। यह देह के सम्बन्ध आदि भूल जाओ। इस शरीर में रहते मुझे याद करो तो सतोप्रधान बनेंगे। बाप कितनी बड़ी अथॉरिटी है। बच्चों के सिवाए कोई जानते ही नहीं।

18/02/2025

प्रश्नः
तुम बच्चों को किस एक बात का शौक रहना चाहिए?

उत्तर:-
जो नईनई प्वाइंट्स निकलती हैं, उनको अपने पास नोट करने का शौक रहना चाहिए क्योंकि इतनी सब प्वाइंट्स याद रहना मुश्किल है। नोट्स लेकर फिर कोई को समझाना है। ऐसे भी नहीं कि लिखकर फिर कॉपी पड़ी रहे। जो बच्चे अच्छी रीति समझते हैं उन्हें नोट्स लेने का बहुत शौक रहता है।

  1. बाप भारत में ही आते हैं। मनुष्यों को यह पता नहीं है कि शिवबाबा भारत में आकर क्या करते हैं। अपने धर्म को ही भूल गये हैं। तुमको अब परिचय देना है त्रिमूर्ति और शिव बाप का। ब्रह्मा देवता, विष्णु देवता, शंकर देवता कहा जाता है फिर कहते हैं शिव परमात्माए नम: तो तुम बच्चों को त्रिमूर्ति शिव का ही परिचय देना है। ऐसीऐसी सर्विस करनी है। कोई भी हालत में बाप का परिचय सबको मिले तो बाप से वर्सा ले लेवें। तुम जानते हो हम अभी वर्सा ले रहे हैं। और भी बहुतों को वर्सा लेना है। हमारे ऊपर फर्जअदाई है घरघर में बाप का पैगाम देने की। वास्तव में मैसेन्जर एक बाप ही है। बाप अपना परिचय तुमको देते हैं। तुमको फिर औरों को बाप का परिचय देना है। बाप की नॉलेज देनी है।
  2. जो नईनई प्वाइन्ट्स निकलती हैं, उनको अपने पास नोट करने का शौक बच्चों में रहना चाहिए। जो बच्चे अच्छी रीति समझते हैं उन्हें नोट्स लेने का बहुत शौक रहता है। नोट्स लेना अच्छा है, क्योंकि इतनी सब प्वाइन्ट्स याद रहना मुश्किल है। नोट्स लेकर फिर कोई को समझाना है। ऐसे नहीं कि लिखकर फिर कॉपी पड़ी रहे। नईनई प्वाइंट्स मिलती रहती हैं तो पुरानी प्वाइंट्स की कापियाँ पड़ी रहती है। स्कूल में भी पढ़ते जायेंगे, पहले दर्जे वाली किताब पड़ी रहती है। जब तुम समझाते हो तो पिछाड़ी में यह समझाओ कि मन्मनाभव। बाप को और सृष्टि चक्र को याद करो। मुख्य बात है मामेकम् याद करो, इसको ही योग अग्नि कहा जाता है। भगवान है ज्ञान का सागर। मनुष्य हैं शास्त्रों का सागर।

19/02/2025

  1. अब बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं कि जो जीते जी मरे हैं, कहते हैं हम जीते जी मर चुके है, जैसे मनुष्य मरता है तो सब कुछ भूल जाता है सिर्फ संस्कार रहते हैं। अभी तुम भी बाप का बनकर दुनिया से मर गये हो। बाप कहते हैं तुम्हारे में भक्ति के संस्कार थे, अब वह संस्कार बदल रहे हैं तो जीते जी तुम मरते हो ना। मरने से मनुष्य पढ़ा हुआ सब कुछ भूल जाता है फिर दूसरे जन्म में नये सिर पढ़ना होता है। बाप भी कहते हैं तुम जो कुछ पढ़े हुए हो वह भूल जाओ। तुम तो बाप के बने हो ना। मैं तुमको नई बात सुनाता हूँ। तो अब वेद, शास्त्र, ग्रंथ, जप, तप आदि यह सब बातें भूल जाओ इसलिए ही कहा हैहियर नो ईविल, सी नो ईविल……. यह तुम बच्चों के लिए है। कई बहुत शास्त्र आदि पढ़े हुए हैं, पूरा मरे नहीं हैं तो फालतू आरग्यु करेंगे। मर गये फिर कभी आरग्यु नहीं करेंगे। कहेंगे बाप ने जो सुनाया है वही सच है, बाकी बातें हम मुख पर क्यों लायें! बाप कहते हैं यह मुख में लाओ ही नहीं। हियर नो ईविल। बाप ने डायरेक्शन दिया नाकुछ भी सुनो नहीं। बोलो, अभी हम ज्ञान सागर के बच्चे बने हैं तो भक्ति को क्यों याद करें! हम एक भगवान को ही याद करते हैं। बाप ने कहा है भक्तिमार्ग को भूल जाओ। मैं तुमको सहज बात सुनाता हूँ कि मुझ बीज को याद करो तो झाड़ सारा बुद्धि में ही जायेगा। तुम्हारी मुख्य है गीता। गीता में ही भगवान की समझानी है। अब यह हैं नई बातें। नई बात पर हमेशा ज्यादा ध्यान दिया जाता है। है भी बड़ी सिम्पुल बात। सबसे बड़ी बात है याद करने की। घड़ीघड़ी कहना पड़ता हैमन्मनाभव। बाप को याद करो, यही बहुत गुह्य बातें हैं, इसमें ही विघ्न पड़ते हैं।
  2. अभी तुम धणी के बने हो। माया कई बार बच्चों को भी निधन का बना देती है, छोटीछोटी बातों में आपस में लड़ पड़ते हैं। बाप की याद में नहीं रहते तो निधन के हुए ना। निधनका बना तो जरूर कुछ कुछ पाप कर्म कर देंगे। बाप कहते हैं मेरा बनकर मेरा नाम बदनाम करो। एकदो से बड़ा प्यार से चलो, उल्टासुल्टा बोलो मत।
  3. शिवबाबा को ही रूद्र कहा जाता है। रूद्र ज्ञान यज्ञ से विनाश ज्वाला निकली तो रूद्र भगवान हुआ ना। श्रीकृष्ण को तो रूद्र नहीं कहेंगे। विनाश भी कोई श्रीकृष्ण नहीं कराते, बाप ही स्थापना, विनाश, पालना कराते हैं। खुद कुछ नहीं करते, नहीं तो दोष पड़ जाए। वह है करनकरावनहार। बाप कहते हैं हम कोई कहते नहीं हैं कि विनाश करो। यह सारा ड्रामा में नूँधा हुआ है। शंकर कुछ करता है क्या? कुछ भी नहीं। यह सिर्फ गायन है कि शंकर द्वारा विनाश। बाकी विनाश तो वह आपेही कर रहे हैं। यह अनादि बना हुआ ड्रामा है जो समझाया जाता है।
  4. रचयिता बाप को ही सब भूल गये हैं। कहते हैं गॉड फादर रचयिता है परन्तु उनको जानते ही नहीं। समझते हैं कि वह दुनिया क्रियेट करते हैं। बाप कहते हैं मैं क्रियेट नहीं करता हूँ, मैं चेन्ज करता हूँ। कलियुग को सतयुग बनाता हूँ। मैं संगम पर आता हूँ, जिसके लिये गाया हुआ हैसुप्रीम ऑस्पीशियस युग। भगवान कल्याणकारी है, सबका कल्याण करते हैं परन्तु कैसे और क्या कल्याण करते हैं, यह कुछ जानते नहीं। अंग्रेजी में कहते हैं लिबरेटर, गाइड, परन्तु उनका अर्थ थोड़ेही समझते हैं।
  5. शिव भगवानुवाच मुझे याद करो तो विकर्म विनाश हो जायेंगे। मैं ही पतितपावन हूँ। तुम पवित्र हो जायेंगे फिर सबको ले जाऊंगा। मैसेज घरघर में दो। बाप कहते हैंमुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। तुम पवित्र बन जायेंगे। विनाश सामने खड़ा है। तुम बुलाते भी हो हे पतितपावन आओ, पतितों को पावन बनाओ, रामराज्य स्थापन करो, रावण राज्य से मुक्त करो। वह हर एक अपनेअपने लिए कोशिश करते हैं। बाप तो कहते हैं मैं आकर सर्व की मुक्ति करता हूँ। सभी 5 विकारों रूपी रावण की जेल में पड़े हैं, मैं सर्व की सद्गति करता हूँ। मुझे कहा भी जाता है दु: हर्ता सुख कर्ता। रामराज्य तो जरूर नई दुनिया में होगा। 
  6. तुम पाण्डवों की अभी है प्रीत बुद्धि। कोईकोई की तो फौरन प्रीत बुद्धि बन जाती है। कोईकोई की आहिस्तेआहिस्ते प्रीत जुटती है। कोई तो कहते हैं बस हम सब कुछ बाप को सरेन्डर करते हैं। सिवाए एक के दूसरा कोई रहा ही नहीं। सबका सहारा एक गॉड ही है। कितनी सिम्पुल से सिम्पुल बात है। बाप को याद करो और चक्र को याद करो तो चक्रवर्ती राजारानी बनेंगे। यह स्कूल ही है विश्व का मालिक बनने का, तब चक्रवर्ती राजा नाम पड़ा है। चक्र को जानने से फिर चक्रवर्ती बनते हैं। यह बाप ही समझाते हैं। बाकी आरग्यु कुछ भी नहीं करनी है। बोलो, भक्ति मार्ग की सब बातें छोड़ो। बाप कहते हैं सिर्फ मुझे याद करो।
  7. जो तीव्र पुरूषार्थी होते हैं वह जोर से पढ़ाई में लग जाते हैं, जिनको पढ़ाई का शौक होता है वह सवेरे उठकर पढ़ाई करते हैं। भक्ति वाले भी सवेरे उठते हैं। नौधा भक्ति कितनी करते हैं, जब सिर काटने लगते हैं तो साक्षात्कार होता है। यहाँ तो बाबा कहते हैं यह साक्षात्कार भी नुकसानकारक है। साक्षात्कार में जाने से पढ़ाई और योग दोनों बंद हो जाते हैं। टाइम वेस्ट हो जाता है इसलिए ध्यान आदि का शौक तो बिल्कुल नहीं रखना है। यह भी बड़ी बीमारी है, जिससे माया की प्रवेशता हो जाती है। जैसे लड़ाई के समय न्यूज़ सुनाते हैं तो बीच में ऐसी कुछ खराबी कर देते हैं जो कोई सुन सके। माया भी बहुतों को विघ्न डालती है। बाप को याद करने नहीं देती है। समझा जाता है इनकी तकदीर में विघ्न है। देखा जाता है कि माया की प्रवेशता तो नहीं है। बेकायदे तो नहीं कुछ बोलते हैं तो फिर झट बाबा नीचे उतार देंगे। बहुत मनुष्य कहते हैंहमको सिर्फ साक्षात्कार हो तो इतना सब धन माल आदि हम आपको दे देंगे। बाबा कहते हैं यह तुम अपने पास ही रखो। भगवान को तुम्हारे पैसे की क्या दरकार रखी है। बाप तो जानते हैं इस पुरानी दुनिया में जो कुछ है, सब भस्म हो जायेगा। बाबा क्या करेंगे? बाबा पास तो फुरीफुरी (बूँदबूँद) तलाव हो जाता है। बाप के डायरेक्शन पर चलो, हॉस्पिटल कम युनिवर्सिटी खोलो, जहाँ कोई भी आकर विश्व का मालिक बन सके। तीन पैर पृथ्वी में बैठ तुमको मनुष्य को नर से नारायण बनाना है। परन्तु 3 पैर पृथ्वी के भी नहीं मिलते हैं।
  8. बाप कहते हैं मैं तुमको सभी वेदोंशास्त्रों का सार बताता हूँ। यह शास्त्र हैं सब भक्ति मार्ग के। बाबा कोई निंदा नहीं करते हैं। यह तो खेल बना हुआ है। यह सिर्फ समझाने के लिए कहा जाता है। है तो फिर भी खेल ना। खेल की हम निंदा नहीं कर सकते हैं। हम कहते हैं ज्ञान सूर्य, ज्ञान चन्द्रमा तो फिर वह चन्द्रमा आदि में जाकर ढूँढते हैं। वहाँ कोई राजाई रखी है क्या? जापानी लोग सूर्य को मानते हैं। हम कहते हैं सूर्यवंशी, वह फिर सूर्य की बैठ पूजा करते हैं, सूर्य को पानी देते हैं। तो बाबा ने बच्चों को समझाया है कोई बात में जास्ती आरग्यु नहीं करनी है। बात ही एक सुनाओ बाप कहते हैंमामेकम् याद करो तो पावन बनेंगे।
  9. बच्चे, तुम्हारी एक आंख में शान्तिधाम, एक आंख में सुखधाम बाकी इस दु:खधाम को भूल जाओ। तुम हो चैतन्य लाइट हाउस। अभी प्रदर्शनी में भी नाम रखा हैभारत दी लाइट हाउस……. लेकिन वह कोई थोड़ेही समझेंगे। तुम अभी लाइट हाउस हो ना। पोर्ट पर लाइट हाउस स्टीमर को रास्ता बताते हैं। तुम भी सबको रास्ता बताते हो मुक्ति और जीवनमुक्ति धाम का।
  10. तीव्र पुरूषार्थी बनने के लिए पढ़ाई का शौक रखना है। सवेरेसवेरे उठकर पढ़ाई पढ़नी है। साक्षात्कार की आश नहीं रखनी है, इसमें भी टाइम वेस्ट जाता है।
  11. रूहानी शान में रहो तो कभी भी अभिमान की फीलिंग नहीं आयेगी। 

20/02/2025

  1. बाप बैठ आत्माओं को समझाते हैं, आत्मा ही सुनकर कांध हिलाती है। हम आत्मा हैं, बाबा हमको पढ़ाते हैं, यह पक्का करना है। बाप हमें पतित से पावन बनाते हैं। आत्मा में ही अच्छे वा बुरे संस्कार होते हैं ना। आत्मा आरगन्स द्वारा कहती है हमको बाबा पढ़ाते हैं। बाप कहते हैं हमको भी आरगन्स चाहिए, जिससे समझाऊं। आत्मा को खुशी होती है। बाबा हर 5 हज़ार वर्ष बाद आते हैं हमको सुनाने। तुम तो सामने बैठे हो ना। मधुबन की ही महिमा है। आत्माओं का बाप तो वह है ना, सब उनको बुलाते हैं। तुमको यहाँ सम्मुख बैठने में मज़ा आता है। परन्तु यहाँ सब तो रह नहीं सकते। अपनी कारोबार सर्विस आदि को भी देखना है। आत्मायें सागर के पास आती हैं, धारण कर फिर जाए औरों को सुनाना है।
  2. तुम बच्चों को अपनी इस लाइफ से कभी तंग नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह हीरे जैसा जन्म गाया हुआ है। इनकी सम्भाल भी करनी होती है। तन्दुरूस्त होंगे तो नॉलेज सुनते रहेंगे। बीमारी में भी सुन सकते हैं। बाप को याद कर सकते हैं। यहाँ जितना दिन जियेंगे सुखी रहेंगे। कमाई होती रहेगी, हिसाबकिताब चुक्तू होता रहेगा।
  3. आत्मा क्या है, वह भी समझाता हूँ। इनको सोल रियलाइज़ेशन कहा जाता है। आत्मा भृकुटी के बीच में रहती है। कहते भी हैं भृकुटी के बीच चमकता है अजब सितारा……. परन्तु आत्मा क्या चीज़ है, यह बिल्कुल कोई नहीं जानते हैं। जब कोई कहते हैं कि आत्मा का साक्षात्कार हो तो उन्हें समझाओ कि तुम तो कहते हो भृकुटी के बीच स्टार है, स्टार को क्या देखेंगे? टीका भी स्टार का ही देते हैं। चन्द्रमा में भी स्टार दिखाते हैं। वास्तव में आत्मा है स्टार। अभी बाप ने समझाया है तुम ज्ञान स्टार्स हो, बाकी वह सूर्य, चांद, सितारे तो माण्डवे को रोशनी देने वाले हैं। वह कोई देवतायें नहीं हैं। भक्ति मार्ग में सूर्य को भी पानी देते हैं। 

21/02/2025

मीठे बच्चेपास विद् ऑनर होना है तो बुद्धियोग थोड़ा भी कहीं भटके, एक बाप की याद रहे, देह को याद करने वाले ऊंच पद नहीं पा सकते

गीत:-
तू प्यार का सागर है…………

ओम् शान्ति। अब यह गीत भी राँग है। प्यार के बदले होना चाहिए ज्ञान का सागर। प्यार का कोई लोटा नहीं होता। लोटा, गंगा जल आदि का होता है। तो यह है भक्ति मार्ग की महिमा। यह है राँग और वह है राइट। बाप पहलेपहले तो ज्ञान का सागर है। बच्चों में थोड़ा भी ज्ञान है तो बहुत ऊंच पद प्राप्त करते हैं।

  1. यह भी वण्डर है ना। जहाँ जड़ यादगार है वहाँ तुम चैतन्य आकर बैठे हो।
  2. पहलीपहली मुख्य बात है एक, बाप कहते हैं मुझे याद करो और वर्से को याद करो फिर ज्ञान का सागर भी गाया हुआ है। कितनी अथाह प्वाइन्ट्स सुनाते हैं। इतनी सब प्वाइन्ट्स तो याद रह सकें। तन्त (सार) बुद्धि में रह जाता है। पिछाड़ी में तन्त हो जाता हैमन्मनाभव।
  3. ज्ञान का सागर श्रीकृष्ण को नहीं कहेंगे। वह है रचना। रचता एक ही बाप है। बाप ही सबको वर्सा देंगे, घर ले जायेंगे। बाप का तथा आत्माओं का घर है ही साइलेन्स होम। विष्णुपुरी को बाप का घर नहीं कहेंगे। घर है मूलवतन, जहाँ आत्मायें रहती हैं।
  4. इतना सारा ज्ञान कोई की बुद्धि में याद रह सके। इतने कागज लिख सकते हैं। यह मुरलियाँ भी सबकी सब इकट्ठी करते जायें तो इस सारे हाल से भी जास्ती हो जायें।
  5. जो पूज्य बनते हैं वही फिर पुजारी बनते हैं।
  6. बाप सदैव कहते हैं पुरूषार्थ करते रहो, सुस्त मत बनो। पुरूषार्थ से समझा जाता है ड्रामा अनुसार इनकी सद्गति इस प्रकार इतनी ही होती है। अपनी सद्गति के लिए श्रीमत पर चलना है। टीचर की मत पर स्टूडेन्ट चलें तो कोई काम के नहीं।
  7. अपने को आत्मा समझ कर्मातीत अवस्था में रहना है। 
  8. ऐसे और कोई कह सके कि देह के सब सम्बन्ध छोड़ मेरा बनो, अपने को निराकार आत्मा समझो। कोई भी चीज का भान रहे। माया एकदो की देह में बहुत फँसाती है इसलिए बाबा कहते हैं इस साकार को भी याद नहीं करना है। बाबा कहते तुमको तो अपनी देह को भी भूलना है, एक बाप को याद करना है। इसमें बहुत मेहनत है। माया अच्छेअच्छे बच्चों को भी नामरूप में लटका देती है। यह आदत बड़ी खराब है। शरीर को याद करनायह तो भूतों की याद हो गई। हम कहते हैं एक शिवबाबा को याद करो। तुम फिर 5 भूतों को याद करते रहते हो। देह से बिल्कुल लगाव नहीं होना चाहिए। ब्राह्मणी से भी सीखना है, कि उनके नामरूप में लटकना है। देहीअभिमानी बनने में ही मेहनत है। बाबा के पास भल चार्ट बहुत बच्चे भेज देते हैं परन्तु बाबा उस पर विश्वास नहीं करता है। कोई तो कहते हैं हम शिवबाबा के सिवाए और किसको याद नहीं करते हैं, परन्तु बाबा जानते हैंपाई भी याद नहीं करते हैं। याद की तो बड़ी मेहनत है। कहाँ कहाँ फँस पड़ते हैं। देहधारी को याद करना, यह तो 5 भूतों की याद है। इनको भूत पूजा कहा जाता है। भूत को याद करते हैं। यहाँ तो तुमको एक शिवबाबा को याद करना है। पूजा की तो बात नहीं। भक्ति का नामनिशान गुम हो जाता है फिर चित्रों को क्या याद करना है। वह भी मिट्टी के बने हुए हैं। बाप कहते हैं यह भी सब ड्रामा में नूँध है। अब फिर तुमको पुजारी से पूज्य बनाता हूँ। कोई भी शरीर को याद नहीं करना है, सिवाए एक बाप के। आत्मा जब पावन बन जायेगी तो फिर शरीर भी पावन मिलेगा। अभी तो यह शरीर पावन नहीं है। पहले आत्मा जब सतोप्रधान से सतो, रजो, तमो में आती है तो शरीर भी उस अनुसार मिलता है। अभी तुम्हारी आत्मा पावन बनती जायेगी लेकिन शरीर अभी पावन नहीं होगा। यह समझने की बातें हैं। यह प्वाइन्ट्स भी उनकी बुद्धि में बैठेंगी जो अच्छी रीति समझकर समझाते रहते हैं। सतोप्रधान आत्मा को बनना है। बाप को याद करने की ही बड़ी मेहनत है।
  9. पास विद् ऑनर बनने के लिए बुद्धियोग थोड़ा भी कहीं भटके। एक बाप की ही याद रहे। परन्तु बच्चों का बुद्धियोग भटकता रहता है। जितना बहुतों को आप समान बनायेंगे उतना ही पद मिलेगा। देह को याद करने वाले कभी ऊंच पद पा सकें। यहाँ तो पास विद् ऑनर होना है। मेहनत बिगर यह पद कैसे मिलेगा! देह को याद करने वाले कोई पुरूषार्थ नहीं कर सकते। बाप कहते हैं पुरूषार्थ करने वाले को फालो करो। यह भी पुरूषार्थी है ना।
  10. यह बड़ा विचित्र ज्ञान है। दुनिया में किसको भी पता नहीं है। किसकी भी बुद्धि में नहीं बैठेगा कि आत्मा की चेन्ज कैसे होती है। यह सारी गुप्त मेहनत है। बाबा भी गुप्त है। तुम राजाई कैसे प्राप्त करते हो, लड़ाईझगड़ा कुछ भी नहीं है। ज्ञान और योग की ही बात है। हम कोई से लड़ते नहीं हैं। यह तो आत्मा को पवित्र बनाने के लिए मेहनत करनी है। आत्मा जैसेजैसे पतित बनती जाती है तो शरीर भी पतित लेती है फिर आत्मा को पावन बनकर जाना है, बहुत मेहनत है।
  11. अभी तुम रावण पर जीत पाते हो, बाकी और कोई लड़ाई नहीं है। यह समझाया जाता है, कितनी गुप्त बात है। योगबल से विश्व की बादशाही तुम लेते हो। तुम जानते हो हम अपने शान्तिधाम के रहने वाले हैं। तुम बच्चों को बेहद का घर ही याद है। यहाँ हम पार्ट बजाने आये हैं फिर जाते हैं अपने घर। आत्मा कैसे जाती है यह भी कोई समझते नहीं हैं। ड्रामा प्लैन अनुसार आत्माओं को आना ही है।
  12. कोई भी सिद्धि के लिए एक तो एकान्त दूसरी एकाग्रता दोनों की विधि द्वारा सिद्धि को पाते हैं। जैसे आपके यादगार चित्रों द्वारा सिद्धि प्राप्त करने वालों की विशेष दो बातों की विधि अपनाते हैंएकान्तवासी और एकाग्रता। यही विधि आप भी साकार में अपनाओ। एकाग्रता कम होने के कारण ही दृढ़ निश्चय की कमी होती है। एकान्तवासी कम होने के कारण ही साधारण संकल्प बीज को कमजोर बना देते हैं इसलिए इस विधि द्वारा सिद्धिस्वरुप बनो। 

22/02/2025

प्रश्नः
तुम बच्चों को कौनसा निश्चय बाप द्वारा ही हुआ है?

उत्तर:-
बाप तुम्हें निश्चय कराते कि मैं तुम्हारा बाप भी हूँ, टीचर भी हूँ, सतगुरू भी हूँ, तुम पुरूषार्थ करो इस स्मृति में रहने का। परन्तु माया तुम्हें यही भुलाती है। अज्ञान काल में तो माया की बात नहीं।

प्रश्नः
कौनसा चार्ट रखने में विशाल बुद्धि चाहिए?

उत्तर:-
अपने को आत्मा समझकर बाप को कितना समय याद कियाइस चार्ट रखने में बड़ी विशाल बुद्धि चाहिए। देहीअभिमानी हो बाप को याद करो तब विकर्म विनाश हों।

  1. कायदा कहता हैजब एक बार जान गये कि टीचर है अथवा यह बाप है, गुरू है तो फिर भूल नहीं सकते। परन्तु यहाँ माया भुला देती है। अज्ञान काल में माया कभी भुलाती नहीं। बच्चा कभी भूल नहीं सकता कि यह हमारा बाप है, उनका यह आक्यूपेशन है। बच्चे को खुशी रहती है, हम बाप के धन का मालिक हूँ।
  2. जो बाप सुनाते हैं वही सुनना है।
  3. यह जो बन्दरों का खिलौना दिखाते हैंहियर नो ईविल, सी नो ईविल……. यह है मनुष्य की बात। बाप कहते हैं आसुरी बातें मत बोलो, मत सुनो, मत देखो। हियर नो ईविल……. यह पहले बन्दरों का बनाते थे। अभी तो मनुष्य का बनाते हैं।
  4. अब तुम हो राम वंशी। दुनिया है सारी रावणवंशी।
  5. अभी तुम्हें बाप को याद करना पड़े। बाप कहते हैं मैं जो हूँ, जैसा हूँ, यथार्थ रीति मुझे कोई नहीं जानते। बच्चों में भी नम्बरवार हैं। बाप को यथार्थ रीति याद करना है। वह भी इतनी छोटी बिन्दी है, उनमें यह सारा पार्ट भरा हुआ है। बाप को यथार्थ रीति जानकर याद करना है, अपने को आत्मा समझना है। भल हम बच्चे हैं परन्तु ऐसे नहीं कि बाप की आत्मा बड़ी, हमारी छोटी है। नहीं, भल बाप नॉलेजफुल है परन्तु आत्मा कोई बड़ी नहीं हो सकती। तुम्हारी आत्मा में भी नॉलेज रहती है परन्तु नम्बरवार।
  6. बाप तुम आत्माओं को कहते हैं हियर नो ईविल……. इस आसुरी दुनिया को क्या देखना है। इस छीछी दुनिया से आंखें बन्द कर लेनी हैं। अब आत्मा को स्मृति आई है, यह है पुरानी दुनिया। इनसे क्या कनेक्शन रखना है। आत्मा को स्मृति आई है कि इस दुनिया को देखते भी नहीं देखना है। अपने शान्तिधाम और सुखधाम को याद करना है। आत्मा को ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है तो यह सिमरण करना है।
  7. भक्ति मार्ग में भी सवेरे उठकर माला फेरते हैं। सवेरे का मुहूर्त अच्छा समझते हैं। ब्राह्मणों का मुहूर्त है। ब्रह्मा भोजन की भी महिमा है। ब्रह्म भोजन नहीं, ब्रह्मा भोजन। तुमको भी ब्रह्माकुमारी के बदले ब्रह्मकुमारी कह देते हैं, समझते नहीं हैं। ब्रह्मा के बच्चे तो ब्रह्माकुमारकुमारियाँ होंगे ना। ब्रह्म तो तत्व है, रहने का ठिकाना है, उनकी क्या महिमा होगी। बाप बच्चों को उल्हना देते हैंबच्चे, तुम एक तरफ तो पूजा करते हो, दूसरी तरफ फिर सबकी ग्लानि करते हो। ग्लानि करतेकरते तमोप्रधान बन पड़े हो। तमोप्रधान भी बनना ही है, चक्र रिपीट होगा।
  8. यह चक्र 5 हज़ार वर्ष का ही है, इनके ऊपर बहुत अटेन्शन देना है। रात के बाद दिन जरूर होना ही है। यह हो नहीं सकता कि रात के बाद दिन हो। कलियुग के बाद सतयुग जरूर आना है। यह वर्ल्ड की हिस्ट्रीजॉग्राफी रिपीट होती है।
  9. आत्मा कहती है हमको परमात्मा ने ज्ञान दिया है जो फिर हम भाईयों को देते हैं। अपने को आत्मा समझकर बाप को कितना समय याद किया, इस चार्ट रखने में बड़ी विशालबुद्धि चाहिए। देहीअभिमानी हो बाप को याद करना पड़े तब विकर्म विनाश हों। नॉलेज तो बड़ी सहज है, बाकी आत्मा समझ बाप को याद करते अपनी उन्नति करनी है। यह चार्ट कोई बिरले रखते हैं। देहीअभिमानी हो बाप की याद में रहने से कभी किसको दु: नहीं देंगे। बाप आते ही हैं सुख देने तो बच्चों को भी सबको सुख देना है। कभी किसको दु: नहीं देना है। बाप की याद से सब भूत भागेंगे, बड़ी गुप्त मेहनत है।
  10. इस बेहद ड्रामा में हम पार्टधारी हैं, यह सेकेण्ड बाय सेकेण्ड रिपीट होता रहता है, जो पास्ट हुआ वह फिर रिपीट होगायह स्मृति में रख हर बात में पास होना है। विशालबुद्धि बनना है।
  11. किसी भी विधि से व्यर्थ को समाप्त कर समर्थ को इमर्ज करो। 

23/02/2025

  1. देहअभिमान सभी विकारों का बीज है।
  2. सर्व समर्पित होने में यह देह भान का मैंपन ही रूकावट डालता है। कॉमन मैंपन, मैं देह हूँ, वा देह के सम्बन्ध का मैंपन, देह के पदार्थों का समर्पण यह तो सहज है। यह तो कर लिया है ना? कि नहीं, यह भी नहीं हुआ है! जितना आगे बढ़ते हैं उतना मैंपन भी अति सूक्ष्म महीन होता जाता है। यह मोटा मैंपन तो खत्म होना सहज है। लेकिन महीन मैंपन हैजो परमात्म जन्म सिद्ध अधिकार द्वारा विशेषतायें प्राप्त होती हैं, बुद्धि का वरदान, ज्ञान स्वरूप बनने का वरदान, सेवा का वरदान वा विशेषतायें, या प्रभु देन कहो, उसका अगर मैंपन आता तो इसको कहा जाता है महीन मैंपन। मैं जो करता, मैं जो कहता वही ठीक है, वही होना चाहिए, यह रॉयल मैंपन उड़ती कला में जाने के लिए बोझ बन जाता है। तो बाप कहते इस मैंपन का भी समर्पण, प्रभु देन में मैंपन नहीं होता, मैं मेरा। प्रभु देन, प्रभु वरदान, प्रभु विशेषता है। तो आप सबकी समर्पणता कितनी महीन है। तो चेक किया है? साधारण मैंपन वा रॉयल मैंपन दोनों का समर्पण किया है?
  3. तीन बिन्दूसदा याद रखो। तीनों को अच्छी तरह से जानते हो ना। आप भी बिन्दू, बाप भी बिन्दू, बिन्दू के बच्चे बिन्दू हो। और कर्म में जब आते हो तो इस सृष्टि मंच पर कर्म करने के लिए आये हो, यह सृष्टि मंच ड्रामा है। तो ड्रामा में जो भी कर्म किया, बीत गया, उसको फुलस्टॉप लगाओ। तो फुलस्टॉप भी क्या है? बिन्दू। इसलिए तीन बिन्दू सदा याद रखो।
  4. कर्म शुरू करने के पहले जैसा कर्म वैसी शक्ति का आह्वान करो। मालिक बनकर आर्डर करो क्योंकि यह सर्वशक्तियां आपकी भुजा समान हैं, आपकी भुजायें आपके आर्डर के बिना कुछ नहीं कर सकती। आर्डर करो सहन शक्ति कार्य सफल करो तो देखो सफलता हुई पड़ी है। लेकिन आर्डर करने के बजाए डरते होकर सकेंगे वा नहीं कर सकेंगे। इस प्रकार का डर है तो आर्डर चल नहीं सकता इसलिए मास्टर रचयिता बन हर शक्ति को आर्डर प्रमाण चलाने के लिए निर्भय बनो।
  5. जैसे काई इन्वेन्टर कोई भी इन्वेन्शन निकालने के लिए एकान्त में रहते हैं। तो यहाँ की एकान्त अर्थात् एक के अन्त में खोना है, तो बाहर की आकर्षण से एकान्त चाहिए। ऐसे नहीं सिर्फ कमरे में बैठने की एकान्त चाहिए, लेकिन मन एकान्त में हो। मन की एकाग्रता अर्थात् एक की याद में रहना, एकाग्र होना यही एकान्त है। 

24/02/2025

प्रश्नः
धन्धा आदि करते भी कौनसा डायरेक्शन बुद्धि में याद रहना चाहिए?

उत्तर:-
बाप का डायरेक्शन है तुम किसी साकार वा आकार को याद नहीं करो, एक बाप की याद रहे तो विकर्म विनाश हों। इसमें कोई ये नहीं कह सकता कि फुर्सत नहीं। सब कुछ करते भी याद में रह सकते हो।

  1. तुम जानते हो बाप का परिचय दुनिया में कोई को भी नहीं है। देह का परिचय तो सबको है। बड़ी चीज़ का परिचय झट हो जाता है। आत्मा का परिचय तो जब बाप आये तब समझाये। आत्मा और शरीर दो चीज़ें हैं। आत्मा एक स्टॉर है और बहुत सूक्ष्म है। उनको कोई देख नहीं सकते। तो यहाँ जब आकर बैठते हैं तो देहीअभिमानी होकर बैठना है। यह भी एक हॉस्पिटल है नाआधाकल्प के लिए एवरहेल्दी होने की। आत्मा तो है अविनाशी, कभी विनाश नहीं होती। आत्मा का ही सारा पार्ट है। आत्मा कहती है मैं कभी विनाश को नहीं पाती हूँ। इतनी सब आत्मायें अविनाशी हैं। शरीर है विनाशी। अब तुम्हारी बुद्धि में यह बैठा हुआ है कि हम आत्मा अविनाशी हैं।
  2. अब तुम समझा सकते हो सबसे ऊंचे ते ऊंच है भगवान, वह है मूलवतन वासी। सूक्ष्मवतन में हैं देवतायें। यहाँ रहते हैं मनुष्य। तो ऊंच ते ऊंच भगवान वह निराकार ठहरा।
  3. भगवान कहा ही जाता है निराकार को। वह आकर शरीर धारण करते हैं। एक भगवान के बच्चे सब आत्मायें भाईभाई हैं। अभी इस शरीर में विराजमान हैं। सभी अकालमूर्त हैं। यह अकालमूर्त (आत्मा) का तख्त है। अकालतख्त और कोई खास चीज़ नहीं है। यह तख्त है अकालमूर्त का। भृकुटी के बीच में आत्मा विराजमान होती है, इसको कहा जाता है अकालतख्त। अकालतख्त, अकालमूर्त का। आत्मायें सब अकाल हैं, कितनी अति सूक्ष्म हैं। बाप तो है निराकार। वह अपना तख्त कहाँ से लाये। बाप कहते हैं मेरा भी यह तख्त है। मैं आकर इस तख्त का लोन लेता हूँ। ब्रह्मा के साधारण बूढ़े तन में अकाल तख्त पर आकर बैठता हूँ। अभी तुम जान गये हो सब आत्माओं का यह तख्त है।
  4. बाप बच्चों को कितना प्यार से समझाते हैंबच्चे, बहुतबहुत मीठे बनो। मुख से सदैव रत्न निकलते रहें। तुम हो रूपबसन्त। तुम्हारे मुख से पत्थर नहीं निकलने चाहिए। आत्मा की ही महिमा होती है। आत्मा कहती हैमैं प्रेजीडेण्ट हूँ, फलाना हूँ……. मेरे शरीर का नाम यह है। अच्छा, आत्मायें किसके बच्चे हैं? एक परमात्मा के। तो जरूर उनसे वर्सा मिलता होगा।
  5. कई तो अन्धों की लाठी बनने के बदले अन्धे बन जाते हैं।
  6. अपनी सद्गति करने का पुरूषार्थ तो करना चाहिए। देहीअभिमानी बनना है। बाप कितना ऊंच ते ऊंच है और आते देखो कैसे पतित दुनिया, पतित शरीर में हैं। उनको बुलाते ही पतित दुनिया में हैं। जब रावण दु: देते हैं तो बिल्कुल ही भ्रष्ट कर देते हैं, तब बाप आकर श्रेष्ठ बनाते हैं। जो अच्छा पुरूषार्थ करते हैं वह राजारानी बन जाते हैं, जो पुरूषार्थ नहीं करते वह गरीब बन जाते हैं। तकदीर में नहीं है तो तदबीर कर नहीं सकते। कोई तो बहुत अच्छी तकदीर बना लेते हैं। हर एक अपने को देख सकते हैं कि हम क्या सर्विस करते हैं।
  7. ज्ञान और योग में तीखा बन अपना और दूसरों का कल्याण करना है। अपनी ऊंच तकदीर बनाने का पुरूषार्थ करना है। अन्धों की लाठी बनना है।
  8. सन्तुष्टता की निशानी प्रत्यक्ष रूप में प्रसन्नता दिखाई देगी और जो सदा सन्तुष्ट वा प्रसन्न रहते हैं उनकी हर एक प्रशन्सा अवश्य करते हैं। तो प्रशन्सा, प्रसन्नता से ही प्राप्त कर सकते हो इसलिए सदा सन्तुष्ट और प्रसन्न रहने का विशेष वरदान स्वयं भी लो और औरों को भी दो क्योंकि इस यज्ञ की अन्तिम आहुतिसर्व ब्राह्मणों की सदा प्रसन्नता है। जब सभी सदा प्रसन्न रहेंगे तब प्रत्यक्षता का आवाज गूंजेगा अर्थात् विजय का झण्डा लहरायेगा।
  9. एकान्तवासी बनना अर्थात् चारों ओर के वायब्रेशन से परे चले जाना। कई ऐसे होते हैं जिन्हें एकान्त पसन्द नहीं आता, संगठन में रहना, हंसना, बोलना ज्यादा पसन्द आता, लेकिन यह हुआ बाहरमुखता में आना। अभी अपने को एकान्तवासी बनाओ अर्थात् सर्व आकर्षण के वायब्रेशन से अन्तर्मुख बनो। अब समय ऐसा रहा है जो यही अभ्यास काम में आयेगा। अगर बाहर की आकर्षण के वशीभूत होने का अभ्यास होगा तो समय पर धोखा दे देगा। 

25/02/2025

प्रश्नः
जिन बच्चों को स्वर्ग का मालिक बनने की खुशी है उनकी निशानी क्या होगी?

उत्तर:-
उनके अन्दर किसी भी प्रकार का दु: नहीं सकता। उन्हें नशा रहेगा कि हम तो बहुत बड़े आदमी हैं, हमें बेहद का बाप ऐसा (लक्ष्मीनारायण) बनाते हैं। उनकी चलन बहुत रॉयल होगी। वह दूसरों को खुशखबरी सुनाने के सिवाए रह नहीं सकते।

  1. देखना चाहिएहमारे में कौनसे अवगुण हैं?
  2. बाप आकर रावण की जेल से, शोक वाटिका से छुड़ाते हैं। शोक वाटिका का अर्थ भी कोई समझते नहीं हैं। बाप कहते हैं यह शोक की, दु: की दुनिया है। वह है सुख की दुनिया। तुम अपनी शान्ति की दुनिया और सुख की दुनिया को याद करते रहो। इनकारपोरियल वर्ल्ड कहते हैं ना। अंग्रेजी अक्षर बहुत अच्छे हैं। अंग्रेजी तो चलती ही आती है।

26/02/2025

प्रश्नः
ड्रामा का कौनसा राज़ अति सूक्ष्म समझने का है?

उत्तर:-
यह ड्रामा जूँ मिसल चलता रहता है, टिकटिक होती रहती है। जिसकी जो एक्ट चली वह फिर हूबहू 5 हज़ार वर्ष के बाद रिपीट होगी, यह राज़ बहुत सूक्ष्म समझने का है। जो बच्चे इस राज़ को यथार्थ नहीं समझते तो कह देते ड्रामा में होगा तो पुरूषार्थ कर लेंगे, वह ऊंच पद नहीं पा सकते।

  1. आत्मा अन्दर समझती है कि अब रावण राज्य है।
  2. नये मकान में 6 मास बैठो तो कुछ कुछ दाग़ आदि हो जाते हैं ना। थोड़ा फर्क पड़ जाता है। तो वहाँ नई दुनिया में भी कोई तो पहले आयेंगे, कोई थोड़ा देरी से आयेंगे। पहले जो आयेंगे उनको कहेंगे सतोप्रधान फिर आहिस्तेआहिस्ते कला कम होती जाती है। यह ड्रामा का चक्र जूँ मिसल चलता रहता है। टिकटिक होती रहती है। तुम जानते हो सारी दुनिया में जिसकी जो भी एक्ट चलती है, यह चक्र फिरता रहता है। यह बड़ी सूक्ष्म बातें हैं समझने की। बाप अनुभव से सुनाते हैं।
  3. हम आत्मा हैं। देहीअभिमानी बनें तब खुशी का पारा चढ़े। वह है हद का नाटक, यह है बेहद का। बाबा हम आत्माओं को पढ़ा रहे हैं, यह नहीं बतायेंगे कि फलाने समय यह होगा। बाबा से कोई भी बात पूछते हैं तो कहते हैं ड्रामा में जो कुछ बताने का है वह बता देते हैं, ड्रामा अनुसार जो उत्तर मिलना था सो मिल गया, बस उस पर चल पड़ना है। ड्रामा बिगर बाप कुछ भी नहीं कर सकते हैं। कई बच्चे कहते हैं ड्रामा में होगा तो पुरूषार्थ कर लेंगे, वह कभी ऊंच पद पा नहीं सकते। बाप कहते हैं पुरूषार्थ तुमको करना है। ड्रामा तुमको पुरूषार्थ कराता है कल्प पहले मुआफिक। कोई ड्रामा पर ठहर जाते हैं कि जो ड्रामा में होगा, तो समझा जाता है इनकी तकदीर में नहीं है। अब तुमको स्मृति आई हैहम आत्मा हैं, हम यह पार्ट बजाने आये हैं। आत्मा भी अविनाशी है, पार्ट भी अविनाशी है। 84 जन्मों का पार्ट आत्मा में नूँधा हुआ है फिर वही पार्ट बजायेंगे। इसको कहा जाता है कुदरत। कुदरत का और क्या विस्तार करेंगे। अब मुख्य बात हैपावन जरूर बनना है। यही फिकरात है। कर्म करते हुए बाप की याद में रहना है।
  4. शास्त्रों में यह भूल कर दी है। यह भी भूल जब हो तब तो हम आकर अभुल बनायें ना। यह भूलें भी ड्रामा में हैं, फिर भी होंगी। अब तुमको समझाया है, शिव भगवानुवाच। भगवान् कहते भी शिव को हैं। भगवान् तो एक ही होता है। सब भक्तों को फल देने वाला एक भगवान्।
  5. तुम आत्मा निराकार थी फिर सो देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनी। अभी सो ब्राह्मण वर्ण में आई हो। आत्मा पहले सतोप्रधान, सतो, रजो, तमो में आती है।
  6. बाप ने दिव्य दृष्टि दे यह घड़ी बनवाई है। जैसे वह घड़ी तुम घड़ीघड़ी देखते हो, अब यह बेहद की घड़ी याद पड़ती है।
  7. तुमको मुक्ति में जाकर फिर जीवनमुक्ति में आना है फिर जीवनबंध में।
  8. मुझे बुलाते ही हैं पतित से पावन बनाओ तो मैं आकर तुम बच्चों को पढ़ाता हूँ। ड्रामा में विनाश की भी नूँध है, सो फिर भी होगा। मैं कोई फूंक नहीं देता हूँ कि विनाश हो जाए। यह मूसल आदि बने हैंयह भी ड्रामा में नूध है। मैं भी ड्रामा के बंधन में बांधा हुआ हूँ। मेरा पार्ट सबसे बड़ा हैसृष्टि को बदलना, पतित से पावन बनाना। अब समर्थ कौन? मैं या ड्रामा? रावण को भी ड्रामा अनुसार आना ही है। जो नॉलेज मेरे में है, वह आकर देता हूँ। तुम शिवबाबा की सेना हो। रावण पर जीत पाते हो।
  9. बन्धनों का बीज है सम्बन्ध। जब बाप के साथ सर्व सम्बन्ध जोड़ लिए तो और किसी में मोह कैसे हो सकता। बिना सम्बन्ध के मोह नहीं होता और मोह नहीं तो बंधन नहीं। जब बीज को ही खत्म कर दिया तो बिना बीज के वृक्ष कैसे पैदा होगा। यदि अभी तक बंधन है तो सिद्ध है कि कुछ तोड़ा है, कुछ जोड़ा है इसलिए मनमनाभव की विधि से मन के बन्धनों से भी मुक्त नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप बनो फिर यह शिकायतें समाप्त हो जायेंगी कि क्या करें बंधन है, कटता नहीं।
  10. जितना सेवा की हलचल में आते हो उतना बिल्कुल अण्डरग्राउण्ड चले जाओ। कोई भी नई इन्वेंशन और शक्तिशाली इन्वेंशन अन्डरग्राउण्ड ही करते हैं तो एकान्तवासी बनना ही अन्डरग्राउण्ड है। जो भी समय मिले, इकट्ठा एक घण्टा वा आधा घण्टा समय नहीं मिलेगा लेकिन बीच में 5 मिनट भी मिले तो सागर के तले में चले जाओ। इससे संकल्पों पर ब्रेक लग सकेगी फिर वाणी में आना चाहेंगे तो भी नहीं सकेंगे।

27/02/2025

मीठे बच्चेसत का संग ज्ञान मार्ग में ही होता है, अभी तुम सत बाप के संग में बैठे हो, बाप की याद में रहना माना सतसंग करना

प्रश्नः
सतसंग की आवश्यकता तुम बच्चों को अभी ही हैक्यों?

उत्तर:-
क्योंकि तमोप्रधान आत्मा एक सत बाप, सत शिक्षक और सतगुरू के संग से ही सतोप्रधान अर्थात् काले से गोरी बन सकती है। बिना सतसंग के निर्बल आत्मा बलवान नहीं बन सकती। बाप के संग से आत्मा में पवित्रता का बल जाता है, 21 जन्म के लिए उसका बेड़ा पार हो जाता है।

  1. वास्तव में भक्ति मार्ग में कोई सतसंग में जाते नहीं। सतसंग होता ही ज्ञान मार्ग में है।
  2. तुम आत्मायें अब परमात्मा बाप जो सत्य है, उनके साथ बैठी हो। वह सत बाप, सत टीचर, सतगुरू है। तो गोया तुम सतसंग में बैठे हो। फिर भल यहाँ वा घर में बैठे हो परन्तु अपने को आत्मा समझ याद बाप को करते हो। हम आत्मा अब सत बाप को याद कर रहे हैं अर्थात् सत के संग में हैं।
  3. अभी तुम्हारा संग हुआ है सत बाप के साथ, जिससे तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जाते हो। बाप कहते हैं मैं एक ही बार आता हूँ। अभी आत्मा का परमात्मा से संग होने से तुम 21 जन्म के लिए पार हो जाते हो। फिर तुमको संग लगता है देह का। यह भी ड्रामा बना हुआ है। बाप कहते हैं मेरे साथ तुम बच्चों का संग होने से तुम सतोप्रधान बन जाते हो, जिसको गोल्डन एजड कहा जाता है।
  4. मैं तो सदैव परमधाम में रहता हूँ क्योंकि मुझे तो जन्ममरण में आना नहीं है। यह तुम बच्चे जानते हो, तुम्हारे में भी कोई का संग जास्ती है, कोई का कम है। कोई तो अच्छी रीति पुरूषार्थ कर योग में रहते हैं, जितना समय आत्मा बाप का संग करेगी उतना फायदा है। विकर्म विनाश होंगे। बाप कहते हैंहे आत्मायें, मुझ बाप को याद करो, मेरा संग करो। मुझे यह शरीर का आधार तो लेना पड़ता है। नहीं तो परमात्मा बोले कैसे? आत्मा सुने कैसे? अभी तुम बच्चों का संग है सत के साथ। सत बाप को निरन्तर याद करना है। आत्मा को सत का संग करना है। आत्मा भी वन्डरफुल है, परमात्मा भी वन्डरफुल है, दुनिया भी वन्डरफुल है। यह दुनिया कैसे चक्र लगाती है, वन्डर है। तुम सारे ड्रामा में आलराउन्ड पार्ट बजाते हो। तुम्हारी आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट नूँधा हुआ हैवन्डर है। सतयुगी आत्मायें और आजकल की आत्मायें। उसमें भी तुम्हारी आत्मा सबसे जास्ती आलराउन्डर है। नाटक में कोई का शुरू से पार्ट होता है, कोई का बीच से, कोई का पिछाड़ी में पार्ट होता है। वह हैं सब हद के ड्रामा, वह भी अभी निकले हैं।
  5. वहाँ पवित्रता का बल है मुख्य। अभी हैं निर्बल। वहाँ हैं बलवान। यह लक्ष्मीनारायण बलवान हैं ना। अभी रावण ने बल छीन लिया है फिर तुम उस रावण पर जीत पाकर कितना बलवान बनते हो। जितना सत का संग करेंगे अर्थात् आत्मा जितना सत बाप को याद करती है उतना बलवान बनती है। पढ़ाई में भी बल तो मिलता है ना। तुमको भी बल मिलता है, सारे विश्व पर तुम हुक्म चलाते हो। आत्मा का सत के साथ योग संगम पर ही होता है। बाप कहते हैं आत्मा को मेरा संग मिलने से आत्मा बहुत बलवान बन जाती है।
  6. तुमको मेरे द्वारा कितना बल मिलता है, इनको भी बल मिलता है, जितना बाप को याद करेंगे उतना बल मिलेगा। बाप और कोई तकलीफ नहीं देते हैं। सिर्फ याद करना है, बस। 84 जन्मों का चक्र अब पूरा हुआ है, अब वापिस जाना है। यह समझना कोई बड़ी बात नहीं है। जास्ती रेज़गारी में जाने की तो दरकार नहीं है। बीज को जानने से समझ जाते हैं, इनसे यह सारा झाड़ ऐसे निकलता है। नटशेल में बुद्धि में जाता है। यह बड़ी विचित्र बातें हैं। भक्ति मार्ग में मनुष्य कितने धक्के खाते हैं। मेहनत करते हैं, मिलता कुछ भी नहीं। फिर भी बाप आकर तुमको विश्व का मालिक बनाते हैं। हम योगबल से विश्व का मालिक बनते हैं, यही पुरूषार्थ करना है। भारत का योग मशहूर है। योग से तुम्हारी आयु कितनी बड़ी हो जाती है। सत के संग से कितना फ़ायदा होता है, आयु भी बड़ी और काया भी निरोगी बन जाती है। यह सब बातें तुम बच्चों की बुद्धि में ही बिठाई जाती हैं। और कोई का भी सत के साथ संग नहीं है सिवाए तुम ब्राह्मणों के। तुम प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान हो, दादे पोत्रे हो। तो इतनी खुशी होनी चाहिए ना कि हम दादे पोत्रे हैं। वर्सा भी दादे से मिलता है, यही याद की यात्रा है। बुद्धि में यही सिमरण रहना चाहिए। उन सतसंगों में तो एक जगह जाकर बैठते हैं, यहाँ वह बात नहीं। ऐसे नहीं कि एक जगह बैठने से ही सत का संग होगा। नहीं, उठतेबैठते, चलतेफिरते हम सत के संग में हैं। अगर उनको याद करते हैं तो। याद नहीं करते हैं तो देहअभिमान में हैं, देह तो असत चीज़ है ना। देह को सत नहीं कहेंगे। शरीर तो जड़ है, 5 तत्वों का बना हुआ, उनमें आत्मा नहीं होती तो चुरपुर हो। मनुष्य के शरीर की तो वैल्यु है नहीं, और सबके शरीर की वैल्यु है। सौभाग्य तो आत्मा को मिलना है, मैं फलाना हूँ, आत्मा कहती है ना। बाप कहते हैं आत्मा कैसी हो गई है, अण्डे, कच्छ, मच्छ सब खा जाती है। हर एक भस्मासुर है, अपने को आपेही भस्म करते है। कैसे? काम चिता पर बैठ हर एक अपने को भस्म कर रहे हैं तो भस्मासुर ठहरे ना। अभी तुम ज्ञान चिता पर बैठ देवता बनते हो। सारी दुनिया काम चिता पर बैठ भस्म हो गई है, तमोप्रधान काली हो गई है। बाप आते हैं बच्चों को काले से गोरा बनाने। तो बाप बच्चों को समझाते हैं देहअभिमान छोड़ अपने को आत्मा समझो। बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं फिर पढ़ाई तो घर में रहते भी बुद्धि में रहती है ना। यह भी तुम्हारी बुद्धि में रहनी चाहिए। यह है तुम्हारी स्टूडेन्ट लाइफ। एम ऑबजेक्ट सामने खड़ी है। उठते, बैठते, चलते बुद्धि में यह नॉलेज रहनी चाहिए।
  7. यहाँ बच्चे आते हैं रिफ्रेश होते हैं, युक्तियाँ समझाई जाती है कि ऐसेऐसे समझाओ। दुनिया में ढेर के ढेर सतसंग होते हैं। कितने मनुष्य आकर इकट्ठे होते हैं। वास्तव में वह सत का संग तो है नहीं। सत का संग तो अभी तुम बच्चों को ही मिलता है। बाप ही आकर सतयुग स्थापन करते हैं। तुम मालिक बन जाते हो। देहअभिमान अथवा झूठे अभिमान से तुम गिर पड़ते हो और सत के संग से तुम चढ़ जाते हो। आधाकल्प तुम प्रालब्ध भोगते हो। ऐसे नहीं कि वहाँ भी तुमको सत का संग है। नहीं, सत का संग और झूठ का संग तब कहते हैं जब दोनों हाजिर हैं। सत बाप जब आते हैं, वही आकर सब बातें समझाते हैं। जब तक वह सत बाप नहीं आये तब तक कोई जानते भी नहीं हैं। अब बाप तुम बच्चों को कहते हैंहे आत्मायें, मेरे साथ संग रखो। देह का जो संग मिला है, उनसे उपराम हो जाओ। देह का संग भल सतयुग में भी होगा परन्तु वहाँ तुम हो ही पावन। अभी तुम सत के संग से पतित से पावन बनते हो फिर शरीर भी सतोप्रधान मिलेगा। आत्मा भी सतोप्रधान रहेगी। अभी तो दुनिया भी तमोप्रधान है। दुनिया नई और पुरानी होती है। नई दुनिया में बरोबर आदि सनातन देवीदेवता धर्म था। आज उस धर्म को गुम कर आदि सनातन हिन्दू धर्म कह देते हैं, मूँझ पड़े हैं।
  8. अभी सत बाप द्वारा तुम सारी नॉलेज जानने से ऊंच पद पाते हो फिर आधाकल्प बाद नीचे गिरते हो क्योंकि रावण राज्य शुरू होता है। दुनिया पुरानी तो होगी ना। तुम समझते हो हम नई दुनिया के मालिक थे, अभी पुरानी दुनिया में हैं। कोईकोई को यह भी याद नहीं पड़ता है। बाबा हमको स्वर्गवासी बनाते हैं। आधाकल्प हम स्वर्गवासी रहेंगे फिर आधाकल्प बाद नीचे गिरते हो क्योंकि रावण राज्य शुरू होता है। दुनिया पुरानी तो होगी ना। तुम समझते हो बाबा हमको स्वर्गवासी बनाते हैं। आधाकल्प हम स्वर्गवासी रहेंगे फिर नर्कवासी बनेंगे। तुम भी मास्टर ऑलमाइटी बने हो नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। यह है ज्ञान अमृत का डोज़। शिवबाबा को आरगन्स मिले हैं पुराने। नया आरगन्स तो मिलता नहीं। पुराना बाजा मिलता है। बाप आते भी वानप्रस्थ में ही हैं। बच्चों को खुशी होती है तो बाप भी खुश होते हैं। बाप कहते हैं हम जाते हैं बच्चों को नॉलेज दे रावण से छुड़ाने। पार्ट तो खुशी से बजाया जाता है ना। बाप बहुत खुशी से पार्ट बजाते हैं। बाप को कल्पकल्प आना पड़ता है। यह पार्ट कभी बन्द नहीं होता है। बच्चों को बहुत खुशी रहनी चाहिए। जितना सत का संग करेंगे उतना खुशी होगी, याद कम करते हैं इसलिए इतनी खुशी नहीं रहती है। बाप बच्चों को मिलकियत देते हैं। जो बच्चे सच्ची दिल वाले हैं, उन पर बाप का बहुत प्यार रहता है। सच्ची दिल पर साहेब राज़ी रहते हैं। अन्दर बाहर जो सच्चे रहते हैं, बाप के मददगार बनते हैं, सर्विस पर तत्पर रहते हैं वही बाप को प्रिय लगते हैं। अपनी दिल से पूछना हैहम सच्चीसच्ची सर्विस करते हैं? सच्चे बाबा के साथ संग रखते हैं? अगर सत बाबा के साथ संग नहीं रखेंगे तो क्या गति होगी? बहुतों को रास्ता बताते रहेंगे तो ऊंच पद भी पायेंगे। सत बाप से हमने क्या वर्सा पाया है, अपने अन्दर देखना है। यह तो जानते हैं नम्बरवार हैं। कोई कितना वर्सा पाते हैं, कोई कितना पाते हैं। रातदिन का फ़र्क रहता है।
  9. इस स्टूडेन्ट लाइफ में चलते फिरते बुद्धि में नॉलेज घूमती रहे। एम ऑब्जेक्ट को सामने रख पुरूषार्थ करना है। सच्ची दिल से बाप का मददगार बनना है। है।
  10. जो बच्चे यहाँ बाप के गुण और संस्कारों के समीप हैं, सर्व सम्बन्धों से बाप के साथ का वा समानता का अनुभव करते हैं वही वहाँ रायल कुल में फर्स्ट जन्म के सम्बन्ध में समीप आते हैं। 2- फर्स्ट में वही आयेंगे जो आदि से अब तक अव्यभिचारी और निर्विघ्न रहे हैं। निर्विघ्न का अर्थ यह नहीं है कि विघ्न आये ही नहीं लेकिन विघ्नविनाशक वा विघ्नों के ऊपर सदा विजयी रहें। यह दोनों बातें यदि आदि से अन्त तक ठीक हैं तो फर्स्ट जन्म में साथी बनेंगे।
  11. एकान्तवासी अर्थात् सदा स्थूल एकान्त के साथसाथ एक के अन्त में रहना। एकाग्रता की शक्ति से किसी भी आत्मा का मैसेज उस आत्मा तक पहुँचा सकते हो। किसी भी आत्मा का आह्वान कर सकते हो। किसी भी आत्मा की आवाज को कैच कर सकते हो। किसी भी आत्मा को दूर बैठे सहयोग दे सकते हो। 

28/02/2025

  1. ओम् का अर्थ ही है अहम्, मैं आत्मा। मनुष्य फिर समझते ओम् माना भगवान, परन्तु ऐसे है नहीं। ओम् माना मैं आत्मा, मेरा यह शरीर है। कहते हैं नाओम् शान्ति। अहम् आत्मा का स्वधर्म है शान्त। आत्मा अपना परिचय देती है। मनुष्य भल ओम् शान्ति कहते हैं परन्तु ओम् का अर्थ कोई भी नहीं समझते हैं। ओम् शान्ति अक्षर अच्छा है। हम आत्मा हैं, हमारा स्वधर्म शान्त है। हम आत्मा शान्तिधाम की रहने वाली हैं। कितना सिम्पुल अर्थ है।
  2. नई दुनिया स्वर्ग को कहा जाता है। देवताओं को कहेंगे स्वर्गवासी। अभी तो है पुरानी दुनिया नर्क। यहाँ मनुष्य हैं नर्कवासी। कोई मरता है तो भी कहते हैं स्वर्गवासी हुआ तो गोया यहाँ नर्कवासी है ना।
  3. बाप कहते हैंबच्चे, तुम आत्मायें शान्तिधाम से आती हो पार्ट बजाने। इस दु:खधाम में सभी दु:खी हैं इसलिए कहते हैं मन को शान्ति कैसे हो? ऐसे नहीं कहतेआत्मा को शान्ति कैसे हो? अरे तुम कहते हो ना ओम् शान्ति। मेरा स्वधर्म है शान्ति। फिर शान्ति मांगते क्यों हो? अपने को आत्मा भूल देहअभिमान में जाते हो। आत्मायें तो शान्तिधाम की रहने वाली हैं। यहाँ फिर शान्ति कहाँ से मिलेगी? अशरीरी होने से ही शान्ति होगी। शरीर के साथ आत्मा है, तो उनको बोलना चलना तो जरूर पड़ता है। हम आत्मा शान्तिधाम से यहाँ पार्ट बजाने आई हैं।
  4. तुम बच्चे अभी दैवीगुण धारण करते हो। तुम जानते हो अभी 5 तत्व भी तमोप्रधान हैं।
  5. यह लक्ष्मीनारायण विश्व के मालिक थे ना। यह कभी राज्य करते थे, यह भी किसको पता थोड़ेही है। आज से 5 हज़ार वर्ष पहले इन्हों का राज्य था। फिर यह कहाँ गये। तुम बता सकते हो 84 जन्म भोगे। अभी तमोप्रधान हैं फिर बाप द्वारा सतोप्रधान बन रहे हैं, ततत्वम्। यह नॉलेज सिवाए बाप के साधूसन्त आदि कोई भी दे सके।
  6. संगमयुग पर सभी बच्चों को दिव्य बुद्धि की लिफ्ट मिलती है। इस वन्डरफुल लिफ्ट द्वारा तीनों लोकों में जहाँ चाहो वहाँ पहुंच सकते हो। सिर्फ स्मृति का स्विच आन करो तो सेकण्ड में पहुच जायेंगे और जितना समय जिस लोक का अनुभव करना चाहो उतना समय वहाँ स्थित रह सकते हो। इस लिफ्ट को यूज करने के लिए अमृतवेले केयरफुल बन स्मृति के स्विच को यथार्थ रीति से सेट करो। अथॉरिटी होकर इस लिफ्ट को कार्य में लगाओ तो सहजयोगी बन जायेंगे। मेहनत समाप्त हो जायेगी।

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