Waah Drama Waah! Waah Baba Waah!

Key Points From The Daily Murli – Hindi and English

December 2024 – Key Points from Daily Murli

01/12/2024

  1. हर एक ब्राह्मण आत्मा का ब्राह्मण जीवन का आदिकाल स्नेह की शक्ति द्वारा ही हुआ है। ब्राह्मण जन्म की यह स्नेह की शक्ति वरदान बन आगे बढ़ा रही है।
  2. सबसे पहली स्मृति सबको क्या मिली? पहला पाठ याद है ना! मैं कौन! इस स्मृति ने ही नया जन्म दिया, वृत्ति दृष्टि स्मृति परिवर्तन कर दी है। ऐसी स्मृतियां याद आते ही रूहानी खुशी की झलक नयनों में, मुख में ही जाती है।
  3. एक भी स्मृति अमृतवेले से कर्मयोगी बनने समय भी बारबार याद रहे तो स्मृति समर्थ स्वरूप बना देती है क्योंकि जैसी स्मृति वैसी ही समर्थी स्वत: ही आती है।
  4. बापदादा ने देखा कि अमृतवेले मैजारिटी का याद और ईश्वरीय प्राप्तियों का नशा बहुत अच्छा रहता है। लेकिन कर्म योगी की स्टेज में जो अमृतवेले का नशा है उससे अन्तर पड़ जाता है। कारण क्या है? कर्म करते, सोल कॉन्सेस और कर्म कॉन्सेस दोनों रहता है। इसकी विधि है कर्म करते मैं आत्मा, कौन सी आत्मा, वह तो जानते ही हो, जो भिन्नभिन्न आत्मा के स्वमान मिले हुए हैं, ऐसी आत्मा करावनहार होकर इन कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म कराने वाली हूँ, यह कर्मेन्द्रियाँ कर्मचारी हैं लेकिन कर्मचारियों से कर्म कराने वाली मैं करावनहार हूँ, न्यारी हूँ। क्या लौकिक में भी डायरेक्टर अपने साथियों से, निमित्त सेवा करने वालों से सेवा कराते, डायरेक्शन देते, ड्यूटी बजाते भूल जाता है कि मैं डायरेक्टर हूँ? तो अपने को करावनहार शक्तिशाली आत्मा हूँ, यह समझकर कार्य कराओ। यह आत्मा और शरीर, वह करनहार है वह करावनहार है, यह स्मृति मर्ज हो जाती है।
  5. आप सबको, पुराने बच्चों को मालूम है कि ब्रह्मा बाप ने शुरू शुरू में क्या अभ्यास किया? एक डायरी देखी थी ना। सारी डायरी में एक ही शब्दमैं भी आत्मा, जसोदा भी आत्मा, यह बच्चे भी आत्मा हैं, आत्मा है, आत्मा है…. यह फाउण्डेशन सदा का अभ्यास किया। तो यह पहला पाठ मैं कौन? इसका बारबार अभ्यास चाहिए। चेकिंग चाहिए, ऐसे नहीं मैं तो हूँ ही आत्मा। अनुभव करे कि मैं आत्मा करावनहार बन कर्म करा रही हूँ। करनहार अलग है, करावनहार अलग है। ब्रह्मा बाप का दूसरा अनुभव भी सुना है कि यह कर्मेन्द्रियाँ, कर्मचारी हैं। तो रोज़ रात की कचहरी सुनी है ना! तो मालिक बन इन कर्मेन्द्रियों रूपी कर्मचारियों से हालचाल पूछा है ना! तो जैसे ब्रह्मा बाप ने यह अभ्यास फाउण्डेशन बहुत पक्का किया, इसलिए जो बच्चे लास्ट में भी साथ रहे उन्होंने क्या अनुभव किया? कि बाप कार्य करते भी शरीर में होते हुए भी अशरीरी स्थिति में चलते फिरते अनुभव होता रहा। चाहे कर्म का हिसाब भी चुक्तू करना पड़ा लेकिन साक्षी हो, स्वयं कर्म के हिसाब के वश रहे, औरों को कर्म के हिसाबकिताब चुक्तू होने का अनुभव कराया। आपको मालूम पड़ा कि ब्रह्मा बाप अव्यक्त हो रहा है, नहीं मालूम पड़ा ना! तो इतना न्यारा, साक्षी, अशरीरी अर्थात् कर्मातीत स्टेज बहुतकाल से अभ्यास की तब अन्त में भी वही स्वरूप अनुभव हुआ। यह बहुतकाल का अभ्यास काम में आता है। ऐसे नहीं सोचो कि अन्त में देहभान छोड़ देंगे, नहीं। बहुतकाल का अशरीरीपन का, देह से न्यारा करावनहार स्थिति का अनुभव चाहिए। अन्तकाल चाहे जवान है, चाहे बूढ़ा है, चाहे तन्दरूस्त है, चाहे बीमार है, किसका भी कभी भी सकता है इसलिए बहुतकाल साक्षीपन के अभ्यास पर अटेन्शन दो। चाहे कितनी भी प्राकृतिक आपदायें आयेंगी लेकिन यह अशरीरीपन की स्टेज आपको सहज न्यारा और बाप का प्यारा बना देगी इसलिए बहुतकाल शब्द को बापदादा अण्डरलाइन करा रहे हैं। क्या भी हो, सारे दिन में साक्षीपन की स्टेज का, करावनहार की स्टेज का, अशरीरीपन की स्टेज का अनुभव बारबार करो, तब अन्त मते फरिश्ता सो देवता निश्चित है।
  6. तो सबका लक्ष्य है ब्रह्मा बाप समान बनना अर्थात् फरिश्ता बनना। शिव बाप समान बनना अर्थात् निराकार स्थिति में स्थित होना। मुश्किल है क्या? बाप और दादा से प्यार है ना! तो जिससे प्यार है उस जैसा बनना, जब संकल्प भी हैबाप समान बनना ही है, तो कोई मुश्किल नहीं।
  7. नम्बरवन बनना अर्थात् हर समय विन करने वाले। जो विन करते हैं वह वन होते हैं।
  8. बाप स्वयं सर्व सम्बन्धों से साथ निभाने की ऑफर करते हैं। जैसा समय वैसे सम्बन्ध से बाप के साथ रहो और साथी बनाओ। जहाँ सदा साथ भी है और साथी भी है वहाँ कोई मुश्किल हो नहीं सकता। जब कभी अपने को अकेला अनुभव करो तो उस समय बाप के बिन्दू रूप को याद नहीं करो, प्राप्तियों की लिस्ट सामने लाओ, भिन्नभिन्न समय के रमणीक अनुभव की कहानियाँ स्मृति में लाओ, सर्व संबंधों के रस का अनुभव करो तो मेहनत समाप्त हो जायेगी और सहज पुरुषार्थी बन जायेंगे।
  9. बहुरूपी बन माया के बहुरूपों को परख लो तो मास्टर मायापति बन जायेंगे। 

02/12/2024

प्रश्नः
कौनसा पुरुषार्थ गुप्त बाप से गुप्त वर्सा दिला देता है?

उत्तर:-
अन्तर्मुख अर्थात् चुप रहकर बाप को याद करो तो गुप्त वर्सा मिल जायेगा। याद में रहते शरीर छूटे तो बहुत अच्छा, इसमें कोई तकलीफ नहीं। याद के साथसाथ ज्ञानयोग की सर्विस भी करनी है, अगर नहीं कर सकते तो कर्मणा सेवा करो। बहुतों को सुख देंगे तो आशीर्वाद मिलेगी। चलन और बोलचाल भी बहुत सात्विक चाहिए।

  1. पुरुषार्थ करना चाहिए हम विजय माला में पहले जायें। कहाँ माया बिल्ली तूफान लगाकर विकर्म बना दे जो दीवा बुझ जाए। अब इसमें ज्ञान और योग दोनों बल चाहिए। योग के साथ ज्ञान भी जरूरी है। हर एक को अपने दीपक की सम्भाल करनी है। अन्त तक पुरुषार्थ चलना ही है। रेस चलती रहती है तो बहुत सम्भाल करनी हैकहाँ ज्योत कम हो जाए, बुझ जाए इसलिए योग और ज्ञान का घृत रोज़ डालना पड़ता है। योगबल की ताकत नहीं है तो दौड़ नहीं सकते हैं। पिछाड़ी में रह जाते हैं।
  2. तुम यह ज्ञान और योग की सर्विस करते हो। जो यह ज्ञान योग की सर्विस नहीं कर सकते तो फिर कर्मणा सर्विस की भी मार्क्स हैं। सभी की आशीर्वाद मिलेंगी।
  3. ज्ञान और योग से हर एक बच्चा देवीदेवता पद पा सकता है।
  4. बाबा राय भी देते हैं तुम परमधाम से बाबा के साथ आये हो। तुम कहेंगे हम परमधाम निवासी हैं। इस समय बाबा की मत से हम स्वर्ग की स्थापना कर रहे हैं। जो स्थापना करेंगे वही जरूर मालिक बनेंगे।
  5. सारा मदार पुरुषार्थ पर है। हम माया पर जीत पाने के वारियर्स हैं। वो लोग फिर मन को वश करने के लिए कितने हठ आदि करते हैं। तुम तो हठयोग आदि कर सको। बाबा कहते हैं तुमको कोई तकलीफ आदि नहीं करनी है, सिर्फ कहता हूँ तुमको मेरे पास आना है इसलिए मुझे याद करो।
  6. जपना कुछ भी नहीं है सिर्फ याद करना है। आवाज़ कुछ नहीं करना पड़ता। गुप्त बाबा से गुप्त वर्सा चुप रहने से, अन्तर्मुख होने से हम पाते हैं। इसी ही याद में रहते शरीर छूट जाए तो बहुत अच्छा है। कोई तकल़ीफ नहीं, जिनको याद नहीं ठहरती वह अपना अभ्यास करें। सभी को कहो बाबा ने कहा है मुझे याद करो तो अन्त मती सो गति। याद से विकर्म विनाश होंगे और मैं स्वर्ग में भेज दूँगा। बुद्धियोग शिवबाबा से लगाना बहुत सहज है। परहेज भी सारी यहाँ ही करनी है। सतोप्रधान बनते हैं तो सभी सात्विक होने चाहिएचलन सात्विक, बोलना सात्विक। यह है अपने साथ बातें करना। साथी से प्यार से बोलना है।
  7. तुम हो रूपबसन्त। आत्मा रूप बनती है। ज्ञान का सागर बाप है तो जरूर आकर ज्ञान ही सुनायेंगे। कहते हैं मैं एक ही बार आकर शरीर धारण करता हूँ। यह कम जादूगरी नहीं है! बाबा भी रूपबसन्त है। परन्तु निराकार तो बोल नहीं सकता इसलिए शरीर लिया है। परन्तु वह पुनर्जन्म में नहीं आता है। आत्मायें तो पुनर्जन्म में आती हैं।
  8. तुम बच्चे बाबा के ऊपर बलिहार जाते हो तो बाबा कहते हैं फिर ममत्व नहीं रखना। अपना कुछ नहीं समझना। ममत्व मिटाने के लिए ही बाबा युक्ति रचते हैं। कदमकदम पर बाप से पूछना पड़ता है। माया ऐसी है जो चमाट मारती है। पूरी बॉक्सिंग है, बहुत तो चोट खाकर फिर खड़े हो जाते हैं। लिखते भी हैंबाबा, माया ने थप्पड़ लगा दिया, काला मुँह कर दिया। जैसे कि 4 मंज़िल से गिरा। क्रोध किया तो थर्ड फ्लोर से गिरा। यह बहुत समझने की बातें हैं।
  9. सतोप्रधान बनने के लिए बहुतबहुत परहेज से चलना है। अपना खानपान, बोलचाल सब सात्विक रखना है। बाप समान रूपबसन्त बनना है।
  10. क्षमाशील वह हैं जो रहमदिल बन सर्व को दुआयें देते रहें।

03/12/2024

  1. हम कौन हैं? आत्मा। आत्मा को ही पवित्र बनना है। आत्मा पवित्र बनती है तो शरीर भी पवित्र मिलता है। आत्मा के पतित बनने से शरीर भी पतित मिलता है। यह शरीर तो मिट्टी का पुतला है। आत्मा तो अविनाशी है। आत्मा इन आरगन्स द्वारा कहती है, पुकारती हैहम बहुत पतित बन गये हैं, हमको आकर पावन बनाओ। बाप पावन बनाते हैं। 5 विकारों रूपी रावण पतित बनाते हैं।
  2. अब शान्तिधाम तो है घर। जहाँ से आत्मायें पार्ट बजाने आती हैं। वहाँ सिर्फ आत्मायें ही हैं शरीर नहीं है। आत्मायें नंगी अर्थात् शरीर बिगर रहती हैं। नंगे का अर्थ यह नहीं कि कपड़े पहनने बिगर रहना। नहीं, शरीर बिगर आत्मायें नंगी (अशरीरी) रहती हैं। बाप कहते हैंबच्चे, तुम आत्मायें वहाँ मूलवतन में बिगर शरीर रहती हो, उसे निराकारी दुनिया कहा जाता है।
  3. तुम अभी समझते हो कलियुग पूरा हो अभी सतयुग आयेगा इसलिए तुम आये हो बाप से स्वर्ग का वर्सा लेने। तुम सब स्वर्गवासी थे। बाप आते ही हैं स्वर्ग स्थापन करने। तुम ही स्वर्ग में आते हो, बाकी सब शान्तिधाम घर चले जाते हैं। वह है स्वीट होम, आत्मायें वहाँ निवास करती हैं। फिर यहाँ आकर पार्टधारी बनते हैं।
  4. तुम यहाँ आये ही हो मनुष्य से देवता बनने के लिए। देवताओं का खानपान अशुद्ध नहीं होता, वे कभी बीड़ी आदि पीते नहीं।
  5. बहुत हैं जो यहाँ आकर सुनकर फिर माया के वश हो जाते हैं। पुण्य आत्मा बनतेबनते पाप आत्मा बन पड़ते हैं। माया बड़ी जबरदस्त है। सबको पाप आत्मा बना देती है। यहाँ कोई भी पवित्र आत्मा, पुण्य आत्मा है नहीं। पवित्र आत्मायें देवीदेवता ही थे, जब सभी पतित बन जाते हैं तब बाप को बुलाते हैं। अभी यह है रावण राज्य पतित दुनिया, इनको कहा जाता है कांटों का जंगल। सतयुग को कहा जाता है गार्डन ऑफ फ्लावर्स।
  6. गणेश को विघ्न विनाशक कहते हैं। विघ्न विनाशक वही बनते जिनमें सर्व शक्तियां हैं। सर्वशक्तियों को समय प्रमाण कार्य में लगाओ तो विघ्न ठहर नहीं सकते। कितने भी रूप से माया आये लेकिन आप नॉलेजफुल बनो। नॉलेजफुल आत्मा कभी माया से हार खा नहीं सकती। जब मस्तक पर बापदादा की दुआओं का हाथ है तो विजय का तिलक लगा हुआ है। परमात्म हाथ और साथ विघ्नविनाशक बना देता है।

04/11/2024

मीठे बच्चेसारा मदार याद पर है, याद से ही तुम मीठे बन जायेंगे, इस याद में ही माया की युद्ध चलती है

प्रश्नः
इस ड्रामा में कौन सा राज़ बहुत विचार करने योग्य है? जिसे तुम बच्चे ही जानते हो?

उत्तर:-
तुम जानते हो कि ड्रामा में एक पार्ट दो बार बज सके। सारी दुनिया में जो भी पार्ट बजता है वह एक दो से नया। तुम विचार करते हो कि सतयुग से लेकर अब तक कैसे दिन बदल जाते हैं। सारी एक्टिविटी बदल जाती है। आत्मा में 5 हजार वर्ष की एक्टिविटी का रिकॉर्ड भरा हुआ है, जो कभी बदल नहीं सकता। यह छोटी सी बात तुम बच्चों के सिवाए और किसी की बुद्धि में नहीं सकती।

  1. रूहानी बाप रूहानी बच्चों से पूछते हैंमीठेमीठे बच्चे, तुम अपना भविष्य का पुरूषोत्तम मुख, पुरूषोत्तम चोला देखते हो? यह पुरूषोत्तम संगमयुग है ना। तुम फील करते हो कि हम फिर नई दुनिया सतयुग में इनकी वंशावली में जायेंगे, जिसको सुखधाम कहा जाता है। वहाँ के लिए ही तुम अभी पुरूषोत्तम बन रहे हो। बैठेबैठे यह विचार आना चाहिए। 
  2. अभी तुम समझते हो हमको ऊंच ते ऊंच भगवान पढ़ाते हैं तो जरूर देवीदेवता ही बनायेंगे। यह पढ़ाई है ही नई दुनिया के लिए।
  3. हम आत्मा अभी पतित से पावन बनने के लिए पावन बाप को याद करते हैं। आत्मा याद करती है अपने स्वीट बाप को। बाप खुद कहते हैं तुम मुझे याद करेंगे तो पावन सतोप्रधान बन जायेंगे। सारा मदार याद की यात्रा पर है। बाप जरूर पूछेंगेबच्चे, मुझे कितना समय याद करते हो? याद की यात्रा में ही माया की युद्ध चलती है। तुम युद्ध भी समझते हो। यह यात्रा नहीं परन्तु जैसेकि लड़ाई है, इसमें ही बहुत खबरदार रहना है। नॉलेज में माया के तूफान आदि की बात नहीं। बच्चे कहते भी हैं बाबा हम आपको याद करते हैं, परन्तु माया का एक ही तूफान नीचे गिरा देता है। नम्बरवन तूफान है देहअभिमान का। फिर है काम, क्रोध, लोभ, मोह का। बच्चे कहते हैं बाबा हम बहुत कोशिश करते हैं याद में रहने की, कोई विघ्न आये परन्तु फिर भी तूफान जाते हैं। आज क्रोध का, कभी लोभ का तूफान आया। बाबा आज हमारी अवस्था बहुत अच्छी रही, कोई भी तूफान सारा दिन नहीं आया। बड़ी खुशी रही। बाप को बड़े प्यार से याद किया। स्नेह के आंसू भी आते रहे। बाप की याद से ही बहुत मीठे बन जायेंगे। यह भी समझते हैं हम माया से हार खातेखाते कहाँ तक आकर पहुँचे हैं। यह कोई समझते थोड़े ही हैं।
  4. मनुष्य तो लाखों वर्ष कह देते हैं या परम्परा कह देते। तुम कहेंगे हम फिर से अभी मनुष्य से देवता बन रहे हैं। यह नॉलेज बाप ही आकर देते हैं। विचित्र बाप ही विचित्र नॉलेज देते हैं। विचित्र निराकार को कहा जाता है। निराकार कैसे यह नॉलेज देते हैं।
  5. बाप खुद समझाते हैं मैं कैसे इस तन में आता हूँ। फिर भी मनुष्य मूँझते हैं। क्या एक इसी तन में आयेगा! परन्तु ड्रामा में यही तन निमित्त बनता है। ज़रा भी चेन्ज हो नहीं सकती। यह बातें तुम ही समझकर और दूसरों को समझाते हो। आत्मा ही पढ़ती है। आत्मा ही सीखतीसिखलाती है। आत्मा मोस्ट वैल्युबुल है। आत्मा अविनाशी है, सिर्फ शरीर खत्म होता है। हम आत्मायें अपने परमपिता परमात्मा से रचता और रचना के आदिमध्यअन्त के 84 जन्मों की नॉलेज ले रहे हैं। नॉलेज कौन लेते हैं? हम आत्मा। तुम आत्मा ने ही नॉलेजफुल बाप से मूलवतन, सूक्ष्मवतन को जाना है।
  6. बच्चे में नॉलेज नहीं होती और कोई अवगुण भी नहीं होता है, इसलिए उसे महात्मा कहा जाता है क्योंकि पवित्र है। जितना छोटा बच्चा उतना नम्बरवन फूल। बिल्कुल ही जैसे कर्मातीत अवस्था है। कर्मअकर्मविकर्म को कुछ भी नहीं जानते हैं, इसलिए वह फूल है। सबको कशिश करते हैं। जैसे एक बाप सभी को कशिश करते हैं। बाप आये ही हैं सभी को कशिश कर खुशबूदार फूल बनाने। कई तो कांटे के कांटे ही रह जाते हैं। 5 विकारों के वशीभूत होने वाले को कांटा कहा जाता है। नम्बरवन कांटा है देहअभिमान का, जिससे और कांटों का जन्म होता है। कांटों का जंगल बहुत दु: देता है। किस्मकिस्म के कांटे जंगल में होते हैं ना इसलिए इसको दु:खधाम कहा जाता है। नई दुनिया में कांटे नहीं होते इसलिए उसको सुखधाम कहा जाता है। शिवबाबा फूलों का बगीचा लगाते हैं, रावण कांटों का जंगल लगाता है इसलिए रावण को कांटों की झाड़ियों से जलाते हैं और बाप पर फूल चढ़ाते हैं। इन बातों को बाप जानें और बच्चे जानें और जाने कोई।
  7. तुम बच्चे जानते होड्रामा में एक पार्ट दो बार बज सके। बुद्धि में है सारी दुनिया में जो पार्ट बजता है वह एकदो से नया। तुम विचार करो सतयुग से लेकर अब तक कैसे दिन बदल जाता है। सारी एक्टिविटी ही बदल जाती है। 5 हजार वर्ष की एक्टिविटी का रिकॉर्ड आत्मा में भरा हुआ है। वह कभी बदल नहीं सकता। हर आत्मा में अपनाअपना पार्ट भरा हुआ है। यह छोटीसी बात भी कोई की बुद्धि में सके। इस ड्रामा के पास्ट, प्रेजन्ट और फ्युचर को तुम जानते हो। यह स्कूल है ना। पवित्र बन बाप को याद करने की पढ़ाई बाप पढ़ाते हैं। यह बातें कभी सोची थी कि बाप आकर ऐसे पतित से पावन बनाने की पढ़ाई पढ़ायेंगे! इस पढ़ाई से ही हम विश्व के मालिक बनेंगे! भक्ति मार्ग के पुस्तक ही अलग हैं, उसको कभी पढ़ाई नहीं कहा जाता है। ज्ञान के बिना सद्गति हो भी कैसे? बाप बिना ज्ञान कहाँ से आये जिससे सद्गति हो।
  8. सारा ज्ञान आत्मा में रहता है। आत्मा का कोई धर्म नहीं होता। आत्मा जब शरीर धारण करती है फिर कहते हैं फलाना इसइस धर्म का है। आत्मा का धर्म क्या है? एक तो आत्मा बिन्दी मिसल है और शान्त स्वरूप है, शान्तिधाम में रहती है।
  9. आत्मा तो एक छोटा सितारा है। इतनी सारी नॉलेज एक छोटेसे सितारे में है। सितारा शरीर के बिगर बात भी नहीं कर सकता। सितारे को पार्ट बजाने के लिए इतने ढेर आरगन्स मिले हुए हैं। तुम सितारों की दुनिया ही अलग है। आत्मा यहाँ आकर फिर शरीर धारण करती है। शरीर छोटाबड़ा होता है। आत्मा ही अपने बाप को याद करती है। वह भी जब तक शरीर में है। घर में आत्मा बाप को याद करेगी? नहीं। वहाँ कुछ भी मालूम नहीं पड़ताहम कहाँ हैं! आत्मा और परमात्मा दोनों जब शरीर में हैं तब आत्माओं और परमात्मा का मेला कहा जाता है।
  10. सेकण्डसेकण्ड पास होते 5 हज़ार वर्ष बीत गये। फिर वन नम्बर से शुरू करना है, एक्यूरेट हिसाब है। अभी तुमसे कोई पूछे इसने कब जन्म लिया था? तो तुम एक्यूरेट बता सकते हो। श्रीकृष्ण ही पहले नम्बर में जन्म लेता है। शिव का तो कुछ भी मिनट सेकण्ड नहीं निकाल सकते। श्रीकृष्ण के लिए तिथितारीख, मिनट, सेकण्ड निकाल सकते हो। मनुष्यों की घड़ी में फ़र्क पड़ सकता है। शिवबाबा के अवतरण में तो बिल्कुल फ़र्क नहीं पड़ सकता। पता ही नहीं पड़ता कब आया? ऐसे भी नहीं, साक्षात्कार हुआ तब आया। नहीं, अन्दाज लगा सकते हैं। मिनटसेकेण्ड का हिसाब नहीं बता सकते। उनका अवतरण भी अलौकिक है, वह आते ही हैं बेहद की रात के समय। बाकी और भी जो अवतरण आदि होते हैं, उनका पता पड़ता है। आत्मा शरीर में प्रवेश करती है। छोटा चोला पहनती है फिर धीरेधीरे बड़ा होता है। शरीर के साथ आत्मा बाहर आती है। इन सभी बातों को विचार सागर मंथन कर फिर औरों को समझाना होता है। कितने ढेर मनुष्य हैं, एक मिले दूसरे से। कितना बड़ा माण्डवा है। जैसे बड़ा हाल है, जिसमें बेहद का नाटक चलता है।
  11. तुमसे जब कोई पूछते हैं तुम किसके पास जाते हो? तो बोलो, शिवबाबा के पास, जो ब्रह्मा के तन में आया हुआ है। यह ब्रह्मा कोई शिव नहीं है। जितना बाप को जानेंगे तो बाप के साथ प्यार भी रहेगा। बाबा कहते हैं बच्चे तुम और कोई को प्यार नहीं करो और संग प्यार तोड़ एक संग जोड़ो। जैसे आशिक माशूक होते हैं ना। यह भी ऐसे हैं। 108 सच्चे आशिक बनते हैं, उसमें भी 8 सच्चेसच्चे बनते हैं। 8 की भी माला होती है ना। 9 रत्न गाये हुए हैं। 8 दानें, 9 वां बाबा। मुख्य हैं 8 देवतायें, फिर 16108 शहजादे शहजादियों का कुटुम्ब बनता है त्रेता अन्त तक। बाबा तो हथेली पर बहिश्त दिखलाते हैं। तुम बच्चों को नशा है कि हम तो सृष्टि के मालिक बनते हैं। बाबा से ऐसा सौदा करना है।

05/12/2024

मीठे बच्चेतुम्हें जो भी ज्ञान मिलता है, उस पर विचार सागर मंथन करो, ज्ञान मंथन से ही अमृत निकलेगा

प्रश्नः
21
जन्मों के लिए मालामाल बनने का साधन क्या है?

उत्तर:-
ज्ञान रत्न। जितना तुम इस पुरूषोत्तम संगमयुग पर ज्ञान रत्न धारण करते हो उतना मालामाल बनते हो। अभी के ज्ञान रत्न वहाँ हीरे जवाहरात बन जाते हैं। जब आत्मा ज्ञान रत्न धारण करे, मुख से ज्ञान रत्न निकाले, रत्न ही सुने और सुनाये तब उनके हर्षित चेहरे से बाप का नाम बाला हो।

  1. इस ज्ञान से मनुष्य से देवता बनते हैं। 
  2. देवता जब मनुष्य बनते हैं तब भक्ति शुरू होती है। मनुष्य को विकारी, देवताओं को निर्विकारी कहा जाता है। देवताओं की सृष्टि को पवित्र दुनिया कहा जाता है। अभी तुम मनुष्य से देवता बन रहे हो। देवताओं में फिर यह ज्ञान होगा नहीं। देवतायें सद्गति में हैं, ज्ञान चाहिए दुर्गति वालों को। इस ज्ञान से ही दैवी गुण आते हैं। ज्ञान की धारणा वालों की चलन देवताई होती है। कम धारणा वालों की चलन मिक्स होती है। आसुरी चलन तो नहीं कहेंगे। धारणा नहीं तो हमारे बच्चे कैसे कहलायेंगे। 
  3. तो इस ज्ञान का विचार सागर मंथन करना चाहिए। स्टूडेन्ट विचार सागर मंथन कर ज्ञान को उन्नति में लाते हैं। तुमको यह ज्ञान मिलता है, उस पर अपना विचार सागर मंथन करने से अमृत निकलेगा। विचार सागर मंथन नहीं होगा तो क्या मंथन होगा? आसुरी विचार मंथन, जिससे किचड़ा ही निकलता है। अभी तुम ईश्वरीय स्टूडेन्ट हो। जानते हो मनुष्य से देवता बनने की पढ़ाई बाप पढ़ा रहे हैं।
  4. पुरूषोत्तम बन रहे हो तो वातावरण भी बहुत अच्छा होना चाहिए। छीछी बातें मुख से नहीं निकलनी चाहिए। नहीं तो कहा जायेगा कम दर्जे का है। वातावरण से झट पता पड़ जाता है। मुख से वचन ही दु: देने वाले निकलते हैं। तुम बच्चों को बाप का नाम बाला करना है। सदैव मुखड़ा हर्षित रहना चाहिए। मुख से सदैव रत्न ही निकलें। यह लक्ष्मीनारायण कितने हर्षितमुख हैं, इनकी आत्मा ने ज्ञान रत्न धारण किये थे। मुख से यह रत्न निकाले थे। रत्न ही सुनते सुनाते थे। कितनी खुशी रहनी चाहिए। अभी तुम जो ज्ञान रत्न लेते हो वह फिर सच्चे हीरेजवाहरात बन जाते हैं। 
  5. तो अपने को बहुतबहुत समझदार बनाना है। आसुरी गुणों को निकालना है। आसुरी गुण वाले की शक्ल ही ऐसी हो जाती है। क्रोध में तो लाल तांबा मिसल हो जाते हैं। काम विकार वाले तो एकदम काले मुँह वाले बन जाते हैं। श्रीकृष्ण को भी काला दिखाते हैं ना। विकारों के कारण ही गोरे से सांवरा बन गया। तुम बच्चों को हर एक बात का विचार सागर मंथन करना चाहिए।
  6. विकार में जाने से विकारी कर्म बन जाते हैं। विकार से विकर्म बनते हैं। 
  7. जो विचार सागर मंथन करते रहेंगे, उनको ही धारणा होगी। जो विचार सागर मंथन नहीं करते उन्हें बुद्धू कहेंगे। मुरली चलाने वाले का विचार सागर मंथन चलता रहेगाइस टॉपिक पर यहयह समझाना है। उम्मींद रखी जाती है, अभी नहीं समझेंगे परन्तु आगे चलकर जरूर समझेंगे। उम्मींद रखना माना सर्विस का शौक है, थकना नहीं है। भल कोई चढ़कर फिर अधम बना है, अगर आता है तो स्नेह से बिठायेंगे ना वा कहेंगे चले जाओ! हालचाल पूछना पड़ेइतने दिन कहाँ रहे, क्यों नहीं आये? कहेंगे ना माया से हार खा लिया। समझते भी हैं ज्ञान बड़ा अच्छा है। स्मृति तो रहती है ना। भक्ति में तो हार जीत पाने की बात ही नहीं। यह नॉलेज है, इसे धारण करना है। तुम जब तक ब्राह्मण बने तब तक देवता बन सको।
  8. बाप का नाम ही है शिव। बच्चों को सालिग्राम कहा जाता है। दोनों की पूजा होती है। 
  9. शिव को बाबा कह सभी याद करते हैं। दूसरा ब्रह्मा को भी बाबा कहते हैं। प्रजापिता है तो सारी प्रजा का पिता हुआ ना। ग्रेटग्रेट ग्रैन्ड फादर। यह सारा ज्ञान अभी तुम बच्चों में है। प्रजापिता ब्रह्मा तो कहते बहुत हैं परन्तु यथार्थ रीति जानते कोई नहीं। ब्रह्मा किसका बच्चा है? तुम कहेंगे परमपिता परमात्मा का। शिवबाबा ने इनको एडाप्ट किया है तो यह शरीरधारी हुआ ना। ईश्वर की सभी औलाद हैं। फिर जब शरीर मिलता है तो प्रजापिता ब्रह्मा की एडाप्शन कहते हैं। वह एडाप्शन नहीं। क्या आत्माओं को परमपिता परमात्मा ने एडाप्ट किया है? नहीं, तुमको एडाप्ट किया है। अभी तुम हो ब्रह्माकुमारकुमारियाँ। शिवबाबा एडाप्ट नहीं करते हैं। सभी आत्मायें अनादि अविनाशी हैं। सभी आत्माओं को अपनाअपना शरीर, अपनाअपना पार्ट मिला हुआ है, जो बजाना ही है। यह पार्ट ही अनादि अविनाशी परम्परा से चला आता है। उनका आदि अन्त नहीं कहा जाता है।
  10. वातावरण को अच्छा रखने के लिए मुख से सदैव रत्न निकालने हैं। दु: देने वाले बोल निकलें यह ध्यान रखना है। हर्षितमुख रहना है।
  11. बापदादा ने सभी बच्चों को सर्वशक्तियां वर्से में दी हैं। याद की शक्ति का अर्थ हैमनबुद्धि को जहाँ लगाना चाहो वहाँ लग जाए। कैसे भी वायुमण्डल के बीच अपने मनबुद्धि को सेकण्ड में एकाग्र कर लो। परिस्थिति हलचल की हो, वायुमण्डल तमोगुणी हो, माया अपना बनाने का प्रयत्न कर रही हो फिर भी सेकण्ड में एकाग्र हो जाओऐसी कन्ट्रोलिंग पावर हो तब कहेंगे सर्वशक्ति सम्पन्न।

06/12/2024

प्रश्नः
बाप ने तुम्हें ऐसी कौनसी समझ दी है जिससे बुद्धि का ताला खुल गया?

उत्तर:-
बाप ने इस बेहद अनादि ड्रामा की ऐसी समझ दी है, जिससे बुद्धि पर जो गॉडरेज का ताला लगा था वह खुल गया। पत्थरबुद्धि से पारसबुद्धि बन गये। बाप ने समझ दी है कि इस ड्रामा में हर एक एक्टर का अपनाअपना अनादि पार्ट है, जिसने कल्प पहले जितना पढ़ा है, वह अभी भी पढ़ेंगे। पुरूषार्थ कर अपना वर्सा लेंगे।

  1. तुम्हारी एम ऑब्जेक्ट ही समझदार बनने की है। बेसमझों के लिए एम ऑब्जेक्ट होती है कि ऐसा समझदार बनना है। सभी को सिखलाना हैयह है एम आब्जेक्ट, मनुष्य से देवता बनना। यह है ही मनुष्यों की सृष्टि, वह है देवताओं की सृष्टि। सतयुग में है देवताओं की सृष्टि, तो जरूर मनुष्यों की सृष्टि कलियुग में होगी। 
  2. तुम ही ऊंच ते ऊंच पद पाते हो फिर तुम उतरते भी ऐसे हो। बाप ने समझाया है यह जो भी मनुष्यों की आत्मायें हैं, माला है ना, सब नम्बरवार आती हैं। हर एक एक्टर को अपनाअपना पार्ट मिला हुआ हैकिस समय किसको क्या पार्ट बजाना है। यह अनादि बनाबनाया ड्रामा है जो बाप बैठ समझाते हैं। 
  3. बाप कहते हैं इस समय तुम अपने को अशरीरी आत्मा समझो। आत्मा को ही अपने बाप को याद करना हैपावन बनने लिए। आत्मा पवित्र बनती है तो फिर शरीर भी पवित्र मिलता है। आत्मा अपवित्र तो जेवर भी अपवित्र। 
  4. बुद्धि आत्मा में रहती है। आत्मा ही बुद्धि से समझ रही है। 
  5. आत्मा बिन्दी है, उनका क्या वज़न करें। सितारा है। मनुष्य लोग सितारा नाम सुन ऊपर में देखेंगे। तुम सितारा नाम सुन अपने को देखते हो। धरती के सितारे तुम हो। वह हैं आसमान के जो जड़ हैं, तुम चैतन्य हो। 
  6. फिर बाप आकर भिन्नभिन्न प्रकार से समझाते हैं क्योंकि तुम्हारी आत्मा उझाई हुई है। ताकत जो भरी थी वह खलास हो गई है। अब फिर बाप द्वारा ताकत भरते हो। तुम अपनी बैटरी चार्ज कर रहे हो। इसमें माया भी बहुत विघ्न डालती है बैटरी चार्ज करने नहीं देती। तुम चैतन्य बैटरियाँ हो। जानते हो बाप के साथ योग लगाने से हम सतोप्रधान बनेंगे। अभी तमोप्रधान बने हैं। उस हद की पढ़ाई और इस बेहद की पढ़ाई में बहुत फर्क है। कैसे नम्बरवार सब आत्मायें ऊपर जाती हैं फिर अपने समय पर पार्ट बजाने आना है। सबको अपना अविनाशी पार्ट मिला हुआ है। तुमने यह 84 का पार्ट कितनी बार बजाया होगा! तुम्हारी बैटरी कितनी बार चार्ज और डिस्चार्ज हुई है! जब जानते हो हमारी बैटरी डिस्चार्ज है तो फिर चार्ज करने में देरी क्यों करनी चाहिए? परन्तु माया बैटरी चार्ज करने नहीं देती। माया बैटरी चार्ज करना तुमको भुला देती है। घड़ीघड़ी बैटरी डिस्चार्ज करा देती है। कोशिश करते हो बाप को याद करने की परन्तु कर नहीं सकते हो। तुम्हारे में जो बैटरी चार्ज कर सतोप्रधान तक नज़दीक आते हैं, उनसे भी कभीकभी माया ग़फलत कराए बैटरी डिस्चार्ज कर देती है। यह पिछाड़ी तक होता रहेगा। फिर जब लड़ाई का अन्त होता है तो सब खत्म हो जाते हैं फिर जिसकी जितनी बैटरी चार्ज हुई होगी उस अनुसार पद पायेंगे। सभी आत्मायें बाप के बच्चे हैं, बाप ही आकर सबकी बैटरी चार्ज कराते हैं। खेल कैसा वन्डरफुल बना हुआ है। बाप के साथ योग लगाने से घड़ीघड़ी हट जाते हैं तो कितना नुकसान होता है। हटें उसके लिए पुरूषार्थ कराया जाता है। पुरूषार्थ करतेकरते जब समाप्ति होती है तो फिर नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार तुम्हारा पार्ट पूरा होता है। जैसे कल्पकल्प होता है। आत्माओं की माला बनती रहती है।
  7. सदा इसी अनुभव में रहो कि एक बाप दूसरा कोई। बस एक बाबा ही संसार है और कोई आकर्षण नहीं, कोई कर्मबंधन नहीं। अपने किसी कमजोर संस्कार का भी बंधन हो। जो किसी पर मेरे पन का अधिकार रखते हैं उन्हें क्रोध या अभिमान आता हैयह भी कर्मबन्धन है। लेकिन जब बाबा ही मेरा संसार है, यह स्मृति रहती है तो सब मेरामेरा एक मेरे बाबा में समा जाता है और कर्मबन्धनों से सहज ही मुक्त हो जाते हैं।

07/12/2024

मीठे बच्चेसारा मदार कर्मों पर है, सदा ध्यान रहे कि माया के वशीभूत कोई उल्टा कर्म हो जिसकी सजा खानी पड़े

  1. इस पुरानी दुनिया को देखते हुए भी देखो। 
  2. बाप का भी इस संगम पर पार्ट चलता है। क्रियेटर, डायरेक्टर है ना! तो जरूर उनकी कोई एक्टिविटी होगी ना। सब जानते हैं कि उनको आदमी नहीं कहा जाता, उनको तो अपना शरीर ही नहीं। बाकी सबको मनुष्य वा देवता कहेंगे। शिवबाबा को देवता, मनुष्य कहेंगे। यह तो टैप्रेरी शरीर लोन में लिया हुआ है। गर्भ से थोड़ेही पैदा हुए हैं। बाप खुद कहते हैंबच्चे, शरीर बिगर मैं राजयोग कैसे सिखलाऊंगा! हमको मनुष्य लोग भल कह देते हैं कि ठिक्कर भित्तर में परमात्मा है परन्तु अभी तुम बच्चे समझते हो कि मैं कैसे आता हूँ।
  3. माया बहुत कड़ी है। किसको भी छोड़ती नहीं है। बाप को सब मालूम पड़ता है। माया ग्राह एकदम हप कर लेती है। यह बाप अच्छी रीति जानते हैं। ऐसे नहीं समझो बाप कोई अन्तर्यामी है। नहीं, बाप सभी की एक्टिविटी को जानते हैं। समाचार तो आते हैं ना। माया एकदम कच्चा ही पेट में डाल देती है। ऐसी बहुत बातें तुम बच्चों को मालूम नहीं पड़ती हैं। बाप को तो सब मालूम पड़ता है। मनुष्य फिर समझ लेते परमात्मा अन्तर्यामी है। बाप कहते हैं मैं अन्तर्यामी नहीं हूँ। हर एक की चलन से मालूम तो पड़ता है ना। बहुत ही छीछी चलन चलते हैं इसलिए बाप घड़ीघड़ी बच्चों को खबरदार करते हैं। माया से सम्भालना है। फिर भल बाप समझाते हैं तो भी बुद्धि में नहीं बैठता, काम महाशत्रु है, मालूम भी पड़े कि हम विकार में गये हैं, ऐसे भी होता है इसलिए बाप कहते हैं कुछ भी भूल आदि होती है तो साफ बता दो, छिपाओ मत। नहीं तो सौगुणा पाप हो जायेगा। वह अन्दर खाता रहेगा। वृद्धि होती रहेगी। एकदम गिर पड़ेंगे। बच्चों को बाप के साथ बिल्कुल ही सच्चा रहना है। नहीं तो बहुतबहुत घाटा पड़ जायेगा। यह तो रावण की दुनिया है। रावण की दुनिया को हम याद क्यों करें।
  4. अभी हम नई दुनिया में जाने वाले हैं फिर जितना बाप को याद करेंगे उतना गुलगुल बनेंगे। हम विकारों के वश हो कांटे बन पड़े हैं। तुम बच्चे जानते होजो नहीं आते हैं वह तो माया के वश हो गये हैं। बाप के पास हैं ही नहीं। ट्रेटर बन गये हैं। पुराने दुश्मन पास चले गये हैं। ऐसेऐसे बहुतों को माया हप कर लेती है। कितने खत्म हो जाते हैं। बहुत अच्छेअच्छे हैं जो कहकर जाते हैं हम ऐसे करेंगे, यह करेंगे। हम तो यज्ञ के लिए प्राण भी देने के लिए तैयार हैं। आज वह हैं नहीं। तुम्हारी लड़ाई है ही माया के साथ।
  5. दुनिया में यह कोई नहीं जानते कि माया से लड़ाई कैसे होती है। शास्त्रों में फिर दिखाया है देवताओं और असुरों में लड़ाई हुई। फिर कौरवों और पाण्डवों की लड़ाई हुई। कोई से पूछो यह दो बातें शास्त्रों में कैसी हैं? देवतायें तो अहिंसक होते हैं। वह होते ही हैं सतयुग में। वह फिर क्या कलियुग में लड़ने आयेंगे। कौरव और पाण्डव का भी अर्थ नहीं समझते। शास्त्रों में जो लिखा है वही पढ़कर सुनाते रहते हैं। बाबा की तो सारी गीता पढ़ी हुई है। जब यह ज्ञान मिला तो विचार चला कि गीता में यह लड़ाई आदि की बातें क्या लिखी हैं? श्रीकृष्ण तो गीता का भगवान नहीं है। इनके अन्दर बाप बैठा था तो इन द्वारा उस गीता को भी छुड़वा दिया। अभी बाप द्वारा कितना सोझरा मिला है। आत्मा को ही सोझरा होता है तब बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो, बेहद के बाप को याद करो।
  6. देह सहित देह के सभी सम्बन्धों को भूल एक मुझ बाप को याद करो तो माया के पाप कर्म भस्म हो जायेंगे।
  7. अभी तुम बुद्धिवान बनते हो। आगे बुद्धिहीन थे। यह लक्ष्मीनारायण हैं बुद्धिवान। बुद्धिहीन पतित को कहा जाता है। मुख्य है पवित्रता। लिखते भी हैं माया ने हमें गिरा दिया। आंखें क्रिमिनल बन गई। बाप तो घड़ीघड़ी सावधान करते रहते हैंबच्चे, कभी माया से हार नहीं खाना। अभी घर जाना है। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। यह पुरानी दुनिया खत्म हुई कि हुई। हम पावन बनते हैं तो हमें पावन दुनिया भी तो चाहिए ना! तुम बच्चों को ही पतित से पावन बनना है। बाप तो योग नहीं लगायेंगे। बाबा पतित थोड़ेही बनता है जो योग लगावे। बाबा तो कहते हैं मैं तुम्हारी सेवा में उपस्थित होता हूँ। तुमने ही मांगनी की है कि आकर हम पतितों को पावन बनाओ। तुम्हारे ही कहने से मैं आया हूँ। तुम्हें बहुत सहज रास्ता बताता हूँ सिर्फ मनमनाभव।
  8. कई बच्चे बाबा के पास आते हैं जो कभी पवित्र नहीं रहते हैं। बाबा समझाते हैं विकार में जाते हो फिर बाबा के पास क्यों आते हो? कहते क्या करूँ, रह नहीं सकता हूँ। परन्तु यहाँ आता हूँ शायद कभी तीर लग जाए। आप बिगर हमारी सद्गति कौन करेगा इसलिए आकर बैठ जाता हूँ। माया कितनी प्रबल है। निश्चय भी होता हैबाबा हमको पतित से पावन गुलगुल बनाते हैं। परन्तु क्या करें फिर भी सच बोलने से कभी सुधर जाऊंगा। हमको यह निश्चय है कि आपसे ही हमें सुधरना है। बाबा को ऐसे बच्चों पर तरस पड़ता है फिर भी ऐसे होगा। नथिंगन्यु। बाबा तो रोज़रोज़ श्रीमत देते हैं। कोई अमल में लाते भी हैं, इसमें बाबा क्या कर सकता है। बाबा कहे शायद इनका पार्ट ही ऐसा है। सब तो राजेरानियाँ नहीं बनते हैं। राजधानी स्थापन हो रही है। राजधानी में सब चाहिए। फिर भी बाबा कहते हैं बच्चे हिम्मत नहीं छोड़ो। आगे जा सकते हो।
  9. जब निगेटिव अथवा व्यर्थ संकल्प चलते हैं, तो उसकी गति बहुत फास्ट होती है। फास्ट गति के समय पॉवरफुल ब्रेक लगाकर परिवर्तन करने का अभ्यास चाहिए। वैसे भी जब पहाड़ी पर चढ़ते हैं तो पहले ब्रेक को चेक करते हैं। आप अपनी ऊंची स्थिति बनाने के लिए संकल्पों को सेकण्ड में ब्रेक देने का अभ्यास बढ़ाओ। जब अपने संकल्प वा संस्कार एक सेकण्ड में निगेटिव से पॉजिटिव में परिवर्तन कर लेंगे तब स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन का कार्य सम्पन्न होगा।
  10. स्वयं प्रति और सर्व आत्माओं के प्रति श्रेष्ठ परिवर्तन की शक्ति को कार्य में लाने वाले ही सच्चे कर्मयोगी हैं। 

08/12/2024

  1. आप ब्राह्मणों के ऊपर परमात्म छत्रछाया है। जैसे वाटरप्रूफ कितना भी वाटर हो लेकिन वाटरप्रूफ द्वारा वाटरप्रूफ हो जाते हैं। ऐसे ही कितनी भी हलचल हो लेकिन ब्राह्मण आत्मायें परमात्म छत्रछाया के अन्दर सदा प्रूफ हैं। बेफिकर बादशाह हो ना! कि थोड़ाथोड़ा फिकर है, क्या होगा? नहीं। बेफिकर। स्वराज्य अधिकारी बन, बेफिकर बादशाह बन, अचलअडोल सीट पर सेट रहो। सीट से नीचे नहीं उतरो। अपसेट होना अर्थात् सीट पर सेट नहीं है तो अपसेट हैं। सीट पर सेट जो है वह स्वप्न में भी अपसेट नहीं हो सकता। मातायें क्या समझती हो? सीट पर सेट होना, बैठना आता है? हलचल तो नहीं होती ना! बापदादा कम्बाइन्ड है, जब सर्वशक्तिवान आपके कम्बाइन्ड है तो आपको क्या डर है! अकेले समझेंगे तो हलचल में आयेंगे। कम्बाइन्ड रहेंगे तो कितनी भी हलचल हो लेकिन आप अचल रहेंगे। ठीक है मातायें? ठीक है ना, कम्बाइन्ड हैं ना! अकेले तो नहीं? बाप की जिम्मेवारी है, अगर आप सीट पर सेट हो तो बाप की जिम्मेवारी है, अपसेट हो तो आपकी जिम्मेवारी है।
  2. चलते फिरते अपने को आत्मा करावनहार है और यह कर्मेन्द्रियां करनहार कर्मचारी हैं, यह आत्मा की स्मृति का अनुभव सदा इमर्ज रूप में हो, ऐसे नहीं कि मैं तो हूँ ही आत्मा। नहीं, स्मृति में इमर्ज हो। मर्ज रूप में रहता है लेकिन इमर्ज रूप में रहने से वह नशा, खुशी और कन्ट्रोलिंग पावर रहती है। मजा भी आता है, क्यों! साक्षी हो करके कर्म कराते हो। तो बारबार चेक करो कि करावनहार होकर कर्म करा रही हूँ? जैसे राजा अपने कर्मचारियों को आर्डर में रखते हैं, आर्डर से कराते हैं, ऐसे आत्मा करावनहार स्वरूप की स्मृति रहे तो सर्व कर्मेन्द्रियां आर्डर में रहेंगी। माया के आर्डर में नहीं रहेंगी, आपके आर्डर में रहेंगी। नहीं तो माया देखती है कि करावनहार आत्मा अलबेली हो गई है तो माया आर्डर करने लगती है। कभी संकल्प शक्ति, कभी मुख की शक्ति माया के आर्डर में चल पड़ती है इसीलिए सदा हर कर्मेन्द्रियों को अपने आर्डर में चलाओ। ऐसे नहीं कहेंगेचाहते तो नहीं थे, लेकिन हो गया। जो चाहते हैं वही होगा। अभी से राज्य अधिकारी बनने के संस्कार भरेंगे तब ही वहाँ भी राज्य चलायेंगे। स्वराज्य अधिकारी की सीट से कभी भी नीचे नहीं आओ। अगर कर्मेन्द्रियां आर्डर पर रहेंगी तो हर शक्ति भी आपके आर्डर में रहेगी। जिस शक्ति की जिस समय आवश्यकता है उस समय जी हाजिर हो जायेगी। ऐसे नहीं काम पूरा हो जाए और आप आर्डर करो सहनशक्ति आओ, काम पूरा हो जाये फिर आवे। हर शक्ति आपके आर्डर पर जी हाजिर होगी क्योंकि यह हर शक्ति परमात्म देन है। तो परमात्म देन आपकी चीज़ हो गई। तो अपनी चीज़ को जैसे भी यूज़ करो, जब भी यूज़ करो, ऐसे यह सर्व शक्तियां आपके आर्डर पर रहेंगी, सर्व कर्मेन्द्रियां आपके आर्डर पर रहेंगी, इसको कहा जाता है स्वराज्य अधिकारी, मास्टर सर्वशक्तिवान।
  3. योग से विकर्म विनाश होंगे, पाप कर्म का बोझ भस्म होगा, सेवा से पुण्य का खाता जमा होगा। तो पुण्य का खाता जमा कर रहे हैं लेकिन पिछले जो कुछ संस्कार का बोझ है, वह भस्म योग ज्वाला से होगा। साधारण योग से नहीं। अभी क्या है, योग तो लगाते हैं लेकिन पाप भस्म होने का ज्वाला रूप नहीं है इसलिए थोड़ा टाइम खत्म होता है फिर निकल आता है इसलिए रावण को देखो, मारते हैं, जलाते हैं फिर हड्डियां भी पानी में डाल देते हैं। बिल्कुल भस्म हो जाए, पिछले संस्कार, कमजोर संस्कार बिल्कुल भस्म हो जाएं, भस्म नहीं हुए हैं। मरते हैं लेकिन भस्म नहीं होते हैं, मरने के बाद फिर जिंदा हो जाते हैं। संस्कार परिवर्तन से संसार परिवर्तन होगा। अभी संस्कारों की लीला चल रही है। संस्कार बीचबीच में इमर्ज होते हैं ना! नामनिशान खत्म हो जाए, संस्कार परिवर्तनयह है विशेष अण्डरलाइन की बात। संस्कार परिवर्तन नहीं हैं तो व्यर्थ संकल्प भी हैं। व्यर्थ समय भी है, व्यर्थ नुकसान भी है। होना तो है ही। संस्कार मिलन की महारास गाई हुई है। अभी रास होती है, महारास नहीं हुई है। (महारास क्यों नहीं होती हैं?) अण्डरलाइन नहीं है, दृढ़ता नहीं है। अलबेलापन भिन्नभिन्न प्रकार का है।
  4. कर्मयोगी आत्मा का हर कर्म योगयुक्त, युक्तियुक्त होगा। अगर कोई भी कर्म युक्तियुक्त नहीं होता तो समझो योगयुक्त नहीं हैं। अगर साधारण वा व्यर्थ कर्म हो जाता है तो निरन्तर योगी नहीं कहेंगे। कर्मयोगी अर्थात् हर सेकण्ड, हर संकल्प, हर बोल सदा श्रेष्ठ हो। श्रेष्ठ कर्म की निशानी हैस्वयं भी सन्तुष्ट और दूसरे भी सन्तुष्ट। ऐसी आत्मा ही निरन्तर योगी बनती है। 

09/12/2024

  1. बेहद का बाप आत्माओं को सुनाते हैं। आत्मा ही सुनती है। सब कुछ आत्मा ही करती हैइस शरीर द्वारा इसलिए पहलेपहले अपने को आत्मा जरूर समझना है।
  2. योग अर्थात् पढ़ाने वाले की याद। यह बाप भी है, टीचर भी है, सतगुरू भी है। तीनों रूप में पूरा याद करना पड़ता है। यह सतगुरू तुम्हें एक ही बार मिलता है। ज्ञान से सद्गति मिली, बस फिर गुरू की रस्म ही खत्म। बाप, टीचर की रस्म चलती है, गुरू की रस्म खत्म हो जाती है। सद्गति मिल गई ना।
  3. यहाँ तो शरीर से पार्ट बजाना पड़ता है। पिछाड़ी में सब पार्टधारी जायेंगे। नाटक जब पूरा होता है तो सब एक्टर्स स्टेज पर जाते हैं। अभी भी सब एक्टर्स स्टेज पर आकर इकट्ठे हुए हैं। कितना घोर घमसान है। सतयुग आदि में इतना घोर घमसान नहीं था। अभी तो कितनी अशान्ति है। तो अब जैसे बाप को सृष्टि चक्र की नॉलेज है तो बच्चों को भी नॉलेज है। बीज को नॉलेज है नाहमारा झाड़ कैसे वृद्धि को पाकर फिर खत्म होता है।
  4. तुम जानते हो बरोबर आदि सनातन देवीदेवता धर्म जब स्थापन हुआ था तो बाप ने कहा था देह के सब धर्म छोड़ अपने को आत्मा समझो और बाप को याद करो। 
  5. तो अब तुम सम्मुख बैठे हो, क्या करते हो? बाबा को इस भृकुटी में देखते हो। बाबा फिर तुम्हारी भृकुटी में देखते हैं। जिसमें मैं प्रवेश करता हूँ, उनको देख सकता हूँ? वह तो बाजू में बैठा है, यह बड़ी समझने की बात है। मैं इनके बाजू में बैठा हुआ हूँ। यह भी समझता है, हमारे बाजू में बैठा है। तुम कहेंगे हम सामने दो को देखते हैं। बाप और दादा दोनों आत्मा को देखते हो।

10/12/2024

प्रश्नः
अवस्था बिगड़ने का कारण क्या है? किस युक्ति से अवस्था बहुत अच्छी रह सकती है?

उत्तर:-
1.
ज्ञान की डांस नहीं करते, झरमुई झगमुई में अपना समय गँवा देते हैं इसलिए अवस्था बिगड़ जाती है। 2. दूसरों को दु: देते हैं तो भी उसका असर अवस्था पर आता है। अवस्था अच्छी तब रहेगी जब मीठा होकर चलेंगे। याद पर पूरा अटेन्शन होगा। रात को सोने के पहले कम से कम आधा घण्टा याद में बैठो फिर सवेरे उठकर याद करो तो अवस्था अच्छी रहेगी।

  1. बाबा ने कई बार समझाया है कि ऐसे अच्छेअच्छे रिकॉर्ड घर में रहने चाहिए फिर कोई मुरझाइस आती है तो रिकॉर्ड बजाने से बुद्धि में झट अर्थ आयेगा तो मुरझाइस निकल जायेगी। यह रिकॉर्ड भी संजीवनी बूटी है।
  2. जैसे मैं डायरेक्शन देता हूँ वैसे तुम याद करते नहीं हो। माया तुमको याद करने नहीं देती है। मेरे कहने पर तुम बहुत कम चलते हो और माया के कहने पर बहुत चलते हो। कई बार कहा हैरात को जब सोते हो तो आधा घण्टा बाबा की याद में बैठ जाना चाहिए। भल स्त्रीपुरूष हैं, इकट्ठे बैठें वा अलगअलग बैठें। बुद्धि में एक बाप की ही याद रहे। परन्तु कोई विरले ही याद करते हैं। माया भुला देती है।
  3. हम ब्राह्मण सो देवता फिर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनेंगे। फिर बाबा आयेंगे फिर हम शूद्र से ब्राह्मण बनेंगे। बाबा त्रिमूर्ति, त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री भी है। हमारी बुद्धि खोल देते हैं। तीसरा नेत्र भी ज्ञान का मिलता है। ऐसा बाप तो कोई हो नहीं सकता। बाप रचना रचते हैं तो माता भी हो गई। जगत अम्बा को निमित्त बनाते हैं। 

11/12/2024


12/12/2024

प्रश्नः
जो विनाशकाले विपरीत बुद्धि हैं, उन्हें तुम्हारी किस बात पर हँसी आती है?

उत्तर:-
तुम जब कहते हो अभी विनाश काल नज़दीक है, तो उन्हें हँसी आती है। तुम जानते हो बाप यहाँ बैठे तो नहीं रहेंगे, बाप की ड्युटी है पावन बनाना। जब पावन बन जायेंगे तो यह पुरानी दुनिया विनाश होगी, नई आयेगी। यह लड़ाई है ही विनाश के लिए। तुम देवता बनते हो तो इस कलियुगी छीछी सृष्टि पर नहीं सकते

  1. गीता में भी यह अक्षर हैं विनाश काले विप्रीत बुद्धि विनशन्ती, प्रीत बुद्धि विजयन्ती।
  2. गायन भी है विनाश काले विप्रीत बुद्धि विनशन्ती। प्रीत बुद्धि विजयन्ती। फिर जितनाजितना प्रीत बुद्धि रहेंगे अर्थात् बहुत याद करेंगे, उतना तुम्हारा ही फायदा है। लड़ाई का मैदान है ना। कोई भी यह नहीं जानते हैं कि गीता में कौनसी युद्ध बताई है। उन्होंने तो फिर कौरवों और पाण्डवों की युद्ध दिखाई है। कौरव सम्प्रदाय, पाण्डव सम्प्रदाय भी हैं परन्तु युद्ध तो कोई है नहीं। पाण्डव उनको कहा जाता है जो बाप को जानते हैं। बाप से प्रीत बुद्धि हैं। कौरव उनको कहा जाता जो बाप से विप्रीत बुद्धि हैं।
  3. मनुष्य का तन सबसे ऊंच अमूल्य गाया गया है। इनका मूल्य कथन नहीं कर सकते। बाप आकर आत्माओं को समझाते हैं।
  4. बाप भी कहते हैं तुमको विश्व की बादशाही मिलती है तो माया कितना आपोजीशन करती है। तुमको आगे चल पता पड़ेगा कि माया कितने अच्छेअच्छे बच्चों को भी हप कर लेती है। एकदम खा लेती है। तुमने सर्प को देखा हैमेढक को कैसे पकड़ता है, जैसे गज को ग्राह हप करते हैं। सर्प मेढक को एकदम सारे का सारा हप कर लेता है। माया भी ऐसी है, बच्चों को जीते जी पकड़कर एकदम खत्म कर देती है जो फिर कभी बाप का नाम भी नहीं लेते हैं। योगबल की ताकत तुम्हारे में बहुत कम है। सारा मदार योगबल पर है। जैसे सर्प मेढक को हप करता है, तुम बच्चे भी सारी बादशाही को हप करते हो।
  5. स्नेही बच्चों को बापदादा द्वारा उड़ती कला का वरदान मिल जाता है। उड़ती कला द्वारा सेकण्ड में बापदादा के पास पहुंच जाओ तो कैसे भी स्वरूप में आई हुई माया आपको छू नहीं सकेगी। परमात्म छत्रछाया के अन्दर माया की छाया भी नहीं सकती।

13/12/2024

  1. तुम अपने मुख से सदैव रत्न निकालो, पत्थर नहीं।
  2. बाप ध्यान के लिए भी डायरेक्शन देते हैं सिर्फ भोग लगाकर आओ। बाबा यह तो कहते नहीं कि वैकुण्ठ में जाओ, रासविलास आदि करो। दूसरी जगह गये तो समझो माया की प्रवेशता हुई। माया का नम्बरवन कर्तव्य है पतित बनाना। बेकायदे चलन से नुकसान बहुत होता है। हो सकता है फिर कड़ी सजायें भी खानी पड़े, अगर अपने को सम्भालेंगे नहीं तो। बाप के साथसाथ धर्मराज भी है। उनके पास बेहद का हिसाबकिताब रहता है। रावण की जेल में कितना वर्ष सजायें खाई हैं। इस दुनिया में कितना अपार दु: है। अभी बाप कहते हैं और सब बातें भूल एक बाप को याद करो और सभी दुविधा अन्दर से निकाल दो। विकार में कौन ले जाते हैं? माया के भूत। तुम्हारा एम ऑब्जेक्ट है ही यह। राजयोग है ना। बाप को याद करने से यह वर्सा मिलेगा। तो इस धन्धे में लग जाना चाहिए। किचड़ा सारा अन्दर से निकाल देना चाहिए। माया की पराकाष्ठा भी बहुत कड़ी है। परन्तु उनको उड़ाते रहना है। जितना हो सके याद की यात्रा में रहना है। अभी तो निरन्तर याद हो सके। आखरीन निरन्तर तक भी आयेंगे तब ही ऊंच पद पायेंगे। अगर अन्दर दुविधा, खराब ख्यालात होंगे तो ऊंच पद मिल नहीं सकता। माया के वश होकर ही हार खाते हैं।
  3. बाप समझाते हैंबच्चे, गन्दे काम से हार मत खाओ। निन्दा आदि करते तो तुम्हारी बहुत बुरी गति हो गई है। अभी सद्गति होती है तो बुरे कर्म मत करो। बाबा देखते हैं माया ने गले तक ग्रास (हप) कर लिया है। पता भी नहीं पड़ता है। खुद समझते हैं हम बहुत अच्छा चल रहे हैं, परन्तु नहीं। बाप समझाते हैंमन्सा, वाचा, कर्मणा मुख से रत्न ही निकलने चाहिए। गन्दी बातें करना पत्थर हैं। अभी तुम पत्थर से पारस बनते हो तो मुख से कभी पत्थर नहीं निकलने चाहिए। बाबा को तो समझाना पड़ता है। बाप का हक है बच्चों को समझाना।
  4. एकदो बार मिस किया तो आदत पड़ जाती है मिस करने की। संग है माया के मुरीदों का। शिवबाबा के मुरीद थोड़े हैं। बाकी सब हैं माया के मुरीद। तुम शिवबाबा के मुरीद बनते हो तो माया सहन नहीं कर सकती है, इसलिए सम्भाल बहुत करनी चाहिए। छीछी गन्दे मनुष्यों से बड़ी सम्भाल रखनी है। हंस और बगुले हैं ना। बाबा ने रात को भी शिक्षा दी है, सारा दिन कोई कोई की निंदा करना, परचिंतन करना, इनको कोई दैवीगुण नहीं कहा जाता है। देवतायें ऐसा काम नहीं करते हैं। बाप कहते हैं बाप और वर्से को याद करो फिर भी निंदा करते रहते हैं। निंदा तो जन्मजन्मान्तर करते आये हो। दुविधा अन्दर रहती ही है। यह भी अन्दर मारामारी है। मुफ्त अपना खून करते हैं। बहुतों को घाटा डालते हैं। फलाना ऐसा है, इसमें तुम्हारा क्या जाता है। सबका सहायक एक बाप है। अभी तो श्रीमत पर चलना है। मनुष्य मत तो बड़ा गन्दा बना देती है। एकदो की ग्लानि करते रहते हैं। ग्लानि करना यह है माया का भूत। यह है ही पतित दुनिया। तुम समझते हो कि हम अभी पतित से पावन बन रहे हैं। तो यह बड़ी खराबियाँ हैं। समझाया जाता है आज से अपना कान पकड़ना चाहिएकभी ऐसा कर्म नहीं करेंगे। कुछ भी अगर देखते हो तो बाबा को रिपोर्ट करनी चाहिए। तुम्हारा क्या जाता है! तुम एकदो की ग्लानि क्यों करते हो! बाप सुनता तो सबकुछ है ना। बाप ने कानों और आंखों का लोन लिया है ना। बाप भी देखते हैं तो यह दादा भी देखते हैं। चलन, वातावरण तो कोईकोई का बिल्कुल ही बेकायदे चलता है।
  5. बाप कहते हैं मामेकम् याद करो। देह के सब बन्धन छोड़ अपने को आत्मा समझो। बाप समझाते हैं कि प्रीत रखनी है तो एक से रखो तब बेड़ा पार होगा।
  6. माया कोई को पकड़ लेती है, किसकी निंदा करना, ग्लानि करनायह तो बहुतों की आदत है। और तो कोई काम है ही नहीं। बाप को कभी याद नहीं करेंगे। एकदो की ग्लानि का धन्धा ही करते हैं। यह है माया का पाठ। बाप का पाठ तो बिल्कुल ही सीधा है।
  7. हमारे में कोई खराब ख्याल भी नहीं आना चाहिए। बहुतों को अभी भी खराब ख्यालात आते हैं, फिर इसकी सज़ा भी बहुत कड़ी है। बाप समझाते तो बहुत हैं। अगर कुछ चाल तुम्हारी फिर खराब देखी तो यहाँ रह नहीं सकेंगे। थोड़ी सजा भी देनी होती है, तुम लायक नहीं हो। बाप को ठगते हो। तुम बाप को याद कर नहीं सकेंगे। अवस्था सारी गिर जाती है। अवस्था गिरना ही सजा है। श्रीमत पर चलने से अपना पद भ्रष्ट कर देते हैं। बाप के डायरेक्शन पर चलने से और ही भूत की प्रवेशता होती है। बाबा को तो कभीकभी ख्याल आता है, कहीं बहुत बड़ी कड़ी सजायें अभी ही शुरू हो जाएं। सजायें भी बहुत गुप्त होती हैं ना। कहीं कड़ी पीड़ा आये। बहुत गिरते हैं, सजा खाते हैं। बाप तो सब इशारे में समझाते रहते हैं। अपनी तकदीर को लकीर बहुत लगाते हैं इसलिए बाप खबरदार करते रहते हैं, अभी ग़फलत करने का समय नहीं है, अपने को सुधारो। अन्त घड़ी आने में कोई देरी नहीं है।
  8. बन्धनमुक्त हैं तो पूरापूरा बलिहार जाना है। अपना ममत्व निकाल देना है। कभी भी किसी की निंदा वा परचिंतन नहीं करना है। गन्दे खराब ख्यालातों से स्वयं को मुक्त रखना है। 

14/12/2024

  1. वास्तव में सृष्टि भर में महिमा जो भी है उस एक की ही है और कोई की महिमा है नहीं। अभी देखो ब्रह्मा में अगर बाबा की प्रवेशता नहीं होती तो यह कौड़ी तुल्य है। अभी तुम कौड़ी तुल्य से हीरे तुल्य बनते हो परमपिता परमात्मा द्वारा।
  2. आजकल मनुष्य तो देखो 10-12 बच्चे पैदा करते रहते हैं। कोई कायदा ही नहीं रहा है। सतयुग में जब बच्चा पैदा होता है तो पहले से ही साक्षात्कार होता है। शरीर छोड़ने के पहले भी साक्षात्कार होता है कि हम यह शरीर छोड़ जाकर बच्चा बनूँगा। और एक बच्चा ही होता है, जास्ती नहीं। लॉ मुज़ीब चलता है।
  3. सतयुग में माया रावण होता नहीं। वहाँ थोड़ेही रावण का बुत बनाकर जलायेंगे। बुत (चित्र) कैसेकैसे बनाते हैं। ऐसा कोई दैत्य वा असुर होता नहीं। यह भी नहीं समझते 5 विकार स्त्री के हैं और 5 विकार पुरूष के हैं। उनको मिलाकर 10 शीश वाला रावण बना देते हैं। जैसे विष्णु को भी 4 भुजायें देते हैं। मनुष्य तो यह कॉमन बात भी समझते नहीं हैं। बड़ा रावण बनाकर जलाते हैं।
  4. जब बहुत तमोप्रधान बन जाते हैं तब ही बाबा का प्रोग्राम है आने का। ऐसे नहीं, ईश्वर जो चाहे कर सकते हैं या जब चाहे तब सकते हैं। अगर ऐसी शक्ति होती तो फिर इतनी गाली क्यों मिले? वनवास क्यों मिलें? यह बातें बड़ी गुप्त हैं।
  5. हम बाप से प्यार से बातें करेंगे तो क्यों नहीं सुनेंगे। कनेक्शन है ना। रात को उठकर बाबा से बातें करनी चाहिए। बाबा अपना अनुभव बतलाते रहते हैं। मैं बहुत याद करता हूँ। बाबा की याद में आंसू भी जाते हैं। हम क्या थे, बाबा ने क्या बना दिया हैतत्त्वम्। तुम भी वह बनते हो। योग में रहने वालों को बाबा मदद भी देते हैं। आपेही आंख खुल जायेगी। खटिया हिल जाएगी। बाबा बहुतों को उठाते हैं। बेहद का बाप कितना रहम करते हैं।
  6. रात को याद करने से बहुत मज़ा आयेगा। बाबा अपना अनुभव बतलाते हैं। मैं कैसी बातें करता हूँ, अमृतवेले।
  7. अमृतवेले उठ बाप से बहुत मीठीमीठी बातें करना है, बाप का शुक्रिया मानना है। बाप की मदद का अनुभव करने के लिए मोस्ट बील्वेड बाप को बड़े प्यार से याद करना है।
  8. आपके मन में कभी व्हाई, आई (क्यों, मैं) नहीं सकता। व्हाई के बजाए वाहवाह और आई के बजाए बाबाबाबा शब्द ही आता है। 

15/12/2024

  1. संकल्प बहुत अच्छे करते हो, इतने अच्छे संकल्प करते हैं जो सुनसुन खुश हो जाते हैं। संकल्प करते हो लेकिन बाद में क्या होता है? संकल्प कमजोर क्यों हो जाते हैं? जब चाहते भी हो क्योंकि बाप से प्यार बहुत है, बाप भी जानते हैं कि बापदादा से सभी बच्चों का दिल से प्यार है और प्यार में सभी हाथ उठाते हैं कि 100 परसेन्ट तो क्या लेकिन 100 परसेन्ट से भी ज्यादा प्यार है और बाप भी मानते हैं प्यार में सब पास हैं। लेकिन क्या है? लेकिन है कि नहीं है? लेकिन आता है कि नहीं आता है? पाण्डव, बीचबीच में लेकिन जाता है? ना नहीं करते हैं, तो हाँ है। बापदादा ने मैजारिटी बच्चों की एक बात नोट की है, प्रतिज्ञा कमजोर होने का एक ही कारण है, एक ही शब्द है। सोचो, वह एक शब्द क्या है? टीचर्स बोलो एक शब्द क्या है? पाण्डव बोलो एक शब्द क्या है? याद तो गया ना! एक शब्द है – ‘मैं अभिमान के रूप में भीमैंआता है और कमजोर करने में भीमैंआता है। मैंने जो कहा, मैंने जो किया, मैंने जो समझा, वही राइट है। वही होना चाहिए। यह अभिमान कामैं मैं जब पूरा नहीं होता है तो फिर दिलशिकस्त में भी आता है, मैं कर नहीं सकता, चल नहीं सकता, बहुत मुश्किल है। एक बॉडीकॉन्सेसनेस कामैंबदल जाए, ‘मैंस्वमान भी याद दिलाता है औरमैंदेहअभिमान में भी लाता है।मैंदिलशिकस्त भी करता है औरमैंदिलखुश भी करता है और अभिमान की निशानी जानते हो क्या होती है? कभी भी किसी में भी अगर बॉडी कॉन्सेस का अभिमान अंश मात्र भी है, उसकी निशानी क्या होगी? वह अपना अपमान सहन नहीं कर सकेगा। अभिमान अपमान सहन नहीं करायेगा। जरा भी कोई कहेगा नायह ठीक नहीं है, थोड़ा निर्माण बन जाओ, तो अपमान लगेगा, यह अभिमान की निशानी है।

16/12/2024

  1. आत्मा और शरीर दोनों का बाप अलगअलग है। आत्मा बच्चा भी निराकारी है तो बाप भी निराकारी है। यह भी तुम बच्चों की बुद्धि में है वह निराकार शिवबाबा हमारा बाप है, कितना छोटा है। यह अच्छी रीति याद रखना है। भूलना नहीं चाहिए। हम आत्मा भी बिन्दी मिसल छोटी हैं। ऐसे नहीं, ऊपर जायेंगे तो बड़ी दिखाई पड़ेगी, नीचे छोटी हो जायेगी। नहीं, वह तो है बिन्दी। ऊपर में जायेंगे तो तुमको जैसे देखने में भी नहीं आयेगी। बिन्दी है ना। बिन्दी क्या देखने में आयेगी। इन बातों पर बच्चों को अच्छी रीति विचार भी करना है। हम आत्मा ऊपर से आई हैं, शरीर से पार्ट बजाने। आत्मा घटतीबढ़ती नहीं है। आरगन्स पहले छोटे, पीछे बड़े होते हैं।
  2. तुम मुरलीधर के बच्चे हो, तुम्हें मुरलीधर जरूर बनना है। जब औरों का कल्याण करेंगे तब तो नई दुनिया में ऊंच पद पायेंगे। वह पढ़ाई तो है यहाँ के लिए। यह है भविष्य नई दुनिया के लिए। वहाँ तो सदैव सुख ही सुख है। वहाँ 5 विकार तंग करने वाले होते ही नहीं। यहाँ रावण राज्य अर्थात् पराये राज्य में हम हैं। तुम ही पहले अपने राज्य में थे।
  3. हम आत्मा सो देवता बनेंगे फिर हम सो क्षत्रिय.. डिग्री कम होगी। गाया भी जाता है पूज्य सो पुजारी। सतोप्रधान से फिर तमोप्रधान बनते हैं। ऐसे पुनर्जन्म लेतेलेते नीचे चले जायेंगे।
  4. अभी के श्रेष्ठ संस्कारों के आधार से भविष्य संसार बनता है। अभी के संस्कार भविष्य संसार का फाउण्डेशन हैं। 

17/12/2024

प्रश्नः
बच्चों की किस एक भूल से माया बहुत बलवान बन जाती है?

उत्तर:-
बच्चे भोजन के समय बाबा को भूल जाते हैं, बाबा को खिलाने से माया भोजन खा जाती, जिससे वह बलवान बन जाती है, फिर बच्चों को ही हैरान करती है। यह छोटीसी भूल माया से हार खिला देती है इसलिए बाप की आज्ञा हैबच्चे, याद में खाओ। पक्का प्रण करोतुम्हीं से खाऊं….. जब याद करेंगे तब वह राज़ी होगा।

  1. तुम अच्छी रीति जानते होअब यह रात खत्म होने वाली है, अब भाग्य बदल रहा है। ज्ञान की वर्षा होती रहती है। सेन्सीबुल बच्चे समझते हैं बरोबर दुर्भाग्य से हम सौभाग्यशाली बन रहे हैं अर्थात् स्वर्ग के मालिक बन रहे हैं। नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार हम अपना दुर्भाग्य से सौभाग्य बना रहे हैं। अब रात से दिन हो रहा है। यह तुम बच्चों बिगर कोई को पता नहीं है। बाबा गुप्त है तो उनकी बातें भी गुप्त हैं।
  2. सौभाग्यशाली कहा जाता है सूर्यवंशियों को, 16 कला सम्पूर्ण वही हैं। हम बाप से स्वर्ग के लिए सौभाग्य बना रहे हैं, जो बाप स्वर्ग रचने वाला है। अंग्रेजी जानने वालों को भी तुम समझा सकते हो हम हेविनली गॉड फादर द्वारा हेविन का सौभाग्य बना रहे हैं। हेविन में है सुख, हेल में है दु:ख। गोल्डन एज माना सतयुग सुख, आइरन एज माना कलियुग दु:ख। बिल्कुल सहज बात है। हम अभी पुरूषार्थ कर रहे हैं।
  3. बाबा ने समझाया हैबाहर कहाँ जाते हो तो अपने को बहुत हल्का समझो। हम बाप के बच्चे हैं, हम आत्मा रॉकेट से भी तीखी हैं। ऐसे देहीअभिमानी हो पैदल करेंगे तो कभी थकेंगे नहीं। देह का भान नहीं आयेगा। जैसेकि यह टांगे चलती नहीं। हम उड़ते जा रहे हैं। देहीअभिमानी हो तुम कहाँ भी जाओ। आगे तो मनुष्य तीर्थ आदि पर पैदल ही जाते थे। उस समय मनुष्यों की बुद्धि तमोप्रधान नहीं थी। बहुत श्रद्धा से जाते थे, थकते नहीं थे। बाबा को याद करने से मदद तो मिलेगी ना। भल वह पत्थर की मूर्ति है परन्तु बाबा उस समय अल्पकाल के लिए मनोकामना पूरी कर देते हैं। उस समय रजोप्रधान याद थी तो उससे भी बल मिलता था, थकावट नहीं होती थी। अभी तो बड़े आदमी झट थक जाते हैं। गरीब लोग बहुत तीर्थों पर जाते हैं। साहूकार लोग बड़े भभके से घोड़े आदि पर जायेंगे। वह गरीब तो पैदल चले जायेंगे। भावना का भाड़ा जितना गरीबों को मिलता है उतना साहूकारों को नहीं मिलता। इस समय भी तुम जानते होबाबा गरीब निवाज़ हैं फिर मूँझते क्यों हो? भूल क्यों जाते हो?
  4. जो खिलाता है, पहले तो उनको खिलाना चाहिए। बाबा कहते हमको भोग लगाकर, हमारी याद में खाओ। इसमें बड़ी मेहनत है। बाबा बारबार समझाते हैं, बाबा को याद जरूर करना है।
  5. अभी हम योग लगा रहे हैं, देवता बनने का पुरूषार्थ कर रहे हैं। यही ज्ञान गीता में था। वह मनुष्य से देवता बनाकर गये थे। सतयुग में तो सब देवतायें थे। जरूर उन्हों को संगमयुग पर ही आकर देवता बनाया होगा। वहाँ तो देवता बनने का योग नहीं सिखलायेंगे। सतयुग आदि में देवीदेवता धर्म था और कलियुग अन्त में है आसुरी धर्म। यह बात सिर्फ गीता में ही लिखी हुई है। मनुष्य को देवता बनाने में देरी नहीं लगती है क्योंकि एम ऑब्जेक्ट बता देते हैं। वहाँ सारी दुनिया में एक धर्म होगा। दुनिया तो सारी होगी ना। ऐसे नहीं, चीन, यूरोप नहीं होंगे, होंगे परन्तु वहाँ मनुष्य नहीं होंगे। सिर्फ देवता धर्म वाले होंगे, और धर्म वाले होते नहीं। अभी है कलियुग। हम भगवान द्वारा मनुष्य से देवता बन रहे हैं। बाप कहते हैं तुम 21 जन्म सदा सुखी बनेंगे। इसमें तकलीफ की कोई बात ही नहीं। भक्ति मार्ग में भगवान के पास जाने के लिए कितनी मेहनत की है।
  6. तुम बच्चों को विचार सागर मंथन करना है। कर्म करते दिनरात ऐसे पुरूषार्थ करते रहो। विचार सागर मंथन नहीं करेंगे या बाप को याद नहीं करेंगे, सिर्फ कर्म करते रहेंगे तो रात को भी वही ख्यालात चलते रहेंगे।
  7. आप बच्चों की सेवा है सबको मुक्त बनाने की। तो औरों को मुक्त बनाते स्वयं को बंधन में बांध नहीं देना। जब हद के मेरेमेरे से मुक्त होंगे तब अव्यक्त स्थिति का अनुभव कर सकेंगे। जो बच्चे लौकिक और अलौकिक, कर्म और संबंध दोनों में स्वार्थ भाव से मुक्त हैं वही बाप समान कर्मातीत स्थिति का अनुभव कर सकते हैं। तो चेक करो कहाँ तक कर्मो के बंधन से न्यारे बने हैं? व्यर्थ स्वभावसंस्कार के वश होने से मुक्त 

18/12/2024

  1. सर्वशक्तिमान बाप की याद से शक्ति ले रहे हो। बाप ने समझाया है आत्मा ही 84 का पार्ट बजाती है। आत्मा में ही सतोप्रधानता की ताकत थी, वह फिर दिनप्रतिदिन कम होती जाती है। सतोप्रधान से तमोप्रधान तो बनना ही है। जैसे बैटरी की ताकत कम होती जाती है तो मोटर खड़ी हो जाती है। बैटरी डिस्चार्ज हो जाती है। आत्मा की बैटरी फुल डिस्चार्ज नहीं होती, कुछ कुछ ताकत रहती है। जैसे कोई मरता है तो दीवा जलाते हैं, उसमें घृत डालते ही रहते हैं कि कहाँ ज्योत बुझ जाए। अभी तुम बच्चे समझते हो तुम्हारी आत्मा में पूरी शक्ति थी, अभी नहीं है। अभी फिर तुम सर्वशक्तिमान बाप से अपना बुद्धियोग लगाते हो, अपने में शक्ति भरते हो क्योंकि शक्ति कम हो गई है। शक्ति एकदम खत्म हो जाए तो शरीर ही रहे। आत्मा बाप को याद करतेकरते एकदम प्योर हो जाती है। सतयुग में तुम्हारी बैटरी फुल चार्ज रहती है। फिर धीरेधीरे कला अर्थात् बैटरी कम होती जाती है। कलियुग अन्त तक आत्मा की ताकत एकदम थोड़ी रह जाती है। जैसे ताकत का देवाला निकल जाता है। बाप को याद करने से आत्मा फिर से भरपूर हो जाती है। तो अभी बाप समझाते हैं एक को ही याद करना है। ऊंच ते ऊंच है भगवंत। बाकी सब है रचना। रचना को रचना से हद का वर्सा मिलता है। क्रियेटर तो एक ही बेहद का बाप है। बाकी सब हैं हद के। बेहद के बाप को याद करने से बेहद का वर्सा मिलता है।
  2. ऊंच ते ऊंच है भगवान। फिर है ब्रह्मा, विष्णु, शंकरसूक्ष्मवतन वासी। यह ब्रह्मा, विष्णु, शंकर कहाँ से आये? यह सिर्फ साक्षात्कार होता है। सूक्ष्मवतन बीच का है ना। जहाँ स्थूल शरीर है नहीं। सूक्ष्म शरीर सिर्फ दिव्य दृष्टि से देखा जाता है।
  3. बाकी सूक्ष्मवतन का सिर्फ साक्षात्कार होता है। जो बिल्कुल पवित्र हो जाते हैं उनका साक्षात्कार होता है। यही फिर सतयुग में जाकर स्वर्ग के मालिक बनते हैं।
  4. गीता में भी है देह सहित देह के सब धर्मों को भूल मामेकम् याद करो।
  5. तुम्हारे में जो पक्के हैं वह वहाँ पहले आते हैं, कच्चे वाले पिछाड़ी में ही आयेंगे। मूलवतन में सभी आत्मायें रहती हैं फिर नीचे आती हैं तो वृद्धि होती जाती है। शरीर बिगर आत्मा कैसे पार्ट बजायेगी? यह पार्टधारियों की दुनिया है जो चारों युगों में फिरती रहती है। सतयुग में हम सो देवता थे फिर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनते हैं। अभी यह है पुरूषोत्तम संगमयुग। यह युग अभी ही बनता है जबकि बाप आते हैं। यह अभी बेहद की नॉलेज बेहद का बाप ही देते हैं।
  6. शिवबाबा को अपने शरीर का कोई नाम नहीं है। यह शरीर तो इस दादा का है। बाबा ने थोड़े समय के लिए यह लोन लिया है। बाप कहते हैं हमको तुमसे बात करने के लिए मुख तो चाहिए ना। मुख हो तो बाप बच्चों से बात भी कर सके। फिर बेहद की नॉलेज भी इस मुख से सुनाता हूँ, इसलिए इसको गऊमुख भी कहते हैं।
  7. बाप कहते हैं मेरे सभी बच्चे काम चिता पर चढ़कर कंगाल बन गये हैं। बाप बच्चों को कहते हैं तुम तो स्वर्ग के मालिक थे ना। स्मृति आती है?
  8. सबसे बड़ा कांटा है काम का। नाम ही है पतित दुनिया। सतयुग है 100 परसेन्ट पवित्र दुनिया। मनुष्य ही, पवित्र देवताओं के आगे जाकर नमन करते हैं। भल बहुत भक्त हैं जो वेजीटेरियन हैं, परन्तु ऐसे नहीं कि विकार में नहीं जाते हैं। ऐसे तो बहुत बाल ब्रह्मचारी भी रहते हैं। छोटेपन से कभी छीछी खाना आदि नहीं खाते हैं। संन्यासी भी कहते हैं निर्विकारी बनो। घरबार का संन्यास करते हैं फिर दूसरे जन्म में भी किसी गृहस्थी के पास जन्म ले फिर घरबार छोड़ जंगल में चले जाते हैं। परन्तु क्या पतित से पावन बन सकते हैं? नहीं। पतितपावन बाप की श्रीमत बिगर कोई पतित से पावन बन नहीं सकते। भक्ति है उतरती कला का मार्ग। तो फिर पावन कैसे बनेंगे? पावन बनें तो घर जावें, स्वर्ग में जाएं। सतयुगी देवीदेवतायें कब घरबार छोड़ते हैं क्या? उन्हों का है हद का संन्यास, तुम्हारा है बेहद का संन्यास। सारी दुनिया, मित्रसम्बन्धी आदि सबका संन्यास। तुम्हारे लिए अभी स्वर्ग की स्थापना हो रही है। तुम्हारी बुद्धि स्वर्ग तरफ है। मनुष्य तो नर्क में ही लटके पड़े हैं। तुम बच्चे फिर बाप की याद में लटके पड़े हो।
  9. यह है ज्ञान के छींटे, जो आत्मा के ऊपर डाले जाते हैं। आत्मा पवित्र बनने से शीतल बन जाती है। इस समय सारी दुनिया काम चिता पर चढ़ काली हो पड़ी है। अब कलष मिलता है तुम बच्चों को। कलष से तुम खुद भी शीतल बनते हो और दूसरों को भी बनाते हो। यह भी शीतल बने हैं ना। दोनों इकट्ठे हैं। घरबार छोड़ने की तो बात ही नहीं, लेकिन गऊशाला बनी होगी तो जरूर कोई ने घरबार छोड़ा होगा। किसलिए? ज्ञानचिता पर बैठ शीतल बनने के लिए। जब तुम यहाँ शीतल बनेंगे तब ही तुम देवता बन सकते हो। अभी तुम बच्चों का बुद्धियोग पुराने घर की तरफ नहीं जाना चाहिए। बाप के साथ बुद्धि लटकी रहे क्योंकि तुम सबको बाप के पास घर जाना है। बाप कहते हैंमीठे बच्चे, मैं पण्डा बनकर आया हूँ तुमको ले चलने। यह शिव शक्ति पाण्डव सेना है।
  10. मनुष्य तो समझते हैंपरमात्मा मरे हुए को जिन्दा कर सकते हैं। परन्तु बाप कहते हैंलाडले बच्चे, इस ड्रामा में हर एक को अनादि पार्ट मिला हुआ है। मैं भी क्रियेटर, डायरेक्टर, प्रिन्सीपल एक्टर हूँ। ड्रामा के पार्ट को हम कुछ भी चेंज नहीं कर सकते। मनुष्य समझते हैं पत्तापत्ता भी परमात्मा के हुक्म से हिलता है लेकिन परमात्मा तो खुद कहते हैं मैं भी ड्रामा के अधीन हूँ, इसके बंधन में बांधा हुआ हूँ। ऐसे नहीं कि मेरे हुक्म से पत्ते हिलेंगे। सर्वव्यापी के ज्ञान ने भारतवासियों को बिल्कुल कंगाल बना दिया है। बाप के ज्ञान से भारत फिर सिरताज बनता है।
  11. ज्ञान चिता पर बैठ शीतल अर्थात् पवित्र बनना है। ज्ञान और योग से काम की तपत समाप्त करनी है। बुद्धियोग सदा एक बाप की तरफ लटका रहे।
  12. अटूट निश्चय और फलक से कहोमेरा बाबातो माया समीप भी नहीं सकती।

19/12/2024

  1. बाप को जानना, इसे ज्ञान कहा जाता है। यह भी तुम समझते हो हम पहले अज्ञानी थे। बाप को भी नहीं जानते थे, अपने को भी नहीं जानते थे। अब समझते हो हम आत्मा हैं, कि शरीर। आत्मा को अविनाशी कहा जाता है तो जरूर कोई चीज़ है ना। अविनाशी कोई नाम नहीं। अविनाशी अर्थात् जो विनाश को नहीं पाती। तो जरूर कोई वस्तु है। बच्चों को अच्छी रीति समझाया गया है, मीठेमीठे बच्चों, जिनको बच्चेबच्चे कहते हैं वह आत्मायें अविनाशी हैं। यह आत्माओं का बाप परमपिता परमात्मा बैठ समझाते हैं। यह खेल एक ही बार होता है जबकि बाप आकर बच्चों को अपना परिचय देते हैं। मैं भी पार्टधारी हूँ। कैसे पार्ट बजाता हूँ, यह भी तुम्हारी बुद्धि में है। पुरानी अर्थात् पतित आत्मा को नया पावन बनाते हैं तो फिर शरीर भी तुम्हारे वहाँ गुलगुल होते हैं। यह तो बुद्धि में है ना।
  2. देह सहित देह के सब सम्बन्ध छोड़ हम आत्मा आपको ही याद करेंगे। बाप ने समझाया है अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो।
  3. तुम भाईभाई हो, रहने का स्थान मूलवतन अथवा निर्वाणधाम है, जिसको निराकारी दुनिया भी कहते हैं। सब आत्मायें वहाँ रहती हैं। इस सूर्य चांद से भी उस पार वह तुम्हारा स्वीट साइलेन्स घर है परन्तु वहाँ बैठ तो नहीं जाना है। बैठकर क्या करेंगे। वह तो जैसे जड़ अवस्था हो गई। आत्मा जब पार्ट बजाये तब ही चैतन्य कहलाये। है चैतन्य परन्तु पार्ट बजाये तो जड़ हुई ना। तुम यहाँ खड़े हो जाओ, हाथ पांव चलाओ तो जैसे जड़ हुए। वहाँ तो नैचुरल शान्ति रहती है, आत्मायें जैसे कि जड़ हैं। पार्ट कुछ भी नहीं बजाती। शोभा तो पार्ट में है ना। शान्तिधाम में क्या शोभा होगी? आत्मायें सुखदु: की भासना से परे रहती हैं। कुछ पार्ट ही नहीं बजाती तो वहाँ रहने से क्या फायदा? पहलेपहले सुख का पार्ट बजाना है। हर एक को पहले से ही पार्ट मिला हुआ है। कोई कहते हैं हमको तो मोक्ष चाहिए। बुदबुदा पानी में मिल गया बस, आत्मा जैसेकि है नहीं। कुछ भी पार्ट बजावे तो जैसे जड़ कहेंगे। चैतन्य होते हुए जड़ होकर पड़ा रहे तो क्या फायदा? पार्ट तो सबको बजाना ही है। मुख्य हीरोहीरोइन का पार्ट कहा जाता है। तुम बच्चों को हीरोहीरोइन का टाइटिल मिलता है। आत्मा यहाँ पार्ट बजाती है। पहले सुख का राज्य करती है फिर रावण के दु: के राज्य में जाती है। अब बाप कहते हैं तुम बच्चे सबको यह पैगाम दो। 
  4. यूँ तो महिमा एक बाप की ही करते हैंवाह बाबा, आप इन बच्चों द्वारा हमारा कितना कल्याण करते हो! कोई द्वारा तो होता है ना। बाप करनकरावनहार है, तुम्हारे द्वारा कराते हैं। तुम्हारा कल्याण होता है। तो तुम फिर औरों को कलम लगाते हो। जैसेजैसे जो सर्विस करते हैं, उतना ऊंच पद पाते हैं।
  5. माला बनती है ना। अपने से पूछना चाहिए हम माला में कौनसा नम्बर बनेंगे? 9 रत्न मुख्य हैं ना। बीच में है हीरा बनाने वाला। हीरे को बीच में रखते हैं। माला में ऊपर फूल भी है ना। अन्त में तुमको पता पड़ेगाकौनसे मुख्य दाने बनते हैं, जो डिनायस्टी में आयेंगे। पिछाड़ी में तुमको सब साक्षात्कार होगा जरूर। देखेंगे, कैसे यह सब सजायें खाते हैं। शुरू में दिव्य दृष्टि में तुम सूक्ष्मवतन में देखते थे। यह भी गुप्त है। आत्मा सजायें कहाँ खाती हैयह भी ड्रामा में पार्ट है। गर्भ जेल में सजायें मिलती हैं। जेल में धर्मराज को देखते हैं फिर कहते हैं बाहर निकालो। बीमारियाँ आदि होती हैं, वह भी कर्म का हिसाब है ना।
  6. तुम फुल पार्ट बजाते हो। बाप तुमको ही समझाते हैं, तुम कैसे फुल पार्ट बजाते हो। पढ़ाई अनुसार ऊपर से आते हो पार्ट बजाने। तुम्हारी यह पढ़ाई है ही नई दुनिया के लिए। बाप कहते हैं अनेक बार तुमको पढ़ाता हूँ। यह पढ़ाई अविनाशी हो जाती है। आधाकल्प तुम प्रालब्ध पाते हो। उस विनाशी पढ़ाई से सुख भी अल्पकाल लिए मिलता है। अभी कोई बैरिस्टर बनता है फिर कल्प बाद बैरिस्टर बनेगा। यह भी तुम जानते होजो भी सबका पार्ट है, वही पार्ट कल्पकल्प बजता रहेगा। देवता हो या शूद्र हो, हर एक का पार्ट वही बजता है, जो कल्पकल्प बजता है। उनमें कोई फर्क नहीं हो सकता। हर एक अपना पार्ट बजाते रहते हैं। यह सारा बनाबनाया खेल है। पूछते हैं पुरूषार्थ बड़ा या प्रालब्ध बड़ी? अब पुरूषार्थ बिगर तो प्रालब्ध मिलती नहीं। पुरूषार्थ से प्रालब्ध मिलती है ड्रामा अनुसार। तो सारा बोझ ड्रामा पर जाता है। पुरूषार्थ कोई करते हैं, कोई नहीं करते हैं। आते भी हैं फिर भी पुरूषार्थ नहीं करते तो प्रालब्ध नहीं मिलती। सारी दुनिया में जो भी एक्ट चलती है, सारा बनाबनाया ड्रामा है। आत्मा में पहले से ही पार्ट नूँधा हुआ है आदि से अन्त तक। जैसे तुम्हारी आत्मा में 84 का पार्ट है, हीरा भी बनती है तो कौड़ी जैसा भी बनती है। यह सब बातें तुम अभी सुनते हो।
  7. बाप तो सबकी सद्गति करते हैं। गाते हैं अहो बाबा, तेरी लीलाक्या लीला? कैसी लीला? यह पुरानी दुनिया को बदलने की लीला है। मालूम होना चाहिए ना। मनुष्य ही जानेंगे ना। बाप तुम बच्चों को ही आकर सब बातें समझाते हैं। 

20/12/2024

  1. हम उनके बच्चे हैं बाकी जो भी मित्रसम्बन्धी आदि हैं उन सबको भुलाना पड़ता है। एक बिगर दूसरा कोई याद पड़े। देह भी याद पड़े। देहअभिमान को तोड़ देहीअभिमानी बनना है। देहअभिमान में आने से ही अनेक प्रकार के संकल्पविकल्प उल्टे गिरा देते हैं। याद करने की प्रैक्टिस करते रहेंगे तो सदैव हर्षित मुख खिले हुए फूल रहेंगे। याद को भूलने से फूल मुरझा जाता है। हिम्मते बच्चे मददे बाप। बच्चे ही नहीं बनें तो बाप मदद किस बात की करेंगे? क्योंकि उनका माई बाप फिर है रावण माया, तो उनसे मदद मिलेगी गिरने की। तो यह गीत सारा तुम बच्चों पर बना हुआ हैबचपन के दिन भुला देना….. बाप को याद करना है, याद नहीं किया तो जो आज हंसे कल फिर रोते रहेंगे। याद करने से सदैव हर्षित मुख रहेंगे।
  2. लिखा है कि युद्ध के मैदान में मरेंगे तो स्वर्ग में जायेंगे। परन्तु इसमें हिंसक युद्ध की तो बात ही नहीं है। तुम बच्चों को बाप से शक्ति लेकर माया पर जीत पानी है। तो जरूर बाप को याद करना पड़े तब ही तुम स्वर्ग के मालिक बनेंगे। उन्होंने फिर स्थूल हथियार आदि बैठ दिखाये हैं। ज्ञान कटारी, ज्ञान बाण अक्षर सुना है तो स्थूल रूप में हथियार दे दिये हैं। वास्तव में हैं यह ज्ञान की बातें। बाकी इतनी भुजायें आदि तो कोई को होती नहीं। तो यह है युद्ध का मैदान। योग में रह शक्ति लेकर विकारों पर जीत पानी है। 
  3. बाप कहते हैं मुझे इस साधारण तन का आधार ले आना पड़ता है। प्रकृति का आधार लेने बिगर तुम बच्चों को राजयोग कैसे सिखलाऊं? आत्मा शरीर को छोड़ देती है तो फिर कोई बातचीत हो नहीं सकती। फिर जब शरीर धारण करे, बच्चा थोड़ा बड़ा हो तब बाहर निकले और बुद्धि खुले। छोटे बच्चे तो होते ही पवित्र हैं, उनमें विकार होते नहीं। संन्यासी लोग सीढ़ी चढ़कर फिर नीचे उतरते हैं।
  4. पहले तो निश्चय चाहिए वह बाप है। अगर किसी की तकदीर में नहीं है तो फिर अन्दर में खिटखिट चलती रहेगी। पता नहीं चल सकेगा। बाबा ने समझाया है जब तुम बाप की गोद में आयेंगे तो यह विकारों की बीमारी और ही ज़ोर से बाहर निकलेगी। वैद्य लोग भी कहते हैंबीमारी उथल खायेगी। बाप भी कहते हैं तुम बच्चे बनेंगे तो देहअभिमान की और कामक्रोध आदि की बीमारी बढ़ेगी। नहीं तो परीक्षा कैसे हो? कहाँ भी मूँझो तो पूछते रहो। जब तुम रूसतम बनते हो तब माया खूब पछाड़ती है। तुम बॉक्सिंग में हो। बच्चा नहीं बने हैं तो बॉक्सिंग की बात ही नहीं। वो तो अपने ही संकल्पोंविकल्पों में गोते खाते हैं, कोई मदद ही मिलती है। बाबा समझते हैंमम्माबाबा कहते हैं तो बाप का बच्चा बनना पड़े, फिर वह दिल में पक्का हो जाता है कि यह हमारा रूहानी बाप है। बाकी यह युद्ध का मैदान है, इसमें डरना नहीं है कि पता नहीं तूफान में ठहर सकेंगे वा नहीं? इसको कमजोर कहा जाता है। इसमें शेर बनना पड़े। पुरूषार्थ के लिए अच्छी मत लेनी चाहिए। बाप से पूछना चाहिए। बहुत बच्चे अपनी अवस्था लिखकर भेजते हैं। बाप को ही सर्टिफिकेट देना है। इनसे भल छिपायें परन्तु शिवबाबा से तो छिप सके। बहुत हैं जो छिपाते हैं परन्तु उनसे कुछ भी छिप नहीं सकता। अच्छे का फल अच्छा, बुरे का फल बुरा होता है।
  5. हम आत्माओं को बाबा ने पढ़ाया है फिर हमें दूसरों को पढ़ाना भी है। सच्चे ब्राह्मणों को सच्ची गीता सुनानी है। और कोई शास्त्रों की बात नहीं। मुख्य है गीता। बाकी हैं उनके बाल बच्चे। उनसे कोई का कल्याण नहीं होता।
  6. यहाँ तो ज्ञान का नशा चाहिए। शराब का भी नशा होता है ना। कोई देवाला मारा हो और शराब पिया, जोर से नशा चढ़ा तो समझेगा हम राजाओं का राजा हैं। यहाँ तुम बच्चों को रोज़ ज्ञान अमृत का प्याला मिलता है। धारण करने लिए दिनप्रतिदिन प्वाइंट्स ऐसी मिलती रहती हैं जो बुद्धि का ताला ही खुलता जाता है इसलिए मुरली तो कैसे भी पढ़नी है। जैसे गीता का रोज़ पाठ करते हैं ना। यहाँ भी रोज़ बाप से पढ़ना पड़े। पूछना चाहिए मेरी उन्नति नहीं होती है, क्या कारण है? आकर समझना चाहिए। आयेंगे भी वह जिनको पूरा निश्चय है कि वह हमारा बाप है।
  7. यहाँ तो बहुत अच्छी रीति समझकर जाते हैं। बाहर जाने से ही खाली हो जाते हैं जैसे डिब्बी में ठिकरी रह जाती हैं, रत्न निकल जाते। ज्ञान सुनतेसुनते फिर विकार में गिरा तो खलास। बुद्धि से ज्ञान रत्नों की सफाई हो जाती है। ऐसे भी बहुत लिखते हैंबाबा, मेहनत करतेकरते फिर आज गिर गया। गिरे गोया अपने को और कुल को कलंक लगाया, तकदीर को लकीर लगा दी।
  8. पुरूषार्थ करना है, जीत पानी है। चोट लगती है तो फिर खड़े हो जाओ। घड़ीघड़ी चोट खाते रहेंगे तो हार खाकर बेहोश हो पड़ेंगे। बाप समझाते तो बहुत हैं परन्तु कोई ठहरे भी। माया बड़ी तीखी है। पवित्रता का प्रण कर लिया, अगर फिर गिरते हैं तो चोट बड़े ज़ोर से लग पड़ती है। बेड़ा पार होता ही है पवित्रता से।
  9. ब्रह्मा बाप कर्म करते भी कर्मो के बंधन में नहीं फंसे। सम्बन्ध निभाते भी सम्बन्धों के बंधन में नहीं बंधे। वे धन और साधनों के बंधन से भी मुक्त रहे, जिम्मेवारियां सम्भालते हुए भी जीवनमुक्त स्थिति का अनुभव किया। ऐसे फालो फादर करो। किसी भी पिछले हिसाबकिताब के बंधन में बंधना नहीं। संस्कार, स्वभाव, प्रभाव और दबाव के बंधन में भी नहीं आना तब कहेंगे कर्मबंधन मुक्त, जीवनमुक्त।
  10. तमोगुणी वायुमण्डल में स्वयं को सेफ रखना है तो साक्षी होकर खेल देखने का अभ्यास करो।

22/12/2024

  1. बच्चे कहते वाह बाबा वाह! और बाप कहते वाह बच्चे वाह! बस इसी भाग्य को सिर्फ स्मृति में नहीं रखना है लेकिन सदा स्मृति स्वरूप रहना है। कई बच्चे सोचते बहुत अच्छा हैं लेकिन सोचना स्वरूप नहीं बनना है, स्मृति स्वरूप बनना है। स्मृति स्वरूप सो समर्थ स्वरूप है। सोचना स्वरूप समर्थ स्वरूप नहीं है।
  2. कोईकोई सोचता स्वरूप रहते हैं, स्मृति स्वरूप सदा नहीं रहते। कभी सोचता स्वरूप, कभी स्मृति स्वरूप। जो स्मृति स्वरूप रहते हैं वह निरन्तर नेचुरल स्वरूप रहते हैं। जो सोचता स्वरूप रहते हैं उन्हें मेहनत करनी पड़ती है। यह संगमयुग मेहनत का युग नहीं है, सर्व प्राप्तियों के अनुभवों का युग है।
  3. बापदादा देख रहे थे कि देहभान की स्मृति में रहने में क्या मेहनत कीमैं फलाना हूँ, मैं फलाना हूँयह मेहनत की? नेचुरल रहा ना! नेचर बन गई ना बॉडी कॉन्सेस की! इतनी पक्की नेचर हो गई जो अभी भी कभीकभी कई बच्चों को आत्मअभिमानी बनने के समय बॉडी कॉन्सेसनेस अपने तरफ आकर्षित कर लेती है। सोचते हैं मैं आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ, लेकिन देहभान ऐसा नेचुरल रहा है जो बारबार चाहते, सोचते देहभान में जाते हैं। बापदादा कहते हैं अब मरजीवा जन्म में आत्मअभिमान अर्थात् देहीअभिमानी स्थिति भी ऐसे ही नेचर और नेचुरल हो। मेहनत नहीं करनी पड़ेमैं आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ। जैसे कोई भी बच्चा पैदा होता है और जब उसे थोड़ा समझ में आता है तो उसको परिचय देते हैं आप कौन हो, किसके हो, ऐसे ही जब ब्राह्मण जन्म लिया तो आप ब्राह्मण बच्चों को जन्मते ही क्या परिचय मिला? आप कौन हो? आत्मा का पाठ पक्का कराया गया ना! तो यह पहला परिचय नेचुरल नेचर बन जाए। नेचर नेचुरल और निरन्तर रहती है, याद करना नहीं पड़ता। ऐसे हर ब्राह्मण बच्चे की अब समय प्रमाण देहीअभिमानी स्टेज नेचुरल हो। कई बच्चों की है, सोचना नहीं पड़ता, स्मृति स्वरूप हैं। अब निरन्तर और नेचुरल स्मृति स्वरूप बनना ही है। लास्ट अन्तिम पेपर सभी ब्राह्मणों का यही छोटा सा है – “नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप।
  4. बापदादा कहते हैं सदा देहीअभिमानी, स्मृति स्वरूप भव। जीवनमुक्ति तो प्राप्त होनी ही है लेकिन जीवनमुक्त होने के पहले मेहनत मुक्त बनो। यह स्थिति समय को समीप लायेगी और आपके सर्व विश्व के भाई और बहिनों को दु:, अशान्ति से मुक्त करेगी। आपकी यह स्थिति आत्माओं के लिए मुक्तिधाम का दरवाजा खोलेगी। तो अपने भाई बहिनों के ऊपर रहम नहीं आता! कितना चारों ओर आत्मायें चिल्ला रही हैं तो आपकी मुक्ति सर्व को मुक्ति दिलायेगी। यह चेक करोनेचुरल स्मृति सो समर्थ स्वरूप कहाँ तक बने हैं? समर्थ स्वरूप बनना ही व्यर्थ को सहज समाप्त कर देगा। बारबार मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। अभी इस वर्ष बापदादा बच्चों के स्नेह में कोई भी बच्चे की किसी भी समस्या में मेहनत नहीं देखने चाहते। समस्या समाप्त और समाधान समर्थ स्वरूप। क्या यह हो सकता है? बोलो दादियां हो सकता है? टीचर्स बोलो, हो सकता है? पाण्डव हो सकता है? फिर बहाना नहीं बताना, यह था ना, यह हुआ ना! यह नहीं होता तो नहीं होता! बापदादा बहुत मीठेमीठे खेल देख चुके हैं। कुछ भी हो, हिमालय से भी बड़ा, सौ गुणा समस्या का स्वरूप हो, चाहे तन द्वारा, चाहे मन द्वारा, चाहे व्यक्ति द्वारा, चाहे प्रकृति द्वारा समस्या, परस्थिति आपकी स्वस्थिति के आगे कुछ भी नहीं है और स्वस्थिति का साधन हैस्वमान। नेचुरल रूप में स्वमान हो।
  5. दाता बनकर सहयोग दो। बातें नहीं देखो, सहयोगी बनो। स्वमान में रहो और सम्मान देकर सहयोगी बनो क्योंकि किसी भी आत्मा को अगर आप दिल से सम्मान देते हो, यह बहुतबहुत बड़ा पुण्य है क्योंकि कमजोर आत्मा को उमंगउत्साह में लाया तो कितना बड़ा पुण्य है! गिरे हुए को गिराना नहीं है, गले लगाना है अर्थात् बाहर से गले नहीं लगाना, गले लगाना अर्थात् बाप समान बनाना। सहयोग देना। तो पूछा है ना कि इस वर्ष क्याक्या करना है? बस सम्मान देना और स्वमान में रहना। समर्थ बन समर्थ बनाना। व्यर्थ की बातों में नहीं जाना। जो कमजोर आत्मा है ही कमजोर, उसकी कमजोरी को देखते रहेंगे तो सहयोगी कैसे बनेंगे! सहयोग दो तो दुआयें मिलेंगी। सबसे सहज पुरुषार्थ है, और कुछ भी नहीं कर सकते हो तो सबसे सहज पुरुषार्थ हैदुआयें दो, दुआयें लो। सम्मान दो और महिमा योग्य बनो। सम्मान देने वाला ही सर्व द्वारा माननीय बनते हैं। और जितना अभी माननीय बनेंगे, उतना ही राज्य अधिकारी और पूज्य आत्मा बनेंगे। देते जाओ लेने का नहीं, लो और दो यह तो बिजनेस वालों का काम है। आप तो दाता के बच्चे हो। बाकी बापदादा चारों ओर के बच्चों की सेवा को देख खुश है, सभी ने अच्छी सेवा की है। लेकिन अभी आगे बढ़ना है ना! वाणी द्वारा सभी ने अच्छी सेवा की, साधनों द्वारा भी अच्छी सेवा की रिजल्ट निकाली। अनेक आत्माओं का उल्हना भी समाप्त किया। साथसाथ समय के तीव्रगति की रफ्तार देख बापदादा यही चाहते हैं कि सिर्फ थोड़ी आत्माओं की सेवा नहीं करनी है लेकिन विश्व की सर्व आत्माओं के मुक्तिदाता निमित्त आप हो क्योंकि बाप के साथी हो, तो समय की रफ्तार प्रमाण अभी एक ही समय इकट्ठा तीन सेवायें करनी हैं: एक वाणी, दूसरा स्व शक्तिशाली स्थिति और तीसरा श्रेष्ठ रूहानी वायब्रेशन जहाँ भी सेवा करो वहाँ ऐसा रूहानी वायब्रेशन फैलाओ जो वायब्रेशन के प्रभाव में सहज आकर्षित होते रहें। देखो, अभी लास्ट जन्म में भी आप सबके जड़ चित्र कैसे सेवा कर रहे हैं? क्या वाणी से बोलते? वायब्रेशन ऐसा होता जो भक्तों की भावना का फल सहज मिल जाता है। ऐसे वायब्रेशन शक्तिशाली हों, वायब्रेशन में सर्व शक्तियों की किरणें फैलती हों, वायुमण्डल बदल जाए। वायब्रेशन ऐसी चीज़ है जो दिल में छाप लग जाती है। आप सबको अनुभव है किसी आत्मा के प्रति अगर कोई अच्छा या बुरा वायब्रेशन आपके दिल में बैठ जाता है तो कितना समय चलता है? बहुत समय चलता है ना! निकालने चाहो तो भी नहीं निकलता है, किसका बुरा वायब्रेशन बैठ जाता है तो सहज निकलता है? तो आपका सर्व शक्तियों की किरणों का वायब्रेशन, छाप का काम करेगा। वाणी भूल सकती है, लेकिन वायब्रेशन की छाप सहज नहीं निकलती है। अनुभव है ना! है ना अनुभव
  6. सदा अपने इस स्वमान की सीट पर स्थित रहो कि मैं विजयी रत्न हूँ, मास्टर सर्वशक्तिमान हूँतो जैसी सीट होती है वैसे लक्षण आते हैं। कोई भी परिस्थिति सामने आये तो सेकण्ड में अपने इस सीट पर सेट हो जाओ। सीट वाले का ही ऑर्डर माना जाता है। सीट पर रहो तो विजयी बन जायेंगे। संगमयुग है ही सदा विजयी बनने का युग, यह युग को वरदान है, तो वरदानी बन विजयी बनो।

23/12/2024

  1. मनुष्य ही पुकारते हैंहे पतितों को पावन बनाने वाले आओ। देवीदेवतायें ऐसे कभी नहीं कहेंगे। पतितपावन बाप पतितों के बुलावे पर आते हैं। आत्माओं को पावन बनाकर फिर नई पावन दुनिया भी स्थापन करते हैं। आत्मा ही बाप को पुकारती है। शरीर तो नहीं पुकारेगा। पारलौकिक बाप जो सदा पावन है, उसे ही सब याद करते हैं। यह है पुरानी दुनिया। बाप नई पावन दुनिया बनाते हैं।
  2. तुम बच्चे जानते होअभी हम उस बेहद के बाप के बने हैं। बाप बच्चों को गुप्त ज्ञान देते हैं। यह ज्ञान मनुष्यों के पास कहाँ मिल सके। आत्मा भी गुप्त है, गुप्त ज्ञान आत्मा धारण करती है। आत्मा ही मुख द्वारा ज्ञान सुनाती है। आत्मा ही गुप्त बाप को गुप्त याद करती है। बाप कहते हैं बच्चों, देहअभिमानी नहीं बनो। देहअभिमान से आत्मा की ताकत खत्म होती है। आत्मअभिमानी बनने से आत्मा में ताकत जमा होती है। बाप कहते हैं ड्रामा के राज़ को अच्छी रीति समझकर चलना है। इस अविनाशी ड्रामा के राज़ को जो ठीक रीति जानते हैं, वह सदा हर्षित रहते हैं।
  3. विचार किया जाता हैइतनी छोटीसी आत्मा कितना बड़ा पार्ट शरीर से बजाती है, फिर शरीर से आत्मा निकल जाती है तो शरीर का देखो क्या हाल हो जाता है। आत्मा ही पार्ट बजाती है। कितनी बड़ी विचार की बात है। सारी दुनिया के एक्टर्स (आत्मायें) अपनी एक्ट अनुसार ही पार्ट बजाते हैं। कुछ भी फर्क नहीं पड़ सकता। हूबहू सारी एक्ट फिर से रिपीट हो रही है। इसमें संशय कर नहीं सकते। हर एक की बुद्धि में फर्क पड़ सकता है क्योंकि आत्मा तो मनबुद्धि सहित है ना।
  4. अविनाशी ड्रामा के राज़ को यथार्थ समझ हर्षित रहना है। इस ड्रामा में हर एक एक्टर का पार्ट अपनाअपना है, जो हूबहू बजा रहे हैं।
  5. इस संसार को अलौकिक खेल और परिस्थतियों को अलौकिक खिलौने के समान समझकर चलो।

24/12/2024

  1. देहअभिमान की बीमारी बहुत कड़ी है। बाबा मुरली में समझाते हैं, कइयों को तो ज्ञान का उल्टा नशा चढ़ जाता है, अहंकार जाता है फिर याद भी नहीं करते, पत्र भी नहीं लिखते। तो बाप भी याद कैसे करेंगे? याद से याद मिलती है। अभी तुम बच्चे बाप को यथार्थ जानकर याद करते हो, दिल से महिमा करते हो। कई बच्चे बाप को साधारण समझते हैं इसलिए याद नहीं करते। 
  2. आत्मा को सर्व का सद्गति दाता नहीं कहेंगे। परमात्मा की कभी दुर्गति होती है क्या? आत्मा की ही दुर्गति और आत्मा की ही सद्गति होती है। यह सभी बातें विचार सागर मंथन करने की हैं। नहीं तो दूसरों को कैसे समझायेंगे। परन्तु माया ऐसी दुस्तर है जो बच्चों की बुद्धि आगे नहीं बढ़ने देती। दिन भर झरमुई झगमुई में ही टाइम वेस्ट कर देते हैं। बाप से पिछाड़ने के लिए माया कितना फोर्स करती है। फिर कई बच्चे तो टूट पड़ते हैं। बाप को याद करने से अवस्था अचलअडोल नहीं बन पाती। बाप घड़ीघड़ी खड़ा करते, माया गिरा देती। बाप कहते कभी हार नहीं खानी है। कल्पकल्प ऐसा होता है, कोई नई बात नहीं। मायाजीत अन्त में बन ही जायेंगे। रावण राज्य खलास तो होना ही है। फिर हम नई दुनिया में राज्य करेंगे। कल्पकल्प माया जीत बने हैं। अनगिनत बार नई दुनिया में राज्य किया है। बाप कहते हैं बुद्धि को सदा बिजी रखो तो सदा सेफ रहेंगे। इसको ही स्वदर्शन चक्रधारी कहा जाता है। 
  3. यह काम विकार ही मनुष्य को पतित बनाता है, उनको जीतने से तुम जगतजीत बनेंगे। परन्तु काम विकार उन्हों की जैसे पूँजी है, इसलिए वह अक्षर नहीं बोलते हैं। सिर्फ कहते हैं मन को वश में करो। लेकिन मन अमन तब हो जब शरीर में नहीं हो। बाकी मन अमन तो कभी होता ही नहीं। देह मिलती है कर्म करने के लिए तो फिर कर्मातीत अवस्था में कैसे रहेंगे? कर्मातीत अवस्था कहा जाता है मुर्दे को। जीते जी मुर्दा अथवा शरीर से डिटैच। बाप तुमको शरीर से न्यारा बनने की पढ़ाई पढ़ाते हैं। शरीर से आत्मा अलग है। आत्मा परमधाम की रहने वाली है। आत्मा शरीर में आती है तो उसे मनुष्य कहा जाता है। शरीर मिलता ही है कर्म करने के लिए। एक शरीर छोड़ फिर दूसरा शरीर कर्म करने लिए लेना है। शान्ति तो तब हो जब शरीर में नहीं है। मूलवतन में कर्म होता नहीं।
  4. बाप और सृष्टि चक्र को जानना, इसको ही नॉलेज कहा जाता है। सूक्ष्मवतन में सफेद पोशधारी, सजे सजाये, नागबलाए पहनने वाले शंकर आदि ही होते हैं। बाकी ब्रह्मा और विष्णु का राज़ बाप समझाते रहते हैं। ब्रह्मा यहाँ है। विष्णु के दो रूप भी यहाँ हैं। वह सिर्फ साक्षात्कार का पार्ट ड्रामा में है, जो दिव्य दृष्टि से देखा जाता है। क्रिमिनल आंखों से पवित्र चीज़ दिखाई पड़े। 
  5. अपने आपको सदा सेफ रखने के लिए बुद्धि को विचार सागर मंथन में बिज़ी रखना है। स्वदर्शन चक्रधारी बनकर रहना है। झरमुई झगमुई में अपना समय नहीं गँवाना है। 

25/12/2024

  1. बाप सारे झाड़ की नॉलेज सुनाते हैं। तुम्हें फिर से स्मृति दिलाते हैं। तुम सो देवता थे फिर वैश्य, शूद्र बने। अभी तुम ब्राह्मण बने हो। यह अक्षर कभी कोई संन्यासी उदासी, विद्वान द्वारा सुने हैं? यह हम सो का अर्थ बाप कितना सहज करके सुनाते हैं। हम सो माना मैं आत्मा, हम आत्मा ऐसेऐसे चक्र लगाते हैं। वह तो कह देते हम आत्मा सो परमात्मा, परमात्मा सो हम आत्मा। एक भी नहीं जिसको हम सो के अर्थ का पता हो। बाप कहते हैं यह जो हम सो का मंत्र है, सदा बुद्धि में याद रहना चाहिए। नहीं तो चक्रवर्ती राजा कैसे बनेंगे। 
  2. एक बाप बीजरूप को ही ज्ञान का सागर कहा जाता है। वह इस सृष्टि चक्र में नहीं आते हैं। ऐसे नहीं कि हम आत्मा सो परमात्मा बन जाते हैं। नहीं, बाप आपसमान नॉलेजफुल बनाते हैं। आप समान गॉड नहीं बनाते, इन बातों को अच्छी रीति समझना चाहिए तब ही बुद्धि में चक्र चल सकता है। तुम बुद्धि से समझ सकते हो कि हम कैसे 84 के चक्र में आते हैं। इसमें समय, वर्ण, वंशावली सब जाते हैं। इस नॉलेज से ही ऊंच ते ऊंच बनते हैं। 
  3. कदमकदम पर सावधानी रखनी होती है। मन्सावाचाकर्मणा बहुत शुद्ध रहना है। अन्दर कोई भी गन्दगी नहीं होनी चाहिए। बाप को घड़ीघड़ी बच्चे भूल जाते हैं। बाप को भूलने से बाप की शिक्षा भी भूल जाते हैं। हम स्टूडेन्ट हैं, यह भी भूल जाते हैं। है बहुत सहज। बाप की याद में ही करामात है। ऐसी करामात और कोई भी बाप सिखला सके। इस करामात से ही तमोप्रधान से सतोप्रधान बनते हैं।
  4. सबसे बड़े ज्ञानी वह हैं जो आत्मअभिमानी रहते हैं।

26/12/2024

प्रश्नः
दुनिया में कौनसा ज्ञान होते हुए भी अज्ञान अन्धियारा है?

उत्तर:-
माया का ज्ञान, जिससे विनाश होता है। मून तक जाते हैं, यह ज्ञान बहुत है लेकिन नई दुनिया और पुरानी दुनिया का ज्ञान किसी के पास नहीं है। सब अज्ञान अन्धियारे में हैं, सभी ज्ञान नेत्र से अंधे हैं। तुम्हें अभी ज्ञान का तीसरा नेत्र मिलता है। तुम नॉलेजफुल बच्चे जानते हो उन्हों की ब्रेन में विनाश के ख्यालात हैं, तुम्हारी बुद्धि में स्थापना के ख्यालात हैं।

  1. बाप इस शरीर द्वारा समझाते हैं, इनको जीव कहा जाता है। इनमें आत्मा भी है और मैं भी इसमें आकर बैठता हूँ, यह तो पहलेपहले पक्का होना चाहिए। इनको दादा कहा जाता है। यह निश्चय बच्चों को बहुत पक्का होना चाहिए। इस निश्चय में ही रमण करना है। बरोबर बाबा ने जिसमें पधरामणी की है, वह बाप खुद कहते हैंमैं इनके बहुत जन्मों के अन्त में आता हूँ।
  2. मनुष्य से देवता बनने का अर्थ भी समझना है। विकारी मनुष्य से निर्विकारी देवता बनाने बाप आते हैं। सतयुग में मनुष्य ही रहते हैं परन्तु दैवी गुण वाले। अभी कलियुग में हैं सभी आसुरी गुण वाले। है सारी मनुष्य सृष्टि। परन्तु यह है ईश्वरीय बुद्धि और वह है आसुरी बुद्धि। यहाँ है ज्ञान, वहाँ है भक्ति। ज्ञान और भक्ति अलगअलग है। भक्ति के पुस्तक कितने ढेर के ढेर हैं। ज्ञान का पुस्तक एक है। एक ज्ञान सागर की पुस्तक एक ही होना चाहिए। जो भी धर्म स्थापन करते हैं, उनका पुस्तक भी एक ही होता है, जिसको रिलीजस बुक कहा जाता है। पहलीपहली रिलीजस बुक है गीता। पहलापहला आदि सनातन देवीदेवता धर्म है, कि हिन्दू धर्म। पहलीपहली रिलीजस बुक है गीता। पहलापहला आदि सनातन देवीदेवता धर्म है, कि हिन्दू धर्म। मनुष्य समझते हैं गीता से हिन्दू धर्म स्थापन हुआ। गीता का ज्ञान श्रीकृष्ण ने दिया। कब दिया? परम्परा से। कोई शास्त्र में शिव भगवानुवाच तो है नहीं। तुम अभी समझते हो इस गीता ज्ञान द्वारा ही मनुष्य से देवता बने हैं, जो बाप अभी हमें दे रहे हैं।
  3. ब्रह्मा, विष्णु, शंकर इन तीनों का बाप कोई होगा ना। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर सूक्ष्मवतन में देवतायें हैं। उनके ऊपर है शिव। बच्चे जानते हैं शिवबाबा के जो बच्चे आत्मायें हैं उन्हों ने शरीर धारण किया है, वह तो सदैव निराकार परमपिता परमात्मा है। आत्मा ही शरीर द्वारा कहती है परमपिता। कितनी सहज बात है! इनको कहा जाता है अल्फ और बे की पढ़ाई। कौन पढ़ाते हैं? गीता का ज्ञान किसने सुनाया? श्रीकृष्ण को तो भगवान कहा नहीं जाता। वह तो देहधारी है। ताजधारी है। शिव तो है निराकार। उन पर तो कोई ताज आदि है नहीं। वही ज्ञान का सागर है। बाप ही बीजरूप चैतन्य है। तुम भी चैतन्य हो। सभी झाड़ों के आदि, मध्य, अन्त को तुम जानते हो। भल तुम माली नहीं हो परन्तु समझ सकते हो कि बीज कैसे डालते हैं, उनसे झाड़ कैसे निकलता है। वह है जड़, यह है चैतन्य। आत्मा को चैतन्य कहा जाता है। तुम्हारी आत्मा में ही ज्ञान है, और किसी आत्मा में ज्ञान हो नहीं सकता। तो बाप चैतन्य मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है। यह चैतन्य क्रियेशन है। वह सभी हैं जड़ बीज। ऐसे नहीं कि जड़ बीज में कोई ज्ञान है। यह तो है चैतन्य बीजरूप, उनमें सारे सृष्टि की नॉलेज है। झाड़ की उत्पत्ति, पालना, विनाश का सारा ज्ञान उनमें है। फिर नया झाड़ कैसे खड़ा होता है, वह है गुप्त। तुमको ज्ञान भी गुप्त मिलता है। बाप भी गुप्त आये हैं। तुम जानते हो यह कलम लग रहा है। अभी तो सभी पतित बन गये हैं। अच्छा, बीज से पहलापहला पत्ता निकला, वह कौन था? सतयुग का पहला पत्ता तो श्रीकृष्ण को ही कहेंगे। लक्ष्मीनारायण को नहीं कहेंगे। नया पत्ता छोटा होता है। पीछे बड़ा होता है। तो इस बीज की कितनी महिमा है। यह तो चैतन्य है ना। भल दूसरे भी निकलते हैं, धीरेधीरे उन्हों की महिमा कम होती जाती है। अभी तुम देवता बनते हो। तो मूल बात है हमको दैवी गुण धारण करने हैं। इन जैसा बनना है। चित्र भी हैं। यह चित्र होते तो बुद्धि में ज्ञान कैसे आता। यह चित्र बहुत काम में आते हैं। भक्ति मार्ग में इन चित्रों की पूजा होती है और ज्ञान मार्ग में तुमको इन्हों से ज्ञान मिलता है कि इन जैसा बनना है। भक्ति मार्ग में ऐसा नहीं समझेंगे कि हमको ऐसा बनना है। भक्ति मार्ग में मन्दिर आदि कितने बनवाते हैं, सबसे जास्ती मन्दिर किसके होंगे? जरूर शिवबाबा के ही होंगे। फिर उनके बाद क्रियेशन के होंगे। पहली क्रियेशन यह लक्ष्मीनारायण हैं, तो शिव के बाद इनकी पूजा जास्ती होगी। मातायें जो ज्ञान देती हैं उनकी पूजा नहीं। वह तो पढ़ती हैं। तुम्हारी पूजा अभी नहीं होती है क्योंकि तुम अभी पढ़ रहे हो। जब तुम पढ़कर, अनपढ़ बनेंगे फिर पूजा होगी। अभी तुम देवीदेवता बनते हो। सतयुग में बाप थोड़ेही पढ़ाने जायेगा। वहाँ ऐसी पढ़ाई थोड़ेही होगी। यह पढ़ाई पतितों को पावन बनाने की है। तुम जानते हो हमको जो ऐसा बनाते हैं उनकी पूजा होगी फिर हमारी भी पूजा नम्बरवार होगी। फिर गिरतेगिरते 5 तत्वों की भी पूजा करने लग पड़ते हैं। 5 तत्वों की पूजा माना पतित शरीर की पूजा। यह बुद्धि में ज्ञान है कि इन लक्ष्मीनारायण का सारे सृष्टि पर राज्य था। इन देवीदेवताओं ने राज्य कैसे और कब पाया? यह किसको पता नहीं है। लाखों वर्ष कह देते हैं। लाखों वर्ष की बात तो किसकी बुद्धि में बैठ सके इसलिए कह देते यह परम्परा से चला आता है। अभी तुम जानते हो देवीदेवता धर्म वाले और धर्मों में कनवर्ट हो गये हैं, जो भारत में हैं वह अपने को हिन्दू कह देते हैं क्योंकि पतित होने कारण देवीदेवता कहना शोभता नहीं। परन्तु मनुष्यों में ज्ञान कहाँ। देवीदेवताओं से भी ऊंचा टाइटल अपने पर रखवाते हैं। पावन देवीदेवताओं की पूजा करते माथा झुकाते हैं, परन्तु अपने को पतित समझते थोड़ेही हैं।
  4. मनुष्य समझते हैं यह शास्त्र आदि परम्परा से चले आये हैं, इसको कहा जाता है अज्ञान अन्धियारा। अभी तुम बच्चों को बाप पढ़ाते हैं जिससे तुम सोझरे में आये हो। सतयुग में है पवित्र प्रवृत्ति मार्ग। कलियुग में सभी अपवित्र प्रवृत्ति वाले हैं। यह भी ड्रामा है। बाद में है निवृत्ति मार्ग, जिसको संन्यास धर्म कहते हैं, जंगल में जाकर रहते हैं। वह है हद का संन्यास। रहते तो इस पुरानी दुनिया में हैं। अभी तुम जाते हो नई दुनिया में। तुम्हें तो बाप से ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है तो तुम कितने नॉलेजफुल बनते हो। इससे जास्ती नॉलेज होती ही नहीं। वह तो है माया की नॉलेज, जिससे विनाश होता है। वो लोग मून (चांद) पर जाकर खोज करते हैं। तुम्हारे लिए कोई नई बात नहीं। यह सभी माया का पाम्प है। बहुत शो करते हैं। अति डीपनेस में जाते हैं कि कुछ कमाल करके दिखायें। बहुत कमाल करने से फिर नुकसान हो जाता है। उन्हों के ब्रेन में विनाश के ही ख्यालात आते हैं। क्याक्या बनाते रहते हैं। बनाने वाले जानते हैं, इससे ही विनाश होगा। ट्रायल भी करते रहते हैं। कहते भी हैं दो बिल्ले लड़े माखन तीसरा खा गया। कहानी तो छोटी है परन्तु खेल कितना बड़ा है। नाम इन्हों का ही बाला है। इन द्वारा ही विनाश की नूँध है। कोई तो निमित्त बनता है ना।
  5. बाबा तुम बच्चों को कितना सहज करके समझाते हैं, मुझे याद करो तो तुम सोने का बर्तन बन जायेंगे तो धारणा भी अच्छी होगी। याद की यात्रा से ही पाप कटेंगे। मुरली नहीं सुनते तो ज्ञान रफूचक्कर हो जाता है। बाप तो रहमदिल होने के नाते उठने की ही युक्ति बतलाते हैं। अन्त तक भी सिखलाते ही रहेंगे। अच्छा, आज भोग है, भोग लगाकर जल्दी वापस जाना है। बाकी वैकुण्ठ में जाकर देवीदेवताओं आदि का साक्षात्कार करना यह सब फालतू है। इसमें बहुत महीन बुद्धि चाहिए। बाप इस रथ द्वारा कहते हैं मुझे याद करो, मैं ही पतितपावन तुम्हारा बाप हूँ। तुम्हीं से खाऊं….. तुम्हीं से बैठूँ…. यह यहाँ के लिए है। ऊपर में कैसे होगा।
  6. जैसे स्थूल पोजीशन वाले अपनी पोजीशन को कभी भूलते नहीं। ऐसे आपका पोजीशन हैमास्टर सर्वशक्तिमान, इसे सदा स्मृति में रखो और रोज़ अमृतवेले इस स्मृति को इमर्ज करो तो निरन्तर योगी बन जायेंगे और सारा दिन उसका सहयोग मिलता रहेगा। फिर मास्टर सर्वशक्तिमान के आगे माया नहीं सकती, जब आप अपनी स्मृति की ऊंची स्टेज पर रहेंगे तो माया चींटी को जीतना सहज हो जायेगा।

27/12/2024

  1. ब्रह्मा भी है तो शिवबाबा भी है। अगर यह ब्रह्मा नहीं होता तो शिवबाबा भी नहीं होता। अगर कोई कहे कि हम तो शिवबाबा को ही याद करते हैं, ब्रह्मा को नहीं, परन्तु शिवबाबा बोलेंगे कैसे?
  2. जानते हो बाप ज्ञान का सागर, नॉलेजफुल है तो कहाँ से नॉलेज सुनाते हैं? ब्रह्मा के तन से सुनाते हैं। कई कहते हैं हम ब्रह्मा को नहीं मानते, परन्तु शिवबाबा कहते हैं मैं इस मुख द्वारा ही तुम्हें कहता हूँ, मुझे याद करो। यह समझ की बात है ना। ब्रह्मा तो खुद कहते हैंशिवबाबा को याद करो। यह कहाँ कहते मुझे याद करो? इनके द्वारा शिवबाबा कहते हैं मुझे याद करो। यह मंत्र मैं इनके मुख से देता हूँ। ब्रह्मा नहीं होता तो मैं मंत्र कैसे देता? ब्रह्मा नहीं होता तो तुम शिवबाबा से कैसे मिलते? कैसे मेरे पास बैठते? अच्छेअच्छे महारथियों को भी ऐसेऐसे ख्यालात जाते हैं जो माया मेरे से मुख मोड़ देती है। कहते हैं हम ब्रह्मा को नहीं मानते तो उनकी क्या गति होगी? माया कितनी बड़ी जबरदस्त है जो एकदम मुँह ही फिरा देती है। अभी तुम्हारा मुँह शिवबाबा ने सामने किया है। तुम सम्मुख बैठे हो। फिर जो ऐसे समझते हैं ब्रह्मा तो कुछ नहीं, तो उनकी क्या गति होगी? दुर्गति को पा लेते हैं। मनुष्य तो पुकारते हैं गॉड फादर! फिर गॉड फादर सुनता है क्या? कहते हैं लिबरेटर आओ। क्या वहाँ से ही लिबरेट करेंगे? कल्पकल्प के पुरूषोत्तम संगमयुग पर ही बाप आते हैं। जिसमें आते हैं उनको ही उड़ा दें तो क्या कहेंगे? माया में इतना बल है जो नम्बरवन वर्थ नाट पेनी बना देती है। ऐसेऐसे भी कोईकोई सेन्टर्स पर हैं, तब तो बाप कहते हैं खबरदार रहना। भल बाबा के सुनाये हुए ज्ञान को दूसरों को सुनाते भी रहते हैं परन्तु जैसे पण्डित मिसल। जैसे बाबा पण्डित की कहानी सुनाते हैंइस समय तुम बाप की याद से विषय सागर को पार कर क्षीरसागर में जाते हो ना! भक्ति मार्ग में ढेर कथायें बना दी हैं। पण्डित औरों को कहता था राम नाम कहने से पार हो जायेंगे, लेकिन खुद बिल्कुल चट खाते में था। खुद विकारों में जाते रहना और दूसरों को कहना निर्विकारी बनो। उनका क्या असर होगा? यहाँ भी कहाँकहाँ सुनाने वालों से सुनने वाले तीखे चले जाते हैं। जो बहुतों की सेवा करते हैं वह जरूर सबको प्यारे लगते हैं। पण्डित झूठा निकल पड़ा तो उसे कौन प्यार करेगा? फिर प्यार उन पर चला जायेगा जो प्रैक्टिकल में याद करते हैं। अच्छेअच्छे महारथियों को भी माया हप कर जाती है।
  3. बाबा समझाते हैंअभी तो कर्मातीत अवस्था नहीं बनी है, जब तक लड़ाई की तैयारी हो। एक तरफ लड़ाई की तैयारी होगी, दूसरे तरफ कर्मातीत अवस्था होगी। पूरा कनेक्शन है फिर लड़ाई पूरी हो जाती है, ट्रांसफर हो जायेंगे। पहले रूद्र माला बनती है।
  4. अभी तो कर्मातीत अवस्था हो सके। कड़ीकड़ी भूलें होना भी सम्भव है, महारथियों से भी होती हैं। बातचीत, चालचलन आदि सभी प्रसिद्ध हो जाती है। अभी तो दैवी चलन बनानी है। देवता, सर्वगुण सम्पन्न हैं ना। अभी तुमको ऐसा बनना है। परन्तु माया किसको भी नहीं छोड़ती। छुईमुई बना देती है। 5 सीढ़ी हैं ना। देहअभिमान आने से ऊपर से एकदम गिरते हैं। गिरा और मरा। आजकल अपने को मारने लिए कैसेकैसे उपाय करते हैं! 20 मंजिल से गिरकर एकदम खत्म हो जाते हैं। ऐसे भी हो कि हॉस्पिटल में पड़े रहें, दु: भोगें। फिर कोई अपने को आग लगा देते हैं, किसने बचा लिया तो कितना दु: भोगते हैं। जल जायें तो आत्मा भाग जाए इसलिए जीवघात करते हैं। समझते हैं जीवघात करने से दु: से छूट जायेंगे। जोश आता है तो बस।
  5. शान्तिशान्ति करते रहते हैं। शान्ति तो शान्तिधाम में होगी। परन्तु इस दुनिया में शान्ति कैसे हो? जब तक कि इतने ढेर मनुष्य हैं। सतयुग में तो सुखशान्ति थी। अभी तो कलियुग में अनेक धर्म हैं। वह जब खत्म हों, एक धर्म की स्थापना हो, तब तो सुखशान्ति हो।
  6. बाप समझाते हैं तुम बच्चे सुखशान्ति के टॉवर हो। तुम बहुत रॉयल हो। तुमसे रॉयल इस समय कोई होता नहीं। बेहद के बाप के बच्चे हो तो कितना मीठा होकर चलना चाहिए। किसको दु: नहीं देना है। नहीं तो वह अन्त में याद आयेगा। फिर सजायें खानी होंगी। बाप कहते हैं अभी तो घर चलना है। सूक्ष्मवतन में बच्चों को ब्रह्मा का साक्षात्कार होता है इसलिए तुम भी ऐसे सूक्ष्मवतनवासी बनो। मूवी की प्रैक्टिस करनी है। बहुत कम बोलना है, मीठा बोलना है। ऐसा पुरुषार्थ करतेकरते तुम शान्ति के टॉवर बन जायेंगे। तुमको सिखलाने वाला बाप है। फिर तुम्हें औरों को सिखलाना है। भक्ति मार्ग टॉकी मार्ग है। अभी तुमको बनना है साइलेन्स।
  7. स्वयं की दैवी चलन बनानी है। छुईमुई नहीं बनना है। लड़ाई के पहले कर्मातीत अवस्था तक पहुँचना है। निर्विकारी बन निर्विकारी बनाने की सेवा करनी है।
  8. जब स्नेह के सागर और स्नेह सम्पन्न नदियों का मेल होता है तो नदी भी बाप समान मास्टर स्नेह का सागर बन जाती है। इसलिए विश्व की आत्मायें स्नेह के अनुभव से स्वत: समीप आती हैं। पवित्र प्यार वा ईश्वरीय परिवार की पालना, चुम्बक के समान स्वत: ही हर एक को समीप ले आता है। यह ईश्वरीय स्नेह सबको सहयोगी बनाए आगे बढ़ने के सूत्र में बांध देता है।

28/12/2024

प्रश्नः
ईश्वरीय मत, दैवी मत और मनुष्य मत में कौनसा मुख्य अन्तर है?

उत्तर:-
ईश्वरीय मत से तुम बच्चे वापिस अपने घर जाते हो फिर नई दुनिया में ऊंच पद पाते हो। दैवी मत से तुम सदा सुखी रहते हो क्योंकि वह भी बाप द्वारा इस समय की मिली हुई मत है लेकिन फिर भी उतरते तो नीचे ही हो। मनुष्य मत दु:खी बनाती है। ईश्वरीय मत पर चलने के लिए पहलेपहले पढ़ाने वाले बाप पर पूरा निश्चय चाहिए।

  1. ओम् शान्ति। बाप ने अर्थ तो समझाया है, मैं आत्मा शान्त स्वरूप हूँ। जब ओम् शान्ति कहा जाता है तो आत्मा को अपना घर याद आता है। मैं आत्मा शान्त स्वरूप हूँ। फिर जब आरगन्स मिलते हैं तब टॉकी बनती है। पहले छोटे आरगन्स होते हैं फिर बड़े होते हैं। अब परमपिता परमात्मा तो है निराकार। उनको भी रथ चाहिए टॉकी बनने के लिए। जैसे तुम आत्मायें परमधाम की रहने वाली हो, यहाँ आकर टॉकी बनती हो। बाप भी कहते हैं मैं तुमको नॉलेज देने के लिए टॉकी बना हूँ। बाप अपना और रचना के आदि, मध्य, अन्त का परिचय देते हैं। यह है रूहानी पढ़ाई, वह होती है जिस्मानी पढ़ाई। वह अपने को शरीर समझते हैं। ऐसे कोई नहीं कहेंगे कि हम आत्मा इन कानों द्वारा सुनती हैं। अभी तुम बच्चे समझते हो बाप है पतितपावन, वही आकर समझाते हैंमैं कैसे आता हूँ। तुम्हारे मिसल मैं गर्भ में नहीं आता हूँ। मैं इनमें प्रवेश करता हूँ। फिर कोई प्रश्न ही नहीं उठता। यह रथ है। इनको माता भी कहा जाता है।
  2. बाप ही ज्ञान का सागर है। वही कहते हैं मैं इस मनुष्य सृष्टि का चैतन्य बीज हूँ। मैं आदि, मध्य, अन्त को जानता हूँ। मैं सत हूँ, मैं चैतन्य बीजरूप हूँ, इस सृष्टि रूपी झाड़ की मेरे में नॉलेज है। इसको सृष्टि चक्र अथवा ड्रामा कहा जाता है। यह फिरता ही रहता है। वह हद का ड्रामा दो घण्टे चलता है। इसकी रील 5 हजार वर्ष की है। जोजो टाइम पास होता जाता है, 5 हजार वर्ष से कम होता जाता है।
  3. मनुष्यों की अनेक मत हैं। कोई क्या कहेंगे, कोई क्या कहेंगे। अभी तुमने अनेक मनुष्य मत को भी समझा है और एक ईश्वरीय मत को भी समझा है। कितना फर्क है। ईश्वरीय मत से तुमको फिर से नई दुनिया में जाना पड़े और कोई की भी मत से, दैवी मत वा मनुष्य मत से वापिस नहीं जा सकते। दैवी मत से तुम उतरते ही हो क्योंकि कला कम होती जाती है। आसुरी मत से भी उतरते हो। परन्तु दैवी मत में सुख है, आसुरी मत में दु: है। दैवी मत भी इस समय बाप की दी हुई है इसलिए तुम सुखी रहते हो।
  4. फिर पुरूषार्थ करो। ऐसे नहीं कहो बाबा माया के भूत ने हमको हरा दिया। देहअभिमान के बाद ही तुम माया से हारते हो।
  5. गीता में भी लिखा हुआ है मन्मनाभव। इसको महामंत्र वशीकरण मंत्र कहते हैं अर्थात् माया पर जीत पाने का मंत्र। माया जीते जगतजीत। माया 5 विकार को कहा जाता है। रावण का चित्र बिल्कुल क्लीयर है – 5 विकार स्त्री में, 5 विकार पुरूष में। इनसे गधा अर्थात् टट्टू बन जाते हैं इसलिए ऊपर में गधे का शीश देते हैं। अभी तुम समझते हो ज्ञान बिगर हम भी ऐसे थे।
  6. श्रीमत ही श्रेष्ठ बनाती है। तो श्रेष्ठ नई दुनिया भी जरूर चाहिए ना।
  7. तुम बच्चे समझते हो माया बड़ी प्रबल है। कोई कोई भूल कराती रहती है। कभी कोई उल्टासुल्टा पाप हो तो बाप को सच्ची दिल से सुनाना है। रावण की दुनिया में पाप तो होते ही रहते हैं। कहते हैं हम जन्मजन्मान्तर के पापी हैं। यह किसने कहा? आत्मा कहती हैबाप के आगे या देवताओं के आगे। अभी तो तुम फील करते हो बरोबर हम जन्मजन्मान्तर के पापी थे। रावण राज्य में पाप जरूर किये हैं। अनेक जन्मों के पाप तो वर्णन नहीं कर सकते हो। इस जन्म का वर्णन कर सकते हैं। वह सुनाने से भी हल्का हो जायेगा। सर्जन के आगे बीमारी सुनानी हैफलाने को मारा, चोरी की…., इस सुनाने में लज्जा नहीं आती है, विकार की बात सुनाने में लज्जा आती है। सर्जन से लज्जा करेंगे तो बीमारी छूटेगी कैसे? फिर अन्दर दिल को खाती रहेगी, बाप को याद कर नहीं सकेंगे। सच सुनायेंगे तो याद कर सकेंगे। बाप कहते हैं मैं सर्जन तुम्हारी कितनी दवाई करता हूँ। तुम्हारी काया सदैव कंचन रहेगी। सर्जन को बताने से हल्का हो जाता है। कोईकोई आपेही लिख देते हैंबाबा हमने जन्मजन्मान्तर पाप किये हैं। पाप आत्माओं की दुनिया में पापात्मा ही बने हैं। अब बाप कहते हैं बच्चे, तुम्हें पाप आत्माओं से लेनदेन नहीं करनी है।
  8. नई दुनिया में, पुरानी दुनिया की पढ़ाई थोड़ेही पढ़ना है। तो इतनी ऊंच पढ़ाई पर फिर अटेन्शन देना चाहिए। यहाँ बैठते हैं तो भी कोई का बुद्धियोग अच्छा रहता है, कोई का कहाँकहाँ चला जाता है। कोई 10 मिनट लिखते हैं, कोई 15 मिनट लिखते हैं। जिसका चार्ट अच्छा होगा उनको नशा चढ़ेगाबाबा इतना समय हम आपकी याद में रहे। 15 मिनट से जास्ती तो कोई लिख नहीं सकते। बुद्धि इधरउधर भागती है। अगर सब एकरस हो जाएं तो फिर कर्मातीत अवस्था हो जाए। बाप कितनी मीठीमीठी लवली बातें सुनाते हैं। ऐसे तो कोई गुरू ने नहीं सिखाया। गुरू से सिर्फ एक थोड़ेही सीखेगा। गुरू से तो हज़ारों सीखें ना। सतगुरू से तुम कितने सीखते हो। यह है माया को वश करने का मंत्र। माया 5 विकारों को कहा जाता है। धन को सम्पत्ति कहा जाता है। लक्ष्मीनारायण के लिए कहेंगे इन्हों के पास बहुत सम्पत्ति है। लक्ष्मीनारायण को कभी मातपिता नहीं कहेंगे। आदि देव, आदि देवी को जगत पिता, जगत अम्बा कहते हैं, इनको नहीं। यह स्वर्ग के मालिक हैं। अविनाशी ज्ञान धन लेकर हम इतने धनवान बने हैं। अम्बा के पास अनेक आशायें लेकर जाते हैं। लक्ष्मी के पास सिर्फ धन के लिए जाते हैं और कुछ नहीं। तो बड़ी कौन हुई? यह किसको पता नहीं, अम्बा से क्या मिलता है? लक्ष्मी से क्या मिलता है? लक्ष्मी से सिर्फ धन मांगते हैं। अम्बा से तुमको सब कुछ मिलता है। अम्बा का नाम जास्ती है क्योंकि माताओं को दु: भी बहुत सहन करना पड़ा है। तो माताओं का नाम जास्ती होता है।
  9. संगमयुग को कल्याणकारी युग कहा जाता है इस युग में सदा ये स्वमान याद रहे कि मैं कल्याणकारी आत्मा हूँ, मेरा कर्तव्य है पहले स्व का कल्याण करना फिर सर्व का कल्याण करना। मनुष्यात्मायें तो क्या हम प्रकृति का भी कल्याण करने वाले हैं इसलिए प्रकृतिजीत, मायाजीत कहलाते हैं। जब आत्मा पुरुष प्रकृतिजीत बन जाती है, तो प्रकृति भी सुखदाई बन जाती है। प्रकृति वा माया की हलचल में नहीं सकते। उन्हों पर अकल्याण के वायुमण्डल का प्रभाव पड़ नहीं सकता।
  10. एक दूसरे के विचारों को सम्मान दो तो माननीय आत्मा बन जायेंगे।

30/12/2024

मीठे बच्चेआत्मा रूपी बैटरी को ज्ञान और योग से भरपूर कर सतोप्रधान बनाना है, पानी के स्नान से नहीं

प्रश्नः
इस समय सभी मनुष्य आत्माओं को भटकाने वाला कौन है? वह भटकाता क्यों है?

उत्तर:-
सभी को भटकाने वाला रावण है क्योंकि वह खुद भी भटकता है। उसे अपना कोई घर नहीं है। रावण को कोई बाबा नहीं कहेंगे। बाप तो परमधाम घर से आता है अपने बच्चों को ठिकाना देने। अभी तुम्हें घर का पता चल गया इसलिए तुम भटकते नहीं हो। तुम कहते हो हम बाप से पहलेपहले जुदा हुए अब फिर पहलेपहले घर जायेंगे।

  1. मीठेमीठे बच्चे यहाँ बैठकर समझते हैं, इनमें जो शिवबाबा आये हैं, कैसे भी करके हमको साथ घर जरूर ले जायेंगे। 
  2. हमारा बेहद का बाबा आया हुआ हैहमको वापिस घर ले जाने। रावण का कोई घर नहीं होता, घर राम का होता है। शिवबाबा कहाँ रहते हैं? तुम झट कहेंगे परमधाम में। रावण को तो बाबा नहीं कहेंगे। रावण कहाँ रहते हैं? पता नहीं। ऐसे नहीं कहेंगे कि रावण परमधाम में रहते हैं। नहीं, उनका जैसेकि ठिकाना ही नहीं। भटकता रहता है, तुमको भी भटकाता है। तुम रावण को याद करते हो क्या? नहीं। कितना तुमको भटकाते हैं। शास्त्र पढ़ो, भक्ति करो, यह करो। बाप कहते हैं इसको कहा जाता है भक्ति मार्ग, रावण राज्य। 
  3. दुनिया के मनुष्य तो बिल्कुल कुछ नहीं जानते। कुम्भकरण की नींद में सोये हुए हैं फिर बाप आकर जगाते हैं। अभी तुम बच्चों को जगाया है और सब सोये पड़े हैं। तुम भी कुम्भकरण की आसुरी नींद में सोये हुए थे। बाप ने आकर जगाया है, बच्चों जागो। तुम गाफिल हो (अलबेले हो) सोये पड़े हो, इसको कहा जाता है अज्ञान नींद। वह नींद तो सब करते हैं। सतयुग में भी करते हैं। अभी सब हैं अज्ञान की नींद में। बाप आकर ज्ञान देकर सबको जगाते हैं। अब तुम बच्चे जागे हो, जानते हो बाबा आया हुआ है, हमको ले जायेगा। अभी तो यह शरीर काम का रहा है, आत्मा, दोनों पतित बन पड़े हैं, एकदम मुलम्मे का है। 9 कैरेट कहें अर्थात् बहुत थोड़ा सोना, सच्चा सोना 24 कैरेट का होता है। अब बाप तुम बच्चों को 24 कैरेट में ले जाना चाहते हैं। तुम्हारी आत्मा को सच्चासच्चा गोल्डन एजेड बनाते हैं।
  4. आत्मा निकलकर जाती कहाँ है? दूसरे तन में जाकर प्रवेश करती है। अभी तुम्हारी आत्मा ऊपर चली जायेगी शान्तिधाम। यह पक्का मालूम है बाप आकर हमको घर ले जायेंगे। एक तरफ है कलियुग, दूसरे तरफ है सतयुग। अभी हम संगम पर खड़े हैं। वन्डर है। यहाँ करोड़ों मनुष्य हैं और सतयुग में सिर्फ 9 लाख! बाकी सबका क्या हुआ? विनाश हो जाता है। बाप आते ही हैं नई दुनिया की स्थापना करने।
  5. तुम जानते हो यह लक्ष्मीनारायण विश्व के मालिक थे। फिर ड्रामा का चक्र फिरता है। सम्पूर्ण निर्विकारी बनना है, नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। यह भी जानते हो विकारी से निर्विकारी, निर्विकारी से विकारी, यह 84 जन्मों का पार्ट अनगिनत बार बजाया है। उसकी गिनती नहीं कर सकते। आदमशुमारी भल गिनती कर लेते हैं। बाकी यह जो तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान, सतोप्रधान से तमोप्रधान बनते हो, इनका हिसाब निकाल नहीं सकते कि कितना बार बने हो। बाबा कहते हैं 5 हज़ार वर्ष का यह चक्र है। यह ठीक है। लाखों वर्ष की बात तो याद भी रह सके। अभी तुम्हारे में गुणों की धारणा होती है। ज्ञान का तीसरा नेत्र मिल जाता है। इन आंखों से तुम पुरानी दुनिया को देखते हो। तीसरा नेत्र जो मिलता है, उनसे नई दुनिया को देखना है। यह दुनिया तो कोई काम की नहीं है। पुरानी दुनिया है। नई और पुरानी दुनिया में फ़र्क देखो कितना है। तुम जानते हो हम ही नई दुनिया के मालिक थे फिर 84 जन्म लेतेलेते यह बने हैं। यह अच्छी रीति याद रखना चाहिए और फिर दूसरे को भी समझाना हैकैसे हम यह बनते हैं? ब्रह्मा सो विष्णु, फिर विष्णु सो ब्रह्मा बनते हैं। ब्रह्मा और विष्णु का फ़र्क देखते हो ना। विष्णु कैसा सजासजाया बैठा है और यह ब्रह्मा कैसे साधारण बैठा है। तुम जानते हो यह ब्रह्मा, वह विष्णु बनने वाला है। यह किसको समझाना भी बहुत सहज है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का आपस में क्या सम्बन्ध है? तुम जानते हो यह विष्णु के दो रूप लक्ष्मीनारायण हैं। यही विष्णु देवता सो फिर यह मनुष्य ब्रह्मा बनते हैं। वह विष्णु सतयुग का है, ब्रह्मा यहाँ का है। बाप ने समझाया है ब्रह्मा से विष्णु बनना सेकण्ड में, फिर विष्णु से ब्रह्मा बनने में 5 हज़ार वर्ष लगते हैं। ततत्वम्। केवल एक ब्रह्मा ही तो नहीं बनते हैं ना! यह बातें सिवाए बाप के और कोई समझा सके। यहाँ कोई मनुष्य गुरू की बात नहीं है। इनका भी गुरू शिवबाबा, तुम ब्राह्मणों का भी गुरू शिवबाबा है। उनको सद्गुरू कहा जाता है। तो बच्चों को शिवबाबा को ही याद करना है। कोई को भी यह समझाना तो बहुत सहज हैशिवबाबा को याद करो। शिवबाबा स्वर्ग नई दुनिया रचते हैं। ऊंच ते ऊंच भगवान् शिव है। वह हम आत्माओं का बाबा है। तो भगवान् बच्चों को कहते हैं मुझ बाप को याद करो। याद करना कितना सहज है।
  6. घड़ीघड़ी कहते हैं मनमनाभव। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो, यह बात भूलो मत। देहअभिमान में आने से ही भूल जाते हैं। पहलेपहले तो अपने को आत्मा समझना हैहम आत्मा सालिग्राम हैं और एक बाप को ही याद करना है। बाप ने समझाया है मैं पतितपावन हूँ, मुझे याद करने से तुम्हारी बैटरी जो खाली हो गई है वह भरपूर हो जायेगी, तुम सतोप्रधान बन जायेंगे।
  7. ज्ञान से ही सद्गति होती है। इस समय है ही पाप आत्माओं की झूठी दुनिया। लेनदेन भी पाप आत्माओं से ही होती है। मन्सावाचाकर्मणा पाप आत्मा ही बनते हैं। अभी तुम बच्चों को समझ मिली है। तुम कहते हो हम यह लक्ष्मीनारायण बनने के लिए पुरूषार्थ करते हैं।
  8. सर्व सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए एकाग्रता की शक्ति को बढ़ाओ। यह एकाग्रता की शक्ति सहज निर्विघ्न बना देती है, मेहनत करने की आवश्यकता नहीं रहती। एक बाप दूसरा कोईइसका सहज अनुभव होता है, सहज एकरस स्थिति बन जाती है। सर्व के प्रति कल्याण की वृत्ति, भाईभाई की दृष्टि रहती है। लेकिन एकाग्र होने के लिए इतना समर्थ बनो जो मनबुद्धि सदा आपके आर्डर अनुसार चले। स्वप्न में भी सेकण्ड मात्र भी हलचल हो। 

31/12/2024

  1. ऐसा नहीं, जो सुख देता है वही दु: भी देता है। नहीं, सुख बाप देते हैं, दु: माया रावण देता है।
  2. यह ज्ञान तुम्हें अभी ही मिलता है क्योंकि तुम जानते हो अभी आत्मा पतित बन पड़ी है। पतित होने कारण जो काम करती है वह सभी उल्टा हो जाता है। बाप सुल्टा काम कराते, माया उल्टा काम कराती है।
  3. बाप कहते हैं इस दुनिया में सभी भ्रष्टाचार से पैदा होते हैं। तुम बच्चों से कई पूछते हैं वहाँ जन्म कैसे होगा? बोलो, वहाँ तो 5 विकार ही नहीं, योगबल से बच्चे पैदा होते हैं। पहले ही साक्षात्कार होता है कि बच्चा आने वाला है। वहाँ विकार की बात नहीं। यहाँ तो बच्चों को भी माया गिरा देती है।
  4. सारा मदार पुरूषार्थ पर है। स्कूल में आयेंगे ही नहीं तो कैरेक्टर कैसे सुधरेंगे? इस समय सबके कैरेक्टर्स खराब हैं। विकार ही पहले नम्बर का खराब कैरेक्टर्स है इसलिए बाप कहते हैंबच्चों, काम विकार तुम्हारा महाशत्रु है।
  5. मुख्य है बाप की याद। दैवीगुण भी धारण करने हैं। कोई कुछ छीछी बोले तो सुनाअनसुना कर देना चाहिए। हियर नो ईविलऊंच पद पाना है तो मानअपमान, दु:सुख, हारजीत सब सहन जरूर करना है। बाप कितनी युक्तियाँ बतलाते हैं। फिर भी बच्चे बाप का भी सुनाअनसुना कर देते हैं तो वह क्या पद पायेंगे? बाप कहते हैं जब तक अशरीरी नहीं बने हैं तब तक माया की कुछ कुछ चोट लगती रहेगी। बाप का कहना नहीं मानते तो बाप का डिसरिगार्ड करते हैं। फिर भी बाप कहते हैं बच्चे, सदा जीते जागते रहो और बाप को याद कर ऊंच पद पाओ।
  6. माया की चोट से बचने के लिए अशरीरी रहने का अभ्यास जरूर करना है।

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