संस्कार परिवर्तन से स्व परिवर्तन की प्रक्रिया | Know Thyself | Hindi Version
Video Title: संस्कार परिवर्तन से स्व परिवर्तन की प्रक्रिया | Know Thyself | Hindi Version
Topics Covered in Brief:
विचार कैसे जन्म लेता है ?
विचार कितने प्रकार के होते हैं ?
विचार और भावना का क्या संबंध है ?
वृत्ति क्या है ?
संस्कार क्या है ?
संस्कार परिवर्तन कैसे होता है ?
संस्कार परिवर्तन से स्व परिवर्तन कैसे होता है?
Self Transformation,
How to transform Sanskar ?
Sanskar Transformation to World Transformation.
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Script:
क्या कभी ऐसा हुआ है कि आप एक सुबह उठे हों, और आपके भीतर में से आवाज़ आती है कि आज के सभी plans cancel करके कहीं बाहर प्रकृति के शांत वातावरण में, किसी बाग़ में या समुद्र के किनारे, अकेले चले जाएँ।
आखिरी बार कब आपने अपने लिए समय निकाला और खुद से यह पूछा कि हम अपने उन्ही व्यवहार और उन्हीं भावनाओं को क्यों बार बार दोहराते रहते हैं, जिन्हें हम बदलना चाहते हैं?
आईये इस सेशन में हम ऐसे ही कुछ ख़ास पॉइंट्स पर विचार करेंगे, जैसे कि हमारे मन में विचार कैसे प्रकट होते हैं ? विचार कितने प्रकार के होते हैं ? वृत्ति और संस्कार क्या हैं और हम किस विधि द्वारा उन्हें खत्म कर सकते हैं ?
चलिए हम शुरू करतें है दो पड़ोसी, सोम और हरी, की एक छोटी सी कहानी से शुरू करते हैं।
आधी रात का समय है। सोम पूरा दिन अपने खेत में मेहनत करने के बाद, थक कर, अब इस शांत रात में, अपनी झोपड़ी में सो रहा है, अपनी आस-पास की दुनिया से बेखबर।
फिर भी, अँधेरे में, कुछ चोर ख़ामोशी से, बिना दिखाई दिए, उसके घर में घुस जाते हैं।
कुछ भी मूल्यवान चीज़ न पाकर वो चोर बगल वाले घर की ओर बढ़ते हैं जो हरी का है, और जहां हरी भी गहरी नींद में सो रहा है, और आने वाले खतरे से बिलकुल बेखबर।
जैसे ही चोर घर के अंदर घुसने का प्रयास करते हैं, कुछ अचानक घटित होता है – अचानक अंधेरे में एक तेज रोशनी फैल जाती है। तभी उन सब चोरों में डर फ़ैल जाता है कि उन पर नजर रखी जा रही है, जिससे वे डर कर खाली हाथ भाग जाते हैं।
आप कह सकते हैं कि रोशनी की वजह से सभी चोर चौंक गए। और हाँ, यह सही भी है। उन चोरों के दिखाई आ जाने के डर ने उनके सब plans चौपट कर दिए।
अब इस कहानी तो ऐसे सोचें कि हमारा मन भी लगभग इसी तरह काम करता है।
जिस प्रकार रौशनी हो जाने पर चोर भाग जाते हैं, उसी प्रकार जब हमारी चेतना का प्रकाश, हमारी awareness की light, हमारे नकारात्मक विचारों, negative thoughts, और नकारात्मक भावनाओं , negative emotions, पर पड़ती हैं तो उसी समय वो सभी negative विचार और negative भावनाएं कमज़ोर हो जाती हैं।
क्या आप खुद यह देखना और अनुभव करना चाहेंगे?
आइये एक छोटी सी 10 सेकंड की exercise करते हैं।
आराम से relax हो कर बैठ जाएँ। अपने शरीर को relax रहने दें। कुछ धीमी, गहरी साँसें लें। अपनी आँखें बंद कर लें।
अब अगले दस सेकंड के लिए, धीरे से अपने मन में आने वाले अगले विचार का अनुमान लगाने का प्रयास करें।
क्या आप ऐसा कर पाए ?
शायद नहीं।
क्या आपने notice किया ?
जैसे ही आपका ध्यान आपके भीतर की ओर केंद्रित हुआ, जैसे ही आपने अपने मन को देखा, आपके मन की गति change होने लगती है।
थोड़ा सा ध्यान केंद्रित करने से ही, भले ही कुछ पलों के लिए आपका मन स्थिर हो गया।
आप पूछ सकते हैं, “इस exercise का उद्देश्य क्या है?”
एक और भी गहरा प्रश्न यहाँ उठता है: “जब मैं अपने मन को देख रही थी और अपने अगले विचार का अनुमान लगाने की कोशिश कर रही थी, तो वह कौन था मेरे भीतर, जो वास्तव में मेरे मन को दृष्टा बन कर देख रहा था, मेरे मन की गति पर ध्यान दे रहा था?”
वह दृष्टा जो ख़ामोशी से देख रहा था, वह जो सभी विचारों का साक्षी है – वही आपकी चेतना, आपकी awareness है।क्या कभी ऐसा हुआ है कि आप एक सुबह उठे हों, और आपके भीतर में से आवाज़ आती है कि आज के सभी plans cancel करके कहीं बाहर प्रकृति के शांत वातावरण में, किसी बाग़ में या समुद्र के किनारे, अकेले चले जाएँ।
आखिरी बार कब आपने अपने लिए समय निकाला और खुद से यह पूछा कि हम अपने उन्ही व्यवहार और उन्हीं भावनाओं को क्यों बार बार दोहराते रहते हैं, जिन्हें हम बदलना चाहते हैं?
आईये इस सेशन में हम ऐसे ही कुछ ख़ास पॉइंट्स पर विचार करेंगे, जैसे कि हमारे मन में विचार कैसे प्रकट होते हैं ? विचार कितने प्रकार के होते हैं ? वृत्ति और संस्कार क्या हैं और हम किस विधि द्वारा उन्हें खत्म कर सकते हैं ?
चलिए हम शुरू करतें है दो पड़ोसी, सोम और हरी, की एक छोटी सी कहानी से शुरू करते हैं।
आधी रात का समय है। सोम पूरा दिन अपने खेत में मेहनत करने के बाद, थक कर, अब इस शांत रात में, अपनी झोपड़ी में सो रहा है, अपनी आस-पास की दुनिया से बेखबर।
फिर भी, अँधेरे में, कुछ चोर ख़ामोशी से, बिना दिखाई दिए, उसके घर में घुस जाते हैं।
कुछ भी मूल्यवान चीज़ न पाकर वो चोर बगल वाले घर की ओर बढ़ते हैं जो हरी का है, और जहां हरी भी गहरी नींद में सो रहा है, और आने वाले खतरे से बिलकुल बेखबर।
जैसे ही चोर घर के अंदर घुसने का प्रयास करते हैं, कुछ अचानक घटित होता है – अचानक अंधेरे में एक तेज रोशनी फैल जाती है। तभी उन सब चोरों में डर फ़ैल जाता है कि उन पर नजर रखी जा रही है, जिससे वे डर कर खाली हाथ भाग जाते हैं।
आप कह सकते हैं कि रोशनी की वजह से सभी चोर चौंक गए। और हाँ, यह सही भी है। उन चोरों के दिखाई आ जाने के डर ने उनके सब plans चौपट कर दिए।
अब इस कहानी तो ऐसे सोचें कि हमारा मन भी लगभग इसी तरह काम करता है।
जिस प्रकार रौशनी हो जाने पर चोर भाग जाते हैं, उसी प्रकार जब हमारी चेतना का प्रकाश, हमारी awareness की light, हमारे नकारात्मक विचारों, negative thoughts, और नकारात्मक भावनाओं , negative emotions, पर पड़ती हैं तो उसी समय वो सभी negative विचार और negative भावनाएं कमज़ोर हो जाती हैं।
क्या आप खुद यह देखना और अनुभव करना चाहेंगे?
आइये एक छोटी सी 10 सेकंड की exercise करते हैं।
आराम से relax हो कर बैठ जाएँ। अपने शरीर को relax रहने दें। कुछ धीमी, गहरी साँसें लें। अपनी आँखें बंद कर लें।
अब अगले दस सेकंड के लिए, धीरे से अपने मन में आने वाले अगले विचार का अनुमान लगाने का प्रयास करें।
क्या आप ऐसा कर पाए ?
शायद नहीं।
क्या आपने notice किया ?
जैसे ही आपका ध्यान आपके भीतर की ओर केंद्रित हुआ, जैसे ही आपने अपने मन को देखा, आपके मन की गति change होने लगती है।
थोड़ा सा ध्यान केंद्रित करने से ही, भले ही कुछ पलों के लिए आपका मन स्थिर हो गया।
आप पूछ सकते हैं, “इस exercise का उद्देश्य क्या है?”
एक और भी गहरा प्रश्न यहाँ उठता है: “जब मैं अपने मन को देख रही थी और अपने अगले विचार का अनुमान लगाने की कोशिश कर रही थी, तो वह कौन था मेरे भीतर, जो वास्तव में मेरे मन को दृष्टा बन कर देख रहा था, मेरे मन की गति पर ध्यान दे रहा था?”
वह दृष्टा जो ख़ामोशी से देख रहा था, वह जो सभी विचारों का साक्षी है – वही आपकी चेतना, आपकी awareness है।
आखिरी बार ऐसा कब हुआ जब आपने अपने भीतर चल रहे विचारों और भावनाओं की जांच करने के लिए खुद को समय दिया हो ?
क्या आपके मन में कभी यह प्रश्न आया है कि वास्तव में सोचना क्या है?
चाहे हम इसे planning, योजना कहें, decision making, निर्णय लेना कहें, analysing, विश्लेषण कहें या brain-storming, विचार-मंथन कहें – यह सब सोचना ही है।
सच तो यह है कि हम अपना ज़्यादातर जीवन इसी सोचने की प्रक्रिया में बिताते हैं।
हम जानते हैं कि यह हमारे सोचने का तरीका और हमारे विचारों की quality ही है जो ख़ामोशी से हमारे भीतर में से हमारे जीवन को आकार देती है – हम जीवन में जो निर्णय लेते हैं, हम जो रास्ते अपनाते हैं, यहां तक कि हम जिन लोगों को अपने जीवन में आकर्षित करते हैं। यह सब हमारे सोचने के तरीका और हमारे विचारों की quality पर ही आधारित होता है।
शायद यह प्रश्न भी बहुत उचित होगा कि सही मायनों में “सोचना किसे कहते है? विचार कैसे उत्पन्न होते हैं और कहाँ से उभरते हैं?”
हममें से अधिकांश लोग इस बात से सहमत होंगे कि सोचना किसी एक विचार का चिंतन करने की प्रक्रिया को कहा जाता है।
कुछ लोग इस सोचने की प्रक्रिया को तीन भागों में बांटना चाहेंगे: सबसे पहले हमारे मन में एक विचार उठता है; दूसरा, हम उस विचार को अपनी मानसिक क्षमताओं, जैसे बुद्धि, स्मृति या तर्क का उपयोग करके उसका चिंतन करतें हैं; और तीसरा, हम यह निर्णय लेते हैं कि हम उस विचार से प्रेरित और प्रभावित हो करके क्या Action लें।
यह आखरी step अक्सर हमारे दृढ़ संकल्प की परीक्षा बन जाता है, विशेषकर तब जब हमारा मन अलग-अलग दिशाओं में खींचा जा रहा हो।
इस पानी के बर्तन को ध्यान से देखिए।
जैसे ही कोई चीज़ इसमें गिरती है, इस में लहरें उत्पन्न होने लगती हैं।
और जब वे लहरें बर्तन की दीवारों से टकरातीं हैं, तो नई लहरें पैदा होती हैं जो उस गिराई गई चीज़, उस source की ओर वापस लौटती हैं।
इसी प्रकार, जभी भी हमारी इन्द्रियां – आँख, कान, जीभ, त्वचा या नाक, किसी व्यक्ति या वस्तु के संपर्क में आती हैं या फिर किसी situation में involve हो जाती हैं, तो वह उस सम्पर्क से संबंधित information मन की ओर वापस भेजतीं है।
हम इस को First Contact, प्रथम संपर्क, कह सकते हैं।
हमारे मन में सबसे पहले विचार तब उत्पन्न होता है जब हमारा मन First Contact, प्रथम संपर्क, से प्राप्त हुई information के साथ हमारे भीतर की एक भावना जोड़कर प्रतिक्रिया दिखाता है, यानि react करता है – जैसे पसंद या नापसंद, खुशी या दर्द, हर्ष या दुःख आदि। मन के इस react करने की प्रतिक्रिया को हम राग द्वेष भी कह सकते हैं। इस राग द्वेष की भावना से ही हमारे मन में विचार का जन्म होता है।
इसके विपरीत, यदि हमारा मन किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं देता। यदि सूक्ष्मतम स्तर पर भी हमारा मन First Contact, प्रथम संपर्क, से प्राप्त हुई information के साथ हमारे भीतर की कोई भी भावना नहीं जोड़ता, तो हम उस को Observing State कहते हैं।
लेकिन, जैसे ही हमारे मन के भीतर एक छोटा सा भी कोई विचार उभरता है, तभी First Contact, प्रथम संपर्क, Observing state से उस विचार से जुड़े ‘अनुभव’, Experience, में परिवर्तित हो जाता है, जो फिर हमारी memory, हमारी स्मृति, में store रहता है।
इस stage पर, हमारे मन में वही सोच जब दोबारा प्रकट होती है, तब हमारा मन usually तीन में से एक चीज़ करता है: पहला, उस विचार से प्रभावित हो कर कोई भी Action लेने से पहले फिर सोचता और चिंतन है। दूसरा, या फिर हमारा मन उस विचार में निहित हमारे हृदय की पुरानी भावनाओं और उस विचार से संबंधित हमारी बुद्धि में संग्रहित मान्यताओं के परवाह में उत्तेजित हो करके और बिना सोचे Action ले कर, हमारा मन अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है, react करता है। इसको instinctive reaction कहते हैं। और तीसरा, या फिर हमारा मन ख़ामोशी से उस विचार को उस समय ignore कर भविष्य के लिए रख देता है।
प्रत्येक विचार मन पर अपनी एक विशेष छाप, एक विशेष चिन्ह छोड़ता है, जो उस विचार के भीतर निहित भावना से प्रभावित होता है।
मन के भीतर विचारों से पैदा होने वाले इन चिन्हों को वृत्ति कहा जाता है।
किसी भी विचार पर हम जितना अधिक चिंतन करते हैं, जितना अधिक उसे सोचते हैं, या फिर जैसे जैसे समय बीतता जाता है और हम उस विचार-भावना-कर्म के बंधन को अपने जीवन में जितना दोहरातें जाते हैं, उससे उस विचार, उस विचार के साथ जुड़ी भावना, और उस विचार से प्रेरित हो कर के किए जाने वाले Action कर्म – इन तीनों के बीच का बंधन हमारे भीतर उतना ही मजबूत होता जाता है।
विचार-भावना-कर्म के यह बंधन जब हम अपने जीवन में दोहराते जाते हैं, यह हमारे मन के भीतर बनी वृत्तियों को और भी गहरा करके उन्हें एक नए और अधिक गहरे मानसिक आकार में परिवर्तित कर देते हैं, जिसे हम संस्कार कहते हैं।
हमारे संस्कार वो सूक्ष्म और स्थायी आंतरिक संरचनाएं हैं जो हमारे मन और व्यवहार को आकार देती हैं और हम हमारी बाहरी दुनिया को कैसे अनुभव करतें है उसको प्रभावित करती हैं।
इससे हम यह भी समझ सकते हैं कि जब हम किसी भी विचार पर चिंतन करते हैं या उस पर सोचते हैं, हम अनजाने में ही सही लेकिन हम उस विचार-भावना-कर्म के बंधन को अपने भीतर शक्ति प्रदान कर रहे होते हैं। इस प्रक्रिया द्वारा हम किसी भी वृत्ति को संस्कार में परिवर्तित करतें है और किसी भी संस्कार को अपने भीतर और दृढ़ बनाते हैं।
अब आप सोच रहे होंगे कि इन विचार-भावना-कर्म के बंधनों, इन संस्कारों, को कैसे तोड़ा जा सकता है और हम अपने भीतर के नकारात्मक संस्कारों से कैसे मुक्त हो सकतें हैं ? यह संस्कार, जो हमारे भीतर छिप कर हमारे व्यक्तित्व और व्यवहार को आकार देते हैं – कुछ जिनसे हम परिचित होते हैं और कुछ जो अभी भी हमसे छिपे हुए होते हैं।
इसका उत्तर किसी विचार, किसी thought, को दबाना या suppress करना नहीं है, बल्कि जभी भी कोई ‘विचार’ मन में उठता है, तो एक दृष्टा बन कर, एक witness बन करके, उस विचार को उठते हुए उसे देखना है, उसे observe करना है। उस विचार को शांत ‘बुद्धि’ के माध्यम से जांचना है। अगर वह विचार किसी परिचित व्यक्ति, वस्तु या घटना के बारे में है तो इसका मतलब यही होगा के वो विचार रिपीट हो रहा है। और जो भावना उस विचार के साथ First Contact, प्रथम संपर्क, के बाद से जुड़ी हुई है और उस विचार में निहित है, उस भावना को ध्यानपूर्वक परिवर्तित करना है, change करना है।
जैसे ही आप अपने किसी विचार को एक दृष्टा बनकर देखते हैं और उसको observe करते हैं। उस विचार में निहित भीतर की भावना को धीरे से परिवर्तित करते हैं, तो वह विचार और उसमें निहित भीतर की भावना एक नये Action, एक नये कर्म, को प्रेरित करते है – जिससे उस परिचित व्यक्ति, वस्तु या घटना से संबंधित एक नया “विचार-भावना-कर्म” का बंधन, simple शब्दों में कहें तो एक नया संस्कार, जन्म लेता है।
इस नये संस्कार में निहित विचार-भावना-कर्म के बंधन को जीवन में निरंतर दोहराने से, यह नया संस्कार पुराने संस्कार का स्थान लेने लगता है। और जैसे ही आप इस प्रक्रिया को सचेत हो करके follow करते हैं, आप अपने पुराने दृढ़ संस्कार को तोड़ने और खत्म करने की दिशा में पहला कदम उठाते हैं। इस प्रक्रिया से पुराण संस्कार धीरे-धीरे स्वयं ही विलीन और खत्म होने लगता है।
याद कीजिये उस दस second की exercise को और सोम और हरी की कहानी को, यह दोनों हमें एक ही बात बताती हैं कि हमारे भीतर किसी एक विचार के प्रति विरोध नहीं, बल्कि हमारे खुद की चेतना awareness ही हमारे भीतर परिवर्तन लाती है।
आखिरकार हम अपनी स्मृतियों, पुराणी यादों को मिटा तो नहीं सकते हैं लेकिन हम अपनी पुराणी स्मृतियों और यादों के साथ अपने संबंध को और उनके प्रभाव को परिवर्तित कर सकते हैं।
आप पूछ सकते हैं: ऐसा क्यों होता है कि कुछ विचार positive भावनाओं को जन्म देते हैं, तो कुछ विचार negative भावनाओं को जन्म देते हैं ?
इसका एक simple जवाब यह होगा कि यह हमारे भीतर हमारे मन में उतपन होने वाले विचारों की quality पर depend करता है जिन्हें हम अपने मन में रखतें हैं और हमारी उन भावनाओं की nature पर भी depend करता है जो हमारे हृदय में घर बनाये रह रही हैं।
ऐसा इसलिए है क्योंकि प्रत्येक विचार के भीतर उसके गुण qualities निहित होती हैं और प्रत्येक विचार में एक स्मोहिक शक्ति, hypnotic power होती है जो उस विचार पर बार बार चिंतन करने से और मज़बूत होती है।
इसे और आगे explain करने के लिए, आइए हम चार अलग अलग प्रकार के विचारों को देखतें हैं जो हमारे मन में पैदा होतें हैं। यह चार प्रकार के विचार कौन से हैं:
हमारे मन की सबसे ऊपर की स्तरों में जो विचार पैदा होते हैं उन्हें सभी रत्नों का “सरताज” कहा जाता है। यह वो positive thoughts, ‘सकारात्मक विचार’ हैं जो हमें और हमारे जीवन को बेहतर बनाती है और हमारे भीतर रूहानी आनंद और आत्मिक ज्ञान प्रकट करती हैं।
जभी भी यह सकारात्मक विचार मन में पैदा होते हैं, हमारे भीतर का और हमारे आस पास का वातावरण आत्मा की स्वाभाविक भावनाओं, default emotions से प्रकाशित रहता है। हमारी आत्मा की यह default emotions, स्वाभाविक भावनाएं, कौन सी है: शांति, प्रेम, आनंद, हर्ष, साहस, ज्ञान और पवित्रता।
ऐसा कहा जाता है कि इन सकारात्मक विचारों के द्वारा हमारे भीतर ऐसी ध्वनि उतपन होती है जिसमे दूर एक घर की गन गुनाहट सुनाई देती है जिससे हमारी आत्मा कभी परिचित थी।
इन positive thoughts के नीचे होते हैं वो शांत विचार, जिसे हम ‘आवश्यक विचार’, the ‘Necessary Thoughts’, कहते हैं। यह आवश्यक विचार, ‘Necessary Thoughts’, हमारी रोज़मरहा की ज़िन्दगी में, हमारे दैनिक कार्यों में शांति से हमारी सहायता करते हैं। यह हमारे मन के आंगन में से ऐसे गुज़र जाते हैं, मानो जैसे कोई ऋषि या सन्यासी – बिलकुल मौन, स्थिर और भिक्षुओं की तरह शांत और संतुष्टता से अपने अपने कार्यों में लीन।
इसके बाद आते हैं ‘व्यर्थ विचार’, the ‘Wasteful Thoughts’, जो पृथ्वी के करीब रहते हैं – उपद्रवी, बेचैन और शोरगुल वाले, जो अक्सर बिना किसी उद्देश्य के हमारे मन में भटकते रहते हैं और अपने पीछे व्याकुलता, थकान और भ्रम, doubts, के निशान छोड़ जाते हैं।
यह Wasteful Thoughts, ‘व्यर्थ विचार’, जहां भी प्रकट होते हैं, इनका चंचल और उपद्रवी स्वभाव एक ऐसे अंधकार से भरे हुए विचारों को अपनी तरफ आकर्षित करता है, जिन्हे ‘Negative Thoughts’ कहा जाता है। इन ‘Negative Thoughts’ का एकमात्र उद्देश्य केवल अपने मालिक, अपने bosses, के लिए भोजन इकठा करना ही होता हैं जो कि एक प्राचीन और शक्तिशाली सर्पों की family मानी जाती हैं।
इस सर्पों की family का प्रत्येक सदस्य हमारे मन के भीतर अन्धकार में छिपी हुई भावना का प्रतीक है:
सबसे पहला है माया, जिसे भ्रम और भय की जननी भी कहा जाता हैं। हमारे बाहर जो वास्तविकता, reality, होती है, और जिस वास्तविकता की सूचना हमारी पांचों इन्द्रियां हमारे मन और बुद्धि को देती हैं, माया इन दोनों वास्तविकताओं में भेद उतपन कर हमारे भीतर भ्रम, भय और संदेह को जन्म देती है।
फिर है अहंकार, जो हमें कुछ समय के लिए एक काल्पनिक पहचान देता है जिसका आधार केवल हमारे भीतर का एक भ्रम होता है, जो हमें दूसरों से अलग और special महसूस कराता है।
फिर सबसे पहले इच्छा का जन्म होता है, जिसे काम भी कहा जाता है। जिसकी भूख जन्मों-जन्मों तक फैली रहती है। इसे ‘वासना’ भी कहा जाता है, जिसकी लालसा ऐसे भविष्य का निर्माण करती हैं जिनकी अभी तक कल्पना भी नहीं हो सकती।
क्रोध, इस परिवार के प्रत्येक member का body-guard है, जिसकी जीवा पर आग रहती है और जो एक सांस में ही बुद्धि को कुछ समय के लिए राख में बदल देता है, जभी भी इस परिवार के किसी भी member को कोई इंकार करता है।
लालच या लोभ, जिसकी भूख कभी शांत नहीं होती। जो हमेशा अधिक से अधिक की चाह रखता है।
मोह – इस परिवार का सबसे छोटा और स्नेही सदस्य है जिसे जो भी पसंद आता है, वह उस के ऊपर अपना अधिकार और नियंत्रण रखना चाहता है।
आखिर में है आलस्य, जो हर समय केवल आराम का भूखा रहता है। जिसके स्वभाव में शरीर द्वारा कुछ भी करना या किसी भी कर्म में संलग्न होना नहीं है।
अभी आपने देखा कि यह हमारे भीतर रह रही भावनाएँ ही हैं जो हमारे विचारों का आधार बनती हैं और उन्हें अकार देती हैं। जब कोई भी भावना और विचार एक दुसरे के साथ जुड़ते हैं, तो उससे अनुभव यानि experience रूप लेता है और जो हमारी स्मृति में संग्रहित यानि stored रहता है। हमारे यह विचार ही फिर हमारे शरीर और हमारी कर्मइन्द्रियों द्वारा हमारे कर्मों को संचालित करते हैं।
हमारा किसी विचार पर सोचना, हमारा चिंतन, उस विचार को शक्ति प्रदान करता हैं। इस प्रकार हमारे मन में प्रत्येक विचार को उस विचार में निहित और उससे जुड़ी भावना ही जीवित रखती है, कुछ थोड़े समय के लिए और कुछ जीवन भर के लिए। भविष्य में जब हम अपनी कल्पना में किसी विचार पर सोचते हैं, तो ज़्यादातर वो विचार हमारी स्मृति से ही उभरते हैं और हमसे शक्ति लेकर फिर हमारी स्मृति में वृत्ति या संस्कार के रूप में और दृढ़ हो जाते हैं।
हमने यह भी देखा कि हमारे मन के भीतर कोई भी नकारात्मक विचार, negative thought, और हमारे ह्रदय में छिपी कोई भी नकारात्मक भावना, negative emotion, हमारे भीतर की चेतना यानि awareness की उपस्थिति में, हमारी चेतना के प्रकाश, में जीवित नहीं रह सकती।
तो अगली बार जब आप खुद को प्रकृति के शांत वातावरण में पाएं, किसी बाग़ में या समुद्र के किनारे, तो थोड़ा समय रुकें और ध्यान दें के कौन से पंछी आपके भीतर कौन से गीत गन गुना रहे हैं। और अपनी चेतना, अपनी awareness को उस आत्म प्रकाश के स्रोत के साथ जोड़ें जिसकी उपस्थिति मात्र से ही सभी नकारात्मक विचार, negative thoughts, और नकारात्मक भावनाएं, negative emotions, दूर हो जाती हैं।