Key Points From Daily Murli – 17th March 2025
2. “यह भी गायन है जैसा अन्न वैसा मन।”
3. “तुम्हारी बुद्धि अब स्वच्छ बनती जाती है। स्वच्छ बुद्धि वालों को मलेच्छ बुद्धि नमन करते हैं। पवित्र रहने वालों का मान है। संन्यासी पवित्र हैं तो गृहस्थी उन्हों को माथा टेकते हैं। संन्यासी तो विकार से जन्म ले फिर संन्यासी बनते हैं। देवताओं को तो कहा ही जाता है सम्पूर्ण निर्विकारी। संन्यासियों को कभी सम्पूर्ण निर्विकारी नहीं कहेंगे।”
4. “मैं पन और मेरापन – यही देह अभिमान का दरवाजा है। अब इस दरवाजे को बन्द करो।”
5. “सत्यता की परख है संकल्प, बोल, कर्म, सम्बन्ध–सम्पर्क सबमें दिव्यता की अनुभूति होना। कोई कहते हैं मैं तो सदा सच बोलता हूँ लेकिन बोल वा कर्म में अगर दिव्यता नहीं है तो दूसरे को आपका सच, सच नहीं लगेगा इसलिए सत्यता की शक्ति से दिव्यता को धारण करो। कुछ भी सहन करना पड़े, घबराओ नहीं। सत्य समय प्रमाण स्वयं सिद्ध होगा।”