Key Points From Daily Murli – 23rd February 2025
2. “सर्व समर्पित होने में यह देह भान का मैं–पन ही रूकावट डालता है। कॉमन मैं–पन, मैं देह हूँ, वा देह के सम्बन्ध का मैं–पन, देह के पदार्थों का समर्पण यह तो सहज है। यह तो कर लिया है ना? कि नहीं, यह भी नहीं हुआ है! जितना आगे बढ़ते हैं उतना मैं–पन भी अति सूक्ष्म महीन होता जाता है। यह मोटा मैं–पन तो खत्म होना सहज है। लेकिन महीन मैं–पन है – जो परमात्म जन्म सिद्ध अधिकार द्वारा विशेषतायें प्राप्त होती हैं, बुद्धि का वरदान, ज्ञान स्वरूप बनने का वरदान, सेवा का वरदान वा विशेषतायें, या प्रभु देन कहो, उसका अगर मैं–पन आता तो इसको कहा जाता है महीन मैं–पन। मैं जो करता, मैं जो कहता वही ठीक है, वही होना चाहिए, यह रॉयल मैं–पन उड़ती कला में जाने के लिए बोझ बन जाता है। तो बाप कहते इस मैं–पन का भी समर्पण, प्रभु देन में मैं–पन नहीं होता, न मैं न मेरा। प्रभु देन, प्रभु वरदान, प्रभु विशेषता है। तो आप सबकी समर्पणता कितनी महीन है। तो चेक किया है? साधारण मैं–पन वा रॉयल मैं–पन दोनों का समर्पण किया है?”
3. “तीन बिन्दू – सदा याद रखो। तीनों को अच्छी तरह से जानते हो ना। आप भी बिन्दू, बाप भी बिन्दू, बिन्दू के बच्चे बिन्दू हो। और कर्म में जब आते हो तो इस सृष्टि मंच पर कर्म करने के लिए आये हो, यह सृष्टि मंच ड्रामा है। तो ड्रामा में जो भी कर्म किया, बीत गया, उसको फुल–स्टॉप लगाओ। तो फुलस्टॉप भी क्या है? बिन्दू। इसलिए तीन बिन्दू सदा याद रखो।”
4. “कर्म शुरू करने के पहले जैसा कर्म वैसी शक्ति का आह्वान करो। मालिक बनकर आर्डर करो क्योंकि यह सर्व–शक्तियां आपकी भुजा समान हैं, आपकी भुजायें आपके आर्डर के बिना कुछ नहीं कर सकती। आर्डर करो सहन शक्ति कार्य सफल करो तो देखो सफलता हुई पड़ी है। लेकिन आर्डर करने के बजाए डरते हो – कर सकेंगे वा नहीं कर सकेंगे। इस प्रकार का डर है तो आर्डर चल नहीं सकता इसलिए मास्टर रचयिता बन हर शक्ति को आर्डर प्रमाण चलाने के लिए निर्भय बनो।”
5. “जैसे काई इन्वेन्टर कोई भी इन्वेन्शन निकालने के लिए एकान्त में रहते हैं। तो यहाँ की एकान्त अर्थात् एक के अन्त में खोना है, तो बाहर की आकर्षण से एकान्त चाहिए। ऐसे नहीं सिर्फ कमरे में बैठने की एकान्त चाहिए, लेकिन मन एकान्त में हो। मन की एकाग्रता अर्थात् एक की याद में रहना, एकाग्र होना यही एकान्त है।”